ताजा खबर

राजपथ-जनपथ : ऐसा पहली बार हुआ है
23-Apr-2024 2:39 PM
राजपथ-जनपथ : ऐसा पहली बार हुआ है

ऐसा पहली बार हुआ है 

पीएम नरेंद्र मोदी के एयरपोर्ट पर स्वागत के लिए बूथ स्तर के दर्जनभर कार्यकर्ताओं को आमंत्रित किया गया है। आमतौर पर पीएम के स्वागत के लिए बड़े नेताओं में होड़ मची रहती है। छोटे और बूथ स्तर के कार्यकर्ता तो मंच के आसपास भी नहीं फटक पाते हैं। लेकिन अब ऐसे सीधे पीएम को गुलाब भेंट करने का मौका मिल रहा है। 

बताते हैं कि मुलाकातियों की सूची प्रदेश संगठन ने केंद्रीय नेतृत्व के निर्देश पर तैयार की है, और इसके लिए जिलाध्यक्षों से बूथ स्तर के पदाधिकारियों के नाम मांगे गए थे। यह पहली बार हो रहा है जब छोटे कार्यकर्ता सीधे पीएम से मिल पा रहे हैं। 

कहा जा रहा है कि केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह की पहल पर पहली बार पार्टी के राष्ट्रीय नेताओं के जिलों में आगमन पर स्वागत के लिए स्थानीय नेताओं को बुलाने के निर्देश दिए गए थे। खुद शाह का जहां प्रवास होता है वहां प्रदेश के बड़े नेताओं के बजाए उस संभाग के प्रमुख नेता ही स्वागत के लिए मौजूद रहते हैं। इस पहल का अच्छा निचले स्तर के कार्यकर्ताओं में अच्छा संदेश गया है। 

लापता सांसद 

भाजपा ने कांग्रेस के तीन राज्यसभा सदस्यों के ‘लापता’ वाले पोस्टर जारी किए, तो राजनीतिक हलकों में खलबली मच गई। पार्टी के दो राज्यसभा सदस्य राजीव शुक्ला, और रंजीत रंजन का आनन-फानन में दौरा कार्यक्रम बन गया। 

राजीव शुक्ला तो सफाई देते दिखे कि वो विधानसभा चुनाव में भी प्रचार के लिए आए थे। यही नहीं, छत्तीसगढ़ के विषयों को राज्यसभा में प्रमुखता से उठाते हैं जबकि भाजपा के सांसद खामोश रहते हैं। अलबत्ता, तीनों राज्यसभा सदस्यों में रंजीत रंजन का जरूर आती-जाती हंै।  उन्होंने सांसद निधि के मद की राशि अलग-अलग विधानसभा क्षेत्रों में खर्च भी किए हैं। मगर वो भी विधानसभा चुनाव के बाद छत्तीसगढ़ नहीं आई। केटीएस तुलसी का तो चुनाव से कोई लेना देना नहीं है। 

तुलसी सुप्रीम कोर्ट के वकील हैं। वो पार्टी के नेताओं को कानूनी सलाह देते हैं। मगर राज्यसभा सदस्य बनने के बाद छत्तीसगढ़ के किसी मुद्दे को प्रमुखता से उठाया हो, और यह चर्चा का विषय बना हो ऐसी कोई बात अब तक सामने नहीं आई है। ऐसे में भाजपा नेताओं के पोस्टर से कांग्रेस बैकफुट में आ गई है। 

पायलट का अमित को ऑफर?

छत्तीसगढ़ का एक प्रमुख राजनीतिक परिवार फिलहाल चुनावी गतिविधियों से दूर है। उनके साथ ही उनकी पार्टी भी चुनाव में हिस्सा नहीं ले रही है। यह है पहले मुख्यमंत्री अजीत जोगी का परिवार है। जोगी के निधन के बाद उनकी पत्नी डॉ. रेणु जोगी की विधायकी से सदन में मौजूदगी बनी हुई थी। उनके हारने के बाद परिवार में अब दो पूर्व विधायक हैं। हल्ला है कि कॉलेज मेट सचिन पायलट ने अमित जोगी को कांग्रेस में आने का प्रस्ताव दिया था। अमित की केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह से भी भेंट हुई है। कुछ करीबियों का कहना है कि डॉ. रेणु कांग्रेस और अमित का रुझान भाजपा की ओर है। लोकसभा चुनाव के दौरान निर्णय हो सकता है।

गुस्सा धनेंद्र कमेटी क्यों झेले

कांग्रेस से भाजपा में जाने मची भगदड़ पर रोक लगाने एक कमेटी बनाई गई। पूर्व अध्यक्ष धनेंद्र साहू इसके कमांडर हैं। जो असंतुष्ट लोगो की नाराजगी दूर कर भाजपा में जाने से रोकेगी। इस कमेटी की अभी तक तो छत्तीसगढ़ में कोई खास उपलब्धि दिखाई नहीं दे रही। 

एक वरिष्ठ कांग्रेसी ने कहा कि कमेटी का नाम पकड़ो मत जाने दो होना चाहिये। जो पार्टी छोड़ स्वहित में जा रहे उनके लिए पकड़ो मत,जाने दो और जो नाराज हैं उनके लिये पकड़ो, मत जाने दो। लेकिन दिक्कत यह है कि अब तक दूसरी श्रेणी के नेताओं से भी कमेटी ने बात नहीं की है। पांच वर्ष तक खीर किन्हीं और लोगों ने खाया और गुस्सा ये क्यों झेले?

किसका घोटाला असरदार?

दूसरे चरण के मतदान के पहले भाजपा ने चुनाव प्रचार में भाजपा ने पूरी ताकत झोंक दी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का छत्तीसगढ़ में रात रुकने का भी यही संकेत है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह व राष्ट्रीय अध्यक्ष जयप्रकाश नड्डा चुनाव घोषित होने के पहले और बाद में कई दौरे कर चुके। योगी आदित्यनाथ, राजनाथ सिंह जैसे राष्ट्रीय स्तर के नेता लगातार सभाएं ले रहे हैं। मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय धुआंधार प्रचार कर ही रहे हैं। भाजपा नेता अपने भाषणों में राम मंदिर, मोदी की गारंटी, 2047 के लिए विकसित भारत के विजन का तो जिक्र कर रहे हैं, पर छत्तीसगढ़ की कांग्रेस सरकार के दौरान हुए कथित घोटालों की चर्चा से बिल्कुल नहीं चूक नहीं रहे हैं। प्राय: प्रत्येक भाषण में शराब, कोयला और गोबर खरीदी में हुए घोटालों का जिक्र हो रहा है। इन मामलों में पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के करीबी कई अफसर और व्यवसायी जेल में हैं। विधानसभा चुनाव के दौरान इन घोटालों को जोर-शोर से उठाने के कारण भाजपा को सत्ता में वापसी में मदद भी मिली थी। पर लोकसभा चुनाव में भाजपा के खिलाफ इलेक्टोरल बॉंड का मुद्दा सामने आ गया। देश के दूसरे राज्यों में इंडिया गठबंधन और कांग्रेस इसे लगातार उठा रही है। इसे वह सत्ता के दम पर की गई इतिहास की अब तक की सबसे बड़ी चंदा वसूली बता रही है।

छत्तीसगढ़ में कांग्रेस के स्टार प्रचारकों ने भी इस मुद्दे को उठाया है और शायद आगे होने वाली सभाओं में भी उठाएं। मगर, दिखाई यह देता है कि कांग्रेस कार्यकाल के घोटालों की वजह से इलेक्टोरेल बांड के मुद्दे को छत्तीसगढ़ में फीका करने का मौका भाजपा को मिल गया है।

इस बीच जेल काट रहे आरोपियों की जमानत अर्जी भी अदालतों से खारिज हो गई। उल्टे वे लोग गिरफ्तार कर लिये गए, जिन्होंने बड़ी मुश्किल से बाहर रहने या बाहर निकल आने का मौका मिल पाया था। भाजपा इसे भी लपक रही है। सौम्या चौरसिया की एक और जमानत अर्जी दो दिन पहले खारिज हो गई। इसके बाद कुछ भाजपा पदाधिकारियों ने बघेल को पत्र लिखकर पूछा है कि गिरफ्तारी होने के बाद वे चौरसिया का बचाव कर रहे थे, कार्रवाई गलत बता रहे थे, अब जमानत नहीं मिलने पर क्या कहना है? क्या वह केवल अपने लिए वसूली 
करती थी?

नोटा चुनाव नहीं जीत सकता !

नोटा एक ऐसा काल्पनिक उम्मीदवार है, जिसका नामांकन कभी रद्द नहीं होता, क्योंकि उसे यह भरना ही नहीं पड़ता। सन् 2004 में एक याचिका लगाई गई थी जिसमें सुप्रीम कोर्ट से मांग की गई थी कि यदि किसी भी प्रत्याशी को कोई मतदाता वोट नहीं देना चाहता, लेकिन मतदान का इच्छुक हो तो उसे अपना असंतोष व्यक्त करने का विकल्प मिलना चाहिए। इस याचिका का उद्देश्य यह था कि राजनीतिक दल ज्यादा जिम्मेदारी के साथ ऐसे उम्मीदवारों का चयन करें जिसकी अच्छी पृष्ठभूमि हो। यह अलग बात है कि इसके बावजूद भ्रष्टाचार व अन्य आपराधिक मामलों में लिप्त प्रत्याशियों की संख्या कम नहीं हो रही है। सन् 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने नोटा के विकल्प का आदेश दिया। सबसे पहले जहां इसका प्रयोग किया गया उनमें छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव भी शामिल था।

इन दिनों गुजरात के सूरत लोकसभा सीट की चर्चा है, जहां कांग्रेस के उम्मीदवार का पर्चा रद्द हो जाने और बसपा प्रत्याशी सहित बाकी उम्मीदवारों की नाम वापसी के बाद भाजपा के मुकेश दलाल अकेले चुनाव मैदान में रह गए। जिला निर्वाचन अधिकारी ने बिना देर किए उन्हें निर्विरोध निर्वाचित घोषित कर जीत का प्रमाण पत्र भी सौंप दिया।

इसके बाद सोशल मीडिया पर मुद्दा गर्म है। कहा जा रहा है कि कांग्रेस उम्मीदवार का नामांकन रद्द हुआ, बाकी उम्मीदवारों ने भी ज्ञात अज्ञात कारणों से मैदान छोड़ दिया, पर नोटा तो मैदान में डटा ही है न? दलाल को एकतरफा निर्वाचित घोषित करने से उन मतदाताओं का हक तो मारा गया, जो नोटा को वोट देना चाहते थे। भले ही भाजपा प्रत्याशी के मुकाबले नोटा में काफी कम वोट जाते, पर कीमत तो एक-एक वोट की होती है।

यह एक ऐसा सवाल है जो आज सूरत में खड़ा हुआ है, कल देश की किसी दूसरी सीट पर भी हो सकता है। न केवल लोकसभा चुनाव में, बल्कि विधानसभा चुनाव और स्थानीय स्तर पर राज्य के आयोग द्वारा कराये जाने वाले चुनावों में भी।

लगे हाथ याद दिला दें कि हरियाणा में दिसंबर 2018 में पांच नगर निगमों के पार्षद चुनाव के दौरान उन सीटों पर दोबारा चुनाव की प्रक्रिया अपनाई गई थी, जिनमें नोटा को सर्वाधिक वोट मिल गए थे। महाराष्ट्र राज्य चुनाव आयोग ने भी ऐसा ही प्रावधान कर रखा है। पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त टीएस कृष्णमूर्ति का तो इसके आगे बढक़र एक सुझाव दिया था। वे कहते थे कि यदि हार जीत के अंतर से अधिक वोट नोटा के हों तो उनमें भी फिर चुनाव कराए जाएं। पर भारत निर्वाचन आयोग का नियम अभी यह है कि नोटा वोटों को रद्द माना जाएगा। जीत हार का फैसला इस काल्पनिक उम्मीदवार के वोटों से नहीं होगा।

([email protected])

अन्य पोस्ट

Comments

chhattisgarh news

cg news

english newspaper in raipur

hindi newspaper in raipur
hindi news