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‘वाराणसी में मोदी की लड़ाई हार-जीत की नहीं है’
01-Jun-2024 2:51 PM
‘वाराणसी में मोदी की लड़ाई हार-जीत की नहीं है’

वाराणसी संसदीय सीट से पीएम मोदी तीसरी बार उम्मीदवार हैं. अजय राय कांग्रेस उम्मीदवार हैं और उन्हें समाजवादी पार्टी का भी समर्थन हासिल है. स्थानीय लोगों की मानें, तो लड़ाई जीत-हार के लिए नहीं बल्कि जीत के अंतर की है.

  डॉयचे वैले पर  समीरात्मज मिश्र का लिखा-

 

ंबनारस के असि घाट पर एक तख्त पर बैठी फूल-माला बेच रहीं 60 वर्षीय पूनम देवी कहती हैं कि उनकी दुकान मोदी जी के पीएम बनने के बाद से काफी अच्छी चल रही है। वह कहती हैं, ‘बिक्री तो पहले भी होती थी, लेकिन पहले इतने लोग यहां नहाने-पूजा करने नहीं आते थे। मोदी जी के आने के बाद लोगों का आना-जाना बढ़ा है, इसलिए दुकानदारी भी बढिय़ा चल रही है।’

पूनम देवी बनारस की ही रहने वाली हैं और सालों से यही काम करती आ रही हैं। उनके घर के दूसरे लोग भी जगह-जगह फूल-माला ही बेचते हैं। महीने में सरकारी योजना का राशन भी मिल रहा है, अन्य सुविधाएं भी मिल रही हैं और सभी लोग खुश हैं। हां, घर में आज भी 10वीं से ज्यादा कोई पढ़ा नहीं है और उनके मुताबिक, जब सब ठीक ही चल रहा है तो बहुत ज्यादा पढऩे-लिखने की जरूरत भी क्या है।

लेकिन उसी असि घाट पर करीब 200 मीटर दूर सीढिय़ों पर जब तूफानी यादव से मुलाकात हुई, तो पीएम मोदी के बारे में उनके विचार कुछ अलग ही थे। तूफानी यादव गाजीपुर के रहने वाले हैं। वह कहते हैं, ‘मोदी का जलवा तो है, बनारस में फिर जीतेंगे, यहां काम भी अच्छा कर रहे हैं, लेकिन देश को बेचे दे रहे हैं। जितनी चीजें हैं, रेलवे, एयरपोर्ट सब कुछ बेच दे रहे हैं। देश को गुलाम बना दे रहे हैं।’

1991 से ही बीजेपी का गढ़ है वाराणसी सीट

इन दो लोगों की बातों से न सिर्फ बनारस की बल्कि देश भर की, खासकर उत्तर भारत की राजनीति की बानगी मिल जाती है। मोदी और उनकी सरकार के विरोधियों और समर्थकों के तर्क कुछ ऐसे ही हैं जैसे कि पूनम देवी और तूफानी यादव के। पीएम मोदी वाराणसी से लगातार तीसरी बार लोकसभा का चुनाव लड़ रहे हैं। वाराणसी में आखिरी चरण में एक जून को मतदान है। उनका मुकाबला इंडिया गठबंधन की ओर से कांग्रेस उम्मीदवार अजय राय और बहुजन समाज पार्टी के अतहर जमाल लारी से है।

वाराणसी लोकसभा सीट में कुल पांच विधानसभाएं आती हैं- रोहनिया, वाराणसी उत्तर, वाराणसी दक्षिण, वाराणसी कैंट और सेवापुरी। साल 2022 के विधानसभा चुनाव में इनमें से सभी सीटें भारतीय जनता पार्टी ने जीती थीं। वाराणसी लोकसभा सीट वैसे भी 1991 के बाद से बीजेपी का गढ़ कही जाती रही है, जहां 2004 को छोडक़र सभी चुनाव बीजेपी उम्मीदवारों ने ही जीते हैं। लेकिन 2014 और 2019 में नरेंद्र मोदी के यहां से चुनाव लडऩे के बाद जीत का अंतर तो लगातार बढ़ा ही है, सीट का भी महत्व काफी बढ़ गया है।

पीएम मोदी के नामांकन में जिस तरह से बीजेपी और सहयोगी दलों के दिग्गजों का जमावड़ा हुआ, उसके बाद प्रचार में भी तमाम वीआईपी यहां आते रहे और अभी भी केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल समेत कई दिग्गज लगातार यहीं बने हुए हैं। पीएम के रोड शो में भी दिग्गजों का जमावड़ा रहा। वहीं, कांग्रेस नेता अजय राय के समर्थन में भी समाजवादी पार्टी और कांग्रेस नेताओं ने कई सभाएं और रैलियां कीं। इसके अलावा कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी और समाजवादी पार्टी की नेता डिंपल यादव ने रोड शो भी किया।

‘जीत का अंतर बढ़ाने की लड़ाई’

बीजेपी नेताओं की मानें, तो पीएम मोदी की लड़ाई यहां जीतने और हारने की नहीं बल्कि जीत के अंतर को बढ़ाने के लिए है। लेकिन कांग्रेस नेताओं का कहना है कि बीजेपी के लोग गलतफहमी में हैं, इस बार वाराणसी की जनता पीएम मोदी को आईना दिखाकर रहेगी। पीएम मोदी यहां से जीत की हैट्रिक लगाने की तैयारी कर रहे हैं, तो अजय राय हार की हैट्रिक लगा चुके हैं। दो बार कांग्रेस उम्मीदवार के तौर पर और उससे पहले 2009 में समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार के तौर पर। 2014 और 2019 के चुनाव में अजय राय तीसरे नंबर पर थे। बावजूद इसके उन्हें अपनी जीत का पूरा भरोसा है।

इस बार समाजवादी पार्टी का भी उन्हें समर्थन है। अजय राय कहते हैं, ‘गुजराती लोगों ने यहां बनारस में आकर बनारसियों को ठगने का काम किया है। किसानों की जमीन औने-पौने दाम पर खरीदकर उन्हें बेघर किया है। रोहनिया और सेवापुरी में एक भी फैक्ट्री नहीं रह गई है। गुजराती यहां से सब कुछ उठा ले गए। यहां के सारे ठेके गुजरातियों को मिल रहे हैं। अब समय आ गया है कि इन्हें वोट के जरिए जवाब दिया जाए और जनता जवाब देने के लिए तैयार बैठी है।’

अजय राय लोकसभा के चुनाव में हार की हैट्रिक लगाने के बावजूद भले ही चौथी बार मैदान में डटे हैं, लेकिन इससे पहले वह वाराणसी की अलग-अलग सीटों और अलग-अलग पार्टियों से पांच बार विधायक रहे हैं। मौजूदा समय में कांग्रेस पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष हैं और स्थानीय स्तर पर जनाधार वाले नेता माने जाते हैं।

वाराणसी में बाजार की एक तस्वीर। ऊपर लगे बोर्ड पर हरिश्चंद्र घाट और लंका की ओर का रास्ता मार्क किया गया है। वाराणसी में बाजार की एक तस्वीर। ऊपर लगे बोर्ड पर हरिश्चंद्र घाट और लंका की ओर का रास्ता मार्क किया गया है।

क्या हैं वाराणसी के स्थानीय मुद्दे

बनारस में करीब तीन लाख बुनकर भी रहते हैं। बुनकरों की एक बड़ी आबादी यहां मदनपुरा इलाके में रहती है। मदनपुरा के रहने वाले मोहम्मद एजाज एक पावर लूम चलाते हैं। वह बताते हैं, ‘पीएम मोदी की वजह से बनारस में जो कुछ भी विकास हुआ है, वो सडक़ों और निर्माण कार्यों में ही दिखाई पड़ता है जिसकी वजह से यहां पर्यटन बढ़ा है। लेकिन कारखाने नहीं खुले, जो थे भी वो भी बंद हैं। रोजगार के क्षेत्र में कुछ ऐसा नहीं हुआ जिससे लोगों को फायदा हुआ हो। ऊपर-ऊपर तो सब चमाचम दिखता है, लेकिन अंदर-अंदर सब खोखला ही दिखता है। व्यापारी परेशान हैं। बुनकरों की स्थिति में भी कोई सुधार नहीं हुआ है।’

यही नहीं, युवाओं में भी सरकार को लेकर नाराजगी है। चाहे वो केंद्र की सरकार हो, चाहे राज्य की सरकार हो। चूंकि दोनों ही जगह बीजेपी की सरकारें हैं इसलिए नाराजगी का टार्गेट भी बीजेपी ही है। बीएचयू में इतिहास की छात्रा नेहा दुबे कहती हैं,

‘रोजगार और महंगाई के फ्रंट पर यह सरकार बिल्कुल फेल साबित हुई है। चुनावी समय में भी ये ऐसी बात कर रहे हैं जिनका आम आदमी, खासकर युवाओं से कोई लेना-देना नहीं है। हर चीज के दाम आसमान छू रहे हैं। नियुक्तियां पहले तो निकल ही नहीं रही हैं, जब निकल भी रही हैं तो पेपर लीक हो जा रहे हैं, परीक्षाएं मुकदमेबाजी में फंस रही हैं। कुल मिलाकर नौकरियां नहीं मिल रही है। ऐसा लगता है कि सरकारी की नीयत ही नहीं है कि नौकरियां दी जाएं।’

वाराणसी में प्रधानमंत्री के सबसे महत्वपूर्ण कार्यों में विश्वनाथ कॉरिडोर का नाम लिया जाता है। हालांकि उसके बनने के दौरान स्थानीय लोगों ने काफी विरोध किया था, लेकिन मुआवजे और प्राशासनिक भय ने धीरे-धीरे उस प्रतिरोध को लगभग पूरी तरह शांत कर दिया। कॉरिडोर बनने से तमाम लोग जहां बहुत खुश हैं, वहीं कुछ लोग इसे 'काशी की संस्कृति को नष्ट करने' जैसा मानते हैं। वरिष्ठ पत्रकार दिलीप राय कहते हैं, "काशी विश्वनाथ मंदिर के आस-पास कई मोहल्लों को उजाडक़र कॉरिडोर बनाया गया। मंदिर 4,000 वर्ग मीटर में पहले भी था और आज भी उतने में ही है। बाकी जो बना है, वो व्यापार के लिए बनाया गया है। यहां की सांस्कृतिक विरासत को नष्ट किया गया है।’

‘इस बार संविधान बचाने के लिए वोट’

वहीं, बेनीपुर गांव की रहने वाली जीतेश्वरी देवी कहती हैं कि इस बार वोट 'संविधान को बचाने के लिए' हो रहा है। खेत में मजदूरी करने वाली जीतेश्वरी यह पूछने पर कि संविधान को क्या खतरा है, कहती हैं, ‘सब कह रहे हैं कि अबकी बार भाजपा वाले आ जाएंगे, तो संविधान खत्म कर देंगे। मतलब, गरीबों और मजदूरों की फिर से वही हालत हो जाएगी जो पहले हुआ करती थी। शोषण भी होगा और लोग कहीं शिकायत भी नहीं कर पाएंगे। दलितों को नौकरियां भी मिलनी बंद हो जाएंगी।’

जीतेश्वरी देवी की तरह उनके साथ की दूसरी महिलाओं को भी यही आशंका है। ये महिलाएं संविधान के बारे में ज्यादा तो नहीं जानतीं, लेकिन इनके घरों के पढ़े-लिखे बच्चों ने इन्हें यही बताया है और उनकी बातों पर इन्हें पूरा भरोसा है।

वाराणसी लोकसभा सीट की बात करें, तो यहां सबसे ज्यादा लगभग दो लाख कुर्मी मतदाता हैं और इनका ज्यादा प्रभाव रोहनिया और सेवापुरी विधानसभा में है। इसके बाद करीब दो लाख वैश्य मतदाता हैं। ब्राह्मण, भूमिहार और यादव मतदाताओं की संख्या भी यहां अच्छी-खासी है। यहां करीब 25 फीसद मुस्लिम मतदाता भी हैं। हालांकि, पीएम मोदी की उम्मीदवारी के चलते जातीय समीकरणों का बहुत असर नहीं रहता क्योंकि लगभग हर वर्ग का वोट पिछले दो बार से उन्हें मिल रहा है।

स्थानीय लोगों का कहना है कि पीएम मोदी का इस सीट से हैट्रिक लगाना तो तय है, देखना यह है कि जीत का अंतर पिछले चुनावों के मुकाबले कम होता है या ज्यादा रहता है। विपक्षी उम्मीदवार यानी अजय राय की उपलब्धि इसी से तय होगी। (डॉयचेवैले)

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