विचार / लेख

ये आंखें...
15-May-2024 7:47 PM
ये आंखें...

-के.जी.कदम
वो समय निकल गया जब आंखों पर खूब बातें होती थी। आंखों के खूब अफसाने हुआ करते थे.. अब आंखों के अफसाने कम, अस्पताल ज्यादा है ।

पहले लैला की आंखें मजनूं को और मजनूं की आंखें लैला को ढूंढती थी। अब दोनों की आंखें मोबाइल ढूंढती हैं । अब नजरें मोबाइल पर फोकस हैं, वो भटकाव खत्म हुआ।

अब नजरें मिलाना, नजरें चुराना.. ये सब इतिहास की बातें हैं। नजरें, आंखों पर गीत वाला युग भी गया।

पहले जितने लोग झील, तालाब, नदी, नाले या समन्दर में डूबकर मरते थे उससे कहीं ज्यादा आंखों में डूबकर मरे ।

और भविष्य में शायद मोबाइल में डूबकर मरेंगे।

खैर.. खूबसूरत आंखों पर नजर ना लगे इसलिए काजल की पतली सी रेखा से उसे प्रोटेक्ट किया जाता है.. इससे आंखों की सुरक्षा के साथ उसकी मारक क्षमता बढ़ जाती है। गोया कि आंखों में काजल, आंखों से ज्यादा खतरनाक हो जाता है।

मेकअप क्रान्ति ने आंखों पर कई प्रयोग किये, काजल के बाद गैरजरूरी एक्स्ट्रा ब्यूटी के लिए पलकों पर नीले, पीले, बैंगनी, आदि कई तरह के रंग चुपड़े गये, चमकी चढ़ाई गई.. नगीने जड़े गए।

इससे आंखों की गहराई भले ही खत्म हुई पर बाहरी चमक में इजाफा हुआ। सच बोलने वाली आंखें बनावटी हो गयी ।

ये आंखें जब सूखने लगी तो अब कवि शायर, लेखक भी आंखों से निकलकर राजनीति में कूदने लगे। आजकल इधर ज्यादा तरावट है।

बहरहाल ये ‘ए-आई’ भी आंखों के पीछे लगा है। मोबाइल में हर पांचवा मित्र एक फोटो भेज रहा है.. नीचे लिखता है अपनी आंखों को 70% बंद करके देखो.. भोलेनाथ के दर्शन होंगे।

भोले लोग, भोलेनाथ के दर्शन हेतु आंखें बंद कर रहे हैं। उनको पता ही नहीं ए-आई अभी तो आंखें 70त्न ही बंद करवा रहा है । एक दिन बिल्कुल बंद करवा देगा ।

भोलेनाथ के दर्शन करने है तो आंखें बंद नहीं, आंखें खोलनी होगी।

आंखें क्या हैं, इनकी कीमत क्या है, ये देखना है तो आंखों के अस्पताल में जाकर देखो, कवि, शायर के गीतों में देखो.. या किसी आंखों में झांककर देखो..

जुबां को तो फिर भी हिलना पडता है बोलने के लिए.. उससे ज्यादा बातें तो ठहरी और गहरी आंखें कर लेती हैं।

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