विचार / लेख
-Kanupriya
पिछले महीने एक महिला पत्रकार की क्लिप वायरल थी जिसमें राहुल ने उन्हें जवाब देने से मना कर दिया था कि आप किसकी तरफ़ से सवाल पूछ रही हैं मुझे पता है. उस महिला पत्रकार ने ख़ुद के असली पत्रकार होने का दावा करते हुए राहुल की आलोचना की, बहुत से लोग सिम्पथी में और नेताओं की जवाबदेही की चिंता करते हुए उसके साथ खड़े हुए. फिर कुछ clips वायरल हुईं जिसमें उस महिला पत्रकार की पक्षधरता साफ़ नज़र आई कि कैसे वो वाक़ई कई मौक़ों पर पत्रकारिता नही कर रही थीं बल्कि paid media की तरह व्यवहार कर रही थीं.
अब आज अखिलेश की क्लिप वायरल है जिसमें वो सीधे पत्रकार/ मीडिया कर्मी को बीजेपी का बता रहे हैं और जवाब देने से मना कर रहे हैं.
एक मन की बात करने वाले नेता ने पत्रकारों की सम्पूर्ण उपेक्षा की उन्हें बिका हुआ मीडिया कह कर, मज़ेदार बात ये है कि न इससे उस नेता की विश्वनीयता पर ख़तरा आया और न मीडिया ने ही इस स्पष्ट बॉयकाट पर हल्ला मचाया, मीडिया का काम महज विपक्ष से सवाल पूछना रह गया. For the sake of saving one sided journalism विपक्ष ने हमेशा ख़ुद पर उठते सवालों का जवाब दिया और इस जवाबदेही को उनकी जिम्मेदारी माना गया.
अब विपक्ष के नेता भी one sidedness पर सीधी उँगली उठा रहे हैं, जवाब देने से मना कर रहे हैं, कल को यही कुर्सी पर आए तो यही कर सकते हैं, और तब इनके ख़िलाफ़ शोर उठेगा कि अवतार बाबू तो हर सवाल से बरी थे मगर जी आप नही हो सकते, नही तो आपमे और उनमें फ़र्क़ क्या? हालाँकि ऐसे सवालों को पूछने का हक़ उन्हें तो कतई नही होगा जिन्होंने 10 साल पत्रकारिता की गिरती साख पर चुप्पी साधे रखी, उन्हें पहले अपनी नागरिकता पर काम करना ज़रूरी है जो सिर्फ कागज़ से नही आती.
मगर मीडिया को भी कहीं न कहीं सोचना चाहिए कि उनके पास हमेशा ये सहूलियत नहीं रहने वाली कि जब चाहे बिक जाएँ और जब चाहे पत्रकारिता का गर्व अपनी स्लीव पर पहन लें. धिक्कारे तो वो जाएँगे ही, और इसमें घुन के साथ गेहूं भी पिस सकता है.
आज जो विपक्ष में हैं उन्ही से उम्मीद है कि वो आज भी और कल कुर्सी पर आएँ तो अपनी जवाबदेही बनाए रखें, जनता के चुनने का सम्मान करें क्योंकि इस देश के मीडिया ने तो अपनी साख इस कदर खो दी है कि दुरदुराये जाते हैं तो लोग मानते हैं कि इसी क़ाबिल हैं.