विचार / लेख
-डॉ. आर.के. पालीवाल
तंत्र के मकडज़ाल और नेताओं की नीतियों से व्यथित होकर अदालत/ अधिकारी पर जूता या स्याही फेंकना और मारपीट करना कभी कभार पहले भी होता रहा है।
अरविंद केजरीवाल के साथ यह शायद सबसे ज्यादा बार हुआ है। इधर कंगना रनौत और प्रधानमंत्री के साथ हुई दुर्घटनाओं की गंभीरता इसलिए अधिक है कि जेड श्रेणी की सुरक्षा प्राप्त कंगना रनौत के साथ एक महिला सुरक्षाकर्मी ने दुर्व्यवहार किया (वैसे आम आदमी के साथ तो पुलिस दुर्व्यवहार की देश भर में आए दिन हजारों घटना होती हैं) और प्रधानमन्त्री के त्रि स्तरीय कड़ी सुरक्षा वाले काफिले पर चप्पल फेंकना यह प्रमाण है कि हमारे समाज में हिंसा और नफरत हर स्तर पर तेज़ी से बढ़ती जा रही है। इसमें कोई शक नहीं कि इस हिंसा और नफरत को बढ़ाने में नेताओं के नफरती और उकसाऊ भाषण भी प्रमुख कारण हैं।
महावीर, बुद्ध और गांधी के मूलत: अहिंसक देश में कुछ लोग भगत सिंह आदि की आड़ में हिंसा को जायज़ ठहराने की कोशिश करते हैं। वे यह भूल जाते हैं कि भगत सिंह की हिंसा अपने देश के लोगों के प्रति नहीं थी , उसमें राक्षसी प्रवृत्ति के उन लोगों को सजा देने का भाव था जो निर्बलों को सताते थे। वैसी धर्म प्रधान हिंसा तो राम और कृष्ण ने भी रामायण और महाभारत काल में की है।
हाल की घटनाओं से यह आभास होता है कि कंगना रनौत और प्रधानमन्त्री के लिए कुछ लोगों के मन में नफरत के भाव हैं क्योंकि इन दोनों के भाषणों और वक्तव्यों से काफ़ी लोग आहत हुए हैं। फिर भी हिंसक प्रतिक्रिया को उचित नहीं ठहरा सकते। हम नेताओं से अपनी वाणी पर संयम की अपील कर सकते हैं और व्यथित नागरिकों से नफऱत फैलाने और भावनाएं आहत करने वाले नेताओं के शांतिपूर्ण विरोध की अपील कर सकते हैं।