संपादकीय
![‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : गाय बचाने के नाम पर ऐसी हत्याओं को मंजूरी होगी? ‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : गाय बचाने के नाम पर ऐसी हत्याओं को मंजूरी होगी?](https://dailychhattisgarh.com/uploads/article/1717849176dit-Photo_NEW.jpg)
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर और लगे हुए जिले महासमुंद के बीच सरहदी नदी-पुल पर भैंसों को खरीदकर एक गाड़ी में ले जा रहे यूपी के तीन मुसलमान नौजवानों का पीछा करके उन्हें घेरकर एक समूह ने बुरी तरह पीटा, और उनमें से दो की लाशें नीचे नदी के रेत-पत्थर पर गिरी हुई मिलीं। साथ का तीसरा नौजवान बुरी तरह जख्मी है, और उसने कुछ कैमरों के सामने उन लोगों के साथ हुई हिंसा का पूरा बखान किया है। अभी यह साफ नहीं है कि भैंसों को ले जाने के लिए जो नियम हैं उन्हें पूरा करके ले जाया जा रहा था, या यह मामला गैरकानूनी तस्करी का था। लेकिन इतना तो जाहिर है कि यह कानून को अपने हाथ में लेकर खुलेआम कत्ल करने का मामला है, जिसके पीछे धर्मान्धता और साम्प्रदायिकता दोनों वजह दिख रही है। जब तक कोई पुख्ता सुबूत सामने न आएं, तब तक किसी धर्मान्ध संगठन को इसके लिए जिम्मेदार ठहराना ठीक नहीं है, लेकिन भारत के कई प्रदेशों में इसी अंदाज में जानवरों के कारोबारियों को मारा जा रहा है, खासकर मुसलमानों को। दो दिन पहले की इस घटना के बारे में महासमुंद और रायपुर जिलों की पुलिस गोलमोल जुबान में आधी-अधूरी जानकारी देकर जाने किसको बचाने की कोशिश कर रही हैं, हत्यारे बचें या न बचें, पुलिस की साख ऐसी हरकत के बाद नहीं बच पाई है। यह साफ दिख रहा है कि जो पुलिस मामूली सी चाकूबाजी का लंबा-चौड़ा खुलासा अपने प्रेसनोट में करती है, वह पुलिस इतनी बड़ी हत्याओं की वारदात की जानकारी तक देने से कतरा रही है। दूसरी तरफ इसी प्रदेश बलरामपुर जिले में बजरंग दल के एक स्थानीय पदाधिकारी के अपनी महिला मित्र सहित जंगल में मिली लाश की तोहमत अज्ञात पशु तस्करों पर लगाई जा रही थी, लेकिन पुलिस जांच में पता लगा कि उस जंगल के पास के गांव वाले वहां जानवरों को मारने के लिए करंट बिछाते आए हैं, और उसी में ये युवक-युवती मारे गए। पुलिस ने इसमें तीन लोगों को गिरफ्तार भी किया है। लेकिन स्थानीय हिन्दू कार्यकर्ताओं की मांग पर राज्य सरकार ने इस मामले की आईजी की अगुवाई में एक विशेष जांच दल से जांच करवाना शुरू किया है। एक तरफ जिला पुलिस के सुलझाए मामले को चार दिन के भीतर ही फिर से खोला जा रहा है, और दूसरी तरफ दो पशु कारोबारियों की जाहिर तौर पर दिख रही हत्या पर चुप्पी साधी जा रही है। राज्य में भाजपा की सरकार है, और किसी भी किस्म की, किसी की भी हत्या की जिम्मेदारी सरकार पर ही रहेगी, और अगर साम्प्रदायिक और धर्मान्ध आधार पर हत्याओं का सिलसिला शुरू होता है, कानून अपने हाथ में लेने वाले संगठनों को सरकार की तरफ से खुली छूट मिलती है, तो उसका नुकसान राज्य सरकार को ही होगा। हम लोकसभा चुनावी नतीजों का अतिसरलीकरण करना नहीं चाहते, लेकिन उत्तरप्रदेश में इसी किस्म की धर्मान्ध-साम्प्रदायिकता की बहुत सी घटनाओं के बाद अब वहां कैसे चुनावी नतीजे आए हैं, यह भी देखना चाहिए। जिस हरियाणा में इस किस्म की जमकर हिंसा हुई है वहां पर इस बार भाजपा की सीटें दस से घटकर पांच हो गई हैं, और कांग्रेस की सीट शून्य से बढक़र पांच पर पहुंच गई है। इसी तरह राजस्थान में जहां पर कि बहुत सी साम्प्रदायिक घटनाएं हुई थीं वहां पर भाजपा-एनडीए की सीटें चौबीस से घटकर चौदह रह गई हैं, और कांग्रेस की सीटें शून्य से बढक़र आठ हो गई हैं।
किसी भी विचारधारा के संगठन रहें, वे अगर सत्ता की मेहरबानी से संविधानेत्तर ताकत बन जाते हैं, तो वे एक दिन सत्ता को ही डुबाने का काम करते हैं। इसलिए गैरकानूनी तरीके से काम करने वाले सभी तरह के संगठनों को रोका जाना चाहिए। सरकार के पास इतनी ताकत है कि वह नक्सल मोर्चे पर लगातार नक्सलियों को मार रही है, इसलिए कानून का राज कायम करने के लिए किसी भी संगठन को गैरकानूनी हरकतों की ढील नहीं देना चाहिए। राज्य सरकारों की यह जिम्मेदारी बनती है कि अपने राज्य में लागू नियमों पर कड़ाई से खुद पालन कराए, और इस अमल का जिम्मा आऊटसोर्स न करे। आज पूरे देश में पशुओं के कारोबार और आवाजाही की बड़ी जटिल स्थिति बनी हुई है। 2024 में हिन्दुस्तान दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा बीफ एक्सपोर्ट बन गया है। बीफ की श्रेणी में गौवंश के अलावा भैंसों का मांस भी आता है, और इसके बहुत से कसाईखाने उत्तरप्रदेश में हैं, और जिन-जिन प्रदेशों में ऐसे बड़े-बड़े कारखाने हैं, वहां तक गाय और भैंस कुनबे के जानवरों को पहुंचाने का काम चलते ही रहता है, तभी जाकर ये कारखाने अंधाधुंध तरक्की कर रहे हैं, और हिन्दुस्तान बीफ एक्सपोर्ट में रिकॉर्ड कायम कर रहा है। अब अलग-अलग प्रदेशों से होकर ये जानवर तरह-तरह से इन बीफ-कारखानों में पहुंचते हैं, जिनके मालिक अमूमन हिन्दू हैं, जो कंपनियां अपना अधिकतम राजनीतिक चंदा भाजपा को चुनावी बांड के मार्फत देते आए हैं। बीफ का यह पूरा कारोबार कानूनी है, इसलिए हम उसकी आलोचना नहीं कर रहे हैं, लेकिन इन कारखानों तक जानवरों को पहुंचाने के काम में आए दिन हिंसा खड़ी की जा रही है। गौ-तस्करी का आरोप लगाते हुए आज हिन्दुस्तान के बहुत से प्रदेशों में किसी भी जानवर को ले जाने वाले कारोबारी को मारने को एक राजनीतिक मान्यता दे दी गई है। यह सिलसिला बहुत खतरनाक है। आम जनता इस तरह की हत्यारी-हिंसा को पसंद नहीं करती है, फिर चाहे वह खुद बीफ न खाती हो। इसलिए कानून व्यवस्था के लिए जिम्मेदार राज्य सरकारों को अपने-अपने इलाके के धर्मान्ध और साम्प्रदायिक संगठनों को हत्यारा बनने से रोकना चाहिए। ऐसा करना सरकारों के अस्तित्व के लिए जरूरी हो न हो, इन संगठनों को बचाने के लिए जरूरी हो न हो, देश के संविधान को बचाने के लिए जरूरी है जिसे कल फिर माथे पर रखकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने प्रणाम किया है, और सोशल मीडिया पर लिखा है- मेरे जीवन का हर पल डॉ. बाबा साहेब अंबेडकर द्वारा दिए भारतीय संविधान के महान मूल्यों के प्रति समर्पित है। कम से कम मोदी की पार्टी की राज्य सरकारों को उनकी इस सार्वजनिक तस्वीर को देखना चाहिए, और इसके शब्दों पर अमल करना चाहिए। (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)