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![राजपथ-जनपथ : सिरसा के मैदान में पूर्व कांग्रेसी राजपथ-जनपथ : सिरसा के मैदान में पूर्व कांग्रेसी](https://dailychhattisgarh.com/uploads/article/1716282770hadhi_Chauk_NEW_1.jpg)
सिरसा के मैदान में पूर्व कांग्रेसी
हरियाणा की सिरसा सीट से चुनाव लड़ रहीं छत्तीसगढ़ प्रदेश कांग्रेस की पूर्व प्रभारी कुमारी सैलजा को उम्मीद नहीं रही होगी कि उनके खिलाफ माहौल बनाने के लिए भाजपा उनकी ही पार्टी के पूर्व नेताओं को आगे कर देगी। छत्तीसगढ़ में चुनाव परिणाम आने के बाद टिकट से वंचित और चुनाव लडक़र पराजित हुए प्रत्याशियों की नाराजगी कुमारी सैलजा के विरुद्ध ही थी। चुनाव जिस समय चल रहा था उसी समय एक ऑडियो वायरल हो गया था। इसमें बिलासपुर के महापौर रामशरण यादव व पूर्व विधायक अरुण तिवारी के बातचीत थी। इसी में बिना नाम लिए प्रभारी कुमारी सैलजा और पूर्व सह प्रभारी चंदन यादव के खिलाफ बातें कही गई थी। परिणामस्वरूप रामशरण यादव पार्टी से निलंबित कर दिये गए थे लेकिन लोकसभा चुनाव केपहले उन्हें फिर वापस ले लिया गया। विधानसभा चुनाव के दौरान भाजपा ने टिकट बेचने के मुद्दे को हाथों-हाथ उठा लिया, जिसका नुकसान यह हुआ कि कई उम्मीदवार शक के दायरे में आ गए। उन्हें इसका नुकसान भी उठाना पड़ा। खुद कुमारी सैलजा ने इस मुद्दे पर छत्तीसगढ़ में रहते कोई सफाई नहीं दी, पर तत्कालीन डिप्टी सीएम टीएस सिंहदेव और कुछ अन्य नेता उनके बचाव में आए थे। अब जब कुमारी सैलजा खुद मैदान में उतरी है, कांग्रेस छोडक़र भाजपा में गये छत्तीसगढ़ के नेताओं से असहज हो गई हैं। इसलिए उन्होंने आरोप लगाने वालों को माफी मांगने अथवा मानहानि का मुकदमा करने की चेतावनी दी है।
कुमारी सैलजा पर भ्रष्टाचार के अलावा शराब कोयला में कमीशन लेने का आरोप प्रेस कॉफ्रेंस में लगाया गया। ये नेता हरियाणा में प्रचार खत्म होने तक रहने वाले हैं। सिरसा सीट पर माहौल गर्म है। यहां सन् 2019 में भाजपा से कांग्रेस 3 लाख 10 हजार वोटों के विशाल अंतर से पराजित हुई थी। पर, सैलजा के पक्ष में यह बात है कि जिस कांग्रेस उम्मीदवार अशोक तंवर की इतने भारी अंतर से हार हुई थी उसी को भाजपा लड़ा रही है। तंवर कांग्रेस अध्यक्ष भी रहे, बाद में आम आदमी पार्टी में चले गए थे और अब भाजपा से मैदान में हैं।
ऐसा लगता है कि भाजपा ने छत्तीसगढ़ के पूर्व कांग्रेस नेताओं को अपनी पार्टी में लेने के बाद एक टास्क दिया है। इसमें यदि वे सफल होते हैं-यानि भाजपा को वहां से जीत दिला पाते हैं तो उनको कोई न कोई बड़ी जिम्मेदारी प्रदेश में मिल जाएगी।
अब ख़ुद हटने को तैयार
पढ़ाई के दिनों में हर कोई स्कूल कैप्टन और नौकरी में विभाग प्रमुख बनना चाहता है। दोनों ही जगह जब तक कि प्राचार्य और सरकार हटा न दे कोई हटना भी नहीं चाहता। लेकिन प्रशासन के तीन अंग कहे जाने वाले आईएएस, आईपीएस और आईएफएस में से एक ने हटने की इच्छा जता दी है। इसके लिए भी बड़ा जिगर, दिल चाहिए। वैसे छ माह पहले ही पिछली सरकार ने उन्हें कई लोगों को सुपरसीड कर मुखिया बनाया था। मातहत, नई सरकार आने पर बदलने का दावा कर रहे थे। लेकिन अच्छे रिश्ते काम आए। वैसे उनके सुपरसीड को लेकर कोर्ट केस भी चल रहा है ।
कुर्सी छोडऩे का इरादा संभावित फैसले को लेकर हो सकता है । लेकिन ऐसा नहीं है, साहब फंडिंग करते करते परेशान हो गए हैं। हर बार गुल्लक का मुंह बड़ा होता जा रहा है। आयोजना, गैर आयोजना हर मद का उपयोग कर लिया। अब नहीं कर सकते। ऊपर से वित्त विभाग की हर खर्च पर क्वेरी। यह सब देखते हुए साहब ने कह दिया है हटाना है तो हटा दो।
मैदान मामले में विवाद में नया मोड़ ...
गास मेमोरियल खेल मैदान वाले मामले में नया मोड़ दिख रहा है। बताते हैं कि यह मामला अब राजनीतिक रंग लेता दिख रहा है। पिछली सरकार के नेता के इसमें सीधे तौर पर शामिल रहने की तो सभी को जानकारी है, लेकिन अब इसमें सत्ता पक्ष से जुड़े कुछ कानून के जानकारों की भी भागीदारी होती दिख रही है।
ये वो लोग हैं जो कुछ सालों पहले भी मिशन की जमीन की नाप-जोख करने पहुंच गए थे। अब क्या दलीय नेताओं और कानून के जानकारों की मिलीभगत है? यह संदेह इसलिए जताया जा रहा है कि पिछले हफ्ते राजस्व विभाग के अफसरों का दल मिशन की जमीन की जांच करने पहुंच गए थे। यह किसके दबाव में हो रहा यह देखने वाली बात है।
साथ ही एक साथ इतने सारे लोगों को पहुंचना भी कई संदेहों को जन्म देता है। क्या अंदर से वास्तव में दोनों दलों के नेता मिले हुए हैं। एक पार्टी जो इस समाज की हितैषी होने का ढोंग बरसों से कर रही है, जबकि उसके नेता खिलाफ में ही काम करते हैं।
सरकारी स्कूलों में समर कैंप
आम तौर पर गर्मी की छुट्टियों में सरकारी स्कूल बंद ही रहते हैं। कार्यालय कहीं-कहीं जरूर खुलते हैं, जिनमें बारी- बारी प्रधानाध्यापक और शिक्षक दिखाई देते हैं। अब पहली बार यहां समर कैंप का आयोजन किया जा रहा है। समर कैंप के लिए शिक्षा सचिव सिद्धार्थ कोमल परदेशी ने विशेष रुचि ली। इसमें कहा गया है कि सुबह के समय दो घंटे का कैंप लगाकर बच्चों को रचनात्मक गतिविधियों से जोड़ा जाए। उनके लिए प्रशिक्षक उपलब्ध कराये जाएं। इस आयोजन के लिए अलग से कोई बजट नहीं होगा, पालकों व शाला विकास समितियों की मदद ली जाए।
सरकारी स्कूलों के बच्चों के व्यक्तित्व को निखारने के लिए यह एक बढिय़ा पहल हो सकती है। मगर, शिक्षकों के अलावा पालक भी इनमें अधिक रूचि नहीं दिखा दे रहे हैं। विभाग से आदेश होने का हवाला देते हुए प्राचार्यों ने शिक्षकों की ड्यूटी तो लगा दी है पर छात्र-छात्रा कम पहुंच रहे हैं। इसकी वजह भीषण गर्मी बताई जा रही है। वे शिक्षक भी दुखी हैं जिनकी घर से काफी दूर पोस्टिंग है। वे चाहते थे कि कुछ दिन वे घर में बिता लेते। समर कैंप में सामग्री लाने और प्रशिक्षकों को बुलाने का खर्च भी है। पर बजट नहीं होने के कारण शिक्षकों में दुविधा है। यदि वे छात्र-छात्राओं से चंदा मांगते हैं तो उन पर वसूली का आरोप लग सकता है। बहरहाल, इस बार समर कैंप का आइडिया ग्रीष्मकालीन छुट्टी की घोषणा करने के बाद आया है। हो सकता है अगले सत्र में बजट, ड्यूटी करने वाले शिक्षक, प्रशिक्षक पहले से तय कर लिए जाएंगे और व्यवस्थित कैंप लगाए जा सकेंगे।
सागर के पास रहकर प्यासे
प्रदेश के अधिकांश इलाकों में तापमान 40 डिग्री सेल्सियस से ऊपर जा चुका है। पेयजल और निस्तार के लिए गांव के गांव संकट से जूझ रहे हैं। सरकारी महकमे की चुनाव में व्यस्तता और आचार संहिता प्रभावशील होने की वजह से संकट के निदान की रफ्तार भी थमी हुई है। यह तस्वीर गंगरेल बांध से केवल 10 किलोमीटर दूर स्थित ग्राम मोहलई की है,जहां लोग पानी के लिए तरस रहे हैं। गांव में हैंडपंप हैं, मगर सब खराब हैं। जल जीवन मिशन के तहत हर घर पानी पहुंचाने के लिए पाइपलाइन तो बिछी है लेकिन काम अधूरा है। लोग साइकिल से बांध तक जाकर पानी ला रहे हैं। कभी कभी किस्मत से पानी का टैंकर पहुंच जाता है।