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यूक्रेन के बाद इजराइल में अमरीका का प्रॉक्सीवॉर?
04-Aug-2024 4:37 PM
यूक्रेन के बाद इजराइल में अमरीका का प्रॉक्सीवॉर?

फिलीस्तीन पर इजराइल के हमलों के बीच फिलीस्तीन के हिमायती लेबनान के हथियारबंद संगठन हिजबुल्ला, यमन से इजराइली जहाजों पर हमला करने वाले एक और हथियारबंद संगठन हूथी, और इनके पीछे बताए जा रहे ईरान तक अब इजराइली हमलों का विस्तार हो चुका है। अभी दो दिन पहले उसने कुछ घंटों के भीतर ही लेबनान में हिजबुल्ला के सबसे बड़े कमांडर को मार गिराया, और ईरान के राष्ट्रपति के शपथ ग्रहण में पहुंचे हुए फिलीस्तीनी हमास के मुखिया, और गाजा में प्रधानमंत्री रहे हुए इस्माइल हानिया को मार डाला। इसके साथ ही अब इजराइल पर ईरानी जवाबी हमले की आशंका को देखते हुए अमरीका ने अपनी बड़ी फौज उसे बचाने के लिए तैनात की है। ऐसा लगता है कि एक शहर गाजा पर इजराइल की चल रही फौजी कार्रवाई एक क्षेत्रीय संघर्ष में बदल सकती है, जिसमें अमरीका अपनी पूरी फौजी ताकत के साथ शामिल हो सकता है।

अब अमरीका की पूरी दुनिया में मौजूदगी को देखें तो यह बात साफ दिखती है कि रूस-यूक्रेन के बीच चल रही जंग में नाटो देशों की तरफ से अगुवाई करते अमरीका ने जिस तरह यूक्रेनी सैनिकों की जिंदगी दांव पर लगवाकर रूस की फौजी और आर्थिक ताकत को खोखला करने की कोशिश की है, कुछ उस तरह की कोशिश उसकी मध्य-पूर्व के इलाके में ईरान को खोखला करने के लिए भी हो सकती है। आज अगर अमरीकी फौजी ताकत के साथ इजराइल अपनी खुद की फौजों को लेकर ईरान से जंग के किसी मोर्चे पर आमने-सामने रहता है, तो इससे ईरान पर कुछ उसी तरह की चोट पड़ सकती है, जैसी कि अमरीकी कोशिशों के बावजूद भी रूस पर नहीं पड़ सकी। जिस तरह यह माना जा रहा है कि यूक्रेन के मोर्चे पर फौजी और आर्थिक मदद करके नाटो देश एक प्रॉक्सीवॉर लड़ रहे हैं, और रूस को भविष्य के किसी मोर्चे की नौबत आने के हिसाब से खोखला कर रहे हैं, कुछ वैसा ही खोखला ईरान को करने की चाहत अमरीका और इजराइल दोनों की लंबे समय से रही है। और जहां तक प्रॉक्सीवॉर की बात है, तो ईरान भी इजराइल के खिलाफ हमास, हिजबुल्ला, और हूथी के कंधों पर बंदूक रखकर प्रॉक्सीवॉर चला ही रहा है।

इस जटिल अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था में यह भी समझने की जरूरत है कि आज अमरीका का सबसे बड़ा प्रतिद्वंद्वी बना हुआ चीन यूक्रेन के मोर्चे पर पूरी तरह रूस के साथ है, और वह कुछ कम हद तक मध्य-पूर्व में ईरान के साथ हमदर्दी रखेगा, क्योंकि ईरान भी रूस के साथ गठजोड़ करते हुए अमरीका के खिलाफ है। इसलिए आज जो चीन सीधे-सीधे न तो यूक्रेन के मोर्चे पर फौजी लड़ाई में शामिल है, न ही वह ईरान-इजराइल मोर्चे में सीधे शामिल होगा, लेकिन इन दोनों ही मोर्चों पर अमरीकी हितों के खिलाफ चीन की सक्रियता, अमरीका की परेशानी का सबब तो होगा ही। इन दिनों दुनिया में जंग और कारोबार के मोर्चों में एक बड़ा जटिल अंतरसंबंध रहता है। चीन ने रूस को कोई फौजी मदद नहीं दी, लेकिन उसे आर्थिक रूप से अपने पैरों पर खड़ा रखने के लिए उसने सब कुछ किया। मध्य-पूर्व के देशों में अभी हाल में ही चीन ने अपनी बड़ी दखल दर्ज कराई, जब उसने बरसों की मेहनत के बाद सऊदी अरब और ईरान के बीच रिश्ते कायम करवाए। इस कामयाबी और नए गठबंधन में चीन ने अपनी जमीन पर बैठे-बैठे इन दोनों के रिश्ते सुधरवाए, और इनके बीच कूटनीतिक संबंध कायम हुए। इस महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक समझौते के बाद चीन का इस इलाके में एक नया महत्व कायम हुआ है।

आने वाली दुनिया में देशों और गठबंधनों के बीच जो नई व्यवस्था बनेगी, और नए रिश्ते कायम होंगे, उनमें अपनी सरहदों से परे इस तरह की मध्यस्थता का अपना एक बड़ा महत्व रहेगा, और इसमें चीन की एक कामयाबी के बाद कोई और कामयाबी उसे विश्व स्तर के एक बड़े खिलाड़ी का दर्जा दिला देगी। ऐसा लगता है कि इजराइल के कई तरफ खुल चुके मोर्चों में अमरीका इजराइल का परंपरागत साथ तो दे ही रहा है, उसके साथ-साथ वह मध्य-पूर्व में एक प्रॉक्सीवॉर खड़ा करने, और उसके नफे-नुकसान पर भी जरूर सोच रहा होगा। अफगानिस्तान में उसकी फौज और सरकार को जैसी भयानक शर्मनाक शिकस्त मिली है, उससे भी अमरीकी अहंकार तिलमिलाया हुआ होगा, और हो सकता है कि परमाणु हसरतों को पालने वाले इराक को कमजोर करने की अमरीकी हसरत भी इजराइल के बहाने पूरी हो रही हों। शायद यह भी एक वजह रही कि अमरीका एक तरफ तो लगातार इजराइल को युद्धविराम की नसीहतें देने का नाटक करते रहा, मलबा और कब्रिस्तान बन चुके गाजा पर फूडपैकेट गिराते रहा, और इसके साथ-साथ वह इजराइल को इतनी हथियार देते रहा, इतने बम देते रहा कि जिनसे हर फिलीस्तीनी को दस-दस बार मारा जा सके।

इसलिए आज इजराइल के तनाव को महज क्षेत्रीय तनाव मानकर चलना गलत होगा। ईरान के रहते इजराइल की फौजी हिफाजत की कोई गारंटी हो नहीं सकती, इसलिए भी शायद इजराइल को यह पसंद आ रहा हो कि फिलीस्तीन पर अपने जुल्म ढहाने के बाद वह उसमें मददगार अमरीका को लेबनान, यमन, और ईरान तक भी घसीटे। अमरीका को अपने परंपरागत दुश्मन, रूस, चीन, और ईरान से निपटने का एक मौका भी इजराइल की शक्ल में मिलता है, और इन तीनों देशों की फौजी ताकत को घटाना, अमरीका को एक सस्ता सौदा लग सकता है। उधर उसे प्रॉक्सीवॉर के लिए यूक्रेन मिला, और इधर इसी काम के लिए उसे इजराइल हासिल है। देखना है कि अपनी जमीन पर ऐसा अपमान झेलने के बाद ईरान किस तरह की जवाबी फौजी कार्रवाई करता है, और अमरीका इस मोर्चे पर किस हद तक शामिल होता है।   

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