संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : सरकार एनडीए की, और मौका इंडिया-गठबंधन का
10-Jun-2024 6:04 PM
‘छत्तीसगढ़’ का  संपादकीय : सरकार एनडीए की, और मौका इंडिया-गठबंधन का

भारत में तीसरी बार मोदी सरकार बनने के साथ ही देश की राजनीति में एक तात्कालिक स्थिरता आई है। चुनाव पूर्व गठबंधन के आधार पर ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अगुवाई में बिना किसी विवाद के, खरीद-बिक्री या तोडफ़ोड़ के, सरकार बनी, और गठबंधन के साथी दलों के मंत्रियों का शपथ ग्रहण भी हो गया। अब सरकार के पास दस बरस का लंबा तजुर्बा है, और सरकारी कामकाज में एक निरंतरता बनी रहेगी, इसलिए सरकार अपने आपमें व्यस्त हो जाएगी। फिर यह इस सरकार के कार्यकाल की शुरूआत ही होगी, इसलिए विपक्ष के पास सरकार के खिलाफ बोलने का ऐसा कुछ भी नहीं रहेगा जो कि वे लोकसभा चुनाव में बोल न चुका हो। इसलिए यह समय सरकार पर एक नजर रखने के अलावा अपना घर संभालने का भी है। विपक्ष को चाहिए कि इंडिया-गठबंधन के बैनरतले उसकी जो ताजा एकजुटता देश के चुनावी नतीजों में एक छोटा सा, हल्का सा भूचाल ला चुकी है, उसे और मजबूत कैसे किया जाए। 

विपक्ष की एकजुटता पांच बरस के लंबे दौर में कई बार मुमकिन नहीं हो पाती है। लेकिन इस बार जिस तरह इंडिया-गठबंधन की पार्टियों ने बेहतर प्रदर्शन किया है, उससे यह बात भी साफ है कि उनकी एकता न सिर्फ अगले लोकसभा चुनाव में काम आएगी, बल्कि इस बीच अलग-अलग राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों में भी इंडिया-गठबंधन की पार्टियां तालमेल बिठाकर अब देश में विशालकाय हो चुकी भाजपा के मुकाबले खड़ी हो सकती हैं। आने वाले महीनों में महाराष्ट्र और झारखंड के साथ-साथ हरियाणा विधानसभा के चुनाव होने हैं, और इसी बीच जम्मू-कश्मीर की विधानसभा के चुनाव भी सुप्रीम कोर्ट के आदेश के मुताबिक करवाने की चुनाव आयोग की तैयारी शुरू हो चुकी है। 2025 में बिहार, और दिल्ली के चुनाव होंगे, 2026 में असम, केरल, पुदुचेरी, तमिलनाडु, और पश्चिम बंगाल के चुनाव होंगे। 2027 में गोवा, गुजरात, हिमाचल, मणिपुर, पंजाब, यूपी, और उत्तराखंड के चुनाव होंगे, इसी तरह इसके बाद के बरसों में भी हर बरस कुछ या कई राज्यों के चुनाव होते रहेंगे। अब भाजपा देश के अधिकतर हिस्सों में फैली हुई पार्टी है, और उसके एनडीए-गठबंधन में अधिकतर राज्यों की स्थानीय पार्टियां भी जुड़ी हुई हैं। कुछ ऐसा ही कांग्रेस के साथ भी है, और उसने इस चुनाव में अपनी लोकसभा सीटें करीब दोगुनी कर ली हैं, इसलिए अब देश भर में इन दोनों पार्टियों के सामने अपने-अपने गठबंधनों को मजबूत करने, राज्य के चुनावों के हिसाब से उनमें नए समीकरण बनाने की संभावना भी है, और चुनौतियां भी हैं। आज देश के नक्शे को देखें तो दक्षिण का कुछ हिस्सा, और उत्तर का सबसे ऊपर का हिस्सा, और थोड़ा सा पूरब का हिस्सा ही भाजपा से बाहर है। इसलिए इंडिया-गठबंधन के पास अगले पांच बरस अपनी बुनियाद को मजबूत करने, हमखयाल पार्टियों के बीच बेहतर तालमेल बनाने, और राज्यों के चुनावों में अपनी ताकत बढ़ाने का एक अभूतपूर्व मौका है। उसके सामने इस लोकसभा चुनाव में इंडिया-गठबंधन के बड़े अच्छे प्रदर्शन से मिला ताजा-ताजा हौसला भी है। वक्त भी है, और जरूरत भी है। 

अगले पांच साल पूरे होते न होते, देश की जनता को एनडीए सरकार से थोड़ी सी थकान भी हो चलेगी। यह भी हो सकता है कि मोदी सरकार का यह कार्यकाल सरकार और सत्तारूढ़ गठबंधन के भीतर किसी तरह के खींचतान भी लेकर आए। इन सबसे भी इंडिया-गठबंधन को एक मौका मिलेगा कि वह मजबूत विपक्ष बनकर दिखाए, और जनता के बीच भारत जोड़ो यात्रा की तरह पहुंचे। विपक्ष के सबसे बड़े चेहरे, राहुल गांधी के सामने भी यह आग में तपकर निकलने की तरह का मौका है जब वे पूरे पांच बरस देश में हर बरस एक भारत जोड़ो यात्रा निकालें, और उसे सिर्फ कांग्रेस के बैनरतले निकालने के बजाय इंडिया-गठबंधन का झंडा लेकर चलें। भारत में बारिश के कुछ महीने छोड़ दें, तो तकरीबन तमाम साल पदयात्रा निकाली जा सकती है, बहुत गर्मी रहे तो भी सुबह-शाम या रात को चला जा सकता है, और देश को एक साथ बांधने के लिए इससे बेहतर और कोई जरिया नहीं हो सकता है। एक तरफ तो सडक़ पर विपक्ष जनता से जुड़ सकता है, और दूसरी तरफ संसद के भीतर एक अधिक तालमेल के साथ काम करने पर विपक्ष मोदी सरकार के इस कार्यकाल में थोड़ी सी संसदीय ताकत भी जुटा सकता है। 

हमारी कई बातें लोगों को ऐसी लगेंगी कि हम मछली के बच्चों को तैरना सिखा रहे हैं। लेकिन यहां पर कुछ लिखने का मकसद सिर्फ संबंधित लोगों को सलाह या नसीहत देना नहीं होता है, यह हमारे आम पाठकों के साथ हमारी राजनीतिक समझ बांटना भी होता है। जनता को भी यह समझ आना चाहिए कि वे सरकार से, या विपक्ष से क्या-क्या उम्मीद कर सकते हैं। आज जिस तरह मोदी सरकार में शामिल नीतीश कुमार की जेडीयू और चन्द्राबाबू नायडू की टीडीपी पार्टियों की अल्पसंख्यक नीतियां हैं, उनका अपना एक समर्थक तबका है, वह बात मोदी सरकार को काफी हद तक अपने अब तक के ध्रुवीकरण के एजेंडे से कुछ दूर तो कर ही देगी। सत्तारूढ़ गठबंधन के भीतर राजनीतिक विचारधारा में जो दरारें हैं, उनका इस्तेमाल विपक्ष कर सकता है। आज एनडीए के भीतर के विरोधाभास देश की भलाई के लिए भी, साम्प्रदायिक सद्भाव के लिए भी इस्तेमाल किए जा सकते हैं। गठबंधन सरकारों में अगर साथी दलों की संख्या के आधार पर सबसे बड़ी पार्टी को उनकी बात सुनने की मजबूरी हो, तो इससे लोकतंत्र का भला भी हो सकता है। भारत के राजनीतिक दल बहुत परिपक्व, अनुभवी, और होशियार हैं। लेकिन हम चुनावी जोड़तोड़ से परे लोकतंत्र के व्यापक हित में सरकार पर चौकन्नी निगाह रखना, संसद से सडक़ तक जनमत तैयार करना, और राज्यों में गैरएनडीए गठबंधन की संभावनाओं को मजबूत करना सुझा रहे हैं। लोकतंत्र में जब किसी एक गठबंधन के हाथ सत्ता पांच बरस के लिए आ जाती है तब विपक्ष को एक मजबूत गठबंधन की तरह ढल जाना चाहिए। इस बार लोकसभा चुनाव गुजर जाने तक भी इंडिया-गठबंधन की कोई मजबूती दिखाई नहीं पड़ी थी, और एक ढीली-ढाली व्यवस्था ने भी एनडीए का मुकाबला कर लिया था। पांच बरस लंबा कार्यकाल राज्यों के विधानसभा चुनावों का इस्तेमाल करते हुए विपक्ष के अधिक मजबूत विपक्ष बनने का मौका भी है। 

 (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)   

अन्य पोस्ट

Comments

chhattisgarh news

cg news

english newspaper in raipur

hindi newspaper in raipur
hindi news