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राजपथ-जनपथ : रेल और सरगुजा
18-Jul-2024 4:29 PM
राजपथ-जनपथ : रेल और सरगुजा

रेल और सरगुजा 

सीएम विष्णुदेव साय ने केन्द्रीय रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव से मिलकर जिन चार रेल परियोजनाओं को मंजूरी देने का आग्रह किया है उनमें अंबिकापुर-बरवाडीह (झारखंड) रेल लाइन भी है। इस परियोजना पर करीब 9 हजार करोड़ रुपए खर्च अनुमानित है। मगर इस परियोजना को लेकर कई पेंच भी हैं। 

बताते हैं कि इस रेल परियोजना को लेकर पहले भी कसरत हुई थी। वर्ष-2017 में तत्कालीन केंद्रीय रेल राज्य मंत्री ने लोकसभा में साफ किया था कि वर्ष-2013-14 के रेल बजट में प्रस्तावित रेल परियोजना को शामिल किया गया था। उन्होंने यह भी बताया था कि नीति आयोग में इस शर्त पर सैद्धांतिक रूप से अनुमति दी थी कि रेलवे संबंधी राज्य से निशुल्क भूमि प्राप्त करे। और इस परियोजना को एक संयुक्त उपक्रम के रूप में विकसित करने के लिए कोल इंडिया से संपर्क करे। 

तत्कालीन रेल राज्य मंत्री ने बताया कि इस परियोजना के लिए न तो झारखंड और न ही छत्तीसगढ़ की सरकार लागत में भागीदारी के लिए आगे आई है। न ही इस परियोजना को संयुक्त उपक्रम के रूप में शुरू करने के लिए कोल इंडिया ने कोई जवाब दिया है। अंदर की खबर यह है कि सरगुजा इलाके के जनप्रतिनिधि अंबिकापुर-बरवाडीह रेल परियोजना के खिलाफ हैं। वजह यह है कि झारखंड का बरवाडीह इलाका धुर नक्सल प्रभावित है। इस इलाके में अक्सर कोई न कोई वारदात होते रहती है। 

यह भी बताया गया कि कोल इंडिया भी परियोजना में इसलिए रुचि नहीं ले रही है, कि वहां उनकी एक भी खदान नहीं है। इससे परे स्थानीय नेता अंबिकापुर-रेणुकूट (उत्तर प्रदेश) रेल परियोजना के लिए दबाव बनाए हुए हैं। इससे उत्तरी छत्तीसगढ़ का बनारस और फिर दिल्ली तक सीधा रेल संपर्क हो जाएगा। इस दिशा में काफी कोशिशें भी हुई है। इसमें सरगुजा सांसद चिंतामणि महाराज, और यूपी के दो सांसद भी रुचि दिखा रहे हैं। अगले दो महीने के भीतर इस मसले पर कोई ठोस फैसला होने की उम्मीद जताई जा रही है। देखना है आगे क्या होता है। 

दक्षिण के लिए क्राइटीरिया तय

रायपुर दक्षिण विधानसभा उपचुनाव के लिए भाजपा, और कांग्रेस में विचार मंथन चल रहा है। भाजपा में प्रत्याशी चयन के लिए मापदंड तय किए जा रहे हैं। अभी यह तय होना बाकी है कि व्यापारी वर्ग, ब्राह्मण अथवा ओबीसी में से कौन से वर्ग से प्रत्याशी बेहतर होगा। इस सिलसिले में पर्यवेक्षक भेजकर कार्यकर्ताओं से राय ली जाएगी। यह प्रक्रिया जल्द ही शुरू होगी।  
चर्चा है कि पार्टी के राष्ट्रीय नेतृत्व ने उपचुनाव को लेकर प्रदेश भाजपा नेतृत्व को सख्त हिदायत दी है। चूंकि यह उपचुनाव सरकार के कामकाज की परीक्षा की घड़ी भी है। इसलिए मंत्रियों को भी वार्डों की जिम्मेदारी दी जा सकती है। फिर भी भाजपा के कई नेता मानते हैं कि  प्रत्याशी चयन से लेकर चुनाव संचालन में बृजमोहन अग्रवाल की राय अहम होगी। फिलहाल तो बृजमोहन अग्रवाल ने अपने पत्ते नहीं खोले हैं। उनके दर्जनभर समर्थक टिकट की आस में वार्डों का भ्रमण कर रहे हैं। देखना है कि बृजमोहन किस पर दांव लगाते हैं।

सिंधी समाज में कुछ बेचैनी है कि विधानसभा चुनाव में भी उसे टिकट नहीं दी गई थी। अब सिन्धी समाज के भीतर बात चल रही है कि भाजपा से किसी भी सिंधी नेता के लिए टिकट मांगी जाये, जिसकी जीत की संभावना हो सकती है। ऐसा न होने पर म्युनिसिपल और पंचायत चुनाव में सिंधी-बहुल बस्तियों में बाहुबल दिखाया जा सकता है।

जय-वीरू और गब्बर 

दोस्तों के नाम पर कई जोड़े चर्चित रहे हैं, जय -वीरू, रंगा- बिल्ला आदि आदि। एक-दूसरे के लिए जान देने वाले इन दोस्तों की मिसालें चर्चा में रहीं हैं। राजधानी के  डाक कर्मी भी अपने दो साहबों की दोस्ती पर चर्चा करने से नहीं चूक रहे। रायपुर डाक संभाग के ये दोनों  ही अफसर  एक दूसरे से एक पद ऊपर नीचे हैं। संयोग देखिए दोनों ही अविभाज्य रायपुर जिले के मूल निवासी हैं। और इतना ही नहीं दोनों एक ही कॉलेज में पढ़े, नौकरी भी एक ही विभाग में लगी और अब एक साथ काम कर रहे। खूब छन भी रही है। अब इनके बीच एक गब्बर भी आ गया है। वह इतना दबंग है कि बड़े से बड़ा साहब भी उसका कुछ नहीं कर पा रहे। गब्बर से डाकघर के कर्मी और आम नागरिक भी परेशान हैं। वह खुली चुनौती देता है, जहां शिकायत करनी है कर लो। कोई कुछ नहीं कर पाएगा। मैं सभी साहबों की पोल जानता हूं। कौन कहां से कितना कमा रहा है, कौन बंगला बना रहा है। सबकी पोल खोल दूंगा। जन शिकायत के बाद भी गब्बर का तबादला तो किया मगर टाटीबंध से डब्ल्यूआरएस। यानी जय वीरू के बीच गब्बर की दहशत तो है। वैसे तबादलों को लेकर यह भी कहा जा रहा है कि बिना ट्रांसफर कमेटी बनाए ही कर दिए गए । जुगाड़ वाले 3-4 किमी दूर और बिना जुगाड़ वाले नगरी से बिलाईगढ़ खेते गए।

आज ट्रेन से उतरो, अक्टूबर में बैठना

रेलवे जोन से गुजरने वाली कुछ लोकल सहित लंबी दूरी वाली कुल 13 ट्रेनों में जनरल और स्लीपर कोच बढ़ाने की घोषणा की गई है। किसी में एक कोच तो किसी में दो। यह घोषणा अक्टूबर माह में लागू की जाएगी। ऑनलाइन वेटिंग टिकट अपने आप कैंसिल हो जाती है, मगर काउंटर से वेटिंग टिकट लेकर बैठने वाले यात्रियों को अभी से स्लीपर कोच से उतारना शुरू कर दिया गया है। नियम पहले से ही है, पर एसी में कड़ाई से लागू होता है, क्योंकि यहां टिकट कंफर्म कम हो पाते है। स्लीपर में वेटिंग क्लियर हो जाने की संभावना देखकर कुछ रियायत बरती जाती है। मगर जिन यात्रियों की वेटिंग टिकट कंफर्म नहीं होती, उनसे बाकी यात्रियों को परेशान हो जाते है। मगर, मजबूरी है। वेटिंग वाले अगर जनरल डिब्बों में घुसने की कोशिश करें, तो पांव रखने की जगह नहीं मिलती। प्राय: ऐसे यात्री अपने साथ सामान और परिवार भी लेकर चलते हैं। जनरल में जगह पाने की जंग हार जाते हैं।

एक जुलाई से स्लीपर में वेटिंग टिकट लेकर बैठने वाले यात्रियों को अगले स्टेशन पर उतारकर जनरल डिब्बों में भेजना शुरू कर दिया गया है। इस नियम के चलते यात्री रेलवे को कोस रहे हैं। उनका कहना है कि यदि स्लीपर बर्थ कंफर्म नहीं हो रही है तो कम से कम जनरल में तो इतनी जगह हो कि वे भीतर घुस पाएं। आखिर रेलवे ने भुगतान तो लिया ही है।
रेलवे ने एक और घोषणा की है कि दो साल के भीतर 10 हजार नॉन एसी कोच तैयार हो जाएंगे। इनमें से कितने कोच कंडम हो चुके डिब्बों की जगह लेंगे, साफ नहीं किया गया है।

लहाल तो गिनती की गाडिय़ों में अक्टूबर के जनरल कोच लगेंगे, जबकि बिलासपुर जोन से गुजरने और छूटने वाली गाडिय़ों की संख्या 230 है। पहले से ही जनरल यात्रियों का उनमें दबाव है। एक दो डिब्बे बढ़ जाने से स्लीपर के वेटिंग टिकट यात्रियों को खास राहत मिलेगी, ऐसा नहीं लगता। कुछ टीटीई ले देकर मेहरबानी जरूर कर रहे हैं, पर वेटिंग वाले यात्रियों को नए नियम ने मुसीबत में डाल दिया है।

किंग कोबरा की तलाश

किंग कोबरा दुनिया के सबसे विषैली सर्प प्रजातियों में से एक है। हिमालय की तलहटी, तराई, पश्चिमी और कुछ पूर्वोत्तर राज्यों में इसे देखा गया है। पर मध्यभारत में कोरबा ही ऐसा एक जिला है, जहां यह सांप पाया जाता है। एक बार 23 फीट लंबा किंग कोबरा देखने का दावा कुछ लोगों ने किया था। हालांकि इसकी लंबाई 13 फुट तक मानी जाती है। कोबरा विलुप्त होती सर्प प्रजाति है। पर इसे देखना रोमांचक होता है। जैव विविधता में इसका बड़ा योगदान है। इस बारिश में फिर जब सांपों के निकलने का सिलसिला चल पड़ा है, कोरबा में वन विभाग के अधिकारी किंग कोबरा की तलाश कर रहे हैं। छत्तीसगढ़ के नंदन वन, जंगल सफारी, कानन पेंडारी कहीं पर भी किंग कोबरा नहीं है। पर अब कोरबा में फॉरेस्ट के अधिकारी कोशिश कर रहे हैं किंग कोबरा और सांपों की दूसरी कम दिखने वाली प्रजातियों को लेकर एक स्नैक पार्क तैयार किया जाए। इस पार्क को जंगल के भीतर ही बनाने की योजना है। लोगों से अपील की जा रही है कि इस दुर्लभ सांप को मारे नहीं। दिखे तो वन विभाग को खबर करें। फिलहाल दिखा नहीं है।

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