विचार / लेख
-राहुल कुमार सिंह
छत्तीसगढ़ में लोकसभा चुनाव परिणाम के लिए विशेषज्ञों से लेकर राजनीति में सामान्य रुचि रखने वाले तक कांग्रेस की जिस एक सीट के लिए आश्वस्त थे, वह कोरबा थी और ऐसा ही हुआ। यानि प्रत्याशित, कुछ भी चौंकाने वाला नहीं। इसका सबसे प्रमुख कारण माना जा रहा था, जो परिणाम में साबित भी हुआ, वह था भाजपा प्रत्याशी का चयन। ऐसा नहीं कि महंत जी की राजनीतिक विरासत, उनकी सूझबूझ और सहिष्णुता को कम आंका जाए।
यहां ध्यान देने की बात है कि भाजपा प्रत्याशी को बाहरी माना गया, जबकि वे सुश्री सरोज पांडे भाजपा की राष्ट्रीय राजनीति से तो जुड़ी ही रही हैं, एक समय वे दुर्ग की महापौर, विधायक और सांसद तीनों पदों पर काबिज थीं।
यहां बाहिरी को समझने का प्रयास करें। भिलाई-दुर्ग और रायपुर में जितनी महानगरीय स्वीकार्यता है, बिलासपुर में नहीं है और वहीं छत्तीसगढ़ के दो प्रमुख औद्योगिक नगरों- भिलाई जैसी अखिल भारतीयता, कोरबा में नहीं है। यहां एक कारक सरोज पांडेय का एलीट रंग-रूप और व्यवहार भी है। कोरबा लोकसभा क्षेत्र के मतदाताओं में छत्तीसगढ़िया और जनजातीय रुझान भी प्रभावी होता है।
यहां एक वृहत्तर संदर्भ को भी देख लेना चाहिए, वह है शिवनाथ नदी के उत्तर और दक्षिण का छत्तीसगढ़। रायपुर-दुर्ग के लिए धमतरी, महासमुंद तो अपना है ही राजनांदगांव और कांकेर तक भी उसकी पहुंच होती है और बस्तर तक आवाजाही। मगर दूसरी तरफ बिलासपुर से तो वह कुछ हद तक संबंधित होता है, लेकिन कोरबा, रायगढ़ से उसका ताल्लुक (और समझ) सामान्यतः कम होता है और सरगुजा, जशपुर, कोरिया लगभग पूरी तरह उससे छूटा रहता है।
मध्य प्रदेश के दौरान मैं ऐसे भी मंत्री से मिला हूं जो छत्तीसगढ़ के, शिवनाथ नदी के दक्षिण के थे, जो सरगुजा और वह भी अंबिकापुर तक बमुश्किल एकाध बार ही गए थे।
संक्षेप में यह कि शिवनाथ के दक्षिण के नेताओं की पैठ और स्वीकार्यता शिवनाथ के उत्तर में सामान्यतः वैसी नहीं बन पाती और कोरबा के चुनाव परिणाम के तात्कालिक प्रसंग में देखें तो कोरबा लोकसभा चुनाव परिणामों में कांग्रेस की जीत के इतिहास में कभी रामचंद्र सिंहदेव और कभी हीरासिंह मरकाम लगभग निर्णायक कारक रहे हैं। इस चुनाव परिणाम में, औद्योगिक नगरी होने के बावजूद भी कोरबा महानगरीय के बजाय छत्तीसगढ़ी, जनजातीय मानसिकता के साथ सहज होता है। उसे एलीट बाहिरी किस्म का जनप्रतिनिधि आसानी से स्वीकार नहीं होता।