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देश में खुली जेलों के दायरे को कम करने का कोई प्रयास नहीं किया जाए: उच्चतम न्यायालय
20-May-2024 10:48 PM
देश में खुली जेलों के दायरे को कम करने का कोई प्रयास नहीं किया जाए: उच्चतम न्यायालय

नयी दिल्ली, 20 मई (भाषा)। उच्चतम न्यायालय ने निर्देश दिया है कि देश में कार्यरत खुली जेलों के दायरे को कम करने का कोई प्रयास नहीं किया जाना चाहिए।

अर्ध-खुली या खुली जेल व्यवस्था के तहत दोषियों को आजीविका कमाने के लिए दिन के दौरान परिसर से बाहर काम करने और शाम को वापस लौटने की अनुमति दी जाती है।

इस अवधारणा को दोषियों को समाज के साथ आत्मसात करने और मनोवैज्ञानिक दबाव को कम करने के लिए पेश किया गया था क्योंकि उन्हें बाहर सामान्य जीवन जीने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।

न्यायमूर्ति बी.आर. गवई और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने उल्लेख किया कि जेलों और कैदियों से संबंधित मामले में न्याय मित्र के रूप में सहायता कर रहे वकील के. परमेश्वर ने कहा है कि केंद्र द्वारा एक आदर्श मसौदा नियमावली तैयार की गई है जिसमें खुले शिविरों/संस्थाओं/जेलों का नाम ‘खुले सुधारात्मक संस्थान’ किया गया है।

पीठ ने 17 मई को पारित अपने आदेश में कहा, ‘‘हम (केंद्रीय) गृह मंत्रालय को आदर्श जेल नियमावली, 2016 और आदर्श कारागार एवं सुधार सेवा अधिनियम, 2023 के आने के बाद खुले सुधार संस्थानों के संबंध में हाल के घटनाक्रमों पर एक स्थिति रिपोर्ट पेश करने का निर्देश देते हैं।’’

पीठ ने कहा कि उसे सूचित किया गया है कि जयपुर में सांगानेर खुले शिविर का क्षेत्र कम करने का प्रस्ताव है।

इसने कहा, ‘‘हम निर्देश देते हैं कि संबंधित स्थलों पर कार्यरत खुले शिविरों/संस्थानों/जेलों के क्षेत्र में कटौती का कोई प्रयास नहीं किया जाना चाहिए।’’

शीर्ष अदालत ने राजस्थान, महाराष्ट्र, केरल और पश्चिम बंगाल को निर्देश दिया कि वे खुले सुधार संस्थानों की स्थापना, विस्तार और प्रबंधन पर अपनी सर्वोत्तम प्रथाओं, लागू नियमों, दिशानिर्देशों और अनुभव को राष्ट्रीय कानूनी सेवा प्राधिकरण (नालसा) के साथ साझा करें।

संबंधित राज्यों में ऐसी संस्थाएं बेहतर कार्य कर रही हैं।

पीठ ने मामले को जुलाई के दूसरे सप्ताह में आगे की सुनवाई के लिए सूचीबद्ध कर दिया।

शीर्ष अदालत ने नौ मई को मामले की सुनवाई करते हुए कहा था कि खुली जेलों की स्थापना जेलों में भीड़ का समाधान हो सकती है और इस व्यवस्था से कैदियों के पुनर्वास के मुद्दे का भी समाधान हो सकता है।

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