संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : बाल-बाल बचे, जख्मी ट्रंप को देखकर क्या उनकी चहेती हथियार-लॉबी कुछ समझेगी?
14-Jul-2024 12:46 PM
‘छत्तीसगढ़’ का  संपादकीय : बाल-बाल बचे, जख्मी ट्रंप को देखकर क्या उनकी चहेती हथियार-लॉबी कुछ समझेगी?

अभी कुछ घंटे पहले अमरीका में एक चुनाव अभियान रैली के मंच पर भाषण दे रहे पूर्व राष्ट्रपति और अगले संभावित रिपब्लिकन उम्मीदवार डोनल्ड ट्रंप पर एक नौजवान ने गोली चलाई जो कि उनके कान को छेदते हुए निकल गई। यह सचमुच ही बाल-बाल बचने जैसी बात थी क्योंकि कान और सिर के बीच कोई फासला ही नहीं होता है, और एक-दो सेंटीमीटर का फर्क होने से ट्रंप वहीं पर खत्म हो चुके होते। यह बात तय है कि निशानेबाज नौजवान ने यह गोली ट्रंप को खत्म करने के लिए ही चलाई थी, और यह पेशेवर अंदाज में चलाई गई थी। बड़े जानकार निशानेबाज और हत्यारे सिर के इसी हिस्से में गोली मारते हैं, इसलिए यह किसी तरह का सोचा-समझा, या कमजोर नाटक नहीं था। अमरीका के सुरक्षा जानकार भी यह देखकर हक्का-बक्का हैं कि थॉमस मैथ्यू क्रुक्स नाम का यह नौजवान बिना किसी मिलिट्री पृष्ठभूमि के ऐसी गन लेकर, ऐसे पेशेवर अंदाज में मंच के सामने की तरफ दूरी पर एक छत पर लेटकर निशाना लगाते रहा, और सुरक्षा कर्मचारियों की उस पर नजर नहीं पड़ी। सुरक्षा इंतजाम की चूक कुछ और बातों से भी उजागर होती है कि इसे रायफल के साथ छत पर लेटे देखकर एक आदमी ने पुलिस को इसकी खबर की थी, और कुछ मिनटों तक कोई कार्रवाई नहीं हुई, और फिर गोलियां चलीं, पहले इस नौजवान ने ट्रंप पर एक या अधिक गोलियां चलाईं, और फिर सुरक्षा कर्मचारियों ने इसे गोलियां मारकर खत्म कर दिया। अमरीका की संघीय जांच एजेंसी एफबीआई ने कुछ घंटों के भीतर ही इस नौजवान की शिनाख्त उजागर की है क्योंकि जांच एजेंसी को इसके बारे में अधिक जानकारी की जरूरत है ताकि हत्या की इस कोशिश के पीछे की नीयत और मकसद तक पहुंचा जा सके। अभी तो अमरीका में राष्ट्रपति चुनाव के दोनों उम्मीदवार भी औपचारिक रूप से घोषित नहीं हुए हैं, और पूरा चुनाव अभियान अभी बाकी ही है। ऐसे में यह हमला कई सवाल खड़े करता है।

अमरीका में बंदूकों और पिस्तौलों की भयानक मौजूदगी हर किसी अमन-पसंद के लिए बहुत फिक्र का सामान रहते आई है। आंकड़े बताते हैं कि अमरीका में दुनिया के आबादी का चार फीसदी हिस्सा है, लेकिन नागरिक हथियारों के मामले में दुनिया के 46 फीसदी हथियार अमरीका में है। एक दूसरा आंकड़ा यह भी है कि अमरीका के तुरंत बाद के सबसे अधिक नागरिक-हथियारों वाले 25 देश मिलाकर भी उतने हथियार नहीं रखते जितने अकेले अमरीका में है। अमरीका में 40 फीसदी से अधिक घरों में कम से कम एक गन है। यहां आबादी से 20 फीसदी अधिक हथियार लोगों के पास है। अमरीका के जुर्म के आंकड़े बताते हैं कि यहां बंदूक-पिस्तौल से होने वाली मौतें दूसरे विकसित देशों के मुकाबले 18 गुना अधिक है। अमरीकी फिल्मों से लेकर दूसरे किस्म की सांस्कृतिक पहचान तक, वहां बंदूकें रखने का रिवाज है, और इसे मर्दाना ताकत का एक प्रतीक माना जाता है। अमरीका में हर कुछ दिनों में किसी न किसी सार्वजनिक जगह पर गोलीबारी में लोगों की मौत होती है, और 2019 में 414 ऐसी घटनाएं हुईं, और 2020 में 610, 2023 में 656 मास-शूटिंग हुईं, और 2024 में अब तक 295 शूटिंग हो चुकी है। मौजूदा राष्ट्रपति, डेमोक्रेटिक पार्टी के जो बाइडन लगातार गन-कंट्रोल की वकालत करते हुए लगे हुए हैं, वे हर सार्वजनिक गोलीबारी के बाद इसकी जरूरत गिनाते हैं, लेकिन वहां हथियार बनाने के कारखानेदारों की लॉबी इतनी मजबूत है कि वह कोई सरकारी नियंत्रण आने ही नहीं देती। खुद डोनल्ड ट्रंप और उनकी रिपब्लिकन पार्टी पूरी तरह से हथियारों की आजादी की पक्षधर है, और जहां-जहां रिपब्लिकन पार्टी के सम्मेलन होते हैं, वहां पर हथियारों की नुमाइश और बिक्री होती है क्योंकि इस पार्टी के सक्रिय-समर्थक हथियारों के शौकीन हैं। आज ट्रंप पर जो हमला हुआ है वह हमला जाहिर तौर पर किसी पेशेवर भाड़े के हत्यारे का किया हुआ नहीं दिखता है, बल्कि किसी विचलित नौजवान का हिंसक फैसला अधिक दिखता है, जिसने ट्रंप की तरफ कई गोलियां चलाई थीं, और जो रिपब्लिकन पार्टी के लोगों से नफरत करने की बात करता है। अब यह सोचने की बात है कि जहां घर-घर में इंसानों से अधिक बंदूकें हों, वहां पर किसी विचलित को किसी हिंसक गोलीबारी से कैसे रोका जा सकता है? हर बरस बहुत से लोग अपनी स्कूली जिंदगी के जख्मों की वजह से अपने स्कूल-कॉलेज पहुंचकर वहां बहुत से लोगों को मार डालते हैं, कुछ लोग किसी मॉल या शॉपिंग कॉम्पलेक्स में पहुंचकर वहां अपने को नापसंद धर्म या रंग के लोगों को मार डालते हैं। अब अगर बिना किसी पेशेवर हत्यारे के, आम लोग भी अगर राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार या भूतपूर्व राष्ट्रपति पर इतना घातक हमला कर सकते हैं कि मौत बस एक-दो सेंटीमीटर दूर से निकल गई, तो यह अमरीका में एक खतरनाक नौबत का सुबूत है। हथियारों को लेकर जिस समाज में एक दीवानगी है, जहां की फिल्में, टीवी प्रोग्राम, और सामाजिक माहौल बंदूकों को मर्दानी ताकत का एक विस्तार बताता हो, वहां पर हथियारों के ग्लैमर से बच पाना भी बड़ा मुश्किल होता होगा। अभी दो दिन पहले की ही खबर है कि अमरीका में अब राशन और रसोई के सामानों की दुकानों पर भी ऐसी ऑटोमेटिक मशीनें लग रही हैं जिनमें पैसा डालकर लोग अपनी बंदूकों के लिए गोलियां खरीद सकेंगे। अब यह काम चौबीसों घंटे फल-सब्जी, और अनाज खरीदने की तरह का आसान काम हो गया है। और ऐसी मशीनें अमरीका में बढ़ती चली जानी हैं।

कुल मिलाकर अमरीका की नागरिक-बंदूकों की हिंसा खुद अमरीका के लोगों को ही मार रही है, और इनमें तकरीबन सौ फीसदी लोग बेकसूर हैं जो कि हत्यारे को नापसंद भर है। इसलिए अमरीका के इस गन कल्चर से बाकी दुनिया को कोई परेशानी नहीं है, और इसका सबसे बड़ा नुकसान अमरीकी जिंदगियों का हो रहा है, खासकर ऐसी जिंदगियों का जो न तो किसी फौजी मोर्चे पर तैनात हैं, और न ही देश के भीतर मुजरिमों से लड़ रही हैं। आम नागरिक अपनी बंदूक के अहंकार में अपनी हिंसक सोच से दूसरे आम नागरिकों को मार रहे हैं, और इस पर रोक लगाने की किसी भी कोशिश को अमरीका के हथियार-उत्पादक कामयाब नहीं होने दे रहे हैं। किसी देश का पूंजीवाद, और उसमें किसी कारोबारी-लॉबी की कमाई की नीयत किस हद तक हत्यारी हो सकती है, अमरीका इसकी एक शानदार और भयानक मिसाल है। देखें कि बंदूकों को अपने शरीर की उत्तेजना के विकल्प और विस्तार की तरह इस्तेमाल करने वाले अमरीकी मर्द कभी इस खतरनाक मिजाज से उबर पाएंगे या नहीं?  (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक) 

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