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(सुमीर कौल)
श्रीनगर, 14 जुलाई। जम्मू-कश्मीर में सरकारी नौकरी देने के वास्ते योग्यता आधारित खुली प्रतिस्पर्धा के आधार पर भर्ती के लिए केवल 40 प्रतिशत पद आवंटित करने के फैसले से केंद्र शासित प्रदेश के युवाओं में व्यापक आक्रोश है।
आरक्षित कोटा को ध्यान में रखकर उठाए गए इस कदम का पूर्ववर्ती राज्य के विभिन्न जिलों में विरोध हुआ है।
आतंकवाद या अलगाववाद का समर्थन करने के पिछले माहौल के विपरीत कश्मीर घाटी और जम्मू के कुछ हिस्सों में युवा सरकारी नौकरियों में योग्यता आधारित खुली प्रतिस्पर्धा की मांग करते हुए सड़कों पर उतर आए हैं।
अवसरों में समानता की वकालत करने की दिशा में यह बदलाव आज के युवाओं के बीच भावना की एक नयी लहर को दर्शाता है।
युवाओं के आतंकवादी संगठनों या पाकिस्तान समर्थित समूहों में शामिल होने के लिए रहस्यमय तरीके से गायब होने के बारे में आलेख खोजने वाले लोगों को इन दिनों एक अलग माहौल देखने को मिल रहा है जहां युवा सरकारी नौकरियों में समानता चाहते हैं।
हालांकि कुछ युवा अब भी आतंकी समूहों में शामिल हो रहे हैं, लेकिन यह संख्या कम है।
युवाओं में असंतोष नीतिगत सुधारों की बढ़ती आवश्यकता को रेखांकित करता है जिसमें सभी अभ्यर्थियों की आकांक्षाओं और समान अवसर के सिद्धांतों का ध्यान रखा जाए।
चाहे वह राष्ट्रीय पात्रता सह प्रवेश परीक्षा (नीट), राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा (नेट), सीयूईटी हो या फिर यूपीएससी और जेकेएसएसबी की परीक्षाएं हों, घाटी में कॉफी शॉप पर लगातार चर्चा का विषय बनी हैं, जहां युवा सामान्य वर्ग के लिए सीट के लगातार घटते प्रतिशत पर अपनी निराशा व्यक्त कर रहे हैं।
हालांकि राजनीतिक दल निजी तौर पर सहमत हैं कि सामान्य वर्ग के अभ्यर्थियों के साथ यह ठीक नहीं है, लेकिन किसी ने भी सामने आकर खुले तौर पर उनका समर्थन नहीं किया है क्योंकि इससे उन्हें आरक्षित श्रेणियों के वोट का नुकसान होगा।
पीडीपी नेता वहीन पारा ने मई में सोशल मीडिया मंच ‘एक्स’ पर पोस्ट किया था कि नयी आरक्षण नीति ने अनगिनत बुद्धिमान छात्रों की योग्यता और आकांक्षाओं को कमतर कर दिया है तथा ‘योग्यतातंत्र’ को नष्ट कर दिया है।
हालांकि, छह घंटे बाद पीडीपी अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती द्वारा खुद को और पार्टी को उनके विचारों से अलग किए जाने के बाद उन्हें पोस्ट हटाना पड़ा।
साहिल पार्रे जैसी प्रमुख हस्तियां और विंकल शर्मा जैसे ‘यूथ अगेंस्ट करप्शन’ (वाईएसी) समूह के नेता घाटी में छात्रों और नौकरी चाहने वालों की चिंताओं को दूर करने के लिए स्थानीय राजनीतिक नेताओं के साथ सक्रिय रूप से जुड़े रहे हैं।
शर्मा और पार्रे इस मुद्दे पर श्रीनगर से नवनिर्वाचित लोकसभा सदस्य सैयद आगा रुल्ला मेहदी जैसे राजनीतिक नेताओं के साथ बैठकें करने में लगे हुए हैं। पार्रे भी वाईएएसी के नेता हैं।
नयी आरक्षण नीति के शर्मा जैसे आलोचकों ने जम्मू-कश्मीर में सामान्य वर्ग के लोगों के लिए सीमित अवसरों पर चिंताओं का हवाला देते हुए इस कदम को ‘‘योग्यता आधारित खुली प्रतिस्पर्धा के अभ्यर्थियों की हत्या’’ करार दिया है।
कश्मीरी छात्रों के हित का समर्थन करते हुए शर्मा ने कहा कि घाटी में कम से कम 70 प्रतिशत आबादी सामान्य श्रेणी के छात्रों की है। उन्होंने कहा, ‘‘अब योग्यता आधारित खुली प्रतिस्पर्धा के लिए सीमित पदों के आवंटन से केवल योग्यता के आधार पर अवसर हासिल करना अधिक चुनौतीपूर्ण हो गया है।’’
आरक्षण नीति को लेकर बहस तेज हो गई है क्योंकि जावेद डार और के. इम्तियाज जैसे लोग क्षेत्र में सरकारी रोजगार के सपनों के टूटने और सीमित संभावनाओं का डर व्यक्त करते हैं।
बारामूला के रहने वाले डार को लगता है कि केंद्र शासित प्रदेश की वर्तमान आरक्षण नीति उच्चतम न्यायालय के 1992 के इंद्रा साहनी फैसले के खिलाफ है जिसमें 50 प्रतिशत आरक्षण की सीमा तय की गई थी।
उन्होंने कहा, ‘‘नयी नीति में 60 प्रतिशत सरकारी नौकरियां और शैक्षिक सीट विभिन्न श्रेणियों के लिए आरक्षित की गई हैं जबकि 40 प्रतिशत सीट खुली प्रतिस्पर्धा के लिए छोड़ी गई हैं। इसके अतिरिक्त, 'क्रीमी लेयर' की अवधारणा को हटाने के बारे में चिंताएं मौजूद हैं, जो पहले से ही आरक्षित श्रेणियों के भीतर विशेषाधिकार का लाभ उठा रहे लोगों को बाहर कर देती है।’’
राजनीति विज्ञान में स्नातकोत्तर कर रहे छात्र इम्तियाज ने जम्मू-कश्मीर सरकार की नयी आरक्षण नीति पर कड़ी आपत्ति व्यक्त की क्योंकि उन्हें डर है कि यह नीति अनारक्षित वर्ग के छात्रों पर नकारात्मक प्रभाव डालेगी।
उनका तर्क है कि समाज के कुछ वर्गों का उत्थान महत्वपूर्ण है, लेकिन यह दूसरों की कीमत पर नहीं होना चाहिए। (भाषा)