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-उमंग पोद्दार
कांवड़ यात्रा के मार्ग पर दुकानदारों के नाम सार्वजनिक तौर पर प्रदर्शित करने के उत्तराखण्ड और उत्तर प्रदेश प्रशासन के आदेश पर सुप्रीम कोर्ट ने अंतरिम रोक लगा दी है.
जस्टिस ऋषिकेश रॉय और जस्टिस एसवीएन भट्टी की दो जजों वाली पीठ ने ये आदेश दिया है.
इसके साथ ही पीठ ने कांवड़ यात्रा के मार्ग पर दुकानदारों के नाम सार्वजनिक करने के संबंध में उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश और मध्यप्रदेश सरकार को नोटिस जारी किया है.
इस मामले की अगली सुनवाई शुक्रवार को होगी.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि "वो निर्देशों को अमल में लाने पर रोक लगा रहा है, दूसरे शब्दों में कहें तो खाना बेचने वालों को ये बताना ज़रूरी है कि वो किस तरह का खाना दे रहे हैं, लेकिन उन पर मालिक या स्टाफ़ का नाम सार्वजनिक करने के लिए ज़ोर नहीं डाला जा सकता है."
कांवड़ यात्रा मार्ग पर दुकानदारों के नाम सार्वजनिक करने के दिशा-निर्देशों पर कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के नेताओं ने आपत्ति जताते हुए संबधित राज्यों की सरकारों की निंदा की थी और इसे विभाजनकारी कदम बताया था.
इस मामले में तृणमूल कांग्रेस की नेता महुआ मोइत्रा ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया था.
उनकी ओर से कोर्ट में वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी, एसोसिएशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ़ सिविल राइट्स की तरफ़ से वरिष्ठ वकील सीयू सिंह और याचिकाकर्ता अपूर्वानंद और आकार पटेल की तरफ़ से हुज़ेफ़ा अहमदी कोर्ट में पेश हुए.
लेकिन संबंधित राज्यों की तरफ़ से कोई वकील कोर्ट में मौजूद नहीं था.
इन सभी की मुख्य दलील ये थी कि 'आदेश से समानता के अधिकार, अस्पृश्यता और भेदभाव का निषेध और कोई पेशा या व्यापार करने के अधिकार का हनन होता है.'
अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि इस आदेश से जातिगत भेदभाव को बढ़ावा मिलता है.
उन्होंने तर्क दिया कि यदि कोई शाकाहार के नाम पर मांसाहार खिलाता है या साफ-सफाई के मानदंडों के अनुरूप काम नहीं करता है, तो उसके ख़िलाफ़ क़ानून बने हुए हैं.
उन्होंने इस आदेश की वजह से होने वाले परिणामों का भी ज़िक्र करते हुए कहा, “वो मालिक जो अल्पसंख्यक नहीं है, अपने यहां अल्पसंख्यकों को काम पर नहीं रखेंगे. ये तर्क कि मालिक और कर्मचारी अल्प-संख्यक नहीं होने चाहिए, तब तो इस तर्क के हिसाब से उन लोगों को भी अल्प-संख्यक नहीं होना चाहिए, जो फल-सब्ज़ी उगाते हैं.”
पीठ ने जब ये पूछा कि क्या संबंधित दिशा-निर्देश स्वैच्छिक हैं, वरिष्ठ वकील सीयू सिंह ने बताया कि दिशा-निर्देशों को नहीं मानने पर 2000 रुपये से 5000 रुपये तक जुर्माना लगाया जा सकता है.
वरिष्ठ वकील सिंघवी ने यहां तक कहा कि “कांवड़ यात्रा सदियों से हो रही है, ये कोई नई बात नहीं है.”
उन्होंने ये भी कहा कि “यदि कोई दुकानदार पैसा कमाना चाहता है तो वो इस तरह प्रचार कर सकते हैं कि उनके यहां बिना प्याज़-लहसुन का शाकाहारी खाना मिलता है.”
उनकी ये भी दलील थी कि फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड एक्ट और स्ट्रीट वेंडर्स एक्ट जैसे क़ानून मौजूद हैं, जिससे परोसे जाने वाले भोजन की गुणवत्ता सुनिश्चित की जाती है. इन क़ानूनों के तहत ये बताना होता है कि किस तरह का खाना बेचा जा रहा है, ये नहीं बताना होता कि किसे काम पर रखा गया है.
वहीं वरिष्ठ वकील हुजेफ़ा अहमदी ने कोर्ट का ध्यान इस ओर खींचा कि इन दिशा-निर्देशों को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री की तरफ़ से मंज़ूरी मिली हुई है.
उन्होंने ये भी कहा कि उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और मध्यप्रदेश में जिस तरह के दिशा-निर्देश जारी किए गए हैं, उसके और भी असर पड़ सकते हैं.
वरिष्ठ वकील सीयू सिंह ने तर्क दिया कि इन दिशा-निर्देशों का कोई वैधानिक आधार नहीं है. उन्होंने कहा, “इस आदेश के पीछे कोई तर्क नहीं है. फ़र्क इससे पड़ता है कि खाने में क्या परोसा गया है, ना कि इससे उसे किसने बनाया है.”
वहीं एसोसिएशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट्स ने अपनी याचिका में कहा था कि इन दिशा-निर्देशों से छुआछूत को लेकर गंभीर हालात पैदा हो गए हैं.
अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि इन दिशा-निर्देशों का सबसे बुरा असर ग़रीब वेंडर्स पर पड़ेगा.
सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा
इस मामले से जुड़ी याचिकाओं पर जस्टिस ऋषिकेश रॉय और जस्टिस एसवीएन भट्टी की दो जजों वाली पीठ सुनवाई कर रही है.
पीठ ने कहा, "इस विचार-विमर्श का सम्मान करते हुए, हमें लगता है कि इस तरह की गतिविधियों की मनाही के लिए एक अंतरिम आदेश जारी करना उचित होगा. दूसरे शब्दों में कहें, तो फूड-सेलर्स (जिनमें ढाबा मालिक, रेस्तरां मालिक, दुकानें, फल-सब्ज़ी विक्रेता शामिल हैं.) उनसे डिस्पले में ये बताने के लिए कहा जा सकता है कि वो क्या परोस रहे हैं, लेकिन उन्हें मालिक और कर्मचारियों की पहचान बताने के लिए विवश नहीं किया जाना चाहिए."
सुप्रीम कोर्ट ने इस सिलसिले में मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड सरकारों को नोटिस भी जारी किया है. सोमवार को हुई सुनवाई के दौरान इन राज्यों की तरफ़ से कोई वकील मौजूद नहीं था. मामले पर अगली सुनवाई शुक्रवार को होगी.
मुज़फ़्फ़रनगर में कांवड़ यात्रा मार्ग पर दुकानदारों के नाम सार्वजनिक करने के आदेश पर सुप्रीम कोर्ट की अंतरिम रोक लगाने के फ़ैसले पर तृणमूल कांग्रेस की नेता महुआ मोइत्रा ने समाचार एजेंसी पीटीआई से कहा, “ये भारतीय संविधान की विजय है, ये भारत के लोगों की जीत है. अब किसी दुकानदार को अपना और अपने कर्मचारियों के नाम डिसप्ले करने की ज़रूरत नहीं है.”
समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव ने संवाददाताओं से कहा, “सांप्रदायिक राजनीति का दीया फड़फड़ा रहा है, इस वजह से ये इस तरह के फ़ैसले ले रहे हैं. सांप्रदायिक राजनीति ख़त्म होने जा रही है और इसका दुख बीजेपी को है.”
उन्होंने कहा, “ये बड़ा संवेदनशील मुद्दा है और उत्तर प्रदेश में काफ़ी समय से देख रहे हैं कि अधिकारी किस तरह से राजनीतिक दलों का काम कर रहे हैं.”
कांग्रेस सांसद राजीव शुक्ला ने समाचार एजेंसी एएनआई से कहा, “सुप्रीम कोर्ट के इस फ़ैसले का दूरगामी संदेश जाएगा. इससे देश में समरसता और सामाजिक एकता कायम होगी. बेवजह जो विवाद राजनीतिक फ़ायदे के लिए छेड़ा गया, वो ख़त्म हो जाएगा.”
आम आदमी पार्टी के सांसद संजय सिंह ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर कहा समाचार एजेंसी एएनआई से कहा, “आप भारत में धर्म के नाम पर, जाति के नाम पर भेद नहीं कर सकते. इस तरह के फ़रमान जारी किए जा रहे हैं जैसे हिटलर के ज़माने में नाज़ीशाही का शासन था, वो आप हिंदुस्तान में शुरू करना चाहते हैं. सुप्रीम कोर्ट का ये फ़ैसला भारतीय संविधान और भारतीय लोकतंत्र के पक्ष में है.” (bbc.com/hindi)