विचार / लेख

अपने बच्चों को कम से कम किताबें दीजिए..
25-Jul-2024 3:37 PM
अपने बच्चों को कम से कम किताबें दीजिए..

-सिद्धार्थ ताबिश

आपको मेरी ये बात शायद थोड़ी अजीब लगे मगर इसे ध्यान से समझने की कोशिश कीजिए।

अपने नौजवान होते बच्चों को बहुत ही गूढ़, दार्शनिक, शिक्षाओं से भरपूर किताबों और फिल्म इत्यादि से बचाइए.. जितना हो सके उन्हें इस सब से दूर रखिए.. खासकर तब जब आपका बच्चा सीधे दिमाग़ का हो.. लड़कियां तो फिर भी छोटी उम्र में काफ़ी समझदार हो जाती हैं मगर लडक़े नहीं.. लडक़ों को इस सब से बचाना बहुत ही जरूरी होता है.. ये आपके या समाज के लिए नहीं बल्कि उनके ख़ुद के सर्वाइवल के लिए आवश्यक है।

इस जीवन का ये मेरा अपना अनुभव और निष्कर्ष ये है कि इस समय हम इंसानों की जितनी भी मानसिक और जीवन की दैनिक समस्याएं हैं उन सबका आधार कहीं न कहीं अधिक पढ़ाई, अधिक सोच और अत्यधिक दर्शन इत्यादि है.. और ये सब अब दिन पर दिन बढ़ता ही जा रहा है.. और हम इंसान इस समस्या की गंभीरता को नजऱंदाज़ करते चले जा रहे हैं।

अगर 14 या 16 साल की उम्र में आपका बच्चा वीगन बन रहा है तो ये कोई ख़ुशी की बात नहीं है, ये बता रहा है कि अत्यधिक किताबों और दार्शनिक बकलोली ने आपके बच्चे के दिमाग़ को पूरी तरह से चौपट कर दिया है.. और आपको अब उसे सारे दार्शनिक चोचलों से दूर करने का समय आ गया है.. अगर आपका नौजवान लडक़ा औरतों के पीरियड के दर्द को महसूस करने लगा है तो इसका अर्थ ये है कि उसकी दार्शनिक डोज़ बहुत अधिक हो चुकी है.. आपको अभी ये अच्छा लग रहा है और आपको लगेगा कि बड़े गर्व की बात है कि मेरा बेटा इतना समझदार है मगर यकीन मानिए ये बातें उसके भविष्य और सर्वाइवल के लिए बहुत घातक हैं

अपने नौजवान बच्चों को कम से कम किताबें दीजिए.. उन्हें दौडऩे दीजिए.. भागने दीजिए.. खेल कूद करने दीजिए और जितना हो सके शारीरिक मेहनत करने दीजिए.. उन्हें मस्तिष्क का बहुत अधिक इस्तेमाल करने से बचाइए.. जीवों के प्रति, प्रकृति के प्रति समझदारी भरी संवेदनशीलता ठीक है मगर वो संवेदनशीलता कब बेवकूफी बन जाती है ये हम और आप समझ नहीं पाते हैं.. अत्यधिक संवेदनशीलता बीमारी है, इस दौर में भी है और पहले के दौर में भी थी.. और किताबें इस बीमारी की मुख्य जननी होती हैं।

ज़्यादातर किताबें और कुछ नहीं बल्कि किसी लेखक का दिमाग़ी फितूर भर होती हैं.. वो व्यक्ति जिसने कभी प्रेम का ‘प’ भी न जाना हो वो प्रेम पर ग्रन्थ लिख सकता है.. और आप और आपके बच्चे उस प्रेम रहित व्यक्ति के ग्रन्थ को पढ़पर और उस पर बनी फिल्म को देखकर भावविभोर हो जाते हैं और जीवन में उसे उतारने का बेवकूफी भरा प्रयास करते हैं.. ऐसे ही सारे वो दर्शन हैं जो पूरी तरह से अप्राकृतिक होते हैं मगर उन पर इतनी किताबें लिख दी गई हैं कि अब वो सब सच और सही लगने लगा है.. जीवन की 99.9त्न किताबी बातें आपके और हमारे किसी काम की नहीं होती हैं.. हम और आप अपनी सारी जि़ंदगी अपनी परिस्थिति और वातावरण के अनुसार जीते हैं और उसी के अनुसार फैसले लेते हैं।

कम पढि़ए.. अधिक किताबें आपकी दोस्त नहीं बल्कि मानसिक दुश्मन होती हैं.. खासकर तब जब आपमें स्वयं निर्णय लेने की क्षमता न हो.. तब किताबें आपके लिए घातक होती हैं.. अपने बच्चों के बालमन को बहुत अधिक शिक्षा, दर्शन और सीख से बचाइए।

मेरी ये बात शायद आपको एकदम से समझ न आए मगर जब आप अपना जीवन और जीवन की दैनिक और पारिवारिक समस्याएं और दुख देखेंगे तब आप समझ जायेंगे कि वो सब मस्तिष्क जनित और किताबी ज्ञान पर आधारित हैं.. इस दौर की ज़्यादातर मानव समस्याएं अधिक पढ़ाई और अत्यधिक शिक्षा का नतीजा हैं.. अत्यधिक शिक्षा द्वारा हम धीरे धीरे मानवों को वेजिटेबल बनाते जा रहे हैं।

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