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![चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में कहा- हर पोलिंग बूथ का डेटा देने से भ्रम बढ़ेगा चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में कहा- हर पोलिंग बूथ का डेटा देने से भ्रम बढ़ेगा](https://dailychhattisgarh.com/uploads/article/1716528247lc.jpg)
नयी दिल्ली, 23 मई। निर्वाचन आयोग ने उच्चतम न्यायालय से कहा है कि मतदान केंद्र-वार मतदान प्रतिशत के आंकड़े "बिना सोचे-समझे जारी करने’’ और वेबसाइट पर पोस्ट करने से लोकसभा चुनावों में व्यस्त मशीनरी में भ्रम की स्थिति पैदा हो जाएगी।
आयोग ने एक गैर-सरकारी संगठन (एनजीओ) की याचिका के जवाब में दायर एक हलफनामे में यह बात कही। याचिका में आयोग को लोकसभा के प्रत्येक चरण के मतदान के समापन के 48 घंटे के भीतर वेबसाइट पर मतदान केंद्र-वार आंकड़े अपलोड करने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया था।
न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा की अवकाशकालीन पीठ एनजीओ 'एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स' की याचिका पर सुनवाई करने वाली है। याचिकाकर्ता ने चुनाव निकाय को यह निर्देश देने का भी आग्रह किया है कि सभी मतदान केंद्रों की फॉर्म 17 सी भाग-1 (दर्ज मतदान का विवरण) की स्कैन की गई सुपाठ्य) प्रतियां मतदान के तुरंत बाद अपलोड की जानी चाहिए।
निर्वाचन आयोग ने जवाबी हलफनामे में कहा है कि उम्मीदवार या उसके एजेंट के अलावा किसी अन्य व्यक्ति को फॉर्म 17सी प्रदान करने का कोई कानूनी अधिदेश नहीं है।
इसने कहा कि मतदान केंद्र पर डाले गए मतों की संख्या बताने वाले फॉर्म 17सी को सार्वजनिक रूप से पोस्ट करना वैधानिक ढांचे के अनुरूप नहीं है और इससे पूरी चुनावी प्रक्रिया में शरारत एवं गड़बड़ी हो सकती है, क्योंकि इससे छवियों के साथ छेड़छाड़ की संभावना बढ़ जाती है।
इसने कहा, ‘‘याचिकाकर्ता चुनाव अवधि के मध्य एक अर्जी दायर करके अपनी पात्रता हासिल करने की कोशिश कर रहा है जबकि चुनाव के दौरान ऐसा कुछ भी करने का प्रावधान नहीं है। यह सम्मानपूर्वक दोहराया जाता है कि कई विश्वसनीय व्यावहारिक कारणों से, वैधानिक अधिदेश के अनुसार परिणाम मौजूदा वैधानिक नियम के तहत निर्धारित समय पर फॉर्म 17सी में निहित डेटा के आधार पर घोषित किया जाता है।’’
आयोग ने यह भी कहा कि मतदान केंद्र-वार मतदान प्रतिशत डेटा को "बिना सोचे-समझे जारी करने’’ और वेबसाइट पर पोस्ट करने से चुनाव में व्यवस्त मशीनरी में भ्रम की स्थिति पैदा हो जाएगी।
इसने इस आरोप को भी गलत और भ्रामक बताते हुए खारिज किया कि लोकसभा चुनाव के पहले दो चरण में मतदान के दिन जारी किए गए आंकड़ों और बाद में दोनों चरणों में से प्रत्येक के लिए जारी प्रेस विज्ञप्ति में "5-6 प्रतिशत" की वृद्धि देखी गई।
एनजीओ ने दावा किया कि निर्वाचन आयोग द्वारा जारी शुरुआती आंकड़ों के मुकाबले अंतिम मतदान प्रतिशत डेटा में वृद्धि देखी गई।
निर्वाचन आयोग ने 225 पृष्ठ के हलफनामे में कहा, “यदि याचिकाकर्ता का अनुरोध स्वीकार किया जाता है तो यह न केवल कानूनी रूप से प्रतिकूल होगा, बल्कि इससे चुनावी मशीनरी में भी भ्रम की स्थिति पैदा हो पैदा होगी।”
इसने कहा कि याचिकाकर्ता एनजीओ 'एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स' एक भी ऐसे उदाहरण का उल्लेख करने में विफल रहा है जहां उम्मीदवारों या मतदाताओं ने 2019 में लोकसभा चुनाव के संबंध में याचिकाकर्ता द्वारा उठाए गए आरोपों के आधार पर चुनाव याचिका दायर की हो।
चुनाव निकाय ने कहा, ''यह इंगित करता है कि मुख्य याचिका के साथ-साथ वर्तमान अर्जी में याचिकाकर्ता द्वारा मतदाता मतदान डेटा में लगाया गया विसंगतियों का आरोप भ्रामक, झूठा और केवल संदेह पर आधारित है।''
इसने कहा कि कुछ निहित स्वार्थ वाले तत्व हैं, जो निर्वाचन आयोग द्वारा हर चुनाव के संचालन के समय संदेह का अनुचित माहौल बनाकर आधारहीन और झूठे आरोप लगाते रहते हैं, ताकि किसी तरह चुनाव निकाय को बदनाम किया जा सके। (भाषा)