संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : दुश्मन तो बस राजधानियों में बसा करते हैं, बाकियों के दिल साथ-साथ धडक़ते हैं..
29-Apr-2024 4:15 PM
‘छत्तीसगढ़’ का  संपादकीय : दुश्मन तो बस राजधानियों में बसा करते हैं, बाकियों के  दिल साथ-साथ धडक़ते हैं..

हिन्दुस्तान-पाकिस्तान सरहद के दोनों ओर गिने-चुने ताकतवर लोगों की सरकारी और फौजी नफरत या रणनीति के बीच पाकिस्तान की 19 बरस की आयशा के सीने में हिन्दुस्तानी दिल धडक़ता है। उसके दिल के ट्रांसप्लांट के बिना उसका अधिक वक्त जिंदा रहना मुमकिन नहीं था, और हिन्दुस्तान के चेन्नई के अस्पताल और डॉक्टरों ने यह ट्रांसप्लांट किया, और इस ऑपरेशन के लिए पाकिस्तान में रकम भी इकट्ठा नहीं हो पाई थी, हिन्दुस्तानी डॉक्टरों और अस्पताल में एक ट्रस्ट की मदद से आयशा को नई जिंदगी देने की यह पहल और कोशिश की है। बीबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक ऐश्वर्यम ट्रस्ट अब तक 175 हार्ट ट्रांसप्लांट में मदद कर चुका है, और दूसरे बहुत से इलाज और ऑपरेशन में भी। 

हिन्दुस्तान और पाकिस्तान के बीच जो सरहदी तनातनी चल रही है, उसके पहले तक लोगों की सीधी आवाजाही थी, ट्रेन और बस से लोग आते-जाते थे, और अनगिनत पाकिस्तानियों को हिन्दुस्तान की बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं से नई जिंदगी मिलती थी। जब तक सरकारों के बीच तनातनी नहीं हुई, तब तक हिन्दुस्तान में जनता को यह कभी नहीं लगा कि पाकिस्तानियों को हिन्दुस्तान में इलाज क्यों मिले। लेकिन जब सरकारों, फौजों, और राजनीतिक दलों को खाई खोदना सुहाने लगा, तो फिर जनता के बीच भी नफरत के फतवे तैरने लगे। इलाज की बात तो अलग रही, जो रोजाना के हर किस्म के कारोबार की बात थी, और दोनों देशों के बीच आपसी मुनाफे का जो हाल था, उसे भी राजधानियों में बैठे लोगों की राजनीति और रणनीति ने खराब कर दिया। दोनों मुल्कों के बीच करोड़ों लोगों की सरहद पार रिश्तेदारी है, उनका भी आना-जाना बंद सरीखा हो गया। अब किसी और मुल्क से होते हुए भारत और पाकिस्तान के बीच आवाजाही हो पाती है, और वह भी बड़ी सिमट गई है। दोनों देश सरहद पर फौजी खर्च बर्बाद किए जा रहे हैं, बर्फ लदी सरहद पर हर बरस जाने कितने ही जवान शहीद या कुर्बान हो जाते हैं, लेकिन राजधानियों को रिश्ते सुधारना नहीं सुहा रहा है। तनाव को इस दर्जे पर ले जाया गया है कि फिल्म और टीवी के कारोबार में भी सरहद पार के लोगों का आकर काम करना रोक दिया गया है, और जो जनता दोनों तरफ के फिल्म, संगीत को पसंद करती है, उसे भी मन मारकर चुप रहना पड़ता है। 

लोगों को याद होगा कि जब सुषमा स्वराज हिन्दुस्तान में विदेश मंत्री थीं, तब पाकिस्तान में भारत की एक गीता नाम की लडक़ी जाने किस तरह वहां गुम हो गई थी, और वहां के एक बहुत बड़े समाजसेवक, अब्दुल सत्तार ईधी परिवार की देखरेख में थी, और वहां पर वह हिन्दू धर्म का पालन भी करती थी, और उस परिवार ने उसे बेटी की तरह अपनाया हुआ था। सरहद के दोनों तरफ इंसानियत की खूबी कही जाने वाली ऐसी बहुत सी कहानियां बिखरी हुई हैं, और इनसे दोनों तरफ इंसानों का एक-दूसरे पर भरोसा बना हुआ है। दिक्कत सिर्फ राजधानियों में बसे हुए नेताओं और फौजी अफसरों को है जिनको अपने घरेलू दिक्कतों से उबरने के लिए भी सरहद पर तनातनी और पड़ोसी से रिश्ते बिगाडऩे में सहूलियत लगती है। नतीजा यह है कि दोनों देशों के गरीबों की रोटी के हक बेचकर फौजों पर खर्च किया जा रहा है, और हवा में दुश्मन पेश करके अपने-अपने लोगों को हवा में लाठी चलाने की खुशी मुहैया कराई जा रही है। 

हम फिर आयशा की बात पर लौटें, तो इन दोनों मुल्कों की हकीकत यही है। किस तरफ के डॉक्टर, किस तरफ के मरीज, किस तरफ किसी मरीज से मिला हुआ दिल, किस तरफ जमा की गई रकम, इनमें से कुछ भी आड़े नहीं आता, और भले लोग बिना किसी भेदभाव के, किसी धर्म या मजहब का ख्याल किए बिना एक-दूसरे के काम आते हैं। हम यहां पर इस बात और बहस में भी जाना नहीं चाहते कि कौन किसके अधिक काम आते हैं, और कौन किसके कम। लेकिन सच तो यह है कि एक फिल्म, बजरंगी भाईजान, की कहानी की तरह दोनों तरफ के लोग एक-दूसरे की मदद करने को अपनी जान देने पर भी उतारू रहते हैं, और असल जिंदगी की ढेरों कहानियां इस फिल्म की तरह हैं। सरहद के दोनों तरफ और दोनों धर्मों के लोगों में से गिनती में ऐसे लोग कम ही हैं जो कि नफरत के फतवों पर जिंदा रहते हैं, ऐसे लोग खबरों में सुर्खियां अधिक पाते हैं, और नफरती टीवी चैनल इन्हीं की हेट-स्पीच पर सवार होकर गलाकाट मुकाबला करते हैं, लेकिन इससे दोनों मुल्कों  के कारोबार की बचत नहीं हो पा रही, और गरीबों की बड़ी रकम तनातनी में बर्बाद भी हो रही है। आज जब दुनिया के कुछ देशों के बीच की सरहद मिटाकर उन्हें एक किया जा रहा है, उस वक्त हिन्दुस्तान और पाकिस्तान के बीच की दीवार ऊंची की जा रही है। इस नौबत को अगर समझदारी से खत्म किया जाए, तो शायद दोनों तरफ हर गरीब बच्चे को रोजाना एक गिलास दूध मिल पाएगा। 

तमिलनाडु के जिस ट्रस्ट, जिस अस्पताल, और जिन डॉक्टरों ने यह ऑपरेशन किया है, और जिस मरीज से यह दिल मिला होगा, इन सबका योगदान दोनों देशों के बीच रिश्ते सुधारने में बहुत बड़ा है। ये लोग न तो सरहद पर हैं, न मुल्कों की राजधानियों में हैं, लेकिन इनकी रहमदिली और दरियादिली से एक नौजवान लडक़ी को नई जिंदगी मिली है, और दोनों तरफ के अमन-पसंद लोगों को अपनी बात आगे बढ़ाने की एक वजह भी मिली है। हम इस एक हार्ट ट्रांसप्लांट को महज एक जिंदगी देने वाला नहीं मानते, हम इसे सरहद के आरपार सद्भावना बढ़ाने का एक मौका भी मानते हैं, और जिन लोगों का इंसानियत के बेहतर पहलुओं पर भरोसा हो, उन्हें ऐसे मामले बढ़ाते भी रहना चाहिए। जिस तरह फिल्म बजरंगी भाईजान देखने वालों को यह समझ पड़ता है कि सीमा के कंटीले तार दोस्ती और मोहब्बत को नहीं रोक पाते हैं, भला काम करने की नीयत को नहीं रोक पाते हैं, ठीक वैसी ही भावना और मदद अभी के इस ट्रांसप्लांट में सामने आई है। हमारी दोनों ही मुल्कों से यह गुजारिश है कि फौजी तनातनी से परे आम जनता की आवाजाही, कारोबार, खेल, फिल्म, टीवी, और साहित्य सरीखे मामलों को सरकारी दखल से अलग रखें, और इंसानों के बीच बेहतर आपसी रिश्ते एक दिन सरकारों को भी साथ बैठकर सुलह करने को मजबूर कर सकते हैं। यह एक अलग बात है कि कोई सुलह न होना इन सरकारों को अधिक सुहा रहा होगा, लेकिन हम इसी बात पर आज की चर्चा खत्म करना चाहेंगे कि चेन्नई के अस्पताल में हिन्दुस्तानी दिल पाने वाली पाकिस्तानी युवती इन दोनों मुल्कों के बीच एक किस्म का पुल बनी है, और इस पर चलकर बेहतर रिश्तों की आवाजाही होनी चाहिए। (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक) 

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