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राजपथ-जनपथ : राज्य कांग्रेस में फेरबदल की चर्चा
15-Jun-2024 4:34 PM
राजपथ-जनपथ : राज्य कांग्रेस में फेरबदल की चर्चा

राज्य कांग्रेस में फेरबदल की चर्चा

लोकसभा चुनाव में हार के बाद कांग्रेस संगठन में बदलाव की चर्चा है। इन चर्चाओं को उस वक्त बल मिला जब पिछले दिनों दिल्ली में प्रदेश के एक दिग्गज नेता पार्टी की प्रमुख आदिवासी महिला नेत्री के साथ राष्ट्रीय नेताओं से मुलाकात की। महिला नेत्री संगठन में कई अहम पदों पर काम कर चुकी हैं, और उन्हें पार्टी का एक खेमा प्रदेश कांग्रेस की कमान सौंपने के लिए दबाव बनाए हुए हैं।

हालांकि ये बदलाव आसान नहीं है। जानकारों का मानना है कि हाईकमान किसी भी बदलाव से पहले नेता प्रतिपक्ष डॉ.चरणदास महंत, और पूर्व डिप्टी सीएम टी.एस.सिंहदेव की राय जरूर लेगा। डॉ.महंत पार्टी के अकेले नेता हैं जिन्होंने पहले विधानसभा चुनाव और फिर लोकसभा चुनाव में खुद को साबित किया है। चर्चा यह भी है कि प्रदेश प्रभारी सचिन पायलट भी अभी फिलहाल किसी तरह के बदलाव के पक्ष में नहीं हैं। देखना है कि दिग्गज नेता की मुहिम क्या रंग लाती है।

क्या करेंगे बृजमोहन

सांसद बनने के बाद सरकार के मंत्री बृजमोहन अग्रवाल कितने दिनों तक मंत्री पद पर रहेंगे, इसको लेकर काफी चर्चा हो रही है। दो सदनों के सदस्य हो जाने के बाद किसी एक से 14 दिनों के भीतर इस्तीफा देना होता है। बृजमोहन संभवत: 23 या 24 जून को लोकसभा की सदस्यता लेंगे। साथ ही साथ विधानसभा से त्यागपत्र भी दे देंगे। मगर मंत्री पद को लेकर कोई बाध्यता नहीं है। वो 6 महीने तक मंत्री पद पर रह सकते हैं। ये बात वो खुद सार्वजनिक तौर पर कह चुके हैं। बृजमोहन ने यह भी साफ कर दिया है कि सीएम जब कहेंगे, वो मंत्री पद छोड़ देंगे।

केन्द्रीय मंत्रिमंडल में जगह पाने से वंचित बृजमोहन के बयान की राजनीतिक हलकों में काफी चर्चा है, और उनकी इस बयान को हाईकमान के प्रति अपनी नाराजगी जाहिर करने की कोशिशों के रूप में देखा जा रहा है। इससे परे उत्तरप्रदेश की योगी सरकार के मंत्री जितिन प्रसाद ने सांसद बनने के बाद पद छोड़ दिया है। ये अलग बात है कि जितिन प्रसाद को मोदी सरकार में राज्यमंत्री बनाया गया है।

छत्तीसगढ़ में पूर्व सीएम डॉ.रमन सिंह जब सीएम बने थे, तब वो सांसद थे। सीएम पद के शपथ लेने के बाद उन्होंने लोकसभा की सदस्यता छोड़ दी थी। पहले सीएम अजीत जोगी जब सीएम बने, तब वो किसी भी सदन के सदस्य नहीं थे। बाद में जोगी, भाजपा विधायक रामदयाल उइके से मरवाही विधानसभा सीट खाली करवाकर उपचुनाव लड़े, और विधानसभा के सदस्य बने। सांसद निर्वाचित होने के बाद 6 महीने तक मंत्री के रूप में काम करने में तकनीकी तौर पर कोई अड़चन नहीं है। मगर ऐसा होता है तो इसे परंपरा के खिलाफ माना जाएगा। क्योंकि इतने लंबे समय तक मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में कोई भी सांसद मंत्री पद पर नहीं रहा। कुछ लोग दावा कर रहे हैं कि बृजमोहन हफ्ते-दस दिन के भीतर मंत्री पद छोड़ देंगे। देखना है आगे क्या कुछ होता है।

कानून व्यवस्था पर सवाल...

ऐसा कम ही होता है कि सरकार अपनी कमजोरी को स्वीकार कर ले, मगर डिप्टी सीएम विजय शर्मा ने कल मीडिया से बात करते हुए मान लिया कि बलौदाबाजार की घटना के बाद प्रदेश की कानून व्यवस्था पर सवाल उठना लाजिमी है। उन्होंने कहा कि यह बात वे गृह मंत्री होने के बावजूद कह रहे हैं। पुलिस के लिए एसओपी ( स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर ) निर्धारित किया जाएगा, ताकि फिर ऐसी घटना न हो।

बात यह है कि मंत्री ने कानून व्यवस्था के सवाल को सिर्फ बलौदा बाजार से जोड़ा। कांग्रेस सरकार के दौरान कानून-व्यवस्था बहुत अच्छी नहीं थी। भाजपा ने इसे मुद्दा बनाया था और कहा था कि सरकार आने पर प्रदेश में अपराधों पर लगाम लगाई जाएगी। मगर, आम लोगों के नजरिये से देखा जाए तो कांग्रेस और भाजपा सरकार के कार्यकाल में लोगों को कोई फर्क दिखाई नहीं दे रहा है। नक्सली हिंसा एक विशिष्ट विषय हो सकता है पर बाकी प्रदेश में भी लूटपाट, चाकूबाजी, अपरहण, गैंगरेप और हत्या की घटनाएं कम नहीं हो रही है। बीते दिनों खरोरा में दिन दहाड़े 27 लाख रुपये की लूट हो गई। दुर्ग में एक बच्ची के गले में ब्लेड मारकर हत्या कर दी गई। बलरामपुर में तो बजरंग दल के नेता और उसके साथ एक महिला की मौत के असली कातिल को पकडऩे की मांग पर खुद भाजपा से जुड़े लोग आंदोलन कर रहे हैं। खुद गृह मंत्री के इलाके में एक राह चलते व्यक्ति को मार डाला गया था। पिछले महीने प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष दीपक बैज ने बताया था कि सरकार के पांच महीने में हत्या की 36 वारदातें हो गईं। इन वारदातों में कुछ बच्चे भी शिकार हुए हैं। राजधानी रायपुर और दूसरे सबसे बड़े शहर बिलासपुर में चाकूबाजी की घटनाएं लगातार हो रही हैं। लोग प्रतीक्षा कर रहे हैं कि वे जल्द से जल्द कांग्रेस सरकार से बेहतर कानून व्यवस्था महसूस करें।

भीड़ के मुकाबले पुलिस ज्यादा

शांतिपूर्वक धरना, रैली, प्रदर्शन की अनुमति विभिन्न राजनीतिक, सामाजिक संगठन प्रशासन से मांगते रहते हैं और वह मिल जाती है। जब तक कोई विशेष परिस्थिति न हो, बहुत ज्यादा पुलिस बल भी ऐसे कार्यक्रमों में लगाने की जरूरत महसूस नहीं की जाती। मगर बलौदाबाजार की घटना ने प्रशासन को सतर्क कर दिया है। इसका उदाहरण मानपुर में देखा गया, जो अंबागढ़ चौकी-मोहला-मानपुर जिले का एक प्रमुख स्थान है। संभवत: बलौदाबाजार के बाद प्रदेश का पहला जमावड़ा यहीं हुआ। पूर्व केंद्रीय राज्य मंत्री अरविंद नेताम के नेतृत्व वाले सर्व आदिवासी समाज ने यहां एक प्रदर्शन आयोजित किया था। इसमें जेल भरो आंदोलन भी शामिल था। यह आंदोलन धार्मिक उन्माद फैलाने और नक्सलियों से संबंध होने के आरोप में आदिवासी नेताओं, विशेषकर सरजू नेताम को गिरफ्तार करने को लेकर था। आदिवासी बाहुल्य इलाका है, आदिवासी नेताओं की गिरफ्तारी के विरोध में पुलिस के खिलाफ प्रदर्शन है, फिर ताजा-ताजा बलौदाबाजार में हुई हिंसा। इन सबने पुलिस प्रशासन को चिंता में डाल रखा था। कार्यक्रम स्थल पर  भारी संख्या में पुलिस बल तैनात था। हालांकि लोग जुटे थे पर इतने नहीं कि इनके लिए 1000 जवानों की तैनाती करनी पड़े। भीड़ कम पहुंचने की वजह यह बताई गई कि स्थानीय आदिवासी नेताओं के एक वर्ग ने इस प्रदर्शन का विरोध किया था। मोहला और पानाबरस के आदिवासी नेताओं ने आंदोलन में भाग नहीं लेने का निर्णय ले लिया था। सब कुछ शांति से निपट जाने पर पुलिस और प्रशासन ने राहत की सांस ली। ([email protected])

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