संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : बच्चों से बूढ़ों तक, हर पीढ़ी साइबर-जुर्म के निशाने पर..
30-May-2024 4:37 PM
‘छत्तीसगढ़’ का  संपादकीय :  बच्चों से बूढ़ों तक, हर पीढ़ी  साइबर-जुर्म के निशाने पर..

हिन्दुस्तान में हर दिन हजारों लोगों को क्रिप्टोकरेंसी, गोल्ड मार्केट, और शेयर बाजार में पूंजीनिवेश का झांसा देकर हजारों करोड़ की ठगी की जा रही है। और यह सिर्फ इसी देश का मामला नहीं है, आज ही यह खबर आई है कि नाइजीरिया के मुजरिमों का एक गिरोह पूरी दुनिया में कम उम्र बच्चों और किशोरों को इंटरनेट पर किसी तरह से फांस लेता है, और उसके बाद उनकी नंगी तस्वीरें या वीडियो जुटाकर उनको ब्लैकमेल करना शुरू करता है। ऐसे कई बच्चे खुदकुशी भी कर लेते हैं। हालत यह हो गई है कि अपनी नग्न तस्वीरें भेजने से लेकर किसी के कहे हुए अपना बैंक खाता किसी के हवाले कर देने, किसी भी संदिग्ध और रहस्यमय कारोबार में पूरा पैसा डाल देने जैसे काम खासे पढ़े-लिखे और अपने को होशियार समझने वाले लोग भी बिजली की रफ्तार से करते हैं। अभी-अभी छत्तीसगढ़ में भिलाई की एक मेडिकल प्रोफेसर क्रिप्टोकरेंसी झांसे में आ गई, और 58 लाख रूपए ठगों के अलग-अलग खातों में डाल दिए गए। दूसरी तरफ वहीं पर बीएसपी के एक दूसरे रिटायर्ड अफसर ने महीने भर में ऐसे ही ठगों को सवा करोड़ से अधिक दे दिए। अब पुलिस मामले की जांच जरूर कर रही है, लेकिन ऐसे मामलों में टेलीफोन नंबर बंद मिलने लगते हैं, और बैंक खातों से पैसा कई दूसरे खातों से होते हुए गायब हो चुका रहता है। वॉट्सऐप पर इस अखबार के संपादक सहित दूसरे लोगों को हर दिन किसी न किसी ऐसे पूंजीनिवेश समूह में जोड़ दिया जाता है, जिसमें ठगों का जत्था कीर्तन करने के अंदाज में भारी मुनाफा गिनाते रहता है, और नए लोगों को झांसा देते रहता है। 

हिन्दुस्तान में जिस रफ्तार से डिजिटलीकरण हुआ है, उस रफ्तार से डिजिटल-जागरूकता नहीं बढ़ी है। लोगों के बैंक खाते, और भुगतान के दूसरे तरीके तो उनके मोबाइल फोन पर आ गए हैं, और कुछ नंबर दबाते ही वे रकम ट्रांसफर कर सकते हैं, या किसी तरह का ओटीपी उनके खाते में आने पर लोग पूरा अकाऊंट ही खाली कर देते हैं। इससे परे सैकड़ों लोन ऐप ऐसे हैं जो कि लोगों को टेलीफोन पर ही कर्ज मंजूर कर देते हैं, और उनके मोबाइल फोन ऐप डाउनलोड करते ही फोन के तमाम फोटो-वीडियो, और फोनबुक पर साइबर-साहूकारों का कब्जा हो जाता है। इसके बाद वे कर्ज उगाही के लिए अंधाधुंध अंदाज में ब्लैकमेल करते हैं, धमकाते हैं, फोन पर से हासिल कर लिए गए फोटो-वीडियो फोनबुक के हर किसी को भेज देने की धमकी देते हैं, और नमूने के बतौर कुछ लोगों को भेजकर दबाव भी बनाते हैं। भारत सरकार लगातार ऐसे कई मोबाइल ऐप बंद करती है, और फिर यही कारोबारी कुछ दूसरे नामों से फिर नया ऐप लांच करते हैं, और जालसाजी जारी रखते हैं। 

अभी दुनिया में तकरीबन तमाम मोबाइल ऐप सिर्फ गूगल और एप्पल के मोबाइल सॉफ्टवेयर पर उपलब्ध रहते हैं, और यूरोपियन यूनियन सहित कई जगहों पर इन दो लोगों के एकाधिकार के खिलाफ कार्रवाई की बात चल रही है। लेकिन इन दोनों कंपनियों का तर्क यही है कि वे अपने प्लेटफॉर्म पर आने वाले हर मोबाइल ऐप की इतनी गहरी छानबीन करते हैं कि उनसे धोखाधड़ी का खतरा कम रहता है। खासकर एप्पल ने अभी हाल ही में यह दावा किया है कि उसके प्लेटफॉर्म की सुरक्षा तकनीक की वजह से जालसाज लोग वहां जगह नहीं पा सकते, और एप्पल के फोन इस्तेमाल करने वाले लोग बहुत अधिक सुरक्षित रहते हैं। अब एक दूसरा सवाल यह खड़ा होता है कि एक तरफ तो बड़ी कंपनियां अपने प्लेटफॉर्म पर मोबाइल ऐप को जगह देने के पहले उसकी जांच करती हैं, लेकिन दूसरी तरफ इन्हीं प्लेटफॉर्म से डाउनलोड किए गए मोबाइल ऐप के मार्फत हर तरह की धोखाधड़ी चल रही है। वॉट्सऐप पर जो पहली नजर में धोखाधड़ी के ग्रुप बनाए जाते हैं, उनकी शिनाख्त करना इतना मुश्किल भी नहीं होना चाहिए कि इस लोकप्रिय मैसेंजर सर्विस की मालिक मेटा नाम की कंपनी उसकी शिनाख्त न कर सके। लेकिन न सिर्फ वॉट्सऐप पर, जिस पर कि संदेशों के गोपनीय रखने का दावा किया जाता है, बल्कि फेसबुक जैसे खुले सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर हर दिन लाखों ऐसे इश्तहार आते हैं जो जाहिर तौर पर धोखाधड़ी के हैं। इनके खिलाफ वहीं पर यह टिप्पणी की जाए कि ये फ्रॉड हैं, धोखाधड़ी हैं, तो भी फेसबुक उनको परखता नहीं है। दूसरी तरफ फेसबुक पर ऐसे इश्तहार हर दिन आते रहते हैं जिनमें कई किस्म के कपड़े और दूसरे सामान बहुत असंभव किस्म के सस्ते दाम पर दिखाए जाते हैं, और उनका एडवांस पेमेंट कर देने के बाद न सामान आता, न कोई जवाब आता। हमारा ख्याल है कि धोखेबाजी के ऐसे इश्तहार दिखाने पर फेसबुक के खिलाफ जुर्म दर्ज किया जाना चाहिए क्योंकि मामूली समझ रखने वाले लोगों को भी पहली नजर में यह दिख जाता है कि कौन-कौन से इश्तहार धोखा देने वाले हैं, तो वह फेसबुक के बड़े माहिर कम्प्यूटरों को कैसे समझ नहीं आएगा। 

कुल मिलाकर कम्प्यूटर, इंटरनेट, और मोबाइल फोन की दुनिया लोगों को बहुत बड़े खतरे में भी डाल रही है। लोग सोशल मीडिया पर बालिग किस्म के मामलों में भी हॅंस रहे हैं, और ब्लैकमेलिंग के शिकार हो रहे हैं, लोन देने वाले लोग इस कदर ब्लैकमेल कर रहे हैं कि आत्महत्याएं हो रही हैं। अब नाइजीरिया के लोगों का गिरोह पश्चिमी दुनिया में इस तरह ब्लैकमेल कर रहे हैं कि बच्चे आत्महत्या कर ले रहे हैं। जो रिटायर्ड लोग अपनी पूरी जिंदगी की बचत किसी पूंजीनिवेश के झांसे में डुबा दे रहे हैं, तो वे भी जीते जी मरने की हालत में पहुंच गए हैं। अलग-अलग देशों की सरकारों को अपने स्तर पर, और सामूहिक रूप से भी साइबर-जुर्म रोकने के लिए अधिक कोशिश करनी होगी, क्योंकि मुजरिम पकडऩे के लिए आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस का इस्तेमाल हो, या न हो, जुर्म करने के लिए तो आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस का इस्तेमाल बढ़-चढक़र शुरू हो गया है, और मुजरिम अपने शिकार छांटने के लिए खासकर एआई-औजार का इस्तेमाल कर रहे हैं। भारत जैसे देश में डिजिटल तकनीक को जिंदगी के बहुत से दायरों में सरकार ने अनिवार्य सरीखा कर दिया है। लोगों की जानकारी सरकार के ही कई-कई विभागों और योजनाओं के कम्प्यूटरों पर चढ़ती है। इनमें से कौन सी जानकारी सरकार बाजार को इस्तेमाल के लिए दे रही है, और कौन सी जानकारी बाजार चुरा रहा है, यह जानना कुछ मुश्किल है, लेकिन अभी दुनिया भर में चल रहे अध्ययन बताते हैं कि साइबर-ठगी, जालसाजी के शिकार होने वाले बच्चों की उम्र अब घटती चल रही है। और बच्चे कम उम्र में ही ठगी के शिकार भी हो रहे हैं, और यौन शोषण जैसे गंभीर जुर्म भी उनके खिलाफ हो रहे हैं। ऐसा लगता है कि दुनिया भर की सरकारें मिलकर भी मुजरिमों से बहुत पीछे चल रही हैं, और यह सिलसिला बदलने की जरूरत है।  (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)   

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