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‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : राज्यसभा में रह चुका माल्या भी तो इसी बेंगलुरू से फरार हुआ था, नेता को रियायत क्यों?
16-Jun-2024 5:48 PM
‘छत्तीसगढ़’ का  संपादकीय : राज्यसभा में रह चुका माल्या भी  तो इसी बेंगलुरू से फरार हुआ  था, नेता को रियायत क्यों?

कर्नाटक में एक नाबालिग ने भूतपूर्व मुख्यमंत्री बी.एस.येदियुरप्पा पर छेड़छाड़ या देह शोषण का आरोप लगाया था जिस पर वर्तमान कांग्रेस सरकार ने जांच शुरू की है। हाईकोर्ट ने पुलिस को येदियुरप्पा की गिरफ्तारी न करने को कहा है। इसके पहले बेंगलुरू की एक स्थानीय अदालत ने येदियुरप्पा के खिलाफ गैरजमानती वारंट जारी किया था जिस पर अभी हाईकोर्ट ने रोक लगाते हुए कहा है कि येदियुरप्पा कोई एैरा-गैरा नत्थू खैरा (टॉम, डिक, या हैरी) नहीं हैं, न ही वे डाकू हैं, वे राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री हैं, क्या वे फरार होंगे? हाईकोर्ट जज ने कहा कि अगर भूतपूर्व मुख्यमंत्री के साथ ऐसा बर्ताव हो रहा है, तो आम आदमी के साथ क्या हो रहा होगा? अदालत ने कहा कि चार-पांच दिनों में कौन सा आसमान टूट पड़ेगा? 

हम येदियुरप्पा के खिलाफ एक नाबालिग लडक़ी की यौन शोषण की शिकायत पर अभी नहीं जा रहे, लेकिन हम अदालत के रूख पर लिखना चाहते हैं जिसने एक भूतपूर्व मुख्यमंत्री होने के नाते येदियुरप्पा को यह रियायत दी है कि वे अपनी मर्जी से कुछ दिन बाद पुलिस के सामने पेश हों, और पुलिस तब तक गिरफ्तारी न करे। क्या किसी मामले में किसी के भूतपूर्व मुख्यमंत्री होने से उसे ऐसी राहत मिलनी चाहिए जो कि आम लोगों को नसीब नहीं होती है। आम लोगों की तो जमानत की अर्जी भी इस तेजी से अदालत के सामने नहीं पहुंच पाती। जाहिर तौर पर हिन्दुस्तानी अदालतों में बड़े लोगों की अर्जियों पर तेज रफ्तार सुनवाई होती है, इसकी एक वजह शायद यह भी है कि ऐसे लोग महंगे वकील कर पाते हैं जिनके नाम का दबदबा भी अदालत पर रहता है। अब विजय माल्या, जो कि देश का एक सबसे बड़ा बैंक डिफाल्टर है, वह भी एक समय राज्यसभा सदस्य था, और इसके बाद वह देश छोडक़र फरार हुआ जबकि उसकी अरबों की दौलत भी हिन्दुस्तान में पड़ी हुई है, और वह बड़ी ऊंची सामाजिक जिंदगी भी जीता था। शायद वह इसी बेंगलुरू शहर में रहता था जिसमें आज येदियुरप्पा रहते हैं। इसलिए हम इस बात को तो बिल्कुल नहीं मानते कि किसी ओहदे पर एक बार बैठ चुका व्यक्ति फरार होने जैसा काम नहीं कर सकता। इसके बाद अगर जांच एजेंसियों के काम में अदालती दखल किसी के भूतपूर्व मुख्यमंत्री होने की वजह से हो रही है, तो क्या पाक्सो जैसे मामले में किसी ओहदे को कोई रियायत मिल सकती है? 

कुछ हफ्ते पहले जब दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को सुप्रीम कोर्ट जजों ने मतदान तक के लिए जमानत दे दी थी कि देश में आम चुनाव हैं, और एक राष्ट्रीय पार्टी के नेता, और एक राज्य के मुख्यमंत्री को ऐसे में जेल में रखना ठीक नहीं है, उस वक्त भी हमने आम और खास के बीच अदालती नजरिए के फर्क की बात उठाई थी, और उसकी आलोचना की थी। कल ही लखनऊ से खबर है कि बसपा के एक भूतपूर्व विधायक की 44 सौ 40 करोड़ की जायदाद ईडी ने जब्त कर ली है। यह पूरी दौलत काली कमाई से जुटाने का आरोप लगा है, और ऐसी आशंका जताई जा रही है कि यह भूतपूर्व विधायक मोहम्मद हाजी इकबाल फरार होकर शायद दुबई चले गया है। इसलिए नेताओं का, बड़े अफसरों का कानून से दूर भागना कोई दुर्लभ घटना नहीं है। अगर हिन्दुस्तानी अदालतें यह सोचती हैं कि कुछ ऊंचे ओहदों पर पहुंचे हुए लोग कभी फरार नहीं होंगे, लेकिन गरीब-मजदूर, या फुटपाथी कारोबारी फरार हो जाएंगे, तो यह संपन्न तबके की सोच का एक सुबूत है, और यह सोच खत्म होनी चाहिए। इंसाफ की अदालतों को तो कम से कम सोच का इंसाफ बरतना चाहिए। वैसे भी लोगों का भरोसा पुलिस जैसी जांच एजेंसी, ईडी और सीबीआई सरीखी केन्द्रीय एजेंसी, और अदालतों पर नहीं सरीखा है। आम जनता मानती है कि इंसाफ की प्रक्रिया में जगह-जगह रिश्वत और भ्रष्टाचार, और ताकत के इस्तेमाल को देखा जा सकता है, और बड़े मुजरिमों को सजा होने की गुंजाइश न बराबर होती है। लोकतंत्र की अलग-अलग शाखाओं, और अदालत की ऐसी साख ठीक नहीं है, और जजों को अगर यह लगता भी है कि किसी व्यक्ति को जमानत दी जानी है, या उसकी गिरफ्तारी पर रोक लगानी है, तो ऐसा आदेश देना अदालत का विशेषाधिकार रहता है, और इसे कटघरे में खड़े, या आरोपों से घिरे किसी व्यक्ति के ओहदे से जोडक़र बखान नहीं करना चाहिए। महज फरार हो जाना ही नहीं, दूसरे भी जितने किस्म के जुर्म हो सकते हैं, कोई भी नेता उन्हें करने में पर्याप्त सक्षम रहते हैं, इसलिए अदालत को रियायत देनी हो, तो किसी और पैमाने पर करना चाहिए। अदालत को नामी-गिरामी लोगों के मामले आधी रात अपने बंगलों पर सुनना भी बंद करना चाहिए। किसी एम्बुलेंस ड्राइवर या दमकल ड्राइवर का मामला हो तो भी समझ में आता है कि उसे आधी रात को जमानत देना जरूरी है, लेकिन जब किसी टीवी चैनल के मालिक के लिए सुप्रीम कोर्ट आधी रात अपने बंगले पर सुनवाई करती है तो लोगों में अदालत के प्रति भरोसा खत्म हो जाता है, सिर्फ ताकतवर और अतिसंपन्न लोग अपने बहुत महंगे वकीलों, और जजों पर भरोसा कर सकते हैं। लोकतंत्र में यह सिलसिला खत्म करना चाहिए।   (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)  

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