संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : धरती को बचाने महंगी जीवनशैलियां मिटाने ईको-आतंकी जन्मेंगे?
02-May-2024 3:54 PM
‘छत्तीसगढ़’ का  संपादकीय : धरती को बचाने महंगी जीवनशैलियां मिटाने  ईको-आतंकी जन्मेंगे?

आज रोज के मुद्दों से हटकर एक काल्पनिक मुद्दे पर लिखने की जरूरत लग रही है। दुनिया के अलग-अलग देशों में जिस रफ्तार से मौसम की मार अधिक कड़ी होती जा रही है, और बार-बार बढ़ रही है, उसे देखते हुए यह तो समझ आ रहा है कि यह सिलसिला बेकाबू है, और इसके पहले कि लोग समझ पाएं कोई देश-प्रदेश या तो डूब जाएंगे, या सूखे के शिकार होकर खाली हो जाएंगे। दुनिया के देशों को हांकने वाले लोगों को अब तक जलवायु परिवर्तन के खतरों का अंदाज नहीं हो रहा है, क्योंकि ताकतवर देश अपनी अधिक खपत के चलते इसके लिए अधिक जिम्मेदार हैं, और इसकी मार जिन गरीब देशों पर अधिक पड़ रही है वे कुछ करने की हालत में नहीं हैं। 

ऐसे में हम दो चीजों को मिलाकर देखना चाहते हैं। पहला तो आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस जो कि लगातार जंगली हिरण की तरह छलांगें लगाकर आगे बढ़ रहा है, और उसकी क्षमता और संभावना आज भी कहां तक पहुंच गई है, यह किसी के सामने साफ नहीं है। दूसरी तरफ दुनिया में वैचारिक रूप से इंसाफ के हिमायती लोग हैं, जिनमें से कई लोग तरह-तरह के हथियारबंद आंदोलनों को छेड़ देते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि इंसाफ उसी रास्ते लाया जा सकता है। इसके साथ-साथ अब कम्प्यूर हैकिंग और साइबर हमलों के इस युग में हथियारबंद होना भी जरूरी नहीं रह गया, क्योंकि महज कम्प्यूटरों का इस्तेमाल करके हथियारों के मुकाबले हजारों गुना अधिक नुकसान पहुंचाया जा सकता है, जिसमें लहू भी नहीं बहता। ऐसे ही अगर दुनिया के कुछ वैचारिक रूप से आतंकी लोग यह तय कर लें कि जिन देशों, तबकों, या लोगों की वजह से दुनिया खत्म हो रही है, और वे ऐसे लोगों को हटा देना चाहें, तो क्या यह मुश्किल होगा? हम किसी को हिंसा सुझा नहीं रहे हैं, लेकिन धरती की बर्बादी से फिक्रमंद कुछ लोगों को बिना हिंसा के अगर इसे रोकना सूझेगा, तो वे आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस की मदद से क्या-क्या कर सकते हैं यह जरूर सोचना चाहिए। 

हमारे जैसी बहुत मामूली जानकारी, और जरा सी समझ रखने वाले लोग भी यह समझ सकते हैं कि धरती की तमाम बर्बादी हाल के कुछ सौ बरसों के भीतर की है, और आबादी के एक छोटे हिस्से की खपत और कारोबारी चाह के चलते धरती खत्म हो रही है। इंसानों के रहने के तौर-तरीकों, और उनकी हसरतों के कारण धरती के साधन अंधाधुंध रफ्तार से खत्म हो रहे हैं, और सबसे संपन्न तबका इसके लिए सबसे अधिक जवाबदेह है। ऐसे में धरती को बचाने का बीड़ा उठाने वाले कुछ लोगों को लग सकता है कि धरती पर सबसे अधिक खपत वाले लोगों को कैसे रोका जाए? संपन्न और विकसित देशों में टिड्डों की तरह फुदकने वाले छोटे-छोटे निजी हवाई जहाज और हेलीकॉप्टरों की शिनाख्त एआई के लिए पल भर का काम है, और इन सबके संचार उपकरण कहीं न कहीं कम्प्यूटरों से जुड़े हुए हैं, अगर कोई पर्यावरण-आतंकी ठान लें, तो वे इन सबको तरह-तरह से खराब या खत्म करने का काम कर सकते हैं। हम जुर्म के तरीके बताना नहीं चाहते, लेकिन जुर्म के खतरों की तरफ से आगाह जरूर कर रहे हैं। 

इसी तरह दुनिया में बिजली की सबसे अधिक निजी खपत करने वाले ग्राहकों की जानकारी बिजली कंपनियों के कम्प्यूटरों से पल भर में निकाल ली जाएगी, उनके पते मिल जाएंगे, और अगर एक साथ ऐसे करोड़ों ग्राहकों की बिजली सप्लाई में खलबली मचा दी जाएगी, तो बिजलीघर ठप्प पड़ जाएंगे। इंसाफ के लिए साइबर-आतंक पर अगर लोग उतारू हो जाएंगे, तो वे सबसे संपन्न तबके के लोगों की शिनाख्त के हजारों मौजूद तरीकों का इस्तेमाल करेंगे, बैंकों के सबसे बड़े ग्राहकों को देख लेंगे, शेयर मार्केट और कारोबार के सबसे बड़े खिलाडिय़ों को देखे लेंगे, और दुनिया में सबसे महंगी कारों के ग्राहक, सबसे बड़े मकानों के मालिक पहचान लेंगे, और इन सबकी जिंदगी के किसी भी पहलू से जुड़े हुए कम्प्यूटरों पर हमले करके इनका जीना हराम कर देंगे, ताकि धरती के सामानों और साधनों की इनकी खपत ठप्प पड़े। पता लगेगा कि न इनके बैंक खाते काम कर रहे हैं, न इनके अस्पताल रिकॉर्ड मिल रहे हैं, और न ही इनके फोन या ईमेल काम कर रहे हैं। आज के मामूली साइबर मुजरिमों से परे, आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस की अकल्पनीय ताकत से लैस नए किस्म के समर्पित ईको-आतंकी अगर जुट जाएंगे, तो वे धरती पर अधिक खपत और फिजूलखर्ची की तमाम चीजों को ठप्प कर सकते हैं। सबसे ऑलीशान होटल और रिसॉर्ट ठप्प कर सकते हैं, फैशन के कारोबार तबाह कर सकते हैं जो कि फिजूल की खपत खड़ी करते हैं। 

जिन लोगों को आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस से लैस साइबर-मुजरिमों की ताकत का अंदाज नहीं है, वे यह समझ लें कि इंटरनेट से किसी भी तरह जुड़ी उनकी गाडिय़ां किसी भी दिन ठप्प हो जाएंगी, मैकेनिक को बुलाने मोबाइल काम नहीं करेंगे, ईमेल बंद हो जाएंगे, एटीएम कार्ड काम नहीं करेंगे, बैंकों के पास उनका कोई रिकॉर्ड नहीं रह जाएगा, ट्रैफिक सिग्नल बेकाबू हो जाएंगे, पेट्रोलियम कंपनियों से पंपों तक ईंधन नहीं आ पाएगा, बिजली और गैस सप्लाई ठप्प हो जाएगी, पानी का इंतजाम ठप्प हो जाएगा, ट्रेन और प्लेन के रिजर्वेशन खत्म हो जाएंगे, इतना सब कुछ एक साथ हो जाएगा, तो फिर क्या होगा? हॉलीवुड की कई फिल्मों में पिछले बीस-पच्चीस बरस में इस किस्म की तबाही दिखाई गई है, और आज के लोग तो अगर उनका फोन और ईमेल ठप्प हो जाए, तो भी दिन भर का काम चलाने लायक नहीं रह जाएंगे। 

इंसान जिस रफ्तार से पर्यावरण, दूसरे प्राणियों, जैव विविधता, प्रकृति, और धरती को खत्म करने में लगे हुए हैं, ऐसे में सचमुच ही कुछ ऐसे आतंकी खड़े हो सकते हैं जो घड़ी को सौ-दो सौ बरस पहले ले जाकर वहां छोडऩा चाहें। ऐसे फिक्रमंद-आतंकी बिजली, दूसरे तरह के प्रदूषण, और खपत, इसको एकमुश्त नीचे लाकर जलवायु परिवर्तन को बहुत अधिक धीमा कर सकते हैं, और किसी अपराध कथा लेखक के लिए यह एक दिलचस्प विषय हो सकता है कि धरती को बचाने के लिए बर्बाद करते लोगों को कैसे तबाह किया जाए। इसमें हमको जरा भी हैरानी नहीं होगी, क्योंकि कुछ किस्म की राजनीतिक प्रतिबद्धता वाले लोग भी यह मान सकते हैं कि धरती को और पर्यावरण को बचाने के लिए, दुनिया की अधिकतर गरीब आबादी को बचाने के लिए, धरती की बर्बादी के जिम्मेदार सबसे संपन्न तबकों को कैसे रोक दिया जाए। आज भी कुछ साइबर-घुसपैठिए दुनिया भर के कम्प्यूटरों में घुसपैठ करके तरह-तरह से वसूली करते ही हैं, अगर कोई ऐसा समूह तैयार हो जाए जिसकी दिलचस्पी वसूली में न होकर संपन्न जिंदगी को रोक देने में हो, तो उसके लिए कोई बहुत अधिक औजारों की जरूरत नहीं पड़ेगी। धरती के लोगों को एक तरफ तो अपनी खपत के बारे में सोचना चाहिए कि उससे जलवायु परिवर्तन किस तरह हो रहा है, दूसरी तरफ सरकारों को भी यह देखना चाहिए कि आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस के साथ मिलकर जलवायु-आतंकवादी, या पर्यावरण-आतंकवादी किस तरह बिना खून बहाए कुछ तबकों या देशों की जिंदगी पर ब्रेक लगा सकते हैं। यह उम्मीद तो हमें है नहीं कि अपनी जीवनशैली से धरती को बर्बाद करने वाले लोग हमारी इस चेतावनी से संभलेंगे, और किफायत बरतेंगे, लेकिन सरकारों में कुछ जिम्मेदार लोग हो सकते हैं जो कि ऐसे हमलों की कल्पना करके उससे बचने के कोई तरीके हों, तो उनके बारे में सोचें। (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक) 

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