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प्रशांत किशोर बीजेपी के 300 से ज़्यादा सीट जीतने के अपने दावे पर अब क्या सोचते हैं
13-Jun-2024 6:43 PM
प्रशांत किशोर बीजेपी के 300 से ज़्यादा सीट जीतने के अपने दावे पर अब क्या सोचते हैं

मोदी की गठबंधन सरकार के घटक दलों के प्रतिनिधि

लोकसभा चुनाव के नतीजों को लेकर किए गए अपने दावों पर जाने-माने राजनीतिक रणनीतिकार और जन सुराज अभियान से जुड़े प्रशांत किशोर ने कहा है कि 'इसे आप इस आकलन में मेरी कमज़ोरी का नतीजा कह सकते हैं।’

बीबीसी से बातचीत में उन्होंने चुनावों में एनडीए गठबंधन, बीजेपी, इंडिया गठबंधन और कांग्रेस के प्रदर्शन के साथ-साथ मोदी के प्रदर्शन पर बात की। साथ ही इस बात पर भी चर्चा की कि बीजेपी का कौन सा क़दम उसी पर भारी पड़ गया।

चुनाव के नतीजे आने से पहले प्रशांत किशोर ने नतीजों को लेकर कई आकलन लगाए थे उनमें से एक था एनडीए की और मज़बूत वापसी।

उन्होंने कहा था कि ‘एनडीए सरकार की वापसी होनी पक्की है। बीजेपी और पीएम मोदी 2019 की तरह ही या उससे थोड़ा बेहतर आंकड़ों के साथ सत्ता में लौटेंगे।’

उनका ये आकलन खरा नहीं उतरा। चुनाव के नतीजों में बीजेपी को 240 सीटें मिलीं जो 2019 में मिली 303 के आंकड़े से काफ़ी कम है। ऐसे में कई लोगों ने ये सवाल उठाया कि उनका इतना बड़ा दांव ग़लत कैसे पड़ गया।

बीबीसी से बात करते हुए प्रशांत किशोर ने इस सवाल के जवाब में कहा- ‘ये प्रोफ़ेशन एसेसमेन्ट है, इसके पीछे कोई इरादा नहीं है। मैंने जो आकलन किया उसके मुक़ाबले बीजेपी की 20 फ़ीसदी सीटें कम आईं। इसे आप मेरी ग़लती मान लो या आकलन में मेरी कमज़ोरी रही उसका नतीजा है।’

उन्होंने कहा, ‘मैंने अपने आकलन में जिन बातों को आधार बनाया वो थे- (1) मोदी के ख़िलाफ़ अंडरकरंट नहीं था, न ही उनके ख़िलाफ़ बड़े पैमाने पर कोई नाराजग़ी थी। (2) एक कोऑर्डिनेटेड विपक्ष की कमी थी (3) एक नए नेता को चुनने का लोगों का मिजाज़ भी नहीं था जो देश बदल सके।’

उन्होंने कहा- ‘मैंने बीजेपी के लिए 303 या उससे बेहतर आंकड़े के साथ जीत की बात की थी। इस आकलन का आधार दक्षिण और पूर्व के राज्यों में बीजेपी की बढ़त का अंदाज़ा था।’

‘नतीजे बताते हैं कि अंडरकरंट पूरे देश में नहीं था और बीजेपी को बीते चुनावों में 37।7 फ़ीसदी वोट शेयर मिला था जो इस साल घटकर 36।56 हुआ है, यानी उन्हें 0.7 फ़ीसदी कम आया है ये यथास्थिति है।’

चुनावों में बीजेपी और विपक्ष के प्रदर्शन पर प्रशांत किशोर ने क्या कहा, जानिए
बीजेपी की सीटों में कमी क्यों आईं?
मुझे लगता है कि इसका एक कारण बीजेपी के विपक्ष में रहने वालों में एकजुटता रही है, उनकी लामबंदी बेहतर थी और उनमें उत्साह था।

बीजेपी के मुक़ाबले वो अपनी बातों को बेहतर तरीक़े से लोगों तक पहुंचा सके। उनके सामने उनका लक्ष्य स्पष्ट था कि उन्हें बीजेपी को रोकना है।

बीजेपी के समर्थकों को अधिक भरोसा था कि सरकार तो बन ही रही है, वोट करने न करने से फर्क़ नहीं पड़ता। ये कॉन्फिडेंस उन्हें भारी पड़ गया।

इसका अच्छा उदाहरण है वाराणसी, जहां पीएम मोदी का अपना वोट शेयर 2014 की तुलना में कऱीब 2 फ़ीसदी कम हुआ है।

2014 में अरविंद केजरीवाल ने मोदी के ख़िलाफ़ चुनाव लड़ा था। उस वक्त मोदी का वोट शेयर 56।37 फ़ीसदी था। इस बार के चुनावों में ये आकड़ा घटकर 54।234 फ़ीसदी रह गया है।

हालांकि उनका मार्जिन नाटकीय रूप से कम हो गया है। 2014 में उनका मार्जिन 25।85 फ़ीसदी था जो कम होकर 2024 में 9।38 फ़ीसदी तक घट गया। 2014 में उनके ख़िलाफ़ लड़े केजरीवाल को 21 फ़ीसदी वोट मिले थे, वहीं उनके विरोधी को 40।74 फ़ीसदी वोट आए हैं।

मोदी जी का वोट शेयर लगभग वहीं रहा जहां था लेकिन विपक्ष ने बेहतर कोऑर्डिनेट किया और काम किया, उसका वोट शेयर बढ़ा।

‘अधूरा स्लोगन भारी पड़ा’
स्लोगन एक ऐसी चीज़ है जो स्थिति सुधार भी सकती है और बिगाड़ भी सकती है। अब की बार मोदी सरकार से जुड़ता हुआ किसी ने लिख दिया अब की बार चार सौ पार। लेकिन उसने ये नहीं बताया कि क्यों।

पिछली बार लिखा गया, बहुत हुई महंगाई की मार, अब की बार मोदी सरकार या फिर बहुत हुआ महिला पर अत्याचार, अब की बार मोदी सरकार। इस बार उन्होंने स्लोगन तो लिखा लेकिन वो आधा-अधूरा था।

उनके कुछ बड़बोले नेताओं ने इसे इंटरप्रिट किया कि हमको चार सौ पार इसलिए चाहिए कि हमें संविधान बदलना है। ये चीज़ उन पर भारी पड़ गई।

शायद अब बीजेपी इसका विश्लेषण भी कर रही होगी क्योंकि लोगों को लगा कि अब की बार ये चार सौ पार इसलिए चाहते हैं क्योंकि वो संविधान बदलना चाहते हैं।

अपने आकलन को लेकर क्या कहा?
बीते दिनों प्रशांत किशोर अलग-अलग जगहों पर, अलग-अलग मीडिया चैनलों पर अपने पहले के लगाए अपने आकलन पर चर्चा कर रहे हैं। कुछ लोगों का मानना है कि वो बीजेपी के पक्ष में बातें कर रहे हैं।

इस पर प्रशांत किशोर कहते हैं कि चुनावों से पहले मैंने कहा था कि मुझे लगता है कि बीजेपी को पश्चिम और उत्तर में सीटों का नुक़सान नहीं होगा और पूर्व और दक्षिण में सीटें मिलेंगी और इस कारण उसकी यथास्थिति बनी रहेगी।

‘मुझे कई साथियों ने कहा कि चुनाव शुरू होने से पहले इस तरह की बातों से विपक्ष का मनोबल टूट सकता है। मैंने उनकी बात मानी और पांच चरणों की वोटिंग तक कोई बात नहीं की। 80 फ़ीसदी मतदान संपन्न होने के बाद ही मैंने कहा कि मुझे बीजेपी जीतती दिख रही है।’

‘अगर चरणवार देखा जाए तो दूसरे, तीसरे और चौथे चरण के मतदान में बीजेपी ने अच्छा प्रदर्शन किया था लेकिन मेरे आकलन के बाद तो उसका प्रदर्शन खऱाब हुआ।’
क्या प्रशांत को इसका पछतावा है कि उनका आकलन सही नहीं बैठा। इस पर उन्होंने कहा कि ‘ऐसा बिल्कुल नहीं है। हम जैसे लोग जो इस काम में लगे हैं वो आकलन लगाते हैं वो आंकड़ों के आधार पर बताते हैं। लेकिन हमसे ग़लती होती है, पहला, वोट शेयर को सीटों में तब्दील करना का कोई भरोसेमंद सिस्टम नहीं बन पा रहा है, दूसरा वोटर में डर के सही आकलन को आंकने का तरीका नहीं है।’

वो आंध्र प्रदेश में जगन मोहन रेड्डी का उदाहरण दे कर कहते हैं कि ‘मैंने छह महीने पहले कहा था कि वो बुरी तरह हारने जा रहे हैं। लेकिन हम ये नहीं बता सकते थे कि वो 10 से भी कम पर सिमट जाएंगे।’

‘एक सरकार जितनी मज़बूत होती है, उसका फियर फैक्टर भी उतना अधिक होता है। इस कारण कई राजनीतिक रणनीतिकार लोगों से बात करने के बाद भी इसका सही आकलन नहीं कर पाते हैं।’

मोदी की गठबंधन सरकार का भविष्य
‘मुझे नहीं लगता कि सरकार को कोई परेशानी होने वाली है। आंकड़ों को देखा जाए तो बीजेपी को 240 सीटें मिली हैं।’

‘2009 में मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार में कांग्रेस के पास 206 सीटें थीं। तो क्या उसे आप सरकार नहीं मानेंगे? उस दौर में आर्थिक सुधार और वित्त सुधार हुए हैं।’

‘लोगों का मानना है कि मोदी इसके आदी नहीं हैं, लेकिन हम ये तय करने वाले कौन होते हैं। मुझे लगता है कि वो अच्छे से सरकार चला लेंगे।’

‘लेकिन अभी सरकार की स्थिरता को लेकर जो महत्वपूर्ण है वो है आने वाले वक्त में महाराष्ट्र, झारखंड और हरियाणा के विधानसभा चुनाव। अगर यहां विपक्ष का प्रदर्शन अच्छा रहा तो सरकार की स्थिरता को लेकर परेशानी शुरू हो सकती है, लेकिन तब तक कोई परेशानी नहीं है।’

‘अगली सरकार 'वन नेशन वन इलेक्शन', 'यूसीसी' जैसे बड़े फ़ैसले कर सकेगी या नहीं ये भी इसी पर निर्भर करेगा।’

मोदी और राहुल की ताक़त और कमज़ोरी
‘एक बड़ी बात ये भी है कि हमारा समाज अपने शासक को दयालु, उदार और सहिष्णु देखना चाहते हैं। और मुझे मोदी की ये कमज़ोरी दिखती है क्योंकि वो काफ़ी ताक़त के साथ सत्ता में बैठे हैं।’

‘ये बात कहीं न कहीं इन चुनाव के नतीजों में दिख रही है।’

‘वहीं राहुल गांधी की बात करें तो बीते 10 सालों में उन्होंने लगभग हर चुनाव हारा है और उन्हें लगता है कि सही रास्ते पर हैं।’

‘वो लगातार इस रास्ते पर बढ़ते जा रहे हैं और ये करने के लिए बड़ा जज़्बा और अपनी सोच पर पूरा भरोसा चाहिए, ये उनकी चरित्र है।’

‘मैं कहता हूं कि अगर मोदी जी 90 फ़ीसदी चुनाव हार जाएं तो वो इतने बड़े लीडर नहीं रह पाएंगे। लेकिन राहुल गांधी बड़े नेता बने हुए हैं ये उनके चरित्र की ताक़त है।’
‘मैं ये नहीं कहूंगा कि विपक्ष ने मोदी को हराया नहीं है बल्कि उसे थोड़ा रोक दिया है। पीएम तो अभी भी मोदी ही बन रहे हैं।’

‘कांग्रेस ने बीते सालों में ऐसा कुछ नहीं किया कि मैं कहूं कि कांग्रेस फिर से उभर रही है।’ (bbc.com/hindi)

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