संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : दारू के अहातों से बाकी सार्वजनिक जगहें बचेंगीं
14-May-2024 4:39 PM
‘छत्तीसगढ़’ का  संपादकीय :  दारू के अहातों से बाकी सार्वजनिक जगहें बचेंगीं

छत्तीसगढ़ में सरकार ने शराब दुकानों के साथ ग्राहकों के पीने के लिए अहाते खोलना तय किया है, और उसकी नीलामी से बहुत बड़ी रकम सरकार को मिल गई है। मध्यप्रदेश के वक्त से शराब का कारोबार जरूरत से अधिक नियमों से बांधा हुआ है, और ये नियम गलत काम को रोकने के लिए नहीं रहते, किसी धंधे को बंद करवाने के लिए हथियार की तरह इस्तेमाल होते हैं, और इन्हीं के दम पर शराब-कारोबार के हर पहलू से मनमानी उगाही होती है। शराब कारखानों से शुरू होकर, शराबखानों और दुकानों तक, ट्रांसपोर्ट और गोदाम तक, हर जगह इतने गैरजरूरी और बारीक नियम लाद दिए गए हैं कि एक मामूली सा अफसर भी नाराज होकर धंधे को बंद करवा सकता है, धंधा बंद तो होता नहीं, उससे हफ्ता तय हो जाता है। ऐसे में मध्यप्रदेश की तज पर छत्तीसगढ़ शराब-कारोबार को अतिनियंत्रित करता है, और इसी अनुपात में सरकारी भ्रष्टाचार भी बढ़ता है। 

अब जाकर व्यवस्थित रूप से शराब दुकानों के पास अहाते खोले जा रहे हैं जहां बैठकर लोग शराब पी सकेंगे, और इसे चलाने वाले कारोबारी वहां खाने-पीने का सामान बेच सकेंगे, गिलास वगैरह बेचेंगे, और मिलने वाली खाली बोतलों से भी कुछ कमाई करेंगे। लेकिन कुछ कारोबारियों की छोटी या बड़ी कमाई से परे यह एक बड़ी जरूरत इसलिए है कि जो गरीब या मध्यमवर्गीय लोग शराब खरीदते हैं, उनके घर तो इतने बड़े रहते नहीं कि वे वहां बैठकर पी सकें, फिर लोग अपने परिवार के सामने बैठकर पीना चाहते भी नहीं हैं। ऐसे में आज हर दुकान के इलाके में हजारों लोग किसी न किसी सार्वजनिक जगह पर बैठकर शराब पीते हैं, और पुलिस कार्रवाई की लिस्ट देखें तो उसका एक बड़ा हिस्सा ऐसे ही लोगों पर कार्रवाई से भरा रहता है। जो लोग पुलिस का कामकाज जानते हैं वे इस बात को समझ सकते हैं कि जितने लोग पकड़ाते हैं उससे दर्जनों या सैकड़ों गुना अधिक लोग ले-देकर छूट जाते होंगे। हमारा खुद का देखा हुआ है कि हर तालाब और मैदान के आसपास, हर बगीचे के भीतर-बाहर, किसी सडक़ के सुनसान हिस्से में, या किसी भी चारदीवारी के पीछे बैठकर लोग शराब पीते हैं, और किसी शहर की पुलिस के बस का यह नहीं होता कि वह इतने शराबियों को पकड़ सके। एक शराबी को पकडऩे का मतलब उसकी मेडिकल जांच से लेकर कागजी कार्रवाई तक कई घंटे का सिलसिला रहता है, और अगर पुलिस यही करती रहे, तो और कुछ भी नहीं कर सकती। इसलिए एक सामाजिक जरूरत की तरह लोगों को शराब पीने की एक जगह मुहैया कराना जरूरी है, और छत्तीसगढ़ में सरकार ने यह ठीक काम किया है। शराब बड़ी बुरी चीज है, लेकिन यह एक किस्म की अनिवार्य बुराई है, जब तक इस नशे का कोई बेहतर और अधिक सुरक्षित विकल्प अमल में नहीं लाया जा सकता, इस पर रोक लगाने का कोई अच्छा जरिया नहीं दिखता है। गुजरात और बिहार का तजुर्बा यह है कि शराब की तस्करी में वहां का सरकारी अमला पूरे का पूरा भ्रष्ट हो गया है, और शराब वहां धड़ल्ले से खुलेआम मिलती है। इसलिए जब तक लोगों के बीच यह अनिवार्य बुराई कानूनी दर्जा प्राप्त है, तब तक इसे गैरजरूरी नियमों से लादकर और अधिक भ्रष्ट नहीं करना चाहिए। अहाते खुलने से सार्वजनिक जगहों पर गैरशराबियों को कुछ राहत मिल सकेगी, और सरकार को भारी-भरकम टैक्स देकर दारू खरीदने वालों को चैन से बैठकर पीना नसीब हो सकेगा। 

(क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक) 

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