संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का विशेष संपादकीय : इन मूढ़ प्रदेश-सरकारों की सोच-समझ पर धिक्कार है
19-Jul-2024 7:03 PM
 ‘छत्तीसगढ़’ का  विशेष संपादकीय :   इन मूढ़ प्रदेश-सरकारों की  सोच-समझ पर धिक्कार है

तस्वीर / सोशल मीडिया

-सुनील कुमार

संसद में नए सांसदों के शपथ ग्रहण के दौरान जब देश की एक मुस्लिम पार्टी एआईएमआईएम के मुखिया असदुद्दीन ओवैसी ने शपथ के तुरंत बाद जय भीम, जय तेलंगाना, जय फिलीस्तीन का नारा लगाया, तो भाजपा के सांसदों ने इस पर आपत्ति की, और आसंदी पर बैठे राधा मोहन सिंह ने कहा कि विवादास्पद नारे को संसद के रिकॉर्ड से हटा दिया जाएगा। सदन में कुछ मिनट तक ओवैसी के जय फिलीस्तीन के नारे पर हंगामा चलते रहा। इस पर ओवैसी का कहना था कि उन्होंने संविधान का कोई उल्लंघन नहीं किया। उन्होंने कहा कि अन्य सदस्यों ने भी कई तरह की बातें कही है, जाहिर है कि वे कई सदस्यों के धर्म और हिन्दू राष्ट्र के नारों के बारे में बोल रहे थे। सदन के बाहर ओवैसी ने यह साफ किया था कि उन्होंने फिलीस्तीनियों का जिक्र इसलिए किया कि आज वे जुल्म के शिकार हैं। फिलीस्तीन के उनके जिक्र को लेकर देश में कई लोगों ने एक हस्ताक्षर अभियान शुरू किया जिसमें यह मांग की गई कि उनकी संसद की सदस्यता खत्म की जाए। ओवैसी का ऐसी तमाम बातों पर यही कहना था कि महात्मा गांधी ने फिलीस्तीन के बारे में क्या कहा था, यह पढऩा चाहिए। यह इतिहास में अच्छी तरह दर्ज है कि गांधी फिलीस्तीन के हक के हिमायती थे।

उस वक्त हमने इस बात पर नहीं लिखा था, जब संसद में शपथ ग्रहण हुई थी। लेकिन कल मुहर्रम के जुलूसों में कहीं-कहीं फिलीस्तीन का झंडा लहराया गया, तो इस पर मध्यप्रदेश के खंडवा सहित कुछ और जगहों पर बजरंग दल के लोगों ने शिकायत की कि ताजिये के जुलूस में कोई फिलीस्तीनी झंडा लेकर घूम रहा था, इस पर कड़ी कार्रवाई की जाए। उन्होंने इसे देशद्रोह करार दिया, और कहा कि पूरे देश में ऐसा किया गया है। कार्रवाई की खबरें कई जगहों से आईं, और कुछ जगहों पर तो लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया, जिनमें बिहार भी शामिल है जहां पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के जेडीयू को मुस्लिमों के प्रति हमदर्दी रखने वाला माना जाता था। इस बारे में बिहार के एक नेता, भाकपा-माले के महासचिव दीपंकर भट्टाचार्य ने कहा है कि फिलीस्तीन का झंडा फहराना अपराध नहीं है। वहां एक लाख से अधिक लोगों की मौत हुई है, उनका समर्थन करना मानवता की मांग है।

जो लोग फिलीस्तीन के नारे या फिलीस्तीन के झंडे को देशद्रोह करार दे रहे हैं उन्हें गांधी ने 1938 में अपने अखबार में एक संपादकीय में लिखा था- यहूदियों के साथ गहरी मित्रता भी मुझे न्याय देखने से नहीं रोक सकती है, इसलिए फिलीस्तीन की जमीन पर यहूदियों की अपने राष्ट्रीय घर की मांग मुझे जंचती नहीं है। इसके लिए बाइबिल का आधार ढूंढा जा रहा है, और फिर उसके आधार पर फिलीस्तीनी इलाके में लौटने की बात उठाई जा रही है। गांधी ने आगे लिखा- लेकिन जैसा दुनिया में सभी लोग करते हैं, वैसा ही यहूदी भी क्यों नहीं कर सकते कि वे जहां जनमें हैं, और जहां से अपनी रोजी-रोटी कमाते हैं उसे ही अपना घर मानें। गांधी का कहना था फिलीस्तीन की जगह उसी तरह अरबों की है जिस तरह इंग्लैंड अंग्रेजों का है, और फ्रांस फ्रांसीसियों का। उन्होंने लिखा यह भी गलत होगा, और अमानवीय भी, कि यहूदियों को अरबों (फिलीस्तीनियों) पर जबरन थोप दिया जाए। अगर यहूदियों को फिलीस्तीन की जगह ही चाहिए, तो क्या उन्हें यह अच्छा लगेगा कि दुनिया की उन सभी जगहों से उन्हें जबरन हटाया जाए जहां पर वे आज हैं, या कि वे अपने मनमौज के लिए अपने दो घर चाहते हैं?

यह अकेला मौका नहीं था जब गांधी ने फिलीस्तीनियों के हक की वकालत करते हुए इजराइलियों की जमकर आलोचना की थी। लेकिन हिन्दुस्तान में जो तबका आज फिलीस्तीनी झंडों को देशद्रोह बता रहा है, और इस देश की कई मूढ़ राज्य सरकारें फिलीस्तीनी झंडे पर लोगों को गिरफ्तार कर रही हैं, वे शायद गांधी के बारे में सुनना भी नहीं चाहेंगी। बजरंग दल, और ऐसे दूसरे संगठन तो बिना फिलीस्तीनी झंडे के भी महज यह पता लगने पर कि गांधी ने फिलीस्तीन का साथ दिया था, वे पल भर में फिलीस्तीनी-विरोधी हो सकते हैं। लेकिन उनके साथ एक सबसे बड़ी सहूलियत यह है कि उन्हें सच्चे इतिहास को पढऩे की जहमत नहीं उठानी पड़ती। इसीलिए फिलीस्तीनी झंडे को देशद्रोह बताने वाले मूढ़ लोगों को यह नहीं पता है कि भाजपा के इतिहास के सबसे बड़े सर्वमान्य नेता अटल बिहारी वाजपेयी ने जनता पार्टी सरकार में विदेश मंत्री की हैसियत से एक भीड़भरी आमसभा में मंच से माईक पर कहा था- एक गलतफहमी यह पैदा की जा रही है कि जनता पार्टी की सरकार बन गई, वह अरबों का साथ नहीं देगी, इजराइल का साथ देगी। प्रधानमंत्री मोरारजी भाई इस बात को स्पष्ट कर चुके हैं, मैं स्थिति को स्पष्ट करने के लिए कहना चाहता हूं कि मध्य-पूर्व के बारे में यह स्थिति साफ है कि अरबों की जिस जमीन पर इजराइल कब्जा करके बैठा है, वह जमीन उसको खाली करनी होगी। (वाजपेयी की इस बात पर आमसभा में जमकर तालियां बजती हैं) उन्होंने आगे कहा- आक्रमणकारी आक्रमण से मिले फायदों का उपभोग करे, यह हमें अपने संबंध में स्वीकार नहीं है, तो जो नियम हम पर लागू है, वह औरों पर भी लागू होगा। उन्होंने आगे कहा- अरबों की जमीन खाली होना चाहिए, जो फिलीस्तीनी हैं उनके जायज हक कायम किए जाएं। मध्य-पूर्व का एक ऐसा हल निकालना पड़ेगा जिसमें आक्रमण से पैदा हुई नौबत वापिस की जाए।

फिलीस्तीन दुनिया के मंच पर हमेशा से हिन्दुस्तान का हिमायती रहा है, और हाल के बरसों तक हिन्दुस्तान की खास हमदर्दी फिलीस्तीन के साथ बनी हुई थी। हाल के बरसों में, भारत इजराइल के कुल निर्यात का सबसे बड़ा इम्पोर्टर बन गया है, और ये कारोबारी रिश्ते भारत को एक गरीब फिलीस्तीन से कुछ दूर ले गए हैं। फिर भी भारत इस इजराइली हमले के बीच भी फिलीस्तीनियों को कुछ मदद भेज चुका है। फिलीस्तीन भारत का शत्रु राष्ट्र नहीं है कि जिसके झंडे फहराने को भारत में देशद्रोह कहा जाए। दुनिया मेें बड़े-बड़े खेलों के मुकाबलों में कई देशों की टीमों ने फिलीस्तीनियों के झंडे उठाए हुए स्टेडियम में प्रदर्शन किए हैं, कई टीमों ने अपनी जर्सी पर एक के अंक को फिलीस्तीन की गाजा पट्टी के नक्शे की तरह का बनाया है, और अमरीका के दो दर्जन विश्वविद्यालय सहित पश्चिम के कई लोकतंत्रों में फिलीस्तीन के समर्थन में, और इजराइल के खिलाफ जमकर प्रदर्शन हुए हैं। जाहिर तौर पर फिलीस्तीन में मरने वाले तकरीबन तमाम लोग मुस्लिम हैं, इसलिए दुनिया के मुस्लिमों की एक स्वाभाविक हमदर्दी फिलीस्तीनियों के साथ है, लेकिन मुस्लिमों से परे भी सभी धर्मों के लोग, खुद इजराइल के यहूदी लोगों में से बहुत से प्रमुख लोग भी फिलीस्तीनियों के जनसंहार के खिलाफ खड़े हुए हैं। ऐसे में अगर मुस्लिमों के एक मातमी त्यौहार मुहर्रम पर अगर फिलीस्तीन के झंडे फहराए गए, तो यह न तो देशद्रोह है, न भारत की सरकार का कोई विरोध है, न यह भारत की घरेलू राजनीति का कोई मुद्दा है। अगर हिन्दुस्तान के लिए वफादार होने का मतलब बाकी दुनिया के सबसे बड़े जुल्मों से अपने आपको जुदा रखना है, तो इसका मतलब तो हिन्दुस्तान को जुल्मों का हिमायती और भागीदार ठहराना हो जाएगा। कोई भी जिम्मेदार लोकतंत्र दुनिया के इतने बड़े मुद्दों से अपने को अलग रखकर अछूते नहीं बैठे रह सकते। आज की दुनिया में जो जिम्मेदार देश हैं, उनमें दक्षिण अफ्रीका और ब्राजील सरीखे देश अंतरराष्ट्रीय अदालतों में इजराइल के खिलाफ गए हैं कि वहां के प्रधानमंत्री को युद्ध अपराधी घोषित करके उसके खिलाफ अंतरराष्ट्रीय गिरफ्तारी वारंट निकाला जाए। इन दोनों ही देशों में कोई मुस्लिम आबादी नहीं है, इनका फिलीस्तीन से कोई कारोबारी रिश्ता भी नहीं है, लेकिन ये देश जिम्मेदार लोकतंत्र हैं। फिलीस्तीन के मुद्दे पर अपने होंठ सिलकर रखने वाले देशों और लोगों को अपने बारे में आईने में देखते हुए खुद सोचना चाहिए। फिलहाल हम उन सरकारों की अक्ल पर तरस खाते हैं जिन्होंने फिलीस्तीन का झंडा फहराने पर मुकदमे दर्ज किए हैं, और गिरफ्तारियां की हैं। ऐसा लगता है कि हिन्दुस्तान के कई प्रदेश आज इंसानियत की जिम्मेदारी निभाने को देशद्रोह मान रहे हैं, और उनमें इतनी समझ तो है नहीं कि ऐसा मानते हुए वे अपने देश को कैसा साबित कर रहे हैं। पिछले पौन बरस में 38 हजार से अधिक फिलीस्तीनियों को इजराइली फौजी हमलों में मार डाला गया है, जिनमें अधिकतर औरत-बच्चे हैं। इस पर भी अगर हिन्दुस्तान में कुछ आंखों में आंसू, और हाथों में फिलीस्तीनी झंडे देखना भी कुछ धर्मान्ध और साम्प्रदायिक लोगों को बर्दाश्त नहीं है, तो ये लोग गांधी के देश के तो हैं ही नहीं, ये लोग अटल बिहारी वाजपेयी के देश के भी नहीं हैं।

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