विचार / लेख

यह और कुछ नहीं दबंग मर्दानगी है
12-Jun-2024 7:40 PM
यह और कुछ नहीं दबंग मर्दानगी है

-नासिरुद्दीन
मर्द का धौंसपूर्ण बर्ताव, उसकी दबंग मर्दानगी का हिस्सा है। ऐसे बर्ताव की गिनती बुराई में नहीं होती बल्कि उसकी ख़ासियत मानी जाती है।

दबंग मर्दानगी पर कइयों को फख़़्र होता है। कई उसे ही मर्द का असली गुण मानते हैं। कुछ लोग यह कहकर बचाव नहीं कर सकते कि सभी मर्द ऐसे नहीं होतेज्लेकिन ज़्यादातर मर्द ऐसे ही होते हैं।

पिछले दिनों सोशल मीडिया पर एक वीडियो ख़ूब घूमा। इस वीडियो में ऐसी ही मर्दानगी की झलक देखने को मिलती है। उसमें यह भी देखने को मिलता है कि कैसे हम ऐसी मर्दानगी का मज़ा लेते हैं। ज़ाहिर है, जब मज़ा लेंगे तो उसे बुरा मानने या उसकी निंदा करने का सवाल ही नहीं उठता।

मगर ऐसा भी नहीं है कि सभी लोग ऐसी चीज़ें आसानी से बर्दाश्त कर लेते हैं। अनेक हैं, जिन्हें ऐसे बर्ताव पर एतराज़ होता है। वे आवाज़ भी उठाते हैं।

क्या हुआ, किसकी बात हो रही है
एक हैं नंदमुरी बालकृष्ण। तेलुगू फि़ल्मों के बड़े अभिनेता हैं। राजनेता हैं।
नंदमुरी एक बड़े राजनीतिक परिवार से आते हैं। इन्हीं नंदमुरी बालकृष्ण का एक वीडियो चर्चा में है। वीडियो एक फि़ल्म के प्रचार के मौक़े का है। स्टेज पर कई लोग हैं। इनमें महिला कलाकार भी हैं।

बालकृष्ण को फि़ल्म के प्रचार कार्यक्रम में बतौर मुख्य अतिथि बुलाया गया था। वह स्टेज पर पहुँचते हैं। कुछ कलाकार पहले से खड़े हैं। वे जहां खड़ा होना चाहते हैं, वहां उनके खड़े होने के लिए पर्याप्त जगह नहीं है।

उन्होंने फि़ल्म की अभिनेत्री अंजलि से थोड़ा खिसकने के लिए इशारा किया। अभी वह समझतीं और कुछ करतीं इससे पहले बालकृष्ण ने उनकी बाँह पर ज़ोरदार धक्का दे दिया।

इस अचानक हुए व्यवहार से कोई भी भौंचक रह जाता। वे भी भौंचक थीं। मगर उन्होंने इसे ज़ाहिर नहीं होने दिया। धकियाए जाने के बाद वे ज़ोरदार तरीके से हँसते हुए देखी जा सकती हैं।

एक और अभिनेत्री नेहा शेट्टी जो इन दोनों के बीच में थीं, वे पहले तो स्तब्ध रह गईं। उन्हें समझ में नहीं आया कि हो क्या रहा है। बाद में वे भी हँसने की कोशिश करती हैं। और यह सब देखकर वहाँ मौजूद दर्शक हँसते और तालियाँ बजाते हैं।

मर्द ऐसे कैसे धकिया सकता है
बालकृष्ण चाहते तो आसानी से इन दोनों अभिनेत्रियों के बगल में खड़े हो सकते थे। उनके पास जगह थी। यही नहीं, अंजलि को जब उन्होंने आगे खिसकने का इशारा किया तो उसे खिसकने का मौक़ा ही नहीं दिया। चंद सेकंड रुकना भी उन्हें बर्दाश्त नहीं हुआ। मर्द का अहम आड़े आ गया और उन्होंने धकियाने का काम किया। उनका यह धकियाना सन्नाटे की वजह बनने की बजाय वहां मौजूद लोगों की हँसी की वजह बना। यह बात भी कम ताज्जुब की नहीं है।

आखिर एक स्त्री को ऐसे धकियाए जाना हँसी की वजह कैसे बन सकता है? क्या यह नहीं बताता है कि हम स्त्री को किस दर्जे पर देखते हैं?

महिला कलाकारों के साथ बर्ताव
हमारा समाज पितृसत्तात्मक है। यहाँ स्त्री को दोयम दर्जे का माना जाता है। पुरुष ख़ुद को हाकिम समझता है।

इस विचार से फि़ल्मों की दुनिया भी अछूती नहीं है। फि़ल्मों में स्त्री का चित्रण हो या महिला कलाकारों के साथ बर्ताव, स्त्री विरोधी पितृसत्तात्मक मूल्यों का वर्चस्व आसानी से देखा जा सकता है। कई बार तो स्त्री के बारे में सामंती नज़रिए की झलक मिलती है।

बालकृष्ण के इस व्यवहार को इस नज़रिए से देखा जाना चाहिए। तब ही समझ में आता है कि एक मर्द इस तरह का साहस कैसे जुटा लेता है और वह सार्वजनिक मंच पर एक स्त्री को बिना किसी उकसावे के धक्का दे देता है। बालकृष्ण की पूरी शारीरिक भाव-भंगिमा उनके मर्दाना नज़रिए की निशानदेही करती है।

महिला कलाकारों को पुरुष कलाकार किस स्तर पर रखते हैं, यह उसकी निशानदेही भी है।

क्या ऐसा व्यवहार वे किसी पुरुष कलाकार के साथ कर सकते थे? ऐसा व्यवहार उसी के साथ मुमकिन जिसे अपने से नीचा या कमतर माना जाता है। जहां ख़ुद को श्रेष्ठ माना जाता है।

पुरुष कलाकारों की हीरो की छवि गढ़ी जाती है। वे आम जीवन में भी ख़ुद को ‘हीरो’ यानी बाकियों से श्रेष्ठ मानने लगते हैं। इसीलिए ज़्यादातर ‘हीरो’ स्त्री कलाकारों को अपने से कमतर और अपने हाथ की कठपुतली समझते हैं।

स्त्री को हँसना पड़ता है
लेकिन स्त्री को क्या करना पड़ता है? एक बड़े कलाकार के अचानक किये गये ऐसे बर्ताव पर नापसंदगी का इज़हार करना या विरोध जताना तो दूर की बात है, उसे हँसना पड़ता है।

शायद अपनी झेंप मिटाने के लिए ऐसा करना पड़ता है। एक अच्छी स्त्री के साँचे में ख़ुद को ढालते हुए ऐसा दिखाना पड़ता है, जैसे कुछ अटपटा हुआ ही न हो। या जैसे यह सब सामान्य बात है।

यही नहीं अभिनेत्री अंजलि ने इस घटना के बाद जो कहा वह भी बताता है कि स्त्री को ऐसी घटनाओं के बाद क्या कहने पर मजबूर होना पड़ता है। उसे किस तरह की प्रतिक्रिया देनी पड़ती है।

अंजलि ने फि़ल्म के कार्यक्रम में आने के लिए बालकृष्ण का शुक्रिया अदा किया। उसने कहा कि हम दोनों के बीच बढिय़ा रिश्ते हैं, दोस्ती है, वो एक-दूसरे का सम्मान करते हैं।
उन्होंने एक वीडियो भी पोस्ट किया। उस वीडियो में वे बालकृष्ण से हाथ मिलाते और हाथ से हाथ ताल मिलाते हुए देखी जा सकती हैं।

मगर यहां रुककर सोचने की बात है कि क्या कोई पुरुष कलाकार अपने साथ हुए ऐसे बर्ताव के बाद ऐसी ही प्रतिक्रिया व्यक्त करता?

ऐसा माना जा रहा है कि बालकृष्ण की जैसी हैसियत है, उस हालत में किसी महिला कलाकार के लिए विरोध करना या नाख़ुशी भी ज़ाहिर करना आसान नहीं होता। मगर अंजलि भी तो बड़ी कलाकार हैं। हाँ, वे महिला हैं। यह बड़ा सच है।

ऐसी इकलौती या पहली घटना नहीं है
फि़ल्म की दुनिया में किसी महिला के लिए आवाज़ उठाना कितना मुश्किल होता है, यह बॉलीवुड फि़ल्म की अभिनेत्री तनुश्री दत्ता के उदाहरण से समझा जा सकता है।

तनुश्री दत्ता ने मशहूर अभिनेता नाना पाटकर पर एक फि़ल्म के सेट पर यौन उत्पीडऩ का आरोप लगाया था। इस पर काफ़ी हंगामा हुआ। बाद में पता चला कि उस फि़ल्म में तनुश्री दत्ता की जगह किसी और को ले लिया गया। यह यों ही नहीं हुआ। जिस दुनिया में मर्दाना हीरो का ऐसा रौब चलता हो, उस दुनिया में आवाज़ उठाना आसान नहीं है।

ऐसा नहीं है कि महिलाओं के साथ ऐसा बर्ताव फि़ल्मी दुनिया में ही होता है। आगे बढ़ती, बोलती, कद्दावर, सशक्त महिलाएँ ज़्यादातर मर्दों को पसंद नहीं आतीं। इसलिए जहां भी ऐसी स्त्रियाँ दिखती हैं, उनके लिए राह आसान नहीं होती। इसलिए बढ़ी हुई हर स्त्री की राह बाधाओं से भरी रहती है। मर्दाना समाज उन्हें ‘धकियाता’ रहता है।

कई अपने को ऐसे ‘घुटन भरे माहौल’ में ढालती हुई आगे बढ़ती हैं। अगर वे अपने को ऐसे माहौल में न ढालें या चुप्पी न ओढ़ लें तो उन्हें उस माहौल में रहना मुश्किल कर दिया जाता है। उलटा उनके चरित्र के बारे में ही बातें शुरू हो जाती हैं।

इसलिए उनके लिए चुप रहना भले ही कठिन कदम हो, मगर वे उठाती हैं। ‘मी टू’ अभियान के दौर में कुछ आवाज़ें सुनने को मिली थीं। लेकिन वे सब आवाज़ धीरे-धीरे गुम हो गईं। जिन्होंने आवाज़ उठाई उन पर ही सवाल उठाये गये। मगर इन सबके बीच कई हौसलामंद बहादुर स्त्रियाँ है, जिन्हें चुप रहना गवारा नहीं। वे बोलती हैं। जैसे तनुश्री दत्ता ने बोला।

लेकिन लोगों को नापसंद है

जहां कई लोगों के लिए बालकृष्ण का दबंग व्यवहार हँसने या ताली बजाने की वजह बना, वहीं कइयों ने इस पर सख़्त एतराज़ जताया।

सोशल मीडिया पर एतराज़ के कई स्वर सुने जा सकते हैं। लोगों ने कहा कि यह एक स्त्री का अपमान है।

एक स्त्री को सिफऱ् इसलिए धक्का मारा गया क्योंकि वह खड़ी थी। खड़ा होना यानी बराबरी में खड़ा होना है। कहीं बराबरी में खड़ी स्त्री नाक़ाबिले बर्दाश्त तो नहीं?

दबंग और ज़हरीली मर्दानगी है
ऐसा व्यवहार दबंग और ज़हरीली मर्दानगी का अंग है। इसमें मर्द को अपनी मन मर्जी के ख़िलाफ़ कुछ भी बर्दाश्त नहीं है। उसे यह बर्दाश्त नहीं है कि उसके ‘हुक्म’ के पालन में सेकंड भर की भी देरी की जाए। उसकी इच्छा जैसे पत्थर की लकीर है। उसका पालन बिना सोचे-समझे तुरंत होना चाहिए। ऐसा न हुआ तो सामने वाले को मर्द का ग़ुस्सा झेलना पड़ सकता है या धकियाया जा सकता है।

हमारे आसपास जब तक मर्दानगी का दबंग या ज़हरीला रूप मौजूद रहेगा तब तक स्त्री के साथ ऐसे व्यवहार दिखते रहेंगे। इसलिए ऐसी मर्दानगी से तौबा करना ज़रूरी है। इसके ख़िलाफ़ मज़बूत आवाज़ उठाई जानी ज़रूरी है। (लेखक के निजी विचार हैं)

(bbc.com/hindi)

अन्य पोस्ट

Comments

chhattisgarh news

cg news

english newspaper in raipur

hindi newspaper in raipur
hindi news