विचार / लेख
-दीपक मंडल
बहुजन समाज पार्टी की प्रमुख मायावती ने मंगलवार देर रात अपने भतीजे और पार्टी के नेशनल को-ऑर्डिनेटर आकाश आनंद को उनके पद से हटाने का ऐलान किया।
मायावती ने ‘पूर्ण परिपक्वता’ हासिल करने तक उन्हें अपने उत्तराधिकारी की जिम्मेदारियों से भी मुक्त कर दिया है। देश में लोकसभा चुनाव के तीसरे चरण की वोटिंग ख़त्म होने के चंद घंटे बाद ही मायावती के इस ऐलान ने पार्टी कार्यकर्ताओं, राजनीतिक दलों और विश्लेषकों को हैरत में डाल दिया है।
मायावती ने मंगलवार को देर रात अपने ट्वीट में लिखा, ‘विदित है कि बीएसपी एक पार्टी के साथ ही बाबा साहेब डॉक्टर भीमराव आम्बेडकर के आत्म-सम्मान व स्वाभिमान तथा सामाजिक परिवर्तन का भी मूवमेन्ट है जिसके लिए मान्य। श्री कांशीराम जी व मैंने ख़ुद भी अपनी पूरी जि़न्दगी समर्पित की है और इसे गति देने के लिए नई पीढ़ी को भी तैयार किया जा रहा है।’’
उन्होंने लिखा, ‘इसी क्रम में पार्टी में, अन्य लोगों को आगे बढ़ाने के साथ ही, श्री आकाश आनंद को नेशनल कोऑर्डिनेटर व अपना उत्तराधिकारी घोषित किया, किन्तु पार्टी व मूवमेन्ट के व्यापक हित में पूर्ण परिपक्वता (maturity) आने तक अभी उन्हें इन दोनों अहम जिम्मेदारियों से अलग किया जा रहा है। जबकि इनके पिता श्री आनन्द कुमार पार्टी व मूवमेन्ट में अपनी जि़म्मेदारी पहले की तरह ही निभाते रहेंगे।’
सवाल ये है कि मायावती ने ऐसे वक्त पर ये कदम क्यों उठाया, जब लोकसभा चुनाव के चार चरण बाकी हैं। वो भी पार्टी के स्टार प्रचार आकाश आनंद के ख़िलाफ़ जिन्होंने पिछले कुछ समय से अपनी रैलियों से बीएसपी को मतदाताओं के बीच काफ़ी चर्चा में ला दिया था।
क्या आकाश आनंद राजनीतिक रूप से मैच्योर नहीं हैं?
मायावती ने लिखा है कि पूर्ण परिपक्वता होने तक आकाश आनंद को दोनों अहम जिम्मेदारियों (नेशनल को-ऑर्डिनेटर और उत्तराधिकारी) से अलग किया जा रहा है। तो सवाल ये है कि क्या वो आकाश आनंद को राजनीतिक तौर पर पूरी तरह परिपक्व नहीं मानती हैं।
अगर वो पूर्ण परिपक्व नहीं हैं तो मायावती ने उन्हें अपना उत्तराधिकारी और पार्टी का नेशनल को-ऑर्डिनेटर बनाकर गलती की थी और क्या अब उन्होंने उन्हें हटाकर अपनी गलती सुधारी है?
आकाश आनंद अपनी पिछली कुछ चुनावी रैलियों में बेहद आक्रामक अंदाज में दिखे हैं।
इन रैलियों में आक्रामक भाषणों की वजह से उनके खिलाफ चुनाव आचार संहिता के उल्लंघन के आरोप में दो केस दर्ज किए गए थे।
28 अप्रैल को उत्तर प्रदेश में सीतापुर की रैली में उन्होंने योगी आदित्यनाथ की सरकार की ‘तालिबान से तुलना’ करते हुए उसे ‘आतंकवादियों’ की सरकार कहा था। इसके अलावा उन्होंने लोगों से कहा था कि वो ऐसी सरकार को जूतों से जवाब दे।
इस आक्रामक भाषण पर हुए मुकदमे के बाद ही आकाश आनंद ने 1 मई को ओरैया और हमीरपुर की अपनी रैलियां रद्द कर दी थीं।
पार्टी की ओर से ये कहा गया है कि परिवार के एक सदस्य के बीमार पडऩे की वजह से ये रैलियां रद्द की गई हैं।
क्या बीजेपी को नाराज नहीं करना चाहती हैं मायावती?
लेकिन राजनीतिक सूत्रों का कहना है कि मायावती आकाश आनंद की ओर से इस्तेमाल किए जाने वाले शब्दों से खुश नहीं हैं। इस आक्रामक शैली से उन्हें चुनाव में अपनी पार्टी का फायदा होने से ज़्यादा नुकसान की आशंका सताने लगी थी।
वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक सुनीता एरोन ने मायावती के इस फैसले पर बीबीसी से बात करते हुए कहा, ‘मायावती आकाश आनंद को लेकर ओवर प्रॉटेक्टिव हैं। वो नहीं चाहतीं कि इस समय वो कोई मुश्किल में फंसें। और इससे भी बड़ी बात ये है कि वो इस समय बीजेपी से अपना संबंध नहीं बिगाडऩा चाहतीं।’
सुनीता एरोन कहती हैं, ‘मायावती का ये कहना ठीक है कि आकाश आनंद अभी परिपक्व नहीं हैं। दरअसल आकाश आनंद ने चुनावों के बीच ये कहना शुरू कर दिया था कि उनकी पार्टी चुनाव के बाद किसी से भी गठबंधन कर सकती है। मेरे ख्याल से उन्हें ऐसा नहीं कहना चाहिए था।’
वो कहती हैं, ‘ये ठीक है कि बीएसपी के संस्थापक कांशीराम भी कहते थे कि अपने लोगों के हित में वो किसी के साथ भी जा सकते हैं। लेकिन वो एक सैद्धांतिक बात थी। लेकिन आकाश आनंद ने इसे इस तरह कहा जैसे पार्टी की कोई विचारधारा ही नहीं है।’
आकाश आनंद के आक्रामक भाषणों से किसे हो रहा था घाटा?
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि मायावती और उनकी पार्टी के लिए ये लोकसभा चुनाव ‘करो या मरो’ का चुनाव है। 2019 के लोकसभा चुनाव में बीएसपी यूपी में समाजवादी पार्टी के साथ मिलकर लड़ी थी।
पार्टी ने दस सीटें जीती थीं लेकिन इसे सिर्फ 3.67 फीसदी वोट मिले थे। वहीं 2009 के चुनाव में इसने 21 सीटें जीती थीं। जबकि 2022 के विधानसभा चुनाव में यूपी में वो सिर्फ एक सीट जीत पाई।
चुनाव में इस निराशाजनक प्रदर्शन के बाद बीएसपी ने बीजेपी के खिलाफ अपने सुर नरम कर लिए थे।
वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक शरद गुप्ता कहते हैं कि मायावती के बीजेपी से गठबंधन के कयास लगाए जाते रहे हैं। पिछले कुछ अर्से से बीएसपी बीजेपी के प्रति कम आक्रामक दिखी है।
बीबीसी से बातचीत में उन्होंने कहा, ‘‘इस चुनाव प्रचार के दौरान आकाश आनंद जिस तरह से आक्रामक शैली में भाषण दे रहे थे उससे उन्हें समाजवादी पार्टी को फायदा होता दिख रहा था। शायद यही वजह है कि मायावती ने आकाश आनंद को नेशनल को-ऑर्डिनेटर के पद से हटाकर हालात संभालने की कोशिश की है।’’
पिछले दिनों बीबीसी से बातचीत में आकाश आनंद ने इन आरोपों से इंकार किया था कि बीएसपी बीजेपी की ‘बी’ टीम है।
लेकिन चुनाव के बाद बीजेपी के साथ जाने की संभावना से जुड़े सवाल पर उन्होंने ये भी कहा था कि बीएसपी का मकसद राजनीतिक सत्ता में आना है, इसके लिए पार्टी जो सही होगा करेगी।
क्या पार्टी के चुनावी नतीजों पर पड़ेगा असर?
आकाश आनंद की चुनावी रैलियों ने पिछले दिनों खासी हलचल पैदा की है।
बीएसपी पर नजर रखने वालों का कहना है कि उनकी रैलियों ने कम से कम यूपी में बीएसपी समर्थकों में एक नया जोश पैदा किया था। ऐसे में उन्हें नेशनल को-ऑर्डिनेटर के पद से हटाए जाने पर पार्टी के युवा मतदाता निराश महसूस करेंगे।
शरद गुप्ता कहते हैं कि चुनाव के वक्त ऐसे फैसलों से मतदाताओं में ये संदेश जा सकता है कि बीएसपी में अपनी रणनीति को लेकर असमंजस की स्थिति है और वो पार्टी से दूर जा सकते हैं।
दूसरी ओर कुछ राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि मायावती बेहद सधी हुई राजनेता हैं।
ऐसे समय में जब बीएसपी का जनाधार कम होता दिख रहा है तो वो बीजेपी के खिलाफ आक्रामक रुख अपना कर अपनी पार्टी को संकट में नहीं डालनी चाहतीं।
सुनीता एरोन कहती हैं कि हो सकता है कि मायावती का ये फैसला फौरी हो, मामला ठंडा होने पर वो आकाश आनंद को दोबारा उनके पद पर ला सकती हैं।
क्यों बनाया था आकाश आनंद को उत्तराधिकारी?
आकाश आनंद मायावती के सबसे छोटे भाई आनंद कुमार के बेटे हैं।
वो 2017 में लंदन से पढ़ाई करने के आने के बाद ही बीएसपी के कामकाज से जुड़े थे। मई 2017 में सहारनपुर में ठाकुरों और दलितों के बीच संघर्ष के समय वो मायावती के साथ वहां गए थे।
आकाश 2019 से पार्टी के नेशनल को-ऑर्डिनेटर के तौर पर काम कर रहे थे। लेकिन मायावती ने उन्हें 2023 में पार्टी का नेशनल को-ऑर्डिनेटर और अपना राजनीतिक उत्तराधिकारी घोषित किया।
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि मायावती ने उन्हें ये सोच कर जिम्मेदारी दी कि युवा आकाश पार्टी के युवा कार्यकर्ताओं और नई पीढ़ी के दलित नेतृत्व को उत्साहित कर सकेंगे।
मायावती ने उन्हें ये जिम्मेदारी ऐसे समय में सौंपी जब पार्टी का राजनीतिक ग्राफ नीचे जाता दिख रहा था।
दूसरी ओर वो दलित युवा में तेज़ी से लोकप्रिय हो रहे चंद्रशेखर आजाद के प्रभाव से भी चिंतित लग रही थीं। आकाश आनंद ने हाल के अपने कुछ इंटरव्यू में आजाद समाज पार्टी (कांशीराम) के प्रमुख चंद्रशेखर आजाद पर जम कर वार किए।
इस लोकसभा चुनाव में उन्होंंने अपनी रैलियों की शुरुआत भी यूपी की नगीना सीट से की थी, जहां आजाद के खिलाफ बहुजन समाज पार्टी ने अपना उम्मीदवार उतारा है। (bbc.com/hindi)