संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : ...पड़ोस में हिन्दू-हिन्दुस्तानी विरोधी हिंसा का बड़ा खतरा
07-Aug-2024 4:30 PM
‘छत्तीसगढ़’ का  संपादकीय :  ...पड़ोस में हिन्दू-हिन्दुस्तानी विरोधी हिंसा का बड़ा खतरा

बांग्लादेश से प्रधानमंत्री शेख हसीना के हटने के साथ ही वहां उनके खिलाफ चल रहा आंदोलन अब कुछ दूसरे निशानों की तरफ मुड़ गया है। इसमें उनकी अवामी लीग पार्टी के नेता और पदाधिकारी तो हैं ही जिन्हें सरकार भी गिरफ्तार कर रही है, और हसीना विरोधी प्रदर्शनकारी भी उन्हें मार रहे हैं। कुछ भरोसेमंद समाचार माध्यमों की खबरों को देखें तो पता लगता है कि अवामी लीग के 20 नेताओं की लाशें मिली हैं, बांग्लादेश के 64 जिलों  में से करीब आधे जिलों में हिन्दुओं पर हमले हो रहे हैं। इसके पहले भी हमेशा ही बांग्लादेश में हिन्दू मंदिरों पर कभी-कभार हमले होते रहते थे, लेकिन अब हिन्दुओं के घर जलाए जा रहे हैं, उन्हें लूटा जा रहा है, और बांग्लादेश के एक मशहूर गायक राहुल आनंद का 140 साल पुराना घर भी लूटपाट के बाद जला दिया गया है। शेख हसीना के मंत्री और पार्टी के दूसरे नेता देश छोडक़र भाग रहे हैं, भारत से वहां पढऩे गए हुए छात्र कई दिनों से भारत लौटते आ रहे थे, और हिन्दुओं या भारतीय नागरिकों को वहां से निकालने का एक दबाव भारत सरकार पर बना हुआ है, लेकिन भारतीय विदेश मंत्री जयशंकर ने कल संसद में कहा है कि भारत सरकार बांग्लादेश के हालात पर नजर रखे हुए है। उन्होंने बताया कि बांग्लादेश में 19 हजार भारतीय नागरिक हैं, जिनमें से करीब 9 हजार छात्रों में से अधिकतर भारत लौट चुके हैं। उन्होंने बांग्लादेश को महत्वपूर्ण पड़ोसी देश बताते हुए कहा है कि बांग्लादेश के बारे में भारत में एक मजबूत राष्ट्रीय सहमति हमेशा से रही है। कल तक जयशंकर ने बांग्लादेश से हिन्दुओं या भारतीय नागरिकों को निकालने के किसी फैसले के बारे में कुछ नहीं कहा है। लेकिन कल से अब तक वहां लगातार जो वारदातें हो रही हैं, वे वहां भारतीयों और हिन्दुओं के खतरे में होने का संकेत है। वहां हिन्दुओं और हिन्दुस्तानियों को शेख हसीना का समर्थक माना जाता था, इसलिए वहां हसीना-विरोधियों की सोच इनके खिलाफ हमेशा से रहते आई है। 1992 में हिन्दुस्तान में बाबरी मस्जिद गिराए जाने के बाद बांग्लादेश में अलग-अलग वक्त पर हिन्दुओं के खिलाफ हिंसा होती रही है, और हिन्दू धर्मस्थलों को भी कई बार निशाना बनाया गया है।

आज की दुनिया तमाम धर्मों, देशों, नस्लों और नागरिकताओं के बीच जटिल अंतरसंबंधों की जगह बन चुकी है। विश्व राजनीति के एक सबसे बड़े भारतीय जानकार बाबा कहे जाने वाले रामदेव ने बांग्लादेश की आज की हालत पर एक बहुत ही अनोखी और मौलिक सोच सामने रखी है, और उन्होंने देश के पड़ोस में इस्लामिक कट्टरवाद के पहुंचने की चेतावनी देते हुए यह कहा है कि अगर भारत बांग्लादेश बना सकता है, तो हिन्दू भाईयों की रक्षा के लिए वहां दखल भी दे सकता है। आरएसएस ने भी उम्मीद जाहिर की है कि भारत सरकार बांग्लादेश में रह रहे हिन्दुओं की हिफाजत के लिए उचित कदम उठाएगी। दूसरी तरफ बांग्लादेश से जो खबरें आ रही हैं, और वहां की जो तस्वीरें दिख रही हैं, उनके मुताबिक जगह-जगह मुस्लिम समुदाय के लोग लाठियां लिए हुए हिन्दू मंदिरों और हिन्दुओं के घरों की हिफाजत में जुटे हुए हैं। वे रात-दिन वहां पर गश्त दे रहे हैं। इस बीच बांग्लादेश की बड़ी खबर यह है कि वहां के नोबल शांति पुरस्कार विजेता मो.युनूस को वहां फौज द्वारा बनाई गई अंतरिम सरकार का मुख्य सलाहकार बनाया गया है, और वहां आंदोलन कर रहे छात्रों की यह एक प्रमुख मांग थी, जिस पर युनूस ने यह कहा है कि वे इस मांग को भला कैसे ठुकरा सकते हैं। एक नोबल शांति पुरस्कार विजेता की सरकार देश में कैसे शांति स्थापित करती है, यह एक बड़ी चुनौती रहेगी। वे बांग्लादेश में सबसे कामयाबी से गरीब व्यापारियों के लिए माइक्रो फाइनेंसिंग शुरू करने वाली अर्थशास्त्री रहे हैं, और इसी योगदान के लिए उन्हें नोबल शांति पुरस्कार मिला था। लेकिन आज वहां चल रही हिंसा के बीच नोबल के पीछे का शांति का उनका योगदान पता नहीं कितना काम आ सकेगा।

जब किसी देश में लोकतंत्र कमजोर होता है, और कट्टरवादी ताकतें, या धर्मान्ध ताकतें सत्ता या कानून अपने हाथ में लेती हैं, तो वहां दूसरे धर्म के लोगों, दूसरी नागरिकता के लोगों की जिंदगियां खतरे में पड़ती हैं। हम अभी दुनिया में मुस्लिम आबादी वाले देशों को देख रहे थे तो इस्लामिक सहयोग संगठन के तहत आने वाले 57 मुस्लिम देश हैं जिनमें से 49 ऐसे हैं जहां पर मुस्लिम-बहुल आबादी है। हमने अलग-अलग तो इन देशों में हिन्दुस्तानियों की आबादी को, लेकिन हम सिर्फ मध्य-पूर्व के मुस्लिम देशों को देखें तो वहां कई देशों में 5 से 15 फीसदी तक हिन्दू आबादी है। और शायद ही कोई ऐसा मुस्लिम देश हो जहां पर हिन्दुस्तानी और हिन्दू न हों। इन देशों में बसे ये तमाम लोग अपने खुद के देश, हिन्दुस्तान की घटनाओं से वहां पर प्रभावित होते रहते हैं। और भारत में मुस्लिमविरोध की जो घटनाएं होती हैं, उनका असर जिस तरह आज बांग्लादेश में देखने मिल रहा है, उसी तरह और जगहों पर भी मुस्लिम-बहुल आबादी में, या सभ्य और विकसित लोकतंत्रों में उनका अलग-अलग असर देखने मिलता है। दूसरे देशों में बसे हुए हिन्दुस्तानियों को भारत की घरेलू घटनाओं का भुगतान करना पड़ता है। दुनिया में देशों की सरकारों के बीच कुछ घटनाओं को लेकर तनातनी सरकारी स्तर पर काबू में लाना आसान रहता है, लेकिन जब जनता के मन में नफरत या नाराजगी रहती है, तो उसे उतनी आसानी से मिटाया नहीं जा सकता। इसलिए सिर्फ आज बांग्लादेश की घटनाओं को देखकर नहीं, पूरी दुनिया के इतिहास को देखकर यह आसानी से कहा जा सकता है कि अपने घरों में सुरक्षित बैठे लोग अपने इलाकों में दूसरे धर्म, दूसरी जाति, या दूसरी राष्ट्रीयता, क्षेत्रीयता के लोगों पर जब हमले करते हैं, तो दूसरे बहुत से इलाकों में बसे हुए अपने बेकसूर लोगों पर हमलों का खतरा भी खड़ा करते हैं। आंख के बदले आंख निकाल लेने का सिलसिला पूरी दुनिया को अंधेरा करके छोड़ता है। बांग्लादेश की आज की हालत का कोई हिंसक जवाब देने के बजाय उसका एक सभ्य और लोकतांत्रिक, मानवीय और न्यायपूर्ण समाधान सोचना चाहिए, क्योंकि जवाबी हिंसा का सिलसिला सबको राख करके छोड़ता है।

बांग्लादेश भारत के लिए एक सबसे महत्वपूर्ण पड़ोसी है, और इस बात को चीन से बेहतर भला और कौन जान सकते हैं। भारत में यह चर्चा भी चल रही है कि क्या बांग्लादेश की ताजा बेचैनी के पीछे कुछ पश्चिमी ताकतों का भी हाथ है? ऐसी तमाम अंतरराष्ट्रीय दिलचस्पी वाले बांग्लादेश को भारत निश्चित ही बड़ी सावधानी से देख रहा होगा, और अपने देश की सरकार की सोच के खिलाफ जाकर हिन्दुस्तान के कुछ उत्साही नागरिकों को कुछ करना भी नहीं चाहिए।

(क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक) 

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