संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : साइबर जालसाजी रोकने भारत सीखे एप्पल से...
20-May-2024 4:06 PM
‘छत्तीसगढ़’ का  संपादकीय :  साइबर जालसाजी रोकने भारत सीखे एप्पल से...

दुनिया में मोबाइल फोन के मामले में सबसे महंगी कंपनी, एप्पल ने अभी यह दावा किया है कि उसके एप्लीकेशन स्टोर पर जो धोखेबाज लोग अपने एप्लीकेशन डालने की कोशिश करते हैं, उनमें से 17 लाख एप्लीकेशन उसने रोक दिए, और इसकी वजह से एप्पल उपभोक्ता ठगी का शिकार होने से बच गए, और करीब 7 बिलियन अमरीकी डॉलर, यानी करीब 584 अरब रूपए डूबने से बचे। किसी कारोबारी कंपनी के दावों पर बहुत अधिक भरोसा नहीं करना चाहिए, लेकिन हम एप्पल की सामने रखी गई जानकारी बता रहे हैं कि कंपनी का कहना है कि उसने चोरी गए एक करोड़ चालीस लाख क्रेडिट कार्ड ब्लॉक कर दिए, और 33 लाख ऐसे अकाऊंट को रोक दिया जो कि इन कार्ड का इस्तेमाल कर रहे थे। एप्पल का दावा है कि 2023 में उसने चोरी गए 35 लाख क्रेडिट कार्ड से खरीददारी रोकी, और उसके सुरक्षा पैमाने बहुत ऊंचे रहने से उसके प्रोडक्ट इस्तेमाल करने वाले लोगों का बड़ा नुकसान बचता है। 

हम किसी एक कंपनी के ऐसे दावे पर गए बिना हिन्दुस्तान जैसे देश में देख रहे हैं जहां पर कि पिछले कुछ बरसों में मोदी सरकार ने डिजिटल लेन-देन को खूब आगे बढ़ाया है, और छोटे-छोटे कामों के लिए भी लोग मोबाइल फोन से भुगतान करने लगे हैं, और हम किसी का मखौल उड़ाने के लिए यह बात नहीं कह रहे, लेकिन कहीं-कहीं से ऐसी तस्वीरें भी आती हैं कि कुछ भिखारी भी अपने पास क्यूआर कोड लेकर बैठते हैं, ताकि लोग उन्हें डिजिटल भुगतान कर सकें। कई मंदिरों में भी शायद ऐसा ही इंतजाम किया गया है। ऐसे डिजिटल भुगतान में तो धोखाधड़ी और जालसाजी सुनाई नहीं पड़ता है, लेकिन मोबाइल फोन पर तरह-तरह के एप्लीकेशन, और बैंकों के कामकाज, आधार कार्ड से लेकर कुरियर कंपनी के भेजे जाने वाले ओटीपी तक, इतने तरह के डिजिटल काम लोगों के सामने आते हैं कि वे कभी नासमझी में, कभी हड़बड़ी में, तो कभी धोखा खाकर टेलीफोन पर ओटीपी मांगने वालों को फोन देखकर बता देते हैं, और मिनटों में उनके बैंक खाते खाली हो जाते हैं। यह सिलसिला भयानक इसलिए है कि मोबाइल फोन इस्तेमाल करने वाले बहुत से लोग इतने चौकन्ने और जानकार नहीं रहते कि वे हर ओटीपी की गंभीरता को समझ सकें। लेकिन जिनको हम बहुत जानकार मानते हैं ऐसे सरकारी अफसर, बैंक कर्मचारी भी इन दिनों वॉट्सऐप पर धड़ल्ले से चलने वाले धोखेबाज गोल्ड-इन्वेस्टमेंट ग्रुप से लेकर फेसबुक पर धोखेबाजों के इश्तहार तक कई चीजों के शिकार हो रहे हैं। इन दो के अलावा तरह-तरह के एप्लीकेशन कर्ज देने के नाम पर लोगों को फंसाते हैं, उनके मोबाइल फोन पर कब्जा कर लेते हैं, और फिर उनकी राज की बातें निकालकर उन्हें ब्लैकमेल करते हैं, खुदकुशी तक के लिए मजबूर करते हैं। भारत सरकार ने ऐसे कई चीनी लोन एप्लीकेशन ब्लॉक भी किए हैं, लेकिन सरकार जितने एप्लीकेशन ब्लॉक करती है, उससे अधिक गूगल प्ले स्टोर जैसी जगहों पर फिर आ जाते हैं, और लोगों को बहुत आसान कर्ज का झांसा देकर अपने जाल में फंसा लेते हैं। 

हम दुनिया की दो सबसे बड़ी कंपनियों की बात करें, तो एप्पल का आईफोन कोई भी नया एप्लीकेशन या सॉफ्टवेयर आसानी से डाऊनलोड भी नहीं करने देता, वह कई तरह की इजाजत मांगता है, कई तरह के पासवर्ड मांगता है, सावधान करता है, तब कहीं जाकर उस पर कोई एप्लीकेशन डाऊनलोड किया जा सकता है। नतीजा यह होता है कि धोखेबाज एप्लीकेशन डाऊनलोड करने के पहले लोगों को कुछ मिनट का वक्त लगाना पड़ता है, और इतनी देर में हो सकता है कि उन्हें सावधानी सूझ जाए। दूसरी तरफ एप्पल जैसी ही बड़ी कंपनी मेटा अपने फेसबुक और वॉट्सऐप पर ऐसी-ऐसी धोखेबाजी को बढ़ावा देती है जिन्हें देखकर बच्चे भी समझ जाएं कि यह जालसाजी है। फेसबुक पर तो अलग-अलग अखबारों के नाम से हिन्दुस्तान के कुछ सबसे बड़े कारोबारियों के फर्जी और गढ़े हुए इंटरव्यू दिखाकर, लोगों को क्रिप्टोकरेंसी और दूसरे पूंजीनिवेश की तरफ खींचा जाता है, और हमने खुद ने ऐसी जालसाजी पर बार-बार लिखा है कि यह फ्रॉड है, लेकिन फेसबुक इस धोखाधड़ी को स्पॉंसर्ड पोस्ट दिखाते हुए बनाए रखता है। मतलब यह कि इसके लिए वह भुगतान ले रहा है। हमारा ख्याल है कि हिन्दुस्तान के आईटी कानून के मुताबिक इसे लेकर फेसबुक और वॉट्सऐप को कटघरे में लाया जा सकता है कि वे जानते-समझते यह धोखाधड़ी जारी रख रहे हैं। 

हिन्दुस्तान में हर दिन दसियों हजार लोग साइबर-फ्रॉड का शिकार हो रहे हैं, और इतनी तो शिकायतें पुलिस के पास पहुंचती हैं, असलियत में तो इससे कई गुना ऐसे लोग होंगे जिन्हें अपने ठग लिए जाने का अहसास भी नहीं हुआ होगा, और वे पुलिस तक पहुंचे भी नहीं होंगे। आज भारत सरकार अपनी सारी तकनीकी क्षमता, और एकाधिकार के साथ भी अगर बहुत संगठित साइबर जालसाजी पर रोक नहीं लगा पा रही है, अगर वह महादेव ऐप जैसी सट्टेबाजी पर रोक नहीं लगा पा रही है, अगर वह फेसबुक और वॉट्सऐप को संगठित अपराध पर कार्रवाई न करने के लिए कटघरे में नहीं ला पा रही है, तो यह सरकार की लापरवाही के अलावा कुछ नहीं है। अमरीका और यूरोपीय समुदाय तो मेटा जैसी कंपनी को बच्चों पर बुरे असर की जिम्मेदार ठहराते हुए उसकी संसदीय जांच भी कर रहे हैं, और मेटा पर बड़े लंबे-चौड़े जुर्माने की तैयारी भी चल रही है। 

एप्पल का दावा अगर सही है, तो भारत सरकार को यह भी देखना चाहिए कि ऐसे कौन-कौन से धोखेबाज और जालसाज एप्लीकेशन हैं जो गूगल प्ले स्टोर जैसे दूसरे प्लेटफॉर्म पर काम कर रहे हैं, और हर दिन लोगों को लूट रहे हैं। सरकार को जालसाज और धोखेबाज कंपनियों, उनके कर्मचारियों के नंबर, इंटरनेट कनेक्शन, बैंक खाते, आधार कार्ड या पैनकार्ड जैसी शिनाख्त, इन सब पर बहुत रफ्तार से रोक लगानी चाहिए ताकि उनसे चलने वाले दूसरे जालसाज एप्लीकेशन भी पकड़ में आ सकें। आज जितनी सरकारी कार्रवाई सुनाई पड़ती है, और जितनी जालसाजी सामने आती है, उन दोनों को देखें तो ऐसा लगता है कि सरकार जालसाजों के सौ-पचास मील पीछे चल रही है। साइबर-क्राईम की दुनिया में पुलिस की लाठी वाली रफ्तार से काम नहीं चलेगा, पुलिस को मुजरिमों की रफ्तार और उनके तौर-तरीके समझकर उनके आगे-आगे भी चलना पड़ेगा, तभी आम जनता लुटने से बच पाएगी। भारत सरकार चाहे तो एप्पल जैसी कंपनी से यह समझ सकती है कि वह किन एप्लीकेशनों को किस आधार पर रोकती है, और उनमें से जो भारत में कानूनसम्मत लगें, उन्हें यहां पर एंड्रॉयड फोन के लिए भी रोका जा सकता है जिससे कि जालसाजी कम होगी।   (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक) 

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