विचार / लेख
![रोमांस’ के चटख रंग रोमांस’ के चटख रंग](https://dailychhattisgarh.com/uploads/article/1717400677mages.jpg)
शोभा अक्षर
रोमांस के कोमल अँगड़ाइयों के बीच एक दिलचस्प बात महसूस करती हूँ कि फेमिनिस्ट पुरुष अभेद्य नहीं हैं।
ये पुरुष कभी-कभी जंगल की तरह लगते हैं, उम्र के साथ आगे बढ़ते हुए परिपक्व, ज़ोरदार और पहले से अधिक रोमांचित करने वाले होते जाते हैं। स्त्रियाँ इनके साथ जिस हद तक सहज महसूस करती हूँ, उसकी तासीर शायद ख़ुद ये पुरुष नहीं समझ पाते। या देर से समझते हैं। इनके साथ चलते हुए जमीन हरी घास की क़ालीन महसूस होती है, और जि़ंदगी सुर्ख गुलाब का फूल।
हालाँकि प्रेम-प्रसंगों में अक्सर एक तेज झोंका आता है और थोड़ी देर के लिए ही सही सब बदरंग हो जाता है। दोनों ओर से मु_ियों में जिसे भींचने की बेतरह कोशिश हुई थी, वह तो रेत थी। कसी हुई मु_ियों से भी निकल गई, हाथ फिर खाली!
लेकिन जिन्हें सेक्सुअलिटी में मुसलसल आने वाले मोड़ पर ठहरना आता है, वह अपने यौवन में फिर से नए और ताजगी से भरे हुए हो जाते हैं। जैसे चाँद की दूधिया रोशनी में नहाया हुआ दो नग्न बदन नदी के किनारे सुस्ताने बैठे हों।
सचमुच! यह दुनिया कितनी सुन्दर है। ऐसे पल कितने अविस्मरणीय! प्रेम में पड़े जोड़े झींगुरों की आवाज़ें जियादा शान्त होकर सुन सकते हैं। उनके साथ की स्मृतियाँ मुलाकातों से इतर अँधेरे और अकेलेपन की माँग करती हैं।
अलगाव के बाद भी ये जोड़े ख्वाब देखते हैं, बिना किसी टीस के एक मुकम्मल ख्वाब।
रोमांस, त्रासद घटनाओं के प्रभाव के सिलसिले को रोकता है।यहीं से त्रासदी और जि़न्दगी के बीच एक सामान्य लेकिन पारदर्शी दीवार उठती है।रोमांटिक होना क्या है, सुन्दर और संवेदनशील होना! एक ऐसी ख़ुशबू को साथ लेकर चलना जो उदासी को बिल्कुल नागवार है।
रोमांस की अनगिनत फ़ाइल एक साथ खुली हो। प्रेम की तरह नहीं है यह सब, प्रेम में एक ही समय में मूर्ख, बुद्धिमान, पागल, सुन्दर, हसीन, बेढंग, संवेदनशील, लापरवाह सब एक साथ होना होता है। बल्कि रोमांस में नाटकीयता है, एक कि़स्म का सनसनीपन रिझाने के लिए।
कौन है जो रोमांस नहीं करना चाहता, या ख़ुद से साथ रोमांस होने को जीना नहीं चाहता!
रोमांटिक होना, ख़ुद को खोजना भी तो है। इसमें कभी हम ख़ुद को तो कोई दूसरा हमें खोजता है। शायद इसलिए भी यह ताजगी से भरा होता है क्योंकि इस प्रक्रिया में अतीत नहीं होता, किसी के पास कोई शिकायत नहीं होती। यहाँ एक शोख़पन और मादकपन है। बेफिक्री है, उम्मीदों से भरे अनगिनत सपने।
आज भी तमाम रूढिय़ों से अभिशप्त हमने एक खूँटी से ख़ुद को टाँग दिया है, जबकि रोमांस के कैनवास पर यह कलाकृतियाँ उकेरने का समय है।