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बनारस में नरेंद्र मोदी की जीत का अंतर इतना कम कैसे हुआ, क्या कह रहे हैं बनारसी
14-Jun-2024 7:12 PM
बनारस में नरेंद्र मोदी की जीत का अंतर इतना कम कैसे हुआ, क्या कह रहे हैं बनारसी

रजनीश कुमार

बनारस से, 14 जून।  बनारस में नरेंद्र मोदी की जीत का अंतर महज़ एक लाख 52 हज़ार पर सिमट जाने की चर्चा थम नहीं रही है.

मोदी की जीत का अंतर इतना कम तब रहा जब दर्जन भर केंद्रीय मंत्रियों ने बनारस में डेरा डाल दिया था.

2019 में मोदी बनारस से लगभग चार लाख 80 हज़ार मतों के अंतर से जीते थे.

कई लोग मानते हैं कि इस बार अगर कांग्रेस और समाजवादी पार्टी बनारस में और अधिक गंभीरता से चुनाव लड़तीं तो मोदी हार भी सकते थे.

ख़ुद राहुल गांधी ने भी मंगलवार को रायबरेली में कहा कि अगर बनारस में नरेंद्र मोदी के ख़िलाफ़ उनकी बहन प्रियंका गांधी होतीं तो वह चुनाव दो से तीन लाख के अंतर से जीत जातीं.

यानी कांग्रेस भी इस बात को मान रही है कि उसने बनारस में मोदी के कद की तुलना में ठीक उम्मीदवार नहीं उतारा था.

बनारस में कांग्रेस ने मोदी के ख़िलाफ़ 2014, 2019 और 2024 में तीनों बार अजय राय को उतारा. ज़ाहिर है तीनों बार हार मिली है.

अजय राय 2019 और 2014 में तो बुरी तरह से हारे थे. इसके अलावा, अजय राय 2009 में भी बनारस से समाजवादी पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़े थे और हार मिली थी.

2022 के यूपी विधानसभा चुनाव में अजय राय पिंडरा विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस के उम्मीदवार थे और वह तीसरे नंबर पर रहे थे. यानी पिछले कई बार से अजय राय चुनाव हार रहे थे और कांग्रेस ने चौथी बार भी उन्हीं पर दांव लगाया.

अजय राय से पूछा कि राहुल गांधी क्या यह कहना चाह रहे हैं कि कांग्रेस ने बनारस में मोदी के ख़िलाफ़ दमदार उम्मीदवार नहीं उतारा?

राय इस सवाल के जवाब में कहते हैं, ''हमने तो प्रियंका गांधी से अनुरोध किया था कि वह बनारस से चुनाव लड़ें. मैं भी राहुल गांधी से सहमत हूँ कि प्रियंका गांधी बनारस से मोदी को हरा सकती थीं.''

अजय राय की राजनीतिक पृष्ठभूमि बीजेपी वाली भी रही है. समाजवादी पार्टी और कांग्रेस में आने से पहले राय बनारस ज़िले के कोलसला विधानसभा क्षेत्र से 1996, 2002 और 2007 में बीजेपी से विधायक चुने गए थे.

2009 में बनारस लोकसभा क्षेत्र से अजय राय बीजेपी का टिकट चाहते थे लेकिन पार्टी ने मुरली मनोहर जोशी को उतारा था. इसी से नाराज़ होकर वह बीजेपी छोड़ समाजवादी पार्टी में चले गए थे और 2012 में कांग्रेस में शामिल हो गए.

बनारस में मोदी की जीत का अंतर कैसे बिगड़ा?

ढलती दोपहर के साथ निषादराज घाट की सीढ़ियों से चिलचिलाती धूप गंगा नदी की तरफ़ ढल रही है.

बनारस के इस गंगा घाट की सीढ़ियों पर जैसे-जैसे छाया पसर रही है, वैसे-वैसे आसपास के मल्लाह अपने-अपने घरों से निकलकर सीढ़ियों पर बैठ रहे हैं.

इन्हें इंतज़ार है कि लोग आएंगे और नाव से गंगा नदी की सैर कराने के लिए कहेंगे. गौरीशंकर निषाद पिछले दो घंटे से बैठे हैं लेकिन कोई भी नहीं आया.

ढलती शाम के साथ गौरीशंकर निषाद की निराशा और बढ़ने लगती है. सुबह से उनकी कोई कमाई नहीं हुई है. उन्हें चिंता सता रही है कि आज घर का राशन-पानी कहाँ से आएगा.

गौरीशंकर निषाद बताते हैं कि पिछले कुछ सालों में बनारस के मल्लाहों की कमाई पर सुनियोजित तरीक़े से चोट की गई है.

निषाद कहते हैं, ''नरेंद्र मोदी 2014 में गुजरात से बनारस आए तो हमने बहुत उत्साह से उनका साथ दिया था. हमें लगा था कि चीज़ें बेहतर होंगी. लेकिन सच्चाई अब सामने आ रही है कि उनका एजेंडा क्या था. 2019 में भी हमने उम्मीद नहीं छोड़ी और उन्हीं को वोट किया था लेकिन 2024 में कांग्रेस को वोट किया और मोदी से अब कोई उम्मीद नहीं है.''

गौरीशंकर निषाद कहते हैं, ''गंगा नदी में ये क्रूज चलवा रहे हैं. इसकी ऑनलाइन बुकिंग हो रही है. ऑनलाइन बुकिंग से सरकार को टैक्स मिल रहा है. जब से क्रूज आया है, तब से हमारी कमाई न के बराबर रह गई है. भला हम क्रूज से मुक़ाबला कहाँ से कर पाएंगे.''

2018 में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बनारस की गंगा नदी में फाइव स्टार लग्ज़री क्रूज़ लॉन्च किया था. इस क्रूज से गंगा की 82 घाटों की सैर होती है और प्रति व्यक्ति 750 रुपए का टिकट लगता है. 30 मीटर लंबे इस डबल डेकर क्रूज़ में एक साथ 110 लोग बैठ सकते हैं.

मल्लाहों की नाराज़गी

गौरी शंकर निषाद कहते हैं, ''बात केवल क्रूज की नहीं है. मणिकर्णिका घाट से इन्होंने बाबा विश्वनाथ मंदिर तक कॉरिडोर बनाया. हमलोग मणिकर्णिका घाट पर अपनी दुकान लगाकर मछली बेचते थे. कॉरिडोर बनने लगा तो इन्होंने कहा कि अपनी दुकानें हटा लो और कॉरोडिर बनने के बाद सबको एक-एक नई दुकान मिलेगी.''

''जब दुकान बन गई तो हमसे कहा कि एक दुकान के लिए 25 लाख रुपए देने होंगे. भला हम ग़रीब 25 लाख रुपए कहाँ से लाते. मणिकर्णिका घाट से ग़रीबों को इस तरह बेदख़ल किया गया. अब आप मणिकर्णिका घाट पर जाइए तो अमूल डेयरी का बूथ है, ब्रैंडेड शोरूम हैं. मोदी जी को बनारस में भी गुजरात का ही भला चाहिए. अमूल गुजरात की डेयरी है. यूपी की पराग डेयरी कहाँ गई? क्रूज भी गुजरात से ही मंगवाए गए हैं.''

बीजेपी के काशी क्षेत्र के अध्यक्ष दिलीप पटेल कहते हैं, ''विकास का काम होगा तो कुछ लोगों को तकलीफ़ हो सकती है लेकिन हम विकास के काम को लंबे समय तक रोक नहीं सकते. जिनकी दुकान वैध थी, उन्हें मुआवजा भी मिला है.''

अमित सहनी भी गंगा नदी में नाव चलाते हैं. गंगा नदी में क्रूज चलाने से वह भी नाराज़ हैं. अमित कहते हैं, ''जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आते हैं तो हमलोग की नाव गंगा नदी में नहीं चलने दी जाती है जबकि क्रूज चलता रहता है. ऐसा इसलिए है कि क्रूज चलवाने वाले गुजराती हैं.''

नरेंद्र मोदी को लेकर निराशा केवल मल्हाओं तक ही सीमित नहीं है. बुनकर भी खुलकर नरेंद्र मोदी की नीतियों की आलोचना करते हैं.

बुनकरों की नाराज़गी

लक्ष्मीशंकर राजभर पहले पावरलूम मशीन से बनारसी साड़ी बनाते थे लेकिन अब वह पिछले पाँच सालों से रिक्शा चला रहे हैं. ग़रीबी और हाड़तोड़ मेहनत के कारण राजभर 55 की उम्र में 85 साल के लगते हैं.

राजभर कहते हैं, ''बनारसी साड़ी अब सूरत में बन रही है और वहीं से बनकर बनारस में आ रही है. यहां के कारीगर बेकार हो गए. हमारा हुनर जंग खा रहा है और बनारसी साड़ी कभी ब्रैंड के रूप में जानी जाती थी, उसे गुजरातियों ने हड़प लिया.''

जलालीपुरा लाल कुआँ बनारस में बुनकरों का इलाक़ा है. इस इलाक़े की गलियों से गुज़रिए तो घरों में पावरलूम मशीन चलने की आवाज़ अब भी सुनाई देती है.

हालांकि यह आवाज़ अब धीमी पड़ गई है. पारवरलूम मशीनें अब धूल खा रही हैं. जिन घरों में पावरलूम मशीनें चलती थीं, वहाँ अब चाय और कॉफी की दुकानें खुल गई हैं. यहाँ के बुनकर कहते हैं कि साड़ी बनाकर हर दिन 200 रुपए कमाना भी मुश्किल है.

लल्लू अंसारी के घर में चार पावरलूम मशीन चलती थी लेकिन अब वहाँ चाय की दुकान खुल गई है. लल्लू कहते हैं, ''मेरे घर के कई मर्द सूरत चले गए और अब वहीं बनारसी साड़ी बना रहे हैं. आमदनी से ज़्यादा जीएसटी लग रही है. जिस घर में पावरलूम मशीन है, उस घर का कॉमर्शियल टैक्स लगता है. आमदनी ही नहीं है तो टैक्स कहाँ से देंगे. बिजली भी आती-जाती रहती है और इस पर सब्सिडी मिलने की कोई गारंटी नहीं है. घाटे के सौदे में फँसने से ज़्यादा अच्छा यही है कि चलकर सूरत में ही कमा लिया जाए.''

नरेंद्र मोदी जब 2014 में बनारस से चुनाव लड़ने आए तो उन्होंने बुनकरों की स्थिति सुधारने का वादा किया था. मोदी ने 27 जून 2014 को पहली बार टेक्स्टाइल सेक्टर पर रिव्यू मीटिंग बुलाई थी.

मोदी ने नौकरशाहों से कहा था कि हैंडलूम को फैशन से जोड़ने का कोई तरीक़ा निकालें. नौकरशाह कोई तरीक़ा आज तक नहीं निकाल पाए. अब हाल यह है कि बुनकर अब अपने इस हुनर से दूर हो रहे हैं और रिक्शा चलाने के लिए मजबूर हैं.

बनारस में नरेंद्र मोदी की जीत का अंतर कम होने का सवाल बनारस के लोगों से पूछिए तो ज़्यादातर लोग कहते हैं कि रोड और कॉरिडोर से पेट नहीं भरेगा.

बढ़ती महंगाई और बेरोज़गारी को लेकर ग़ुस्सा

बीजेपी विरोधी और बीजेपी समर्थक दोनों इस बात को मानते हैं कि बनारस में इन्फ़्रास्ट्रक्चर पर काम हुआ है.

अब शहर से एयरपोर्ट जाने में 40 मिनट का वक़्त लगता है जबकि पहले जाम के कारण 35 किलोमीटर जाने में दो घंटे का समय लग जाता था.

विश्वनाथ मंदिर कॉरिडोर और घाटों की साफ़-सफ़ाई बढ़ गई है. लेकिन इसके साथ ही लोग पूछते हैं, ''रोज़गार कहाँ है? महंगाई आसमान छू रही है. हर महीने पेपर लीक हो रहा है और पुलिस की मनमानी बढ़ गई है.''

बनारस के लोगों का कहना है कि शहर का करोबार और विकास का काम पूरी तरह से गुजरातियों के हाथ में आ गया है. हमने बनारस ज़िला के बीजेपी अध्यक्ष हंसराज विश्वकर्मा से पूछा कि शहर के लोग ऐसा क्यों कह रहे हैं कि कारोबार और कॉन्ट्रैक्ट गुजरातियों के हाथ में आ गया है?

इसके जवाब में विश्वकर्मा कहते हैं, ''गुजरात के कॉन्ट्रैक्टर गौरव सिंह पटेल ने बनारस में केवल टीएफ़सी (ट्रेड फैसिलिटी सेंटर) और बाबतपुर वाली सड़क का निर्माण कराया था. इसके अलावा मुझे किसी और कॉन्ट्रैक्ट के बारे में जानकारी नहीं है, जो गुजरातियों को मिला है. क्रूज के मालिक गुजराती नहीं हैं.''

विश्वकर्मा कहते हैं, ''बनारस के लोगों ने मोदी जी को कम वोट से जिता कर बेवकूफ़ी की है. अगर हरा भी देते तो पीएम वही बनते. लेकिन हमारे लिए यह बहुत शर्मिंदगी भरा रहा. पीएम मोदी को यहाँ से कम से कम पाँच लाख मतों से जीत मिलनी चाहिए थी.''

हंसराज विश्वकर्मा कहते हैं, ''बेवकूफ़ी की हद ये देखिए कि जिस कंचनपुर वॉर्ड में मैं रहता हूँ, वहाँ क़रीब 3500 वोट पड़े और 1100 वोट अजय राय को मिले. यादव, कुशवाहा, पटेल और मुसलमानों ने अजय राय को वोट किया है. जो तोड़फोड़ की शिकायत करते हैं, उन्हें समझना होगा कि विकास के लिए ये सब करना पड़ता है. हम इसका मुआवजा भी तो दे रहे हैं.''

ऐसा नहीं है कि बीजेपी और नरेंद्र मोदी को लेकर निराशा केवल पिछड़े, दलितों और मुसलमानों में ही है.

कॉरिडोर के लिए सैकड़ों घर तोड़ने की तैयारी

जयनाराण मिश्र अस्सी घाट पर रहने वाले उन क़रीब 300 लोगों में शामिल हैं, जिनका घर जगन्नाथ कॉरिडोर में जा सकता है. मिश्र कहते हैं, क़रीब 300 लोगों को ज़िला प्रशासन ने बता दिया है कि उनका घर सरकारी ज़मीन पर है.

जयनारायण मिश्र कहते हैं, ''जिस घर में हम आज़ादी के पहले से रह रहे हैं. जिस घर का हम प्रॉपर्टी टैक्स देते हैं, उसे अब बता दिया कि सरकारी ज़मीन पर है. जगन्नाथ कॉरिडोर बनाने का आइडिया गुजरात के बीजेपी नेता सुनील ओझा का था. जिस जगन्नाथ मंदिर के लिए कॉरिडोर बना रहे हैं, वह कोई प्राचीन मंदिर नहीं है लेकिन जिसको विकास के नाम पर विनाश करना है, उसे कौन रोक सकता है.''

जयनरायण मिश्र कहते हैं, ''मैंने अपने इलाक़े (वाराणसी दक्षिणी) के बीजेपी विधायक सौरभ श्रीवास्तव से कहा कि इस कॉरिडोर को रोकिए और लोगों के घर बचा लीजिए तो उन्होंने कहा कि हमें आपका वोट नहीं चाहिए.''

''उसके बाद मैंने कहा था कि अगर मोदी 2019 की तुलना में एक वोट भी कम पाते हैं तो मेरी जीत होगी. लेकिन महादेव की कृपा से उन्हें इस बार दो लाख 27 हज़ार कम वोट मिले. बीजेपी वालों का घमंड इतना बढ़ गया है कि उसका जवाब देना बहुत ज़रूरी हो गया है. मोदी को बीजेपी वाले ही हराएंगे. जिन 300 घरों को तोड़ा जाएगा, उनमें 99 प्रतिशत घर उनके हैं, जो मोदी-मोदी करते रहते हैं.''

दिलीप पटेल बीजेपी के काशी क्षेत्र के अध्यक्ष हैं. पटेल इस बात को मानते हैं कि शहर में विकास के काम के कारण लोगों में थोड़ा बहुत ग़ुस्सा है लेकिन विकास तो करना होगा. वह कहते हैं, "जिन 300 घरों को तोड़ने की बात है, वे वैध नहीं हैं.''

पटेल बनारस में गुजरातियों के बढ़ते प्रभाव के आरोप पर कहते हैं, ''यह विपक्षियों की चाल है ताकि स्थानीय लोगों को बीजेपी के ख़िलाफ़ भड़काया जा सके.''

दिलीप पटेल कहते हैं कि पेपर लीक के कारण भी बीजेपी को लोगों का ग़ुस्सा झेलना पड़ना है.''

दिलीप पटेल यह बात मानते हैं कि टीएफ़सी और बाबतपुर सड़क का निर्माण गुजरात के कॉन्ट्रैक्टर गौरव सिंह पटेल ने कराया था और विश्वनाथ कॉरिडोर की डिजाइनिंग के लिए भी गुजरात के लोग ही आए थे. पटेल कहते हैं, ''मामला गुजराती और मराठी का नहीं है बल्कि दक्षता का है. जो अच्छा काम करेगा, उसे ज़िम्मेदारी मिलती है.''

बनारस में छोटी जीत के मायने

नरेंद्र मोदी का बनारस से चुनाव लड़ना बीजेपी का एक रणनीतिक फ़ैसला था.

बनारस जहाँ है, वहाँ से मोदी की जीत का असर उत्तर प्रदेश के अलावा बिहार में भी पड़ता है. इन दोनों राज्यों में लोकसभा की कुल 120 सीटें हैं. इन दोनों राज्यों की अधिकतम सीटें जीतने के बाद ही कोई पार्टी केंद्र में सरकार बना पाती है.

इसके साथ ही बनारस की सांस्कृतिक अहमियत भी है. बनारस को भगवान शिव की नगरी के रूप में देखा जाता है. यहाँ ज्ञानवापी मस्जिद का विवाद भी जुड़ा है. अयोध्या और मथुरा की तरह बनारस में भी मंदिर-मस्जिद विवाद है.

ज्ञानवापी का मुद्दा दशकों से ठंडे बस्ते में था लेकिन अयोध्या पर सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के बाद यह मामला भी अदालत में पहुँच चुका है. लेकिन इस बार बीजेपी को हर तरफ़ से निराशा हाथ लगी.

न तो मोदी की जीत बड़ी रही और पूर्वांचल में भी बीजेपी औंधे मुँह गिरी. पूर्वांचल की 13 में से 10 सीटें बीजेपी हार गई और बनारस के आसपास बिहार में भी बीजेपी को हार मिली.

हालांकि, प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अपने गढ़ गोरखपुर के आसपास की सीटें बचाने में कामयाब रहे हैं. गोरखपुर, महाराजगंज, देवरिया, कुशीनगर और बाँसगाँव में बीजेपी को जीत मिली है.

क्या नरेंद्र मोदी अपना असर खो रहे हैं?

दिलीप पटेल कहते हैं, ''मैं मानता हूं कि प्रधानमंत्री का डेढ़ लाख वोट से जीतना हमारे लिए शर्मिंदगी की बात है लेकिन ऐसा विपक्ष की उस अफ़वाह के कारण हुआ कि हम सत्ता में आए तो संविधान बदल देंगे. इस अफ़वाह के कारण दलित कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के पाले में चले गए. समाजवादी पार्टी के कारण यादव भी हमारे ख़िलाफ़ गए और मुसलमान तो पहले से ही उनके साथ थे.''

शुरुआती रुझान में तो नरेंद्र मोदी कांग्रेस उम्मीदवार अजय राय से पीछे चल रहे थे. लालचंद्र कुशवाहा बनारस में बीजेपी के पुराने नेता हैं. इस बार नरेंद्र मोदी ने अपने नामांकन में कुशवाहा को प्रस्तावक बनाया था.

जब मोदी मतगणना में चलने लगे पीछे

मोदी के शुरुआती रुझान में पीछे चलने पर लालचंद्र कुशवाहा हँसते हुए कहते हैं, ''मेरी तो तबीयत बिगड़ने लगी थी. फिर मैंने पता किया कि ऐसा क्यों हो रहा है. पार्टी कार्यकर्ताओं ने बताया कि अभी मुस्लिम इलाक़ों की ईवीएम खुली है. तब जाकर राहत की सांस ले पाया. बीजेपी के लोग अतिउत्साह में थे. उन्हें लग रहा था कि मोदी के नाम पर चुनाव जीत जाएंगे. उन्हें इस बात का अंदाज़ा नहीं था कि विपक्ष एकजुट है और वोट भी उसी हिसाब से जाएगा. ये हमारे लिए दुखद है कि मोदी जी की जीत केवल डेढ़ लाख वोट से हुई है.''

यह बात सही है कि पिछले दो चुनावों से बीजेपी विरोधी वोट बँट जाता था. ऐसे में पीएम मोदी की जीत का अंतर बढ़ जाता था. लेकिन इस बार बनारस में मुक़ाबला पूरी तरह से दोतरफ़ा था. इस चुनाव में क़रीब 95 फ़ीसदी वोट नरेंद्र मोदी और अजय राय के बीच बँट गया और बाक़ी पाँच फ़ीसदी में नोटा समेत अन्य पाँच उम्मीदवार थे.

तीसरे नंबर पर रहे बहुजन समाज पार्टी के उम्मीदवार अतहर जमाल लारी को केवल 33 हज़ार वोट मिले. यानी मुसलमानों ने भी इन्हें वोट नहीं किया. बनारस में मुसलमानों के क़रीब साढ़े तीन लाख वोट हैं.

2019 में समाजवादी पार्टी की शालिनी यादव को एक लाख 95 हज़ार 159 वोट मिले थे और कांग्रेस के अजय राय को एक लाख 52 हज़ार 548 वोट मिले थे. 2019 में बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी में गठबंधन था. शालिनी यादव का वोट शेयर 18.40 प्रतिशत था और अजय राय का 14.38 प्रतिशत.

बीजेपी के स्टूडेंट विंग अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के पतंजलि पांडे कहते हैं कि इस बार मुसलमानों और यादवों ने मोदी जी की जीत का अंतर मिलकर कम किया है. पांडे कहते हैं, ''मोदी जी मुसलमानों को अपना कलेजा भी निकालकर दे दें तब भी वे वोट नहीं करेंगे.''

हाजी वक़ास अंसारी बनारस में जलालीपुरा के काउंसलर हैं. वह पतंजलि पांडे की कलेजे वाली टिप्पणी पर कहते हैं कि मुसलमानों को मोदी जी का कलेजा नहीं बल्कि सम्मान चाहिए. अंसारी कहते हैं, ''मोदी जी मुसलमानों को टिकट देना शुरू कर दें, हमें प्यार भरी नज़रों से देखें और अपनी कैबिनेट में कुछ मुसलमानों को शामिल कर लें. इसके बाद कोई मुसलमान वोट ना करे तब ऐसी शिकायत ज़्यादा ठीक लगेगी.''

क्या कांग्रेस ने ग़लत उम्मीदवार का चयन किया?

सुरेंद्र सिंह पटेल बनारस में समाजवादी पार्टी के पुराने नेता हैं. वह बनारस में सेवापुरी से 2002 से 2017 तक समाजवादी पार्टी के विधायक रहे. मुलायम सिंह यादव और अखिलेश यादव सरकार में मंत्री भी रहे.

सुरेंद्र पटेल कहते हैं कि इस बार नरेंद्र मोदी को बनारस से हराने का अच्छा मौक़ा था लेकिन कांग्रेस ने यह मौक़ा गँवा दिया.

पटेल कहते हैं, ''जब राहुल गांधी और अखिलेश यादव बनारस में रैली करने आए थे तब मेरे सामने ही अखिलेश ने राहुल से अजय राय को लेकर कहा था कि आपने ठीक उम्मीदवार नहीं उतारा है. अखिलेश ने कहा कि यहाँ से समाजवादी पार्टी अपना उम्मीदवार उतारती तो नतीजे कुछ और होते. इस पर राहुल गांधी मुस्कुराने लगे थे. अगर कांग्रेस को बनारस से मोदी को हराना था तो अजय राय को उम्मीदवार नहीं बनाती. लेकिन कई स्टार उम्मीदवारों के मामले में आपसी समझ भी होती है. मोदी भी अमेठी और रायबरेली में चुनाव प्रचार करने नहीं गए थे.''

कहा जाता है कि अखिलेश यादव भी अजय राय को पसंद नहीं करते हैं.

पिछले साल मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में अखिलेश यादव और अजय राय के बीच कहासुनी भी हुई थी. अखिलेश यादव मध्य प्रदेश में इंडिया गठबंधन के तहत कुछ विधानसभा सीटों पर लड़ना चाहते थे लेकिन कांग्रेस ने कोई भी सीट देने से इनकार कर दिया था. इसी कहासुनी में अखिलेश के निशाने पर अजय राय भी आ गए थे.

अखिलेश यादव ने अजय राय को चिरकुट कहा था. दरअसल दारा सिंह चौहान के बीजेपी में जाने के बाद पिछले साल यूपी की घोसी विधानसभा सीट पर उपचुनाव था और इसमें समाजवादी पार्टी की जीत हुई थी. इसी पर अजय राय ने कहा था कि अगर घोसी में कांग्रेस उम्मीदवार उतारती तो समाजवादी पार्टी की हार होती.

अखिलेश यादव ने अजय राय की इसी टिप्पणी पर कहा था, ''उनकी कोई हैसियत नहीं है. वह इंडिया गठबंधन की किसी बैठक में शामिल नहीं थे. उन्हें इसके बारे में कुछ भी पता नहीं है. कांग्रेस से मेरा अनुरोध है कि अपने किसी चिरकुट और छोटे नेता को टिप्पणी करने से रोके.''

अखिलेश यादव को अजय राय पसंद नहीं

अखिलेश की इस टिप्पणी के बाद अजय राय ने कहा था कि जो अपने पिता की इज़्ज़त नहीं कर पाया वो मेरे जैसे छोटे कार्यकर्ता की इज़्ज़त क्या करेगा.

उत्तर प्रदेश में जब लोकसभा चुनाव के लिए मतदान हो रहा था तभी अखिलेश से पत्रकारों ने पूछा था कि यूपी में इंडिया गठबंधन कितनी सीटों पर जीत रहा है?

जवाब में अखिलेश यादव ने कहा था- क्योटो छोड़कर यूपी की सभी 79 सीटों पर. अखिलेश यादव तंज़ में बनारस को क्योटो कह रहे थे क्योंकि 2014 में नरेंद्र मोदी ने बनारस को जापान के शहर क्योटो की तरह बनाने का वादा किया था.

यानी अखिलेश यादव भी मानकर चल रहे थे कि बनारस में हारना ही है.

काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में लॉ फैकेल्टी के डीन रहे प्रोफ़ेसर महेंद्र प्रताप सिंह पूर्वांचल की राजनीति पर गहरी नज़र रखते हैं.

महेंद्र प्रताप सिंह भी मानते हैं कि अजय राय की उम्मीदवारी को लेकर अखिलेश यादव बहुत ख़ुश नहीं थे.

महेंद्र प्रताप सिंह कहते हैं, ''अगर बनारस से सुरेंद्र सिंह पटेल उम्मीदवार होते तो मोदी हार जाते. यहाँ पटेलों का वोट साढ़े तीन लाख है. इतने ही मुस्लिम वोटर्स हैं. यादव एक लाख के क़रीब हैं और दलित भी डेढ़ लाख हैं. जिस भूमिहार जाति से अजय राय हैं, उनका वोट एक लाख भी नहीं है. ऐसे में दिलीप पटेल मोदी को हराने के लिए सबसे माकूल उम्मीदवार थे.''

नरेंद्र मोदी बनाम अजय राय

बनारस में कुल 19 लाख 97 हज़ार 578 मतदाता हैं. एक जून को हुए मतदान में बनारस में 56.35 फ़ीसदी मतदाताओं ने मतदान किया. यानी कुल 11 लाख 30 हज़ार 143 मतदाताओं ने ही मतदान किया और इनमें से नरेंद्र मोदी को 54.24 प्रतिशत यानी छह लाख 12 हज़ार 970 वोट मिले. दूसरी तरफ़ कांग्रेस के अजय राय को 40.74 फ़ीसदी यानी चार लाख 60 हज़ार 457 वोट मिले. यानी नरेंद्र मोदी की जीत का अंतर महज़ एक लाख 52 हज़ार 513 मतों का रहा.

वहीं 2019 के चुनाव में बनारस में मोदी का वोट शेयर 63.6 फ़ीसदी था और 2014 में 56.4 प्रतिशत था. 2019 में नरेंद्र मोदी को जीत चार लाख 79 हज़ार 505 मतों से मिली थी. मोदी की 2024 की जीत न केवल 2019 से छोटी है बल्कि 2014 से भी छोटी है. 2014 में नरेंद्र मोदी को तीन लाख 71 हज़ार 784 मतों से जीत मिली थी.

बनारस में 2014 की तुलना में नरेंद्र मोदी का वोट शेयर 2019 में 7.25 प्रतिशत बढ़ा था जबकि 2019 की तुलना में पीएम मोदी का वोट शेयर 2024 में 9 प्रतिशत से ज़्यादा कम हो गया है.

2014 से लेकर 2024 तक बनारस में नरेंद्र मोदी का सबसे क़रीबी प्रतिद्वंद्वी हर बार बदलता रहा है.

2014 में बनारस में नरेंद्र मोदी के बाद दूसरे नंबर पर सबसे ज़्यादा वोट हासिल करने वाले आम आदमी पार्टी के अरविंद केजरीवाल थे. 2019 में दूसरे नंबर पर समाजवादी पार्टी की शालिनी यादव थीं और 2024 में कांग्रेस के अजय राय रहे.

2014 में आम आदमी पार्टी अपने दम पर बनारस में चुनावी मैदान में थी. 2019 में समाजवादी पार्टी का बहुजन समाज पार्टी और आरएलडी से गठबंधन था. 2024 में समाजवादी पार्टी और कांग्रेस मिलकर चुनाव लड़े.

आँकड़ों से स्पष्ट है कि 2024 में मोदी के ख़िलाफ़ बनारस में विपक्षी वोट बिल्कुल नहीं बँटा और इसका सीधा असर मोदी की जीत के अंतर पर पड़ा.

2014 में बनारस में मोदी के ख़िलाफ़ नोटा को मिलकार कुल 42 उम्मीदवार थे, 2019 में 26 और इस बार यानी 2024 में महज सात उम्मीदवार थे.

वोट शेयर के हिसाब से देखें तो इस बार दूसरे नंबर पर रहने वाले उम्मीदवार को 2014 और 2019 की तुलना में सबसे ज़्यादा 40.4 प्रतिशत वोट मिला जबकि 2014 में अरविंद केजरीवाल दूसरे नंबर पर थे और उनका वोट शेयर 20.3 फ़ीसदी था. 2019 में शालिनी यादव दूसरे नंबर पर थीं और उनका वोट शेयर 18.4 प्रतिशत था.

बनारस में पाँच विधानसभा क्षेत्र हैं- रोहनिया, वाराणसी उत्तर, वाराणसी दक्षिण, वाराणसी कैंट और सेवापुरी. इन सभी विधानसभा क्षेत्रों में 2019 की तुलना में नरेंद्र मोदी का वोट कम हुआ है और अजय राय का वोट बढ़ा है.

इस बार विपक्षी वोट एकजुट होकर कांग्रेस उम्मीदवार अजय राय के साथ रहा और इसका सीधा असर मोदी की जीत के अंतर पर पड़ा.

 

(bbc.com/hindi)

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