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![केरल: उच्च न्यायालय ने दलित छात्रा से दुष्कर्म और हत्या के मामले में दोषी की मौत की सजा बरकरार रखी केरल: उच्च न्यायालय ने दलित छात्रा से दुष्कर्म और हत्या के मामले में दोषी की मौत की सजा बरकरार रखी](https://dailychhattisgarh.com/uploads/article/1716225709e_hi.jpg)
कोच्चि, 20 मई। केरल उच्च न्यायालय ने कानून की 30 वर्षीय दलित छात्रा से 2016 में दुष्कर्म और हत्या के मामले में सत्र अदालत द्वारा दोषी ठहराए गए मोहम्मद अमीरुल इस्लाम को सुनाई गई मौत की सजा को सोमवार को बरकरार रखा। निचली अदालत ने दिल्ली के वर्ष 2012 के निर्भयाकांड के साथ इस मामले की तुलना की थी।
उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति पीबी सुरेश कुमार और एस. मनु की पीठ ने निचली अदालत के फैसले को चुनौती देने वाली दोषी की अपील को खारिज करते हुए मौत की सजा को बरकरार रखा। उच्च न्यायालय ने सत्र न्यायालय से मृत्युदंड के संदर्भ के आधार पर मृत्युदंड की पुष्टि की।
इस्लाम पर पेरुंबवूर में 28 अप्रैल, 2016 को महिला से बलात्कार के बाद उसकी हत्या करने का आरोप लगाया गया था। उसने एक गरीब परिवार से आने वाली छात्रा की उसके घर में हत्या करने से पहले उस पर धारदार हथियारों से बेरहमी से हमला किया।
वर्ष 2017 में एर्नाकुलम की प्रधान सत्र अदालत ने असम के एक प्रवासी मजदूर इस्लाम को नृशंस हत्या करने के लिए मौत की सजा सुनाई थी।
इस्लाम ने छात्रा के साथ दुष्कर्म करने का प्रयास किया था और जब उसने विरोध किया तो आरोपी ने पीड़िता के गुप्तांग पर चाकू से वार करने समेत 38 से अधिक चोटें पहुंचाईं। उसे मृत्यु दंड की सजा सुनाते समय, सत्र अदालत ने छात्रा के साथ हुई दरिंदगी की तुलना दिल्ली के निर्भयाकांड की पीड़िता से की थी।
सत्र न्यायालय की मृत्युदंड की सजा को बरकरार रखते हुए उच्च न्यायालय ने अपने आदेश में कहा, ‘‘इस तरह के अपराध के लिए मृत्युदंड की सजा देने पर समाज भी निश्चित रूप से सहमत होगा, खासकर इसलिये कि पीड़िता गरीबी के कारण सड़क के किनारे एक ढांचा बनाकर मजबूर थी और उसके ही आश्रय स्थल में अपराध को अंजाम दिया गया।’’
दोषी की अपील को खारिज करते हुए अदालत ने कहा, ‘‘यह गौर करना जरूरी है कि हम भारी मन से मामले में आरोपी की मौत को बरकरार रखते हैं।’’
उच्च न्यायालय ने कहा, ‘‘हम आशा करते हैं और विश्वास करते हैं कि यह फैसला उन लोगों के लिए एक नजीर के तौर पर काम करेगा जो भविष्य में इस तरह के घृणित कृत्यों को अंजाम देने के बारे में सोचेंगे, ताकि पीड़ित जैसे ही लोग जो हमारे समाज में असंख्य हैं, सुरक्षा की भावना के साथ और बिना किसी डर के रह सकें।’’
पीड़िता की मां ने फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि इस्लाम को उसी पीड़ा का एहसास होना चाहिए, जो कि उसने उनकी बेटी को दी।
सत्र अदालत ने इस्लाम को भारतीय दंड संहिता की विभिन्न धाराओं के तहत दोषी पाया, जिनमें 449 (मौत की सजा वाले अपराध को अंजाम देने के लिए घर में अनधिकृत प्रवेश), 342 (अनुचित रूप से कैद करके रखने के लिए सजा), 302 (हत्या), 376 (दुष्कर्म), और धारा 376 ( ए) (दुष्कर्म करने के दौरान मौत की वजह बनना या महिला को लगातार निष्क्रिय अवस्था में रखना) शामिल हैं।
मामले की जांच करने वाली विशेष जांच टीम ने अपराध में इस्लाम की भूमिका साबित करने के लिए ‘डीएनए’ तकनीक और कॉल रिकॉर्ड विवरण के सत्यापन का इस्तेमाल किया।
अपराध करने के तुरंत बाद पेरुंबवूर छोड़ देने वाले इस्लाम को 50 दिन बाद पड़ोसी राज्य तमिलनाडु के कांचीपुरम से गिरफ्तार किया गया था। इस मामले में 100 से ज्यादा पुलिसकर्मियों ने 1500 से ज्यादा लोगों से पूछताछ की थी। (भाषा)