संपादकीय
![‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : किस्म-किस्म के प्रेम और सेक्स संबंधों से पैदा हिंसा ‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : किस्म-किस्म के प्रेम और सेक्स संबंधों से पैदा हिंसा](https://dailychhattisgarh.com/uploads/article/1716117796dit_photo.jpeg)
इन दिनों दुतरफा प्रेमसंबंधों, या इकतरफा आकर्षण, शादीशुदा जिंदगी के भीतर, या विवाहेत्तर संबंधों को लेकर इतने किस्म के कत्ल हो रहे हैं कि अखबार निचोड़ें तो उसमें से खून टपकने लगे। खबरें डराती हैं कि इस कदर बढ़ा हुआ व्यक्तिगत और सामाजिक तनाव कहां जाकर खत्म होगा। यह तो हुई हिंसा की बात, लेकिन हिंसा से परे भी इतने किस्म के जुर्म रोज दर्ज हो रहे हैं कि पुलिस जाने कैसे इन तमाम मामलों को अदालत में फैसले तक पहुंचा सकेगी। हर दिन आसपास से ही कई ऐसी गिरफ्तारियां सामने आ रही हैं जिनमें कहा जा रहा है कि नाबालिग को शादी का धोखा देकर उससे बलात्कार किया, और ऐसा करने वाला बालिग गिरफ्तार हुआ। इन मामलों से परे बहुत से और किस्मों के सेक्स-जुर्म सामने आ रहे हैं जो कि अलग-अलग किस्म की कहानियां बताते हैं।
अब जो बात समझ नहीं पड़ती है, वह यह कि नाबालिग लड़कियों को ऐसे देहसंबंध में पडऩे की क्या हड़बड़ी है जिसमें उनसे शादी का कोई वायदा किया गया है? यह बात भी लडक़ी के बयान में ही सामने आती है, और हम किसी एक मामले में कोई शक किए बिना यह सोचते हैं कि क्या ये तमाम शिकायतें सही रहती हैं, या संबंध आपसी रजामंदी से बनते हैं, और चूंकि नाबालिग की सहमति का कोई मतलब नहीं होता, इसलिए बालिग नौजवान तुरंत गिरफ्तार भी हो जाते हैं। नाबालिग लड़कियों से देहसंबंध बनाने वाले बालिग नौजवानों से हमारी कोई हमदर्दी नहीं है, इसलिए उनके जेल जाने में कोई दिक्कत नहीं है, लेकिन ऐसे मामलों से लड़कियों का भी जो नुकसान होता है उसे तो उन्हीं को झेलना पड़ता है। वैसे प्रसंग से हटकर एक बात हम यहां कहें जो कि हम बार-बार लिखते हैं, तो बलात्कारी की संपत्ति का एक हिस्सा बलात्कार की शिकार लडक़ी या महिला को मिलना चाहिए, ऐसा अगर होने लगे तो बलात्कारी कुछ हद तक तो हिचकना शुरू हो जाएंगे कि जेल से छूटने के बाद भी परिवार की धिक्कार और अधिक जारी रहेगी, क्योंकि बाकी परिवार संपत्ति का एक हिस्सा खो बैठेगा।
कल छत्तीसगढ़ में सारंगढ़-बिलाईगढ़ जिले के एक गांव में एक नौजवान ने एकतरफा प्रेम में एक शादीशुदा, एक बच्चे की मां, और गर्भवती युवती को मार डाला क्योंकि वह एक वक्त उससे प्रेम करता था, शादी करना चाहता था, और लडक़ी के परिवार ने उसकी शादी कहीं और कर दी थी। तब से जब लडक़ी मायके आती थी, वह उसे परेशान करता था, और ऐसे ही एक हमले में उसे कैद भी हो चुकी थी। अब वह कैद से छूटकर आया था, और युवती अपने तीन बरस के बेटे सहित मां के घर आई हुई थी। इस हत्यारे ने इस परिवार में जाकर युवती के साथ-साथ उसके मां-बाप, बहन, बेटे को मार डाला, और इस खूनी मंजर के बीच खुदकुशी भी कर ली। एकतरफा प्रेम में ऐसा भयानक खूनखराबा हमें हाल-फिलहाल में याद नहीं पड़ रहा है, और एक साथ पांच कत्ल और एक खुदकुशी की खबर से सबका दिल भी दहल गया है। छठवां कत्ल अजन्मे बच्चे का हुआ है। एकतरफा कहे जा रहे इस प्रेम की हिंसा देखते हुए अब यह सोचने की जरूरत पड़ रही है कि समाज में प्रेम, देह, और शादी की ऐसी कितनी कमी हो गई है कि उसके लिए इस तरह की, इतनी बड़ी हिंसा की नौबत आ रही है?
इसे सिर्फ एक सिरफिरे आशिक का काम मानकर पुलिस के अंदाज में मामले को बंद कर देना ठीक इसलिए नहीं होगा कि इससे समाज की व्यापक बीमारी पकड़ में नहीं आएगी। हिन्दुस्तानी समाज में प्रेम की जगह और संभावना जिस हद तक घटती चल रही है, उससे भी ऐसी हिंसा को बढ़ावा मिल रहा है। लोगों को किसी एक से प्रेम होता है तो उसे ही वे जिंदगी का अंत मान लेते हैं, और दोनों तरफ के परिवार सहमत न हो तो ऐसे प्रेमीजोड़े आए दिन अपनी जिंदगी का अंत करते रहते हैं। यह पूरा सिलसिला समाज के इस प्रतिरोध से भी बढ़ रहा है जो कि दूसरे धर्म, दूसरी जाति, दूसरी आर्थिक संपन्नता में अपने परिवार का रिश्ता नहीं होने देना चाहते। नौजवान दिल हैं कि तन और मन की उनकी जरूरतें, परिवार की रोक-टोक से परे खड़ी होती हैं, और बढ़ती हैं। भारत का आम समाज जब तक प्रेम का दुश्मन बने रहेगा, तब तक आत्मघाती या जानलेवा हिंसा बनी रहेगी।
आपसी रिश्तों में हिंसा के एक दूसरे किस्म के मामले कुछ अलग तरीके से चौंका रहे हैं। इन दिनों लगातार ऐसी खबरें आ रही हैं कि कहां पर किसी पत्नी ने प्रेमी के साथ मिलकर या भाड़े के हत्यारे जुटाकर अपने पति का कत्ल करवा दिया। अभी तक इसका उल्टा तो होते आया था कि पति कत्ल करवाते थे, और पत्नियों की जान जाती थी। हाल के बरसों में ये दूसरी किस्म की खबरें भी लगातार बढ़ रही हैं, और कुछ मामलों में तो बिना किसी प्रेमी के भी अपने शराबी या बदचलन पति से थकी हुई महिला खुद भी उसका कत्ल कर दे रही है, या भाड़े के हत्यारे जुटा रही है। हम इसे हाल के बरसों में भारतीय महिला का एक अलग किस्म का सशक्तिकरण भी देख रहे हैं जिनमें वह अपने पर होते जुल्म को और अधिक बर्दाश्त करने से मना कर दे रही है, और प्रतिरोध, प्रतिकार, या प्रतिहिंसा पर उतर आ रही है। अगर भारतीय महिलाओं में अपने अधिकारों के लिए इस किस्म की हिंसक जागरूकता आती है, तो इससे परिवारों के भीतर हिंसा की घटनाओं में एकदम से इजाफा होगा क्योंकि अभी तक तो महिलाएं हिंसा झेलते ही आई हैं।
हमारा ख्याल है कि समाजशास्त्रीय और मनोवैज्ञानिक अध्ययन करने वाले लोगों को ऐसी पारिवारिक और निजी हिंसा की वजहों पर शोध करना चाहिए। यह सामाजिक अध्ययन इसलिए भी जरूरी है कि परिवारों और समाज के भीतर की हिंसा को बढऩे से रोकने के कुछ तरीके सोचे जा सकें, और परामर्शदाताओं को भी ऐसी शोध से मदद मिल सके। फिलहाल चारों तरफ फैल रही अभूतपूर्व और असाधारण दिख रही हिंसा से बचने के तरीके सोचने चाहिए, और आसपास के लोगों में अगर हिंसक भावना दिखे तो उन्हें समझाने की कोशिश होनी चाहिए। बहुत बड़ी हिंसक भावना बिना किसी लक्षण के अचानक खड़ी नहीं हो जाती, इसलिए करीबी लोगों को ऐसी नौबत का अंदाज पहले से लग सकता है, और वे चाहें तो विचलित व्यक्ति को समझा-बुझाकर, और बाकी परिवार के साथ परामर्श करके हिंसा के खतरे को घटा सकते हैं। (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)