संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : धर्म की अराजक भीड़ में थोक में होती मौतें रोकने की फिक्र किसी को रहती है?
03-Jul-2024 12:29 PM
‘छत्तीसगढ़’ का  संपादकीय : धर्म की अराजक भीड़ में  थोक में होती मौतें रोकने की  फिक्र किसी को रहती है?

उत्तरप्रदेश के हाथरस के एक गांव में एक बाबा के तथाकथित सत्संग के नाम पर जुटी भीड़ में भगदड़ मची, और सवा सौ के करीब मौतें हो चुकी हैं, और सैकड़ों जख्मी अस्पतालों में हैं। बीती दोपहर दिनदहाड़े हुई इस घटना के बाद से जाहिर है कि यह बाबा फरार है, गांव में मंत्रियों और अफसरों का जमघट लग गया है, और लाशों को आसपास के कुछ अलग-अलग जिलों में पहुंचाया गया है क्योंकि एक जगह इतनी लाशें रखी नहीं जा सकती थीं। इस कार्यक्रम के लिए प्रशासन से इजाजत ली गई थी, और करीब 50 हजार लोगों के आने का अंदाज बताया गया था जिसके लिए 40 पुलिसवाले तैनात थे। बाद में करीब 80 हजार लोग वहां पहुंच गए, और छोटे से गांव में मीलों तक ऐसा ट्रैफिक जाम था कि जख्मियों को अस्पताल ले जाने में घंटों लग गए, और रास्ते में भी लोगों ने दम तोड़ दिया। नारायण साकार हरि उर्फ भोले बाबा नाम का यह बाबा 18 बरस पुलिस सिपाही था, फिर रिटायरमेंट लेकर बाबा बन गया। यूपी और आसपास के एसटी-एससी, और ओबीसी तबकों में उसके लाखों भक्त हैं, और उन्हीं की भीड़ इस बाबा के पैरों की धूल पाने के लिए उसके बाहर निकलते हुए पीछे दौड़ी थी, और उसमें हुई भगदड़ के बाद आसपास की गड्ढों वाली जमीन में भी गिरकर लोग गिरते और कुचलते चले गए।

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मरने वालों के कपड़ों और हुलिए से दिखता है कि वे गरीब लोग थे, और लाशों में अधिकतर महिलाओं और बच्चों की ही लाशें हैं। देश में लगातार चमत्कारी बाबाओं, और प्रवचनकर्ताओं के लिए बेकाबू भीड़ लगने लगी है। अभी कुछ ऐसे धार्मिक लोग हैं जिनके नाम पर लाख-पचास हजार की भीड़ इकट्ठा हो जाती है, और इनके आयोजनों के लिए करोड़ों का चंदा भी हो जाता है, और मंत्री से लेकर संत्री तक जुट जाते हैं। अविभाजित मध्यप्रदेश के समय के एक बाबा का कारोबार जब छत्तीसगढ़ में फैलना शुरू हुआ तो इस इलाके के सबसे ताकतवर मंत्री उनके भक्त थे, और पुलिस, प्रशासन, और न्यायपालिका के बड़े-बड़े ओहदों पर काबिज लोग भी। नतीजा यह हुआ कि सत्तारूढ़ पार्टी और सरकार की मेहरबानी से इस राज्य में इस बाबा का कारोबार खूब तेजी से फला-फूला, और मानने वालों की सत्ता जाने के साथ ही उनकी चमक फीकी पड़ गई। लेकिन चमक फीकी पडऩे के पहले तक ऐसे लोग जमीन-जायदाद, कारोबार, और आश्रम-मंदिर जैसा साम्राज्य स्थापित कर चुके रहते हैं, जो बाद में अपने खर्च पर भी चलते रहता है।

अब सवाल यह उठता है कि न सिर्फ हिन्दू धर्म के लोगों में से, बल्कि दूसरे धर्म वालों में भी चमत्कारियों का बोलबाला देखने में आते रहता है। ईसाईयों की चंगाई सभाओं में लोगों को ठीक होते बताया जाता था, लेकिन फिर बाद में जादू और करिश्मे के खिलाफ बने कानून के डर से उन्होंने यह धंधा कम किया है। फिर भी कई जगहों पर मंच पर ईसाई पादरी भी तरह-तरह की नौटंकी करते दिखते हैं। हिन्दू धर्म के बाबा या प्रवचनकर्ता अंधाधुंध बड़े-बड़े दावे करते हुए दुकानदारी चलाते हैं, और नेताओं से लेकर अफसरों तक को अपने डरे-सहमे मन के सहारे के लिए इनकी जरूरत पड़ती है। फिर नेताओं का तो यह हाल आम रहता है कि जहां कहीं उन्हें बड़ी भीड़ दिखती है, वहां पर उन्हें अपनी बड़ी संभावना भी दिखती है। जिस तरह फुटपाथ पर कुछ बाजीगरी दिखाकर ताबीज बेचने वाले लोग रहते हैं जो कि भीड़ की जरा सी संभावना देखकर दुकानदारी शुरू कर देते हैं, उसी तरह का हाल नेताओं का भी रहता है जो हर बाबा की भीड़ को दुहने की नीयत से वहां पहुंच जाते हैं। आसाराम जैसे बलात्कारी-बापू के सैकड़ों वीडियो नरेन्द्र मोदी से लेकर दिग्विजय सिंह तक की अलग-अलग विविधता वाले नेताओं के सोशल मीडिया पर मौजूद हैं, और बलात्कार में फंसने के पहले तक हर नेता की एक आंख आसाराम के पांव पर रहती थी, और दूसरी आंख सामने मौजूद भीड़ पर रहती थी।

हिन्दुस्तान में अंधविश्वास के चलते जनता की भीड़ जुट जाती है, जो कि इस बात का सुबूत भी रहती है कि सरकार का इलाज का इंतजाम बड़ा कमजोर है, और बहुत से लोगों को नसीब ही नहीं है। यह इस बात का भी सुबूत रहता है कि लोगों के बीच वैज्ञानिक समझ खोखली करने में धर्मान्ध ताकतों को बड़े ऊंचे दर्जे की कामयाबी मिल चुकी है, और लोग पर्चे लिखने वाले, मंतर फूंकने वाले, पानी और भभूत छिडक़ने वाले सभी तरह के बाबाओं से अपनी समस्याओं का समाधान पाने की उम्मीद रखते हैं। जब 25-30 बरस अदालत से फैसला न मिले, और मिले तो भी इंसाफ न मिले, बीमारी पर इलाज तो दूर जांच भी न मिले, तो फिर ऐसे बाबा लोगों की दुकानदारी चलना आम बात है। अभी आसमान से आग बरसने जैसी गर्मी के बीच एक प्रवचनकर्ता का छत्तीसगढ़ के राजधानी के बगल में आयोजन हुआ, तो घर से बाहर न निकलने की सरकारी चेतावनी के बीच लू से झुलसकर प्रवचन में पहुंचे कई भक्त मर गए। शायद इसी प्रवचनकर्ता के आयोजन में बगल के एमपी में रूद्राक्ष बांटते हुए जो भगदड़ खड़ी की थी, उसमें 8 लोग मारे गए थे।

धार्मिक कार्यक्रमों में मौतों पर हिन्दू लोगों का एकाधिकार नहीं हैं, अभी 50 डिग्री से अधिक तापमान पर हज यात्रा के दौरान हजारों लोगों की मौत हो गई है, और यह उस जगह हुआ है जहां प्रशासन पर सऊदी अरब की फौलादी पकड़ है। इन मौतों में भी सौ के करीब हिन्दुस्तानी भी मारे गए हैं। हज में भी भगदड़ मौतों का लंबा इतिहास है, और हिन्दुस्तान का तो मुख्य रोजगार ही धर्म है, इसलिए यहां तो तीर्थयात्रा में सडक़ हादसों में लोग थोक में मरते रहते हैं, और तरह-तरह की भगदड़ मौतें भी होती रहती हैं। अब आखिर में हम एक बुनियादी बात यह उठाना चाहते हैं कि सत्तारूढ़ और विपक्षी पार्टियों की मेहरबानी न रहे, बड़े अफसरों का अपना निजी अंधविश्वास न रहे, तो न ऐसा अराजक जमघट कहीं हो सकता, और न ही थोक में ऐसी मौतें हो सकतीं। फिर धर्म के नाम पर और जितने किस्म के शोषण होते हैं, उनकी फेहरिस्त हादसों के साथ गिनाना ठीक नहीं है।

अगर जिला प्रशासन अपनी जिम्मेदारी पूरी करे, तो कहीं भी ऐसी मौतों की नौबत नहीं आ सकती। ऐसे धार्मिक या आध्यात्मिक आयोजन करने वाले लोगों की जवाबदेही तय की जानी चाहिए, किसी जगह की क्षमता को देखा जाना चाहिए, और जनसुरक्षा के इंतजाम कड़ाई से लागू करने चाहिए। लेकिन कभी-कभी ऐसा लगता है कि जिन नेताओं को ऐसी भीड़ सुहाती है, उन्हें शायद हादसों के बाद अपने आपको मददगार साबित करने का मौका भी सुहाता है। यह बात कुछ लोगों को बुरी लग सकती है लेकिन हकीकत यही है कि सत्ता हांकने वाले लोग ऐसे हादसों को रोकने में कोई बड़ी दिलचस्पी रखते नहीं दिखते हैं। आप भी इस बारे में सोचकर देखिए कि ऐसे अराजक आयोजनों को छूट देने वालों को ऐसे खतरों का क्या अंदाज नहीं रहता होगा?

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