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पीएम मोदी ने 2014 में जहां की थी ‘चाय पर चर्चा’ वहां के किसान अब क्या सोचते हैं?
21-Apr-2024 6:40 PM
पीएम मोदी ने 2014 में जहां की थी ‘चाय पर चर्चा’ वहां के किसान अब क्या सोचते हैं?

दिगंबर गुल्हाने

-श्रीकांत बंगाले
‘जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी यहां आए थे तो उन्होंने 16-17 वादे किए थे। उनमें से कोई भी पूरा नहीं हुआ। क्या यही मोदी की गारंटी है?’

यह कहते हुए दिगंबर गुल्हाने दोनों हाथ अपने सिर की ओर ले जाते हैं। दिगंबर गुल्हाने महाराष्ट्र के यवतमाल जिले के दाभडी गांव में रहते हैं।

इसी गांव में 20 मार्च, 2014 को उस समय एनडीए के प्रधानमंत्री पद के दावेदार और अब भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किसानों के साथ ‘चाय पर चर्चा’ की थी।
साल 2014 के चुनाव से पहले आयोजित इस कार्यक्रम में देशभर के 1,500 से अधिक स्थानों के किसानों ने ऑनलाइन भाग लिया, जबकि दाभडी में किसानों ने व्यक्तिगत रूप से मोदी से बातचीत की थी।

इस चर्चा के दौरान मोदी ने किसानों की समस्याएं जानीं और बताया कि उनके लिए क्या समाधान हो सकता है।

उस समय पीएम मोदी ने कहा था, ‘मैं देश के किसानों को विश्वास दिलाता हूं कि हम देश के कृषि क्षेत्र को बदल सकते हैं। देश का जीवन स्तर बदल सकता है। देश के गांवों को बदल सकते हैं। मुझे बस आपका समर्थन चाहिए। हम देश के किसानों के जीवन में बहुत बड़ा बदलाव लाएंगे।’

साल 2014 में एनडीए सरकार बनी और नरेंद्र मोदी भारत के प्रधानमंत्री बने। अब इस बात को 10 साल हो गए हैं। नरेंद्र मोदी लगातार तीसरी बार आम लोगों से सरकार बनाने के लिए चुनाव प्रचार में जुटे हैं।

लेकिन उन्होंने दस साल पहले जो वादे किए थे, उनकी क्या स्थिति है? क्या उनकी सरकार के दौरान किसानों के जीवन में कुछ बदलाव आया है?

‘चाय पर चर्चा’ कार्यक्रम में मोदी ने आत्महत्या करने वाले किसानों के परिजनों से बातचीत की थी। पिछले 10 सालों में उनके जीवन में क्या बदलाव आया है? ये जानने के लिए बीबीसी मराठी की टीम दाभडी पहुंची।

हम लोग सुबह करीब 9 बजे दाभडी पहुंचे। दाभडी गांव यवतमाल जि़ले के अरनी तालुका में आता है। गांव के मुख्य चौराहे के पास एक खेत है। इसी फार्म में पीएम मोदी का ‘चाय पर चर्चा’ कार्यक्रम हुआ था।

थोड़ा आगे बढऩे पर रास्ते में हमारी मुलाकात भास्कर राऊत से हुई। वे एक गाड़ी पर कपास की फसल लाद रहे थे। उन्होंने बताया कि अरनी तालुका में जहां दाभडी गांव स्थित है, वहां कॉटन कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया यानी सीसीआई की ओर से होने वाली खरीद बंद होने के कारण वे निजी व्यापारियों को कपास बेच रहे हैं। भास्कर के पास चार एकड़ खेत है। इसमें वे कपास का उत्पादन करते हैं।

‘बाघ और सांप से ख़तरा’
जब उनसे कपास की क़ीमत के बारे में पूछा तो, उन्होंने कहा, ‘कपास की दरें उलट गई हैं। 15 दिन पहले तक रेट 7700 तक चला गया था। आज यह 7,200 या 7,300 तक है। लेकिन हम लोगों को 9-10 हज़ार का रेट मिलने की उम्मीद थी।’

भास्कर 2014 में अपने गांव में हुए नरेंद्र मोदी के कार्यक्रम में शामिल हुए थे।

पिछले 10 सालों में किसानों के जीवन में क्या बदलाव आया है? इस सवाल पर उन्होंने कहा, ‘2014 के बाद यह संतोषजनक नहीं है, लेकिन बदलाव ज़रूर आया है। जहां तक कृषि उपज की क़ीमत की बात है तो यह अंतरराष्ट्रीय बाज़ार के हिसाब से तय होती है। 2014 से पहले भी कपास की क़ीमतें कम थीं। यह 10 वर्षों में बढ़ी हैं।’

भास्कर ने बताया कि उन्हें पीएम किसान योजना के तहत हर साल छह हजार रुपये मिल रहे हैं। प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना के तहत केंद्र सरकार किसानों को सालाना छह हजार रुपये की वित्तीय सहायता प्रदान करती है। यह योजना 2019 में शुरू हुई थी।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 28 फरवरी 2024 को यवतमाल में विकास कार्यों का उद्घाटन किया। इस मौके पर मोदी ने पीएम किसान के लाभार्थियों की जानकारी देते हुए कहा था, ‘पीएम किसान सम्मान निधि योजना के तहत अब तक देशभर के 11 करोड़ किसानों के खातों में 3 लाख करोड़ से ज़्यादा की रकम जमा हो चुकी है। इसमें महाराष्ट्र के किसानों को 30 हज़ार करोड़ रुपये और यवतमाल के किसानों को 900 करोड़ रुपये मिले हैं।’

लेकिन, प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना को लेकर भास्कर का अनुभव अच्छा नहीं है। प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के तहत, किसानों को अपर्याप्त वर्षा, ओलावृष्टि, बाढ़, तूफान, सूखा या फसल में कीट लग जाने जैसी प्राकृतिक आपदाओं से फसल को हुई क्षति पर ही बीमा का लाभ मिलता है।

भास्कर ने कहा, ‘फसल बीमा योजना में फजऱ्ीवाड़ा हो रहा है। गांव के दो-तीन किसानों को ही फ़ायदा होता है। मैंने बीमा के लिए आवेदन किया था। कपास को नुकसान हुआ। लेकिन मुझे कोई फ़ायदा नहीं मिला।’

हमने दाभडी में पीएम किसान योजना और फसल बीमा योजना के लाभार्थियों के बारे में जानने के लिए कृषि अधिकारियों से संपर्क किया।

अरनी तालुका के कृषि अधिकारी आनंद बडख़ल ने बीबीसी मराठी को बताया, ‘दाभडी गांव के 383 किसानों को पीएम किसान योजना का लाभ मिल रहा है। 2023-24 में 550 किसानों को स्थानीय आपदा क्षतिपूर्ति हेतु 32 लाख 17 हजार का बीमा प्राप्त हुआ है। इस साल फसल कटाई के बाद के बीमा मामले अभी तक तय नहीं हुए हैं।’

पीएम मोदी ने ‘चाय पर चर्चा’ में कहा था, ‘यह सरकार की जिम्मेदारी है कि वह किसानों के उत्पादन की न्यूनतम लागत वहन करे। खेती में उपयोग होने वाली चीजें कम कीमत पर उपलब्ध होनी चाहिए और किसान को उसकी उपज का उचित मूल्य मिलना चाहिए। इससे युवा कृषि क्षेत्र में आएंगे और यह किया जा सकता है।’

आज 10 साल बाद भी दाभडी के किसान अपनी कृषि उपज की सही कीमत का इंतज़ार कर रहे हैं। भास्कर बताते हैं, ‘किसानों को सरकार से केवल एक ही उम्मीद है, वह है हमें हमारी उपज का सही मूल्य मिलना। हमें कुछ भी मुफ्त नहीं चाहिए। कीमत उत्पादन की लागत के मुताबिक होनी चाहिए।’

भास्कर के मुताबिक किसानों की हालत आर्थिक रूप से खस्ताहाल होती जा रही है क्योंकि लागत अधिक है और मूल्य कम मिलता है।

भास्कर ये भी बताते हैं कि हमें खेती के लिए दिन में बिजली मिलनी चाहिए। रात की बजली हम किसानों के लिए बाघ और सांप के ख़तरे साथ लेकर आता है। बाघ हमारे सिर को दबोचता है जबकि सांप पैर में काट सकता है।’

‘आजकल बिना मुंह भरे कुछ नहीं होता’
भास्कर से बातचीत के बाद जब हम आगे बढ़े तो एक घर के सामने गाय और उसका बछड़ा बंधा हुआ दिखा। ये डिके परिवार का घर है। दरअसल पीएम मोदी ने ‘चाय पर चर्चा’ कार्यक्रम में इस परिवार से बातचीत की थी।

जब मैं घर के पास गया तो मैंने देखा कि दीवारें मिट्टी से सनी हुई हैं। अनिकेत हॉल में बैठे थे। ‘चाय पर चर्चा’ के वक्त वह 14 साल के थे।

उन्होंने इस कार्यक्रम में मोदी को बताया था कि उनके पिता ने आत्महत्या क्यों की थी। 51 वर्षीय मीरा दिलीपराव डिके अनिकेत की मां हैं। अनिकेत ने उन्हें बुलाया तो वे हॉल में आकर बातें करने लगीं।

उन्होंने बताया, ‘मेरे पति ने 2005 में आत्महत्या कर ली थी। क्योंकि खेती से आमदनी नहीं हो रही थी। बैंक का कर्ज था। उस दिन मैं मज़दूरों के साथ खेत पर गई थी। उन्होंने घर में ही फांसी लगा ली। उन्होंने मुझसे कहा था कि तुम आगे जाओ, मैं पीछे से आऊंगा। उस समय अनिकेत दूसरी कक्षा में और स्नेहा छठी कक्षा में थी।’

महाराष्ट्र में अगर किसी किसान की आत्महत्या सरकारी मानदंडों के अनुसार ‘आत्महत्या’ की श्रेणी में आती है, तो परिवार को एक लाख रुपये की वित्तीय सहायता दी जाती है। मीरा को वह मदद मिल गई थी, लेकिन इस रकम के सहारे जीवन भर गुज़ारा नहीं चल सकता। 2006 से मीरा आंगनवाड़ी में सहायिका के तौर पर काम करने लगीं।

मीरा अनिकेत की ओर देखते हुए कहती हैं, ‘मैंने अपने बच्चों का पालन-पोषण कितनी मुश्किलों से किया है। इतनी शिक्षा देने से कोई लाभ नहीं है, कोई काम धंधा नहीं है। आजकल बिना रिश्वत दिए कुछ नहीं होता।’

अनिकेत ने अमरावती से बीसीए की पढ़ाई पूरी की है। वह फिलहाल नौकरी की तलाश में हैं।

पीएम मोदी के कार्यक्रम के बाद किसानों के जीवन में क्या बदलाव आया है, इस सवाल पर मीरा ने कहा, ‘मोदी जी ने कहा था कि हम किसानों के लिए ये सब करेंगे, लेकिन कुछ नहीं किया गया। किसानों को सोयाबीन और कपास का दाम नहीं मिल रहा है। दूसरी ओर, मजदूरी दरों में वृद्धि हुई है।’

अनिकेत ने कहा, ‘आज तक कुछ भी नहीं बदला है।’

अनिकेत की मां ये भी बताती हैं कि उन्हें किसी तरह की योजना का लाभ नहीं मिलता है। इतना ही नहीं अनिकेत के मुताबिक पिता की आत्महत्या के बाद उनके नाम की जमीन उनके चाचा के नाम कर दी गई और इसके चलते प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि का लाभ उनके चाचा को मिलता है।

क्या 2024 में आपकी आय दोगुनी हो गई? ऐसा सवाल पूछे जाने पर अनिकेत का जवाब था, ‘नहीं।’

हालांकि अनिकेत ने यह भी कहा, ‘किसानों के लिए योजनाएं हैं। किसानों को उनका लाभ मिल रहा है। यह नहीं कहा जा सकता कि केंद्र सरकार ने कुछ नहीं किया। हमारे यहां भी राज्य सरकार अपने स्तर पर कुछ नहीं कर रही है। तीन पार्टियों की सरकार है, आप कह सकते हैं कि एक थाली में तीन लोग खाना खाने बैठे हैं और कोई भूखा नहीं है।’ 

‘मोदी भारत के प्रधानमंत्री हैं, उनके खिलाफ नहीं बोल सकते’
हमारी बातचीत चल ही रही थी कि अनिकेत के चाचा विनोद डिके घर में आ गए। उनके हाथों से लग रहा था कि वे खेतों की तरफ से आ रहे हैं।

क्या चल रहा है काम, मैं बात करने लगा। उन्होंने कहा, ‘15 दिन से खेत में लाइट नहीं है। खराबी का पता चला और लाइट चालू कर दी गई। अगर आज रोशनी नहीं आती तो पूरी फसल खराब हो जाती।’

यह कहते हुए उन्होंने अपने हाथों पर लगे काले धब्बे दिखाए। दस साल में आपकी जि़ंदगी में क्या बदलाव आया है, इस सवाल पर उन्होंने कहा, ‘कुछ नहीं बदला, आप स्थिति देखिए। मोदी सर ने कहा था कि हम आत्महत्या करने वाले पीडि़तों के बेटों को सेवा देंगे, लेकिन कुछ नहीं दिया गया। लेकिन मोदी भारत के प्रधानमंत्री हैं, हम उनके खिलाफ नहीं बोल सकते।’

दोपहर में गांव में घूमने के दौरान कुछ लोग पूछने लगते हैं कि ये क्या सर्वे हो रहा है। जब मैं गांव की नेम प्लेट की फोटो लेने लगा तो मोटरसाइकिल पर दो युवक आए और पूछा कि क्या काम है।

ग्रामीणों ने इसलिए लगाया बैनर
दाभडी की आबादी करीब तीन हज़ार है। गांव के लोग अपनी आजीविका के लिए कृषि पर निर्भर हैं। कुछ लोग तालुका स्थानों में काम करने के लिए अरनी जाते हैं। वहां दुकानों में मजदूर का काम करते हैं।

दाभडी में खरीफ सीजन के दौरान कपास और सोयाबीन जैसी फसलें उगाई जाती हैं। रबी सीजन में गेहूं, चना की फसल पैदा होती है। गांव से सटी नहर और कुएं का पानी खेती के लिए पानी का मुख्य स्रोत है।

कुछ समय बाद हमारी मुलाकात विजय वानखड़े से हुई। वह दाभडी की सरपंच सरिता वानखड़े के पति हैं। विजय के पास 10 एकड़ खेत है।

बीबीसी मराठी से विजय ने कहा, ‘मैं मोदी के कार्यक्रम में था। घटना के बाद कुछ भी नहीं बदला। सब कुछ वैसा का वैसा है। कुछ नहीं बदला है। 2014 के बाद भी गांव में एक-दो किसानों ने आत्महत्या की है।’

‘मोदी ने कपड़ा मिलों, सोयाबीन प्रसंस्करण उद्योग का वादा किया था। तो लोगों को लगा कि वो सच में ऐसा करने जा रहे हैं। मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद बड़ा उत्साह था, लोगों को लगा था कि वादे पूरे होंगे।’

विजय ने बताया, ‘मोदी को उनके वादे याद दिलाने के लिए गांव में बैनर लगाया गया कि आपने वादे किए थे, पूरे नहीं किए, यहां ध्यान दीजिए। लेकिन, उस दिन चैनल पर बोलने वालों को ही एक दिन के लिए थाने में नजऱबंद रखा गया। उन्हें लगा कि ये लोग मोदी के कार्यक्रम में बाधा डालेंगे।’

चैनल पर बोलने के बाद नोटिस मिला
नरेंद्र मोदी 28 फरवरी, 2024 को यवतमाल में विभिन्न परियोजनाओं का उद्घाटन करने वाले थे। यहां उनकी बैठक निर्धारित थी।

इस बैठक से पहले दाभडी के ग्रामीणों ने मोदी को उनके वादों की याद दिलाते हुए गांव में एक बैनर लगाया था।

इस बैनर के सामने कुछ लोगों ने मीडिया से बातचीत की। इसमें दिगंबर गुल्हाने और गणेश राठौड़ शामिल थे। मोदी की सभा से पहले अरनी पुलिस की ओर से उन्हें नोटिस जारी किया गया था।

बीबीसी मराठी से दिगंबर ने कहा, ‘हमने 25 फरवरी को चैनल पर बात की थी। इसके बाद हमें नोटिस भेजा गया। मोदी की सभा से पहले हम कोई हंगामा ना करें, इसके लिए गणेश राठौड़ और मुझे पूरे दिन अरनी थाने में नजऱबंद रखा गया। वहीं बिठाया गया। मोदी की सभा तक हम नहीं निकल सके। लेकिन मैंने सच बोला।’

‘नहीं बोलोगे तो बाबा साहेब को क्या जवाब दोगे?’
दिगंबर के पास तीन एकड़ खेत है। वे इसमें कपास का उत्पादन करते हैं। उन्होंने आगे कहा, ‘आपका कपास जिला है, मोदी ने कई घोषणाएं की थीं जैसे हम यहां कपड़ा उद्योग लगा देंगे, हम किसान के बेटों के लिए दुकानें खोल देंगे। उन्होंने ऐसा भी नहीं किया।’

2014 में दाभडी में एक कार्यक्रम में दाभडी के तत्कालीन सरपंच ने पीएम मोदी से सवाल पूछा था कि विदर्भ और यवतमाल के किसानों को कपास-सोयाबीन की अच्छी कीमत दिलाने के लिए आप क्या करेंगे?

उस पर प्रतिक्रिया देते हुए, मोदी ने कहा था, ‘जो लोग यहां कपास उगाते हैं, हमें मूल्य वृद्धि के लिए जाना होगा। आज क्या हो रहा है यहाँ कपास का निर्माण होता है, सूत बनाने के लिए कोल्हापुर जाना पड़ता है। यदि कपास यहां है तो धागा यहां क्यों नहीं बनता? जब धागा यहीं बनता है तो कपड़ा यहां क्यों नहीं बनता? अगर यहां कपड़े बनते हैं तो रेडीमेड कपड़े क्यों नहीं बनते? इससे कपास का मूल्यवर्धन होगा। इससे कपास किसानों को फायदा होगा।’

दिगंबर ने कहा कि प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना के तहत 2 हज़ार रुपये मिल रहे हैं।

लेकिन उन्होंने आगे कहा, ‘मोदी पीएम किसान योजना में दो हज़ार देते हैं। हम डीएपी खाद लेते हैं। कांग्रेस काल में इसकी क़ीमत 500 रुपये थी। अब इसके लिए 1700 रुपये चुकाने होंगे। एक लाख की खाद पर 18 हज़ार जीएसटी देना होगा। एक बच्चे की पेंसिल पर 25 फीसदी जीएसटी लगता है और चावल मुफ्त में मिलता है।’

जब उनसे पूछा गया कि पुलिस नोटिस के बारे में वह क्या सोचते हैं तो उन्होंने कहा, ‘ऐसा करना ठीक नहीं है। क्योंकि हम बाबा साहेब द्वारा दिए गए अधिकार का उपयोग करते रहे हैं। मैं नहीं बोलूंगा तो बाबा साहेब को क्या जवाब देंगे? मैं सच बोलना बंद नहीं करूंगा।’

भास्कर राऊत की तरह दिगंबर गुल्हाने ने भी फसल बीमा योजना को लेकर अपना अनुभव साझा किया। उन्होंने कहा, ‘पीक बीमा का निरीक्षण करते हैं। उसके लिए आने वाले लडक़े 500 रुपये लेते हैं। तो फिर आप कैसे कह सकते हैं कि यह सरकार भ्रष्ट नहीं है?’

इस बीच, अरनी तालुका के कृषि अधिकारी आनंद बडख़ल ने बीबीसी मराठी को बताया कि अगर कोई फसल बीमा निरीक्षण के लिए 500 रुपये लेता है, तो किसानों को इसे लिखित रूप में देना चाहिए और संबंधित के ख़िलाफ़ मामला दर्ज कराना चाहिए।
किसान मौखिक रूप से शिकायत करते हैं कि उन्हें फसल बीमा का लाभ नहीं मिलता है। बडख़ल ने बताया, ‘हमने अपील की थी कि किसी को भी फसल बीमा निरीक्षण के लिए भुगतान नहीं करना चाहिए।’

दिगंबर कहते हैं, ‘हमें पीएम किसान सम्मान राशि नहीं चाहिए, हमें कजऱ् माफ़ी नहीं चाहिए। किसान की उपज का उचित मूल्य ही मिलना चाहिए। किसान दुनिया की रोटी और मक्खन मुहैया कराते हैं। सरकार को इसके बारे में सोचना चाहिए।’

क्या कहते हैं क्षेत्र के विधायक?
भाजपा के संदीप धुर्वे अरनी-केलापुर निर्वाचन क्षेत्र के मौजूदा विधायक हैं।

दाभडी गांव के विकास कार्यों के सवाल पर बीबीसी मराठी से उन्होंने कहा, ‘दाभडी गांव के मामले में सबसे बड़ा मुद्दा पुल था। यह गांव और मंदिर को जोडऩे वाला एक पुल था। उनके लिए ढाई करोड़ रुपये स्वीकृत किए गए थे। इसका भूमिपूजन भी संपन्न हो गया। इसके अलावा आरओ वॉटर प्लांट ने भी काम किया है।’

नरेंद्र मोदी ने 2014 में किए वादे पूरे नहीं किए हैं। इसको लेकर ग्रामीणों में नाराजग़ी है। इस बारे में पूछे जाने पर संदीव धुर्वे ने कहा, ‘नरेंद्र मोदी ने उस वक्त प्रोसेस इंडस्ट्री की बात की थी। लेकिन, उद्यमियों के बीच से भी किसी को आगे आना चाहिए। उद्यमियों में से कोई भी कपास और सोयाबीन को संसाधित करने के लिए सामने नहीं आया है।’

उन्होंने कहा, ‘मेरा निर्वाचन क्षेत्र चंद्रपुर लोकसभा के अंतर्गत आता है। उन्होंने आगे कहा कि हमारे वर्तमान उम्मीदवार सुधीर मुनगंटीवार ने कपास आधारित प्रसंस्करण उद्योग लाने का वादा किया है।’

‘मोदी ने किसानों के लिए बहुत कुछ किया है’
2014 में ‘चाय पर चर्चा' कार्यक्रम से पहले नरेंद्र मोदी ने कैलास अरंकार के खेत में जाकर नुकसान का जायज़ा लिया था। जैसे ही हम गांव के मुख्य चौराहे पर वापस आए, खेत फिर से दिखाई देने लगा।

फार्म मालिक कैलास अरंकर ने बीबीसी मराठी को बताया, ‘चाय पर चर्चा के उसी दिन, मोदी ने दोपहर तीन बजे हमारे खेतों में नुकसान का निरीक्षण किया था। क्योंकि उस समय ओलावृष्टि हुई थी और चने और गेहूं की फसल को नुकसान हुआ था। उस साल गांव में लगभग 17 आत्महत्याएं हुई थीं।’

मोदी के 10 साल के कार्यकाल के सवाल पर उन्होंने कहा, ‘जब मोदी गांव आए तो उन्होंने कहा, ‘हमें बताएं कि आपकी समस्याएं क्या हैं?' मोदी ने कोई आश्वासन नहीं दिया थे। लेकिन मोदी जी ने बहुत कुछ किया है। लोग यह नहीं समझते। गांव में पानी की टंकी का निर्माण कराया गया है, सडक़ों का निर्माण कराया गया है, मंदिर के लिए बैठक कक्ष की व्यवस्था की गई है। प्रधानमंत्री ने किसानों के लिए बहुत कुछ किया है।’

‘चैनलों ने हमारे गांव को नुकसान पहुंचाया है, आप जाइए’
दोपहर करीब एक बजे जब हम लोग गांव के मुख्य चौराहे पर पहुंचे तो वहां कुछ लोग बातें कर रहे थे। जब उनसे पूछा गया कि चुनाव का माहौल क्या है तो एक शख्स ने कहा, ‘हम इस बारे में बात नहीं कर रहे हैं।’

दूसरे ने कहा, ‘क्या पूछ रहे हो? फिर मेरे साथ वाले आदमी ने उनसे स्थानीय बोली में बात की तो हमारी बातचीत होने लगी।’

पीएम मोदी के आने और जाने के बाद क्या बदला, इस सवाल पर एक शख्स ने कहा, ‘गांव में कुछ नहीं हुआ, इसलिए हमने यहां ‘चाय पर चर्चा’ का बैनर लगा दिया।’
उन्हें रोकते हुए अनिल राठौड़ ने गांव में बनी पानी की टंकी की ओर इशारा किया और कहने लगे, ‘2014 के बाद गांव में पानी सप्लाई के लिए एक करोड़ रुपये की टंकी बनी थी। हंसराज अहीर के गृह मंत्री रहते हुए गांव में 50 लाख की सीमेंट-कंक्रीट सडक़ें बनाई गईं। मोदी के गांव आने के बाद विकास तो हुआ, लेकिन उतना नहीं, जितना चाहिए था।’
हंसराज अहीर विदर्भ से बीजेपी नेता हैं। वो केंद्रीय गृह राज्य मंत्री रह चुके हैं।

यह पूछे जाने पर कि और क्या किया जाना चाहिए, अनिल ने कहा, ‘हमें गांव में एक बैंक की जरूरत है। हमारे बच्चों के खेलने के लिए एक स्टेडियम की ज़रूरत है। साथ ही एक गोदाम की भी जरूरत है ताकि किसान वहां 1000-2000 बोरियां रख सकें।’
‘हमारा देश बड़ा है, सरकार को हर चीज का ध्यान रखना पड़ता है। सब कुछ एक बार नहीं होगा। हमारे विधायक पांच साल में एक बार भी हमसे मिलने नहीं आए।’
किशन चव्हाण दाभडी गांव की विवादों को निपटाने वाली तंटामुक्त समिति के पूर्व अध्यक्ष हैं।

उन्होंने कहा, ‘मोदी जब भी यवतमाल आते थे, तो हमारे गांव का नाम लेते ही थे। इस साल वह यवतमाल आए थे। लेकिन उन्होंने हमारे गांव का नाम नहीं लिया।’

इस मुद्दे को आगे बढ़ाते हुए अनिल राठौड़ ने कहा, ‘समाचार चैनलों की वजह से हमारे गांव को नुकसान हुआ है। जब चैनल आया तो गांव के लोगों ने कहा, ‘गांव में कोई काम नहीं हुआ है।’ तब नेताओं को लगता है कि गांव के लोगों ने काम करने के बावजूद कुछ नहीं कहा। वही रिपोर्ट ऊपर जाती है। फिर नेता गांव के लिए कुछ नहीं करते। इसलिए अब तुम जाओ।’

2014 के बाद भी आत्महत्या का सिलसिला जारी है
पीएम मोदी ने इस गांव में 2014 में कहा था कि आत्महत्या कृषि की समस्याओं का समाधान नहीं है।

उन्होंने कहा था, ‘हम सब मिलकर इस समस्या का समाधान निकालेंगे। मैं उम्मीद करता हूं कि दिल्ली में एक ऐसी सरकार बने जो किसानों के प्रति इतनी संवेदनशील होगी, नीतियां प्रगतिशील होंगी और किसानों की रक्षा होगी, किसान प्रगति करेंगे।’
लेकिन, 2014 के बाद भी दाभडी गांव में किसानों की आत्महत्या जारी है। गणेश राठौड़ के चाचा वि_ल राठौड़ ने 2015 में आत्महत्या कर ली थी।

बीबीसी मराठी से गणेश ने बताया, ‘मेरे चाचा वि_ल राठौड़ ने मोदी जी के आने के बाद 2015 में आत्महत्या कर ली थी। आत्महत्या के बाद हमें सरकार से आर्थिक सहायता मिली।’

ज्ञानेश्वर मानकर के किसान भाई ने 2017 में आत्महत्या कर ली थी। उनका नाम कैलास मानकर था। ज्ञानेश्वर ने कहा कि कैलास ने कर्ज के कारण आत्महत्या की थी।
राज्य सरकार के आंकड़ों के मुताबिक, 2024 के पहले दो महीनों में महाराष्ट्र में 427 किसानों ने आत्महत्या की है। इनमें से सबसे ज़्यादा 48 आत्महत्याएं यवतमाल में हुई हैं।

28 फरवरी 2024 को नरेंद्र मोदी यवतमाल के दौरे पर थे। इस अवसर पर उनके द्वारा विभिन्न परियोजनाओं का उद्घाटन किया गया। इस मौके पर मोदी ने यवतमाल के लोगों की तारीफ़ की।

उन्होंने कहा, ‘जब मैं 10 साल पहले ‘चाय पर चर्चा’ करने यवतमाल आया था तो आपने मुझे बहुत आशीर्वाद दिया था। फिर मैं फरवरी 2019 में यवतमाल आया। फिर भी आपने हम पर प्यार बरसाया। अब, 2024 के चुनाव से पहले, जब मैं विकास के उत्सव में भाग लेने आया हूं, तो पूरे देश में एक ही नारा सुनाई दे रहा है  ‘अब की बार, चार सौ पार।’

पीएम मोदी ने अपने संबोधन में कहा, ‘यवतमाल में गरीबों, किसानों, युवाओं और महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए काम किया गया है। आज किसानों को सिंचाई की सुविधा मिल रही है। गरीबों को पक्के घर मिल रहे हैं। गांव की महिलाओं को आर्थिक मदद मिल रही है। युवाओं को उनका भविष्य बनाने वाला इंफ्रास्ट्रक्चर मिल रहा है।’
मोदी ने यह भी कहा, ‘पिछले 10 साल से हम गांव में रहने वाले हर परिवार की समस्याओं को दूर करने के लिए नियमित तौर पर कोशिश कर रहे हैं।’

मोदी से बातचीत करने वाले विशेषज्ञ अब क्या सोचते हैं?
‘चाय पर चर्चा’ कार्यक्रम के दौरान पीएम मोदी ने कृषि क्षेत्र के विशेषज्ञ के तौर पर किशोर तिवारी से बातचीत की। वे कई सालों से विदर्भ में कृषि मुद्दों पर काम कर रहे हैं। उन्होंने पीएम मोदी से पूछा था कि यूपीए-1 और यूपीए-2 सरकार के दौरान विदर्भ में करीब 11 हज़ार किसानों ने आत्महत्या की थी। किसानों की आत्महत्या के लिए सरकारी नीतियां जि़म्मेदार लगती हैं तो क्या आप यूपीए सरकार की इन किसान विरोधी नीतियों को जारी रखेंगे या हम एनडीए से उम्मीद कर सकते हैं?

इसके जवाब में पीएम मोदी ने नदी जोड़ो परियोजना और सिंचाई के महत्व पर प्रकाश डाला था। पीएम मोदी ने तब कहा था, ‘अगर हम पूरे देश की अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करना चाहते हैं, तो हमें कृषि-समर्थक नीतियों को मजबूत करना होगा। बीजेपी और एनडीए अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा की गई सभी पहलों को मजबूत करना चाहते हैं।’

लेकिन क्या मोदी सरकार ने पिछले 10 सालों में किसानों के लिए नीतियां मजबूत की हैं, तो किशोर तिवारी कहते हैं, ‘मोदी जी ने कहा था कि मेरी सरकार किसानों के मुद्दों पर काम करेगी। उन्होंने 2019 तक उस दिशा में प्रयास किया। लेकिन, 2019 के बाद छोड़ दिया। 2019 से 2024 तक सरकार की योजना के तहत किसानों के लिए बहुत कुछ नहीं हुआ है। सरकार सिफऱ् दावे करती रही है। मोदी के कार्यकाल में भी कई किसानों ने आत्महत्या की है।’

आत्महत्या करने वाले किसानों के परिवार के अनिकेत और मीरा को अब भी सरकार से उम्मीदें हैं। उनका कहना है कि केंद्र में कोई भी सरकार आए, उसे मुख्य रूप से दो काम करने चाहिए।

अनिकेत कहते हैं, ‘सरकार को यथासंभव अधिक से अधिक रिक्तियों पर भर्ती करनी चाहिए। बच्चों को रोजग़ार देना चाहिए, ताकि वे अवसाद का शिकार न बनें। और सरकार को किसानों के साथ खड़ा होना चाहिए। कुछ योजनाएं सरकार की ओर से आती हैं। लेकिन, किसान को इसकी जानकारी नहीं है। योजनाओं के बारे में किसानों को बताना चाहिए।’ उनकी मां मीरा ने कहा, ‘हमारे बच्चों को नौकरी मिलनी चाहिए। सरकार को किसान की उपज का दाम देना चाहिए।’ जब हम अनिकेत के घर से निकले तो वह और उनकी माँ हमें छोडऩे घर के बाहर आए। जब हम उन्हें अलविदा कह रहे थे तो अनिकेत ने कहा, ‘सर, नौकरी के बारे में कुछ हो, तो बताना।’ (bbc.com/hindi)

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