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रूस में पीएम मोदी और पुतिन के गले मिलने पर क्यों हो रही है तीखी बहस
10-Jul-2024 5:42 PM
रूस में पीएम मोदी और पुतिन के गले मिलने पर क्यों हो रही है तीखी बहस

पीएम मोदी जब सोमवार को मॉस्को पहुँचे तो राष्ट्रपति पुतिन ने अपने घर पर गर्मजोशी से स्वागत किया। दोनों ने एक-दूसरे को गले भी लगाया।

पीएम मोदी और राष्ट्रपति पुतिन के गले लगने की तस्वीर पश्चिमी देशों के विश्लेषकों को रास नहीं आई और उन्होंने इसकी जमकर आलोचना की है।

दरअसल, इंटरनेशनल क्रिमिनल कोर्ट ने पुतिन के खिलाफ मार्च 2023 में यूक्रेन में हमले को लेकर अरेस्ट वॉरंट जारी किया था।

यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर ज़ेलेंस्की ने भी पीएम मोदी के पुतिन से गले मिलने पर मंगलवार को निशाना साधा था।

जेलेंस्की ने कहा था, ‘यह बहुत ही निराशाजनक है कि दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र दुनिया के खूनी अपराधी को गले लगा रहा है। वो भी तब जब यूक्रेन में बच्चों के अस्पताल पर जानलेवा हमला हुआ है।’

राष्ट्रपति जेलेंस्की की इस टिप्पणी की भारत में आलोचना भी हो रही है।

रूस में भारत के राजदूत रहे और भारत के पूर्व विदेश सचिव कंवल सिब्बल ने लिखा है, ‘मोदी ने जी-7 समिट में जेलेंस्की को भी गले लगाया था और जेलेंस्की पुतिन के बारे में जो राय रखते हैं, उसी तरह की राय रूस के लोग भी जेलेंस्की के बारे में रखते हैं। जेलेंस्की का यह अभिनय एक कॉमेडियन की तरह है न कि एक गंभीर राजनीतिक हस्ती की तरह।’

गले लगाने पर आपत्ति
पश्चिम के मीडिया का कहना है कि पीएम मोदी के रूस दौरे से पुतिन के खिलाफ प्रतिबंध का असर कमजोर पड़ा है।

पश्चिम यूक्रेन पर हमले के बाद से रूस को अलग-थलग करने की कोशिश कर रहा है लेकिन भारत पश्चिम की नीतियों के साथ खड़ा नहीं है।

थिंक टैंक रैंड कॉर्पोरेशन में इंडो-पैसिफिक के विशेषज्ञ डेरेक जे ग्रॉसमैन ने सात जुलाई को पीएम मोदी और राष्ट्रपति पुतिन के गले मिलने की पुरानी तस्वीर शेयर करते हुए लिखा था, ‘सोमवार को मोदी शायद ही पुतिन को गले लगाएंगे या चूमेंगे।’

लेकिन सोमवार की शाम पुतिन और मोदी के गले लगने की तस्वीर आई और इसे पीएम मोदी के एक्स अकाउंट से शेयर किया गया तो डेरेक ने लिखा, ‘मेरा अनुमान गलत था कि मोदी पुतिन को गले नहीं लगाएंगे। ’

डेरेक ने लिखा है, ‘पुतिन के एक युद्ध अपराधी हैं। मुझे लग रहा था कि भारत यूक्रेन के मामले में नैतिक रूप से मिसाल कायम करेगा। जैसा कि मैं पहले भी कई बार कह चुका हूँ कि भारत केवल अपने हितों पर भरोसा करता है।’ डेरेक ने पीएम मोदी और राष्ट्रपति पुतिन के गले लगने का वीडियो क्लिप शेयर करते हुए लिखा है, ‘क्या कहीं यूक्रेन है?’

पश्चिम के विश्लेषकों की उम्मीदें
डेरेक ने लिखा है, ‘मोदी और पुतिन का गले मिलना उसी तरह से है, जब अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने सऊदी अरब में जाकर वहाँ के क्राउन प्रिंस से हाथ मिलाया था। बाइडन और मोदी दोनों अपने-अपने देश को लोकतांत्रिक कहते हैं और उसके मूल्यों की बात करते हैं लेकिन दोनों अपने राष्ट्रीय हितों को सबसे ऊपर रखते हैं। यह हैरान करने वाला नहीं है लेकिन हमेशा अच्छे की उम्मीद की जाती है, खासकर लोकतांत्रिक देशों के बीच।’

सऊदी अरब के पत्रकार जमाल खाशोज्जी की जब तुर्की में हत्या हुई थी और इस हत्या में क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान के शामिल होने की बात की जा रही थी तब बाइडन ने कहा था कि वह इस मामले में सऊदी अरब को अलग-थलग होने पर मजबूर कर देंगे। लेकिन बाद में खुद बाइडन ही सऊदी अरब गए थे और क्राउन प्रिंस से हाथ मिलाया था। तब बाइडन की भी खूब आलोचना हो रही थी।

बाइडन राष्ट्रपति बनने के बाद जुलाई 2022 में पहली बार सऊदी अरब गए थे और उनके इस दौरे की काफी आलोचना हुई थी।

डेरेक ने लिखा है यूक्रेन में बच्चों के अस्पताल को रूस के बम से उड़ा देने के ठीक बाद पुतिन का मोदी से गले मिलना भारत के लिए राष्ट्रीय अपमान है। यह वास्तव में पुतिन के यूक्रेन पर आक्रमण शुरू करने के समय तत्कालीन पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान की अपमानजनक यात्रा की तरह है।

इमरान खान 2022 में प्रधानमंत्री रहते हुए तब रूस गए थे, जब रूस ने यूक्रेन पर हमला शुरू किया था। इमरान खान के भी इस दौरे की काफी आलोचना हुई थी।

पुतिन और मोदी के गले मिलने पर विदेश मामलों की जानकार वेलिना चाकारोवा ने ट्वीट किया है, ‘एक बार फिर से पश्चिम के विश्लेषक ग़लत साबित हुए हैं कि पुतिन और मोदी आपस में गले नहीं मिलेंगे। दरअसल वो इन संबंधों को बहुत कम जानते और समझते हैं।’

वेलिना की इस पोस्ट को रीपोस्ट करते हुए अमेरिका की आल्बनी यूनिवर्सिटी में राजनीतिक विज्ञान के प्रोफेसर क्रिस्टोफ क्लैरी ने एक तस्वीर पोस्ट की है, जिसमें नरेंद्र मोदी दुनिया भर के कई नेताओं को गले लगा रहे हैं।

क्लैरी ने इस तस्वीर के साथ लिखा है, ‘पश्चिम के विश्लेषक के रूप में मेरे लिए यह बात समझ से परे है कि कोई मोदी के गले लगने पर शर्त क्यों लगाता है।

क्लैरी कहना चाह रहे हैं कि मोदी दुनिया के कई बड़े नेताओं को गले लगा चुके हैं। ऐसे में पुतिन से गले मिलना चौंकाने वाला नहीं है।

थिंक टैंक विल्सन सेंटर में साउथ एशिया इंस्टिट्यूट के निदेशक माइकल कुगलमैन ने मोदी और पुतिन की मुलाकात के बाद जारी किए गए संयुक्त बयान को साझा करते हुए लिखा है, ‘अमेरिका के लिए यह सबसे चिंताजनक बात हो सकती है कि भारत में रूस रक्षा उपकरणों के उत्पादन को लेकर सहमत हुआ है।’

इस पर कंवल सिब्बल ने लिखा है, ‘क्या अमेरिका चाहता है कि भारत की रक्षा मशीनरी ठप पड़ जाए? क्या अमेरिका ये चाहता है कि भारत चीन के सामने लाचार दिखे? चीन अभी भारत के साथ सीमा पर आक्रामक है। अमेरिका के विश्लेषक आत्मकेंद्रित हो गए हैं और उन्हें इस बात का अंदाजा नहीं है कि दूसरे लोग किन हालात से गुजर रहे हैं।’

रूस और यूक्रेन के बीच फरवरी 2022 से युद्ध चल रहा है।

अमेरिका की डेलावेयर यूनिवर्सिटी में भारतीय मूल के प्रोफेसर डॉ. मुक्तदर खान ने मोदी- पुतिन की मुलाकात पर विस्तार से जिक्र किया है।

उन्होंने कहा एक वीडियो पोस्ट में कहा, ‘नेटो की बैठक से ठीक पहले भारत का रूस के साथ खड़े होना कई मायनों में अहम है। भारत दिखाना चाहता है कि वह रणनीतिक मामलों में फ़ैसला लेने के लिए स्वतंत्र है।’

भारत के लिए चुनौती
प्रोफेसर खान ने कहा, ‘मोदी और पुतिन की मुलाकात इस मायने में भी ख़ास है कि भारत अपने हथियारों की बड़ी जरूरत के लिए भले ही अमेरिका, इसराइल, फ्रांस और अन्य पश्चिमी देशों पर निर्भर करता है, लेकिन वह इस मामले में रूस से दूर नहीं जाना चाहता है।’

वहीं तन्वी मदान को लगता है कि रूस और भारत के संबंध भले ऐतिहासिक हैं लेकिन कई तरह की जटिलताएं भी हैं।

तन्वी मदान ने लिखा है, ‘मोदी अपने तीसरे कार्यकाल में पहले द्विपक्षीय यात्रा के लिए रूस को चुना लेकिन यह भी सच है कि भारतीय प्रधानमंत्री पिछले पाँच सालों से रूस नहीं गए थे और पिछले कुछ सालों से सालाना बैठक नहीं हो रही थी।’

‘मोदी ने रूस जाने का समय तब चुना जब अमेरिका नेटो समिट हो रहा था। हालांकि भारत सरकार कहती रही कि यह द्विपक्षीय दौरा है और उसी रूप में देखा जाना चाहिए। लेकिन इससे पहले मोदी जी-7 समिट में शामिल होने इटली गए थे।’

ये वही जी-7 है, जो कभी रूस के साथ जी-8 हुआ करता था लेकिन रूस को क्राइमिया पर कब्ज़े के कारण बाहर निकाल दिया गया था। रूस के साथ भारत का द्विपक्षीय कारोबार रिकॉर्ड पर है लेकिन व्यापार संतुलन भारत के पक्ष में नहीं है। भारत रूस से खरीद ज़्यादा रहा है और न के बराबर बेच रहा है।

यूक्रेन के साथ जंग के कारण रूस की निर्भरता चीन पर बढ़ी है और इस स्थिति को भारत के हक में नहीं बताया जा रहा है। ऐसे में भारत के लिए यह बड़ी चुनौती है कि चीन और रूस की बढ़ती करीबी के बीच अपनी जगह सुरक्षित रखे। (bbc.com/hindi)

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