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घायल साथियों की जान बचाने के लिए टांग काट देती हैं चींटियां
03-Jul-2024 12:09 PM
घायल साथियों की जान बचाने के लिए टांग काट देती हैं चींटियां

वैज्ञानिकों ने चींटियों में ऐसा मेडिकल सिस्टम पाया है जो सिर्फ इंसानों में देखा जाता है. चींटियां अपने घायल साथियों का इलाज करती हैं और जरूरत पड़ने पर टांग काट देती हैं.

  (dw.com)  

युद्ध, बीमारी या किसी हादसे में घायल किसी व्यक्ति का अंग अगर इतना खराब हो जाए कि उसके कारण जान का खतरा बन जाए तो डॉक्टर उस अंग को काट देते हैं. यह एक बेहद जटिल सर्जरी होती है जिसे विशेषज्ञ करते हैं. लेकिन सिर्फ इंसान ऐसी सर्जरी नहीं करते हैं. हाल ही में हुए एक शोध में वैज्ञानिकों ने पाया कि चींटियां भी ऐसी ही सर्जरी करती हैं.

ताजा अध्ययन दिखाता है कि कुछ चींटियां अपने घायल साथियों के अंग काट देती हैं ताकि उनकी जान बचाई जा सके. ‘फ्लोरिडा कारपेंटर' प्रजाति की चींटियों को ऐसा करते देखा गया. भूरे-लाल रंग की ये चींटियां डेढ़ सेंटीमीटर तक लंबी होती हैं और दक्षिण-पूर्वी अमेरिका में पाई जाती हैं.

वैज्ञानिकों ने पाया कि ये चींटियां अपने घोंसलों में रहने वाली अन्य चींटियों का इलाज कर रही थीं. वे अपने मुंह से उनके घाव साफ करती हैं और दांतों से खराब हुए अंग को काट देती हैं. अंग काटने का फैसला भी बहुत सावधानी से किया जाता है. तभी किसी टांग को काटा गया जब चोट ऊपरी हिस्से में लगी हो. अगर चोट निचले हिस्से में थी तो अंग को काटा नहीं गया.

कैसे होती है सर्जरी?
जर्मनी की वुर्त्सबुर्ग यूनिवर्सिटी में प्राणी विशेषज्ञ एरिक फ्रांक इस शोध के मुख्य लेखक हैं, जो ‘करंट बायोलॉजी' नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ है. वह बताते हैं, "इस अध्ययन में हमने पहली बार यह बताया है कि इंसान ही नहीं, दूसरे प्राणी भी अपने साथियों की जान बचाने के लिए टांगें काटने जैसी प्रक्रियाओं का इस्तेमाल करते हैं.”

फ्रांक कहते हैं कि चींटियों का यह व्यवहार अद्वितीय है. वह बताते हैं, "मुझे यकीन है कि घायलों की देखरेख का चींटियों का यह मेडिकल सिस्टम प्राणी जगत में बेहद सॉफिस्टिकेटेड है और इसकी तुलना सिर्फ इंसानों में मिलती है.”

ये चींटियां सड़ी हुई लकड़ी में अपने घोंसले बनाती हैं और दुश्मन चींटियों से उसकी रक्षा बहुत जोर-शोर से करती हैं. फ्रांक कहते हैं, "अगर लड़ाई हो जाए तो घायल होने का खतरा रहता है.” चीटियों का अध्ययन प्रयोगशाला में किया गया. पहले भी ऐसे अध्ययन हुए हैं कि चींटियां अपने घायल साथियों की देखरेख करती हैं.

वैज्ञानिकों ने टांग के ऊपरी और निचले हिस्से की चोटों का अध्ययन किया. ऐसी चोटें जंगली चींटियों की तमाम प्रजातियों में पाई जाती हैं जो शिकार करते हुए या अन्य प्राणियों से लड़ते हुए लगती हैं.

शोधकर्ता कहते हैं, "इस बात पर फैसला सोच समझ कर किया जाता है कि टांग काट दी जाए या घाव को भरने के लिए और वक्त दिया जाए. यह फैसला वे कैसे करती हैं, हमें नहीं पता. लेकिन हमें यह पता है कि अलग-अलग इलाज कब किया जाता है.”

किसका इलाज कैसे होगा?
इलाज का यह फैसला जानवरों में खून के रूप में पाए जाने वाले नीले-हरे रंग के द्रव्य के बहाव के आधार पर होता है. फ्रांक कहते हैं, "अगर चोट टांग के निचले हिस्से में हो तो द्रव्य का बहाव बढ़ जाता है. इसका अर्थ है कि चोट लगने के पांच मिनट के भीतर ही पैथोजन शरीर में प्रवेश कर चुके हैं और तब टांग काटने का कोई मतलब नहीं रह जाता. अगर चोट ऊपर के हिस्से में हो तो द्रव्य का बहाव कम होता है और तब सही समय पर और प्रभावशाली रूप से टांग को काटने का वक्त मिल जाता है.”

दोनों ही स्थितियों में चींटियां पहले घाव को साफ करती हैं. इसके लिए वे मुंह से निकलने वाले एक चिपचिपे द्रव का इस्तेमाल करती हैं. साथ ही वे घाव को चूसकर भी साफ करती हैं. अंग को काटने की पूरी प्रक्रिया में कम से कम 40 मिनट से लेकर तीन घंटे तक का समय लगता है. चींटियों की छह टांगें होती हैं और उनमें से एक के कट जाने के बाद भी वे कामकाज कर सकती हैं.

वैज्ञानिकों ने पाया कि ऊपरी हिस्से में चोट लगने पर टांग को काटने के बाद चींटी के जीवित रहने की संभावना 90 से 95 फीसदी तक बढ़ जाती है जबकि अगर घाव का इलाज नहीं किया गया तो उनके बचने की संभावना 40 फीसदी तक थी. अगर चोट टांग के निचले हिस्से में थी तो घाव की बस सफाई की गई और तब बचने की संभावना 75 फीसदी थी. अगर उस घाव का इलाज नहीं किया गया तो बचने की संभावना सिर्फ 15 फीसदी थी.

क्यों इलाज करती हैं चींटियां?
मादा चींटियों को ही यह काम करते पाया गया. फ्रांक बताते हैं, "काम करने वाली चींटियां मादा ही थीं. चींटियों की कॉलोनी में नर चींटियों की भूमिका सीमित होती है. वे बस रानी चींटी के साथ सहवास करते हैं और मर जाते हैं.”

विज्ञान जगत के लिए यह अनसुलझा सवाल है कि अंग काटने जैसे इस व्यवहार की वजह क्या है? फ्रांक कहते हैं, "यह बहुत दिलचस्प सवाल है और समानुभूति की हमारी मौजूदा परिभाषाओं पर कुछ हद तक सवाल खड़े करता है. मुझे नहीं लगता कि चींटियों में सहानुभूति होती है.”

वह कहते हैं कि घायलों के इलाज की एक साधारण वजह हो सकती है. उनके शब्दों में, "इससे संसाधनों की बचत होती है. अगर मैं किसी कर्मचारी को थोड़ी कोशिश करके दोबारा कामकाज करने लायक बना सकता हूं तो ऐसा करने का लाभ बहुत ज्यादा है. अगर कोई चींटी बहुत ज्यादा घायल हो जाए तो चींटियां उसका इलाज नहीं करेंगी और उसे मरने के लिए छोड़ देंगी.”

वीके/एए (रॉयटर्स)

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