विशेष रिपोर्ट

दो दशक से प्रदेश भाजपा का
06-Jun-2024 7:00 PM
दो दशक से प्रदेश भाजपा का

  लोकसभा चुनाव  

‘छत्तीसगढ़’ की विशेष रिपोर्ट : शशांक तिवारी

रायपुर, 6 जून (‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता)। केंद्र में सरकार चाहे किसी की भी हो, राज्य गठन के बाद के अब तक के लोकसभा चुनाव में जनता का मिजाज खालिस भाजपा समर्थक का रहा है। इस बार भी भाजपा ने अपना दबदबा बरकरार रख 10 सीटें जीती है। जबकि कांग्रेस को एकमात्र कोरबा सीट पर ही जीत मिल पाई। खास बात यह है कि कांग्रेस का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन पिछले लोकसभा चुनाव में रहा, जब पार्टी दो सीट जीतने में कामयाब रही। 

छत्तीसगढ़ राज्य गठन के बाद वर्ष-2004 में लोकसभा के चुनाव हुए। उस वक्त प्रदेश में भाजपा की सरकार थी, और डॉ. रमन सिंह मुख्यमंत्री थे। राज्य में विधानसभा चुनाव के छह महीने के बाद ही लोकसभा के चुनाव होते हैं। चूंकि राज्य गठन में अटल बिहारी वाजपेयी सरकार की भूमिका थी। इसका फायदा पहले चुनाव में मिला। 

भाजपा प्रदेश की 11 लोकसभा सीटों में से 10 सीट जीतने में कामयाब रही। ये अलग बात है कि छत्तीसगढ़ की जनता के भरपूर समर्थन के बाद भी अटल बिहारी वाजपेयी सरकार की वापसी नहीं हो पाई, और केन्द्र में सत्ता परिवर्तन हो गया। उस वक्त प्रदेश में लोकसभा चुनाव से पहले काफी उठा पटक हुआ था। 

भाजपा विधायक खरीद-फरोख्त की कोशिश में तत्कालीन सीएम अजीत जोगी को कांग्रेस ने निलंबित कर दिया था। इसकी सीबीआई जांच हुई थी। उनकी लोकसभा चुनाव के ठीक पहले वापसी हुई, और कांग्रेस ने महासमुंद सीट से प्रत्याशी बनाया। महासमुंद में पूर्व केंद्रीय मंत्री विद्याचरण शुक्ल भाजपा प्रत्याशी के रूप में चुनाव मैदान में थे। चुनाव प्रचार के बीच जोगी का एक्सीडेंट हो गया। इससे उपजी सहानुभूति के चलते जोगी को बड़ी जीत हासिल हुई। 

राज्य गठन के पहले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के दिग्गज नेता डॉ. चरणदास महंत जांजगीर लोकसभा सीट से हार गए। हारने वालों में अविभाजित मप्र कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष परसराम भारद्वाज, रायपुर से पूर्व सीएम श्यामाचरण शुक्ल, बस्तर से महेंद्र कर्मा प्रमुख थे। अकेले अजीत जोगी प्रदेश से लोकसभा के सदस्य रहे। 

वर्ष-2009 के लोकसभा चुनाव के ठीक पहले विधानसभा चुनाव में भाजपा को सफलता मिली थी, और डॉ. रमन सिंह फिर मुख्यमंत्री बने। केन्द्र में उस वक्त डॉ. मनमोहन सिंह की सरकार थी। मनमोहन सिंह सरकार ने मनरेगा जैसी योजनाएं लाकर लोकप्रियता हासिल की थी। छत्तीसगढ़ में कांग्रेस ने विपक्ष में रहकर जोर शोर केंद्र की उपलब्धियों को प्रचारित भी किया था। विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 38 सीटें मिली थी। लेकिन छत्तीसगढ़ में केन्द्र सरकार की उपलब्धियों का कोई खास फायदा नहीं हुआ। लोकसभा चुनाव में एकमात्र कोरबा सीट से डॉ. चरणदास महंत ही जीत पाए। बाकी सभी सीटों पर कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा। जनता ने भाजपा को भरपूर समर्थन दिया।

हारने वालों में कांग्रेस नेताओं में बिलासपुर से डॉ. रेणु जोगी, भूपेश बघेल रायपुर से, देवव्रत सिंह प्रमुख थे। जबकि भाजपा से रमेश बैस, दिलीप सिंह जुदेव, सरोज पाण्डेय, बलीराम कश्यप आदि नेताओं ने अच्छी जीत हासिल की थी। इससे परे वर्ष-2014 के लोकसभा चुनाव में यूपीए सरकार के खिलाफ माहौल था, और नरेंद्र मोदी को पीएम बनाने लहर थी। 

लोकसभा चुनाव से ठीक पहले विधानसभा के चुनाव में फिर भाजपा ने सरकार बनाई, और रमन सिंह के नेतृत्व में तीसरी बार सरकार बनी। मगर कांग्रेस का प्रदर्शन भी बेहतर रहा, और 39 सीटें जीतने में कामयाब रहीं। लेकिन लोकसभा चुनाव में कांग्रेस का प्रदर्शन एकदम फीका रहा, और एकमात्र दुर्ग सीट से ताम्रध्वज साहू चुनाव जीतने में सफल रहे। हारने वाले कांग्रेस नेताओं में अजीत जोगी महासमुंद से, रायपुर से सत्यनारायण शर्मा और कोरबा से डॉ. चरणदास महंत प्रमुख थे। उस वक्त डॉ. महंत केन्द्रीय मंत्री थे। भाजपा से सरोज पाण्डेय हारने वाली एकमात्र प्रत्याशी थीं। 

वर्ष-2019 के चुनाव में अलग ही तरह का माहौल था। प्रदेश में 15 साल की भाजपा सरकार की बुरी हार हुई थी, और भूपेश बघेल के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार बनी। कांग्रेस को कुल 90 सीटों में से 68 विधानसभा सीटों पर सफलता हासिल हुई थी। मगर 6 महीने के बाद हुए लोकसभा चुनाव में कांग्रेस का प्रदर्शन खराब रहा। 

कांग्रेस के कोरबा से ज्योत्सना महंत, और बस्तर से दीपक बैज ही चुनाव जीतने में कामयाब रहे। भाजपा ने पूर्व केन्द्रीय मंत्री रमेश बैस, अभिषेक सिंह सहित सभी 10 सांसदों की टिकट काटकर नए चेहरे को प्रत्याशी बनाया गया। भाजपा की यह रणनीति कामयाब रही, और 9 सीटें जीतने में कामयाब रही। भाजपा से जीतने वालों में दुर्ग से विजय बघेल, रेणुका सिंह, और अरुण साव प्रमुख थे। खुद भूपेश बघेल सीएम रहते उनके लोकसभा क्षेत्र दुर्ग में कांग्रेस की सबसे बड़ी हार हुई। भूपेश अपने विधानसभा क्षेत्र पाटन से भी कांग्रेस को बढ़त नहीं दिला पाए।

प्रदेश में इस बार यानी 2024 के चुनाव नतीजों में भाजपा का दबदबा कायम रहा। 

ये अलग बात है कि देश के कई राज्यों में भाजपा का प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा। जनता ने भाजपा का समर्थन किया, और कोरबा संसदीय सीट को छोडक़र बाकी सभी लोकसभा सीटों पर चुनाव जीतने में कामयाब रही। हारने वालों में पूर्व सीएम भूपेश बघेल भी हैं। भाजपा से पार्टी की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष सरोज पाण्डेय को कोरबा सीट से हार झेलनी पड़ी है। यानी इस बार भी जनता का भरपूर समर्थन मिला है, और विधानसभा चुनाव से ज्यादा समर्थन दिया है। 

सात सीट में कांग्रेस को नहीं मिली सफलता 
राज्य बनने के बाद से अब तक के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस 7 लोकसभा सीट नहीं जीत सकी है। इनमें रायपुर, बिलासपुर, कांकेर, रायगढ़, नांदगांव, जांजगीर-चांपा, और सरगुजा सीट है। हालांकि इनमें राजनांदगांव सीट में वर्ष-2004 के आम चुनाव में कांग्रेस हारी थी, लेकिन दो साल बाद सांसद प्रदीप गांधी की बर्खास्तगी के बाद उपचुनाव में भाजपा को हार का सामना करना पड़ा। लेकिन वर्ष-2009 के आम चुनाव में भाजपा यह सीट जीतने में कामयाब रही।

कांग्रेस को वर्ष-2004 में महासमुंद, दुर्ग, बस्तर और कोरबा सीट पर  ही सफलता मिली है। इनमें से कोरबा सीट परिसीमन के बाद 2009 में अस्तित्व में आई, और अब तक के चार चुनाव में 3 बार कांग्रेस का कब्जा रहा है।  कोरबा में पहले डॉ. चरणदास महंत, और पिछले दो चुनाव से उनकी पत्नी ज्योत्सना महंत चुनाव जीत रही है। 

साय-बैस तीन बार जीते, भूपेश हारे
राज्य बनने के बाद सीएम विष्णुदेव साय और पूर्व केन्द्रीय मंत्री रमेश बैस तीन बार लोकसभा का चुनाव लड़े, और तीनों बार उन्हें भारी वोटों से जीत मिली। विष्णुदेव साय एक बार राज्य बनने से पहले और तीन बार बाद में रायगढ़ से सांसद रहे। इससे परे पूर्व सीएम भूपेश बघेल तीन बार लोकसभा का चुनाव लड़े, और तीनों में उन्हें हार का सामना करना पड़ा। 

भूपेश बघेल वर्ष-2004 में दुर्ग सीट से लड़े थे। उन्हें भाजपा के ताराचंद साहू ने हराया। इसके बाद वर्ष-2009 में रायपुर सीट से चुनाव लड़े, और पूर्व केन्द्रीय मंत्री रमेश बैस ने उन्हें हराया। इस बार पूर्व सीएम बघेल राजनांदगांव सीट से चुनाव मैदान में थे। जहां विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने बेहतर प्रदर्शन किया था। मगर यहां भी भूपेश को भाजपा के संतोष पांडेय ने 44 हजार से अधिक वोटों से हराया। 

नहीं पहुंच पाए शुक्ल बंधु संसद 
पूर्व केंद्रीय मंत्री विद्याचरण शुक्ल 9 बार लोकसभा के सदस्य रहे। इनमें से 7 बार महासमुंद, और दो बार रायपुर से सांसद बने। इसी तरह अविभाजित मप्र के पूर्व सीएम श्यामाचरण शुक्ल राज्य बनने के पहले महासमुंद से सांसद रहे, लेकिन इसके बाद पहले चुनाव में वर्ष-2004 में वो रायपुर से चुनाव लड़े, और उन्हें पूर्व केन्द्रीय मंत्री रमेश बैस ने बुरी तरह हरा दिया। इसी चुनाव के ठीक पहले पूर्व केन्द्रीय मंत्री शुक्ल भाजपा में शामिल हो गए, और भाजपा ने उन्हें महासमुंद सीट से प्रत्याशी बनाया। लेकिन उन्हें पूर्व सीएम अजीत जोगी से हार का सामना करना पड़ा। 

महंत दंपत्ति तीन बार जीते
पूर्व केन्द्रीय मंत्री डॉ. चरणदास महंत तीन बार सांसद रहे। एक बार उन्हें वर्ष-2004 में जांजगीर-चांपा सीट से हार का सामना करना पड़ा। इसके बाद वर्ष-2009 में कोरबा लोकसभा सीट से जीते, और केंद्र में मंत्री भी बने। मगर 2014 के मोदी लहर में वो 41 सौ वोटों से हार गए। इससे परे उनकी पत्नी ज्योत्सना महंत दो बार लोकसभा का चुनाव लड़ी, और उन्हें जीत हासिल हुई। ज्योत्सना को पिछले चुनाव में ज्यादा वोटों से जीत हासिल हुई है। 

वीरेश, खेलसाय दोनों बार हारे 
कांकेर से कांग्रेस प्रत्याशी वीरेश ठाकुर को लगातार दो चुनाव में हार का सामना करना पड़ा। दोनों बार नजदीकी मुकाबले में हारे हैं। वर्ष-2019 में साढ़े 6 हजार वोटों से पीछे थे, तो इस बार 1884 वोटों से हार गए। 

 

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