विचार / लेख

हमारे ‘एंग्री यंग मैन’ लेखक प्रेमचंद
17-Jul-2024 4:31 PM
हमारे ‘एंग्री यंग मैन’ लेखक प्रेमचंद

अपूर्व गर्ग

बच्चे डायनामिक व्यक्तित्व पसंद करते हैं । आज के बच्चे स्मार्ट फ़ोन उठाकर अपने हीरो तलाश करते हैं ,उन्हें पढ़ते हैं।

हिंदी कम पढ़ते हैं तो हिंदी कहानियाँ कितनी पढ़ते होंगे ?

आज के बच्चों, युवाओं से उनके रूझान को देखकर बात करनी चाहिए ।उन्हें बताना चाहिए हिंदी साहित्य में एक से बढक़र एक ‘डायनामिक  पर्सनालिटी’ वाले लेखक हैं। जैसी उनकी कहानियाँ वैसा उनका व्यक्तित्व।

और सबसे पहले नाम आता है, प्रेमचंद का । सबसे पहले उन्हें प्रेमचंद की कहानियाँ ईदगाह , गुल्ली डंडा, कफऩ, दो बैलों की कथा,नमक का दरोगा, ठाकुर का कुआं जैसी कहानियाँ पढ़ते हुए बताइये ये विश्व प्रसिद्ध लेखक ही नहीं एक निडर, जीवट ,विद्रोही और बचपन से ही मजबूत रीढ़ वाला लेखक है ।

दरअसल, प्रेमचंद वो एंग्री यंग मैन हैं जो बचपन और युवावस्था से पूर्व ही बगावत का बिगुल फूंक चुके हैं ।

प्रेमचंद ने बचपन में अपनी पहली रचना अपने मामा के ज़ुल्म के खिलाफ लिखी थी । मामा का सारांश ये कि वो एक सफाई कर्मी महिला के साथ पकड़े जाते हैं। बाल प्रेमचंद को लगता है कि शायद ऐसे हरकत के बाद शर्मिंदा होकर उन्हें परेशान न करें पर उनके मामा के स्वभाव में उनके प्रति कोई परिवर्तन नहीं आता।

एक दिन प्रेमचंद उनकी करतूतों पर उनकी खिल्ली उड़ाता नाटक लिखकर घर में छोड़ स्कूल चले जाते हैं । मामा नाटक पढऩे के बाद उसे आग के हवाले कर रफ़ूचक्कर हो जाते हैं , कलम को हथियार बनाने का ये प्रेमचंद का पहला प्रतिरोध था जिसका स्वर ये है ‘कोई मुझे सता कर तो देखे मैं उसकी कैसी मिट्टी पलीद करता हूँ । ऐसी मार मारूंगा कि पानी भी नहीं मांगते बनेगा।’

1899  में मेट्रिक पास मजबूरी में उन्हें चुनार में मास्टरी करनी पड़ी । एक रोज़ स्कूल में मिलिट्री के गोरों के साथ स्कूल टीम का फुटबॉल मैच हुआ। अँगरेज़ ये मैच हार गए। जीत की ख़ुशी में स्कूल के बचूं ने हिप-हिप हुर्रे नारे लगाए। ये अंग्रेजों के लिए जले पर मिर्च जैसे था। उन्होंने कहा कालों के ये मज़ाल ! और स्कूल  के विद्यार्थी को बूट से ठोकर मारी। नौजवान प्रेमचंद ये देख रहे थे ।शरीर से वो मजबूत नहीं थे पर दिलेर थे। उन्होंने कहा 'इनकी यह हिम्मत । सिर्फ इसलिए  हम काले हैं, हिन्दुस्तानी हैं   ‘और मैदान में गाड़ी झंडी उठाकर गोरों पर टूट पड़े ।पूरा स्कूल ताज्जुब में कि कहानी-किस्सों में डूबे रहने वाले  शर्मीले बालक से नौजवान ने ऐसी पहल करी!!

दरअसल,  प्रेमचंद के लेखन में जो तेवर थे उनका व्यक्तित्व भी वैसा ही बगावती और क्रांतिकारी था।

आगे चलकर यही नौजवान प्रेमचंद सरकार नौकरी करते हुए कलेक्टर से टकरा जाते हैं। स्कूल समय के बाद अपने लेखन में डूबे प्रेमचंद ध्यान नहीं नहीं देते कि कब उनका अफसर गुजर गया।

अफसर आशा करता है प्रेमचंद उठकर सलाम करेंगे पर प्रेमचंद अपने अध्ययन में डूबे रहते हैं। अफसर अर्दली को भेजकर उनको बुलवाता है

‘ प्रेमचंद-कहिये क्या है ?

इंस्पेक्टर -तुम बड़े मगरूर हो। तुम्हारा अफसर दरवाज़े से निकल जाता है, उठकर सलाम भी नहीं करते ?

प्रेमचंद- मैं जब स्कूल में जाता हूँ तब नौकर हूँ । बाद में मैं अपने घर का बादशाह हूँ ।’

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