संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : केजरीवाल की रफ्तार से किसी और का उत्थान और पतन नहीं हुआ था..
17-May-2024 4:37 PM
‘छत्तीसगढ़’ का  संपादकीय :   केजरीवाल की रफ्तार से  किसी और का उत्थान  और पतन नहीं हुआ था..

photo : twitter

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल निर्वाचित जनप्रतिनिधि होने के नाम पर लोकसभा चुनाव प्रचार के बीच सुप्रीम कोर्ट से एक असाधारण जमानत पाकर चुनाव प्रचार तक बाहर तो आ गए, लेकिन उनकी बोलती बंद है। इसके पहले कि वे चुनाव प्रचार के लिए निकल पाते, उनकी एक सबसे पुरानी सहयोगी और पार्टी की राज्यसभा सदस्य स्वाति मालीवाल पर उन्हीं के घर के ड्राईंग रूम में उन्हीं के निजी सहायक ने हमला किया, और स्वाति को पीटा। स्वाति की रिपोर्ट पर दिल्ली पुलिस ने उनका मेडिकल करवाया है, और अब केजरीवाल के इस बहुत पुराने निजी सहायक विभव कुमार की तलाश जारी है। इस हमले को चार दिन हो चुके हैं, आम आदमी पार्टी के सांसद-प्रवक्ता संजय सिंह ने मीडिया के सामने मंजूर किया है कि अरविंद केजरीवाल के सीएम आवास पर उनसे मिलने पहुंचीं स्वाति से ड्राईंग रूम में केजरीवाल के निजी सहायक ने बहुत बुरा सुलूक किया है जो शर्मनाक है, और मुख्यमंत्री इस पर कार्रवाई करेंगे। बात-बात में सार्वजनिक आरोप उछालने वाले और सुप्रीम कोर्ट तक दौड़ लगाने वाले अरविंद केजरीवाल अपने खुद के घर में एक महिला सांसद की पिटाई पर चार दिन में मुंह भी नहीं खोल पा रहे हैं, और यह हमलावर उनका निजी सहायक उसके बाद भी लखनऊ एयरपोर्ट पर देखा गया है। स्वाति मालीवाल का कहना है कि इस निजी सहायक ने उन्हें चेहरे पर थप्पड़ें मारीं, गंदी गालियां दीं, और कहा कि वह उन्हें तबाह कर देगा। उन्होंने पुलिस को यह भी कहा है कि उनकी छाती पर और उनके बदन के निचले हिस्से में भी विभव कुमार ने वार किए। स्वाति के फोन से सीएम हाऊस के भीतर से ही दिल्ली पुलिस को फोन करके बताया गया था कि सीएम की पीए ने उन पर हमला किया है। 

नीति और सिद्धांत की बात करने वाला कोई नेता न भी हो, दिल्ली का सीएम या अपनी पार्टी का राष्ट्रीय संयोजक न भी हो, कोई आम इंसान भी अपने घर पहुंची महिला को अपने पीए से पिटवाने की हिंसानियत नहीं दिखा सकते। अब यह केजरीवाल परिवार के भीतर की बात है कि स्वाति मालीवाल को अरविंद केजरीवाल ने पिटवाया है, या राजनीति में अभी सक्रिय हुईं उनकी पत्नी ने। दिल्ली की अफवाहें यह भी कहती हैं कि सुनीता केजरीवाल स्वाति मालीवाल को नापसंद करती हैं, और वे भी इस हमले के पीछे हो सकती हैं। जो भी हो, अगर सीएम की बीवी उनके सरकारी निवास पर एक महिला राज्यसभा सदस्य पर हमला करवा रही है, तो यह भी केजरीवाल की जिम्मेदारी बनती थी कि वे अपने पीए और पत्नी के खिलाफ रिपोर्ट लिखवाते। अब हो सकता है कि केजरीवाल को यह मलाल हो रहा हो कि वे सुप्रीम कोर्ट से जमानत लेकर बाहर आए ही क्यों कि उनके सार्वजनिक जीवन का यह सबसे बड़ा बवाल खड़ा हो गया जो कि उन्हें सिर्फ धिक्कार का हकदार बनाता है। गिने-चुने दिनों के चुनाव प्रचार के लिए इतनी लड़ाई के बाद मिली जमानत मानो नाली में बह जा रही है, और केजरीवाल किसी को मुंह दिखाने लायक नहीं बचे। लखनऊ में अखिलेश यादव के साथ उनकी प्रेस कांफ्रेंस में उनसे सिर्फ स्वाति मालीवाल पर सवाल किए गए, उनके होंठ सिले रहे, और उनकी तरफ से संजय सिंह मणिपुर से लेकर कर्नाटक के रेवन्ना सेक्सकांड तक को गिनाते रहे, सिवाय स्वाति मालीवाल मामले पर जवाब देने के। 

बाजार में दो तरह की चर्चाएं हैं, एक तो यह कि अपने को जमानत दिलवाने वाले, और ईडी के खिलाफ बाकी मामले लडऩे वाले दिग्गज वकील अभिषेक मनु सिंघवी को राज्यसभा भेजने के लिए केजरीवाल की तरफ से स्वाति मालीवाल पर दबाव डाला जा रहा था कि वे इसी बरस राज्यसभा में पाई अपनी सीट खाली कर दें। दूसरी अप्रिय निजी जीवन की चर्चा का जिक्र हम ऊपर कर चुके हैं कि केजरीवाल के जेल रहने पर उनकी पत्नी ने किस तरह राजनीतिक मामलों में अगुवाई शुरू की थी, और सोनिया गांधी के साथ मंच पर दिखी थीं। यह पूरा सिलसिला किसी डबरे के पानी में कीचड़ घुल जाने से गंदला हो गया लगता है। जिस केजरीवाल ने नैतिकता की दुहाई देते हुए अन्ना हजारे नाम के खादी की खाल ओढ़े एक पाखंडी के साथ मिलकर मनमोहन सिंह की यूपीए सरकार हराने का काम किया था, वही केजरीवाल अब ईमानदारी और नैतिकता के हर पैमाने पर खोटा साबित हो रहा है। सिर्फ दिल्ली और पंजाब की चुनावी कामयाबी सब कुछ नहीं होती। देश की कुछ और पार्टियां भी सारी नैतिकता और ईमानदारी, सारा लोकतंत्र छोडक़र चुनावी कामयाबी पा रही हैं, ऐसे में केजरीवाल और उनकी पार्टी का औरों से कोई फर्क नहीं रह गया है। अपनी पार्टी और अपने घर के इस भयानक विस्फोटक, अभूतपूर्व और शर्मनाक जुर्म के बारे में वो मुंह खोलने की हिम्मत नहीं कर पा रहे हैं, और ऐसा लगता है कि उन्हें लोकतंत्र के नाम पर जमानत देने वाले सुप्रीम कोर्ट जजों को भी शायद निजी हैसियत में यह मलाल हो रहा होगा कि उन्होंने भला यह किस आदमी के लिए इतने बड़े लोकतांत्रिक मूल्यों का आधार लेकर जमानत दे दी। 

इस पूरे मामले से केजरीवाल एक बहुत ही घटिया नेता और इंसान की तरह सामने आए हैं, इसके साथ-साथ यह बात भी भयानक है कि भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन से राजनीतिक दल में बदला यह एनजीओ भी डेढ़ दशक के भीतर ही एक कुनबापरस्त और तानाशाह पार्टी में बदल गया है। आज इस मौके पर यह भी याद पड़ता है कि किस तरह प्रशांत भूषण, योगेन्द्र यादव, आशुतोष जैसे कितने ही लोग केजरीवाल को छोडक़र चले गए, और आम आदमी पार्टी से बाहर हो गए। इतन कम दौर में इतने उत्थान और ऐसे पतन वाले केजरीवाल शायद अकेले ही नेता होंगे। बड़ी बात यह नहीं है कि केजरीवाल के बंगले पर उनकी राज्यसभा सदस्य पर उनके पीए ने शारीरिक हमला किया, बड़ी बात यह है कि इस पर चार दिन बाद भी मुख्यमंत्री को कुछ करना जरूरी नहीं लगा है। यह तो मुख्यमंत्री के रूप में संविधान की ली गई शपथ के भी खिलाफ है। यहां पर यह चर्चा करना भी जरूरी है कि यह मामला सिर्फ राष्ट्रीय महिला आयोग की जांच का नहीं है, जो कि बड़े उत्साह से ओवरटाईम कर रहा है, बल्कि यह राज्यसभा के सभापति की दखल का मामला भी है क्योंकि स्वाति मालीवाल राज्यसभा सदस्य हैं। 

हम शराब घोटाले में केजरीवाल सरकार और आम आदमी पार्टी पर साढ़े तीन सौ करोड़ रिश्वत के आरोपों को भी राजनीतिक या सरकारी मानकर अदालती फैसले तक उसे सीमित महत्व का मान सकते थे, लेकिन एक महिला के साथ केजरीवाल परिवार द्वारा करवाई गई ऐसी भयानक हिंसा को शराब घोटाले के मुकाबले अधिक अनैतिक काम मान रहे हैं जिसका कोई बचाव नहीं हो सकता। इस घटना के बाद केजरीवाल की चुप्पी जितनी लंबी खिंचती चली जाएगी, उनकी नाक उतनी ही कटती चली जाएगी। यह मामला देश की हर पार्टी के लिए एक मिसाल रहेगा, और सबके लिए यह सबक भी रहेगा कि एक महिला राज्यसभा सदस्य को इस तरह पिटवाकर कोई बच नहीं सकते। अब दिल्ली सीएम के बंगले में लगे हुए सारे कैमरे जो कि लगाए तो उनकी हिफाजत के लिए गए थे, अब वे काम आएंगे उनके खिलाफ सुबूत जुटाने में। हमें उम्मीद है कि केजरीवाल के काबिल वकील अभिषेक मनु सिंघवी उन्हें यह सलाह देंगे कि सीएम हाऊस के कैमरों की रिकॉर्डिंग को मिटाना एक जुर्म के सुबूत नष्ट करने का एक और जुर्म होगा। 

(क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक) 

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