संपादकीय
ऑस्ट्रेलिया के एक पत्रकार जूलियन असांज ने विकीलीक्स नाम का एक प्लेटफॉर्म शुरू किया जिस पर वह दुनिया भर के लोगों द्वारा जुटाए गए या भेजे गए ऐसे गोपनीय दस्तावेज पोस्ट करता था जो कि वे लोग जनहित में मानते थे। दस बरस से कुछ ज्यादा पहले असांज ने अमरीकी फौजों से जुड़े हुए, और अमरीकी सरकार के गोपनीय दस्तावेजों का एक ऐसा जखीरा पोस्ट किया जिससे अमरीका की मानवता विरोधी और गैरकानूनी फौजी कार्रवाईयों का पता लगता था। इससे अमरीका की खुफिया कार्रवाई, अपनी जेलों में उसके जुल्म, और दुनिया की सरकारों के बारे में अमरीकी राजदूतों और नेताओं की सोच भी उजागर हुई थी। कुल मिलाकर कम शब्दों में कहें, तो अमरीकी सरकार की धूर्तता इससे बहुत बुरी तरह दुनिया के सामने आई थी। इसके बाद से ब्रिटेन में जूलियन असांज पर बड़ा खतरा मंडराने लगा, अमरीकी सरकार उसे उठाकर अमरीका लाना चाहती थी, लेकिन वह लंदन में इक्वाडोर नाम के छोटे से देश के दूतावास में शरण पाकर सात बरस वहां रहा, इसके बाद जब इक्वाडोर ने उसे राजनीतिक शरण देने से मना कर दिया, तो ब्रिटेन ने उसे गिरफ्तार किया। इस बड़ी लंबी कानूनी और कूटनीतिक लड़ाई के ब्यौरे में गए बिना, अब जूलियन असांज की एक अमरीकी अदालत से रिहाई के बाद हम उस मुद्दे पर लिखना चाहते हैं जो कि विकीलीक्स के इस मामले से दुनिया के सामने आया है।
विकीलीक्स को एक पत्रकार ने शुरू जरूर किया, लेकिन वह दस्तावेजों के भांडाफोड़ का एक मंच था। जो लोग जूलियन असांज को पत्रकारिता का एक महान किरदार मानते हैं, उन्हें यह समझने की जरूरत है कि हर महान का पत्रकार होना जरूरी नहीं रहता। जूलियन असांज को एक एक्टिविस्ट मानना बेहतर होगा जो कि खुफिया जानकारी को लोगों के सामने रखने का काम कर रहा था। हो सकता है यह काम बहुत महान हो, और इसके लिए कोई बड़ा पुरस्कार या सम्मान भी कम पड़ता हो, लेकिन इसे पत्रकारिता मानने में हमारे जैसे परंपरागत लोगों को कुछ दिक्कत होगी। भला ऐसी कैसी पत्रकारिता हो सकती है जो लाखों दस्तावेजों को लोगों के सामने बिना कोई मतलब निकाले, बिना उन पर संबंधित लोगों का पक्ष लिए, बिना उनका विश्लेषण किए हुए उसे पत्रकारिता मान ले? सच तो यह है कि कभी साहित्य के लोग अपने को पत्रकार साबित करने पर उतारू हो जाते हैं, तो अक्सर ही एक्टिविस्ट अपने को जर्नलिस्ट भी साबित करने लगते हैं क्योंकि वे कहीं-कहीं कुछ लिखते भी हैं। लेकिन किसी मुद्दे की वकालत करते हुए उसके लिए लड़ाई लडऩा, किसी सरकार की गैरकानूनी हरकतों का भांडाफोड़ करने के लिए उसके लाखों कागजों को जनता के सामने ज्यों का त्यों धर देना अखबारनवीसी नहीं है। यह काम जनता के सूचना के अधिकार को मजबूत करना तो हो सकता है, लेकिन यह एक्टिविज्म ही है, जर्नलिज्म नहीं है।
चूंकि जूलियन असांज एक जर्नलिस्ट रहा हुआ है, इसलिए उसके एक्टिविज्म को भी लोग जर्नलिज्म साबित करने को स्वाभाविक मान सकते हैं। लेकिन इनके बीच एक फर्क करना जरूरी है क्योंकि जर्नलिज्म हाथ आई हर जानकारी को सामने रख देने जैसा आसान काम भी नहीं है। जूलियन असांज ने जनता के जानने के हक की वकालत करते हुए किसी कागजात में कुछ भी छुपाने के बजाय सब कुछ सामने रख दिया, और इनमें से बहुत कुछ तो ऐसा था जिससे दूसरे देशों में तैनात सरकारी और फौजी कर्मचारियों की जिंदगी पर खतरे सरीखा भी था। अभी यह तो हमें मालूम नहीं है कि उससे कुछ लोगों की जिंदगी खतरे में पड़ी या नहीं, लेकिन वह काम तो उसी तरह का था। अमरीकी सरकार या दूसरी फौजों और सरकारों के जुल्म और गैरकानूनी कामों का भांडाफोड़ गैरपत्रकार भी कर सकते हैं, और दुनिया में जगह-जगह सूचना के अधिकार के लिए लडऩे वाले लोग ऐसा करते भी हैं, इसलिए ऐसे काम को पत्रकारिता मानने की कोई मजबूरी नहीं है। पत्रकारिता एक अलग किस्म की जिम्मेदारी के साथ किया जाने वाला काम है, और उसे किसी दूसरे किस्म के काम के साथ जोडक़र नहीं देखा जाना चाहिए।
जूलियन असांज के भांडाफोड़ को लोग बहुत लोकतांत्रिक मान रहे हैं, और उसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का एक ज्वलंत उदाहरण भी मान रहे हैं। ये दोनों ही बातें ठीक हैं, लेकिन ये दोनों ही चीजें पत्रकारिता से परे दुनिया के बहुत से दूसरे दायरों में भी रहती हैं। सामाजिक कार्यकर्ता भी लोकतांत्रिक काम करते हैं, और गैरपत्रकार लेखक-कलाकार भी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का शानदार इस्तेमाल करते हैं। इसलिए इन दोनों बातों पर पत्रकारिता की बपौती (इसके लिए लैंगिक समानता वाला कोई शब्द सूझ नहीं रहा है) मान लेना ठीक नहीं है। जूलियन असांज ने जो किया वह हौसले का काम था, खतरे का काम था, जिंदगी के पिछले 14 बरस तबाह करके उसने विसलब्लोअर का काम किया, लेकिन इसे पत्रकारिता से दूर रखना खुद पत्रकारिता का भला होगा। भगत सिंह ने जेल के भीतर से जो लिखा उसे एक राजनीतिक कार्यकर्ता और क्रांतिकारी का लेखन मानना बेहतर होगा, उसे पत्रकारिता मानना ठीक नहीं होगा। पत्रकारिता से परे भी लोग शहादत देते हैं, और जूलियन असांज ने जिंदगी के 14 बरस वही शहादत दी है।
हम अभी इस बहस में नहीं उलझ रहे कि जूलियन असांज का ऐसा करना दुनिया की लोकतांत्रिक सरकारों के लिए कितना नुकसानदेह था, और वैसा काम करना चाहिए था या नहीं? हम उस बहस से परे अभी भांडाफोड़ और पत्रकारिता के बीच एक फर्क करना चाहते हैं। यह समझ लेना जरूरी है कि पत्रकारिता दस्तावेजों के पुलिंदे को सामने धर देना नहीं है। वे तमाम दस्तावेज सच हो सकते हैं, लेकिन वह पुलिंदा जनहित में महत्वपूर्ण हो सकता है, लेकिन उनका एक मतलब निकाले बिना, और उन दस्तावेजों में जिनका जिक्र है, जिन पर तोहमत लग रही है, उनका पक्ष जाने बिना यह पत्रकारिता नहीं हो सकती। इसलिए जूलियन असांज के काम को एक विवादास्पद पत्रकारिता के बजाय जनहित का एक भांडाफोड़ मानना बेहतर होगा।
दुनिया में ऐसे बहुत से लोग रहते हैं जो अपनी सरकार, अपनी फौज, अपने संस्थान में हो रहे लोकतंत्रविरोधी कामों का भांडाफोड़ करते हैं। बहुत सी महत्वपूर्ण पत्रकारिता ऐसे ही मिली जानकारी पर आधारित होती है। लेकिन यह भांडाफोड़ अपने आपमें पत्रकारिता नहीं है, इसलिए दुनिया भर में जूलियन असांज को लेकर जो बहस चल रही है, उसमें हम भी थोड़ा सा इजाफा कर रहे हैं, और उसे एक लोकतांत्रिक एक्टिविस्ट करार दे रहे हैं।
अब तकरीबन डेढ़ दशक के तूफान झेलने के बाद जूलियन असांज अपने देश ऑस्ट्रेलिया लौट आया है, इसके लिए उसे अमरीकी अदालत में अपना एक जुर्म कुबूलना पड़ा था कि उसने इन दस्तावेजों का जासूसी सरीखा इस्तेमाल किया था। अमरीकी वकीलों के साथ इस समझौते के बाद असांज को रिहा किया गया क्योंकि अदालत ने उन्हें इस बात के लिए जितनी सजा सुनाई, उससे अधिक बरस वे ब्रिटिश जेल में काट चुके थे। जूलियन असांज अभी भी अपने आपको पत्रकार और अपने इस पूरे भांडाफोड़ को पत्रकारिता करार दे रहे हैं, यह दुनिया भर के पत्रकारों के लिए भी एक चुनौती का मौका है कि वे पत्रकारिता के दायरे में किन-किन बातों को मानने को तैयार हैं। लोगों को याद रखना चाहिए कि कुछ बरस पहले जब एक वेबसाइट बनाकर उस पर समाचार-विचार डालने का सिलसिला शुरू हुआ तो ऐसे करोड़ों लोगों को एक परिभाषा में पत्रकार मान लिया गया था। इस परिभाषा के मुताबिक तो हर नागरिक पत्रकार हैं। लेकिन जो लोग पत्रकारिता के गंभीर पेशे में हैं, या गंभीरता से इस पेशे में हैं, वे जानते हैं कि हर नागरिक को पत्रकार मान लेने के क्या खतरे होते हैं। इसी तरह हम हर काम को पत्रकारिता मान लेने के भी खिलाफ हैं। (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)