संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : बलात्कारों पर राजनीति से क्या यह जुल्म-जुर्म घटेगा?
18-Aug-2024 2:46 PM
‘छत्तीसगढ़’ का  संपादकीय : बलात्कारों पर राजनीति से क्या यह जुल्म-जुर्म घटेगा?

कोलकाता के एक सरकारी मेडिकल कॉलेज में 9 अगस्त को एक जूनियर डॉक्टर से रेप और उसकी हत्या का मामला न सिर्फ वहां के हाईकोर्ट में गूंज रहा है, बल्कि सीबीआई जांच से लेकर मुख्यमंत्री ममता बैनर्जी के सडक़ पर निकाले जुलूस तक दिखाई दे रहा है। पूरे देश में पिछले चौबीस घंटों में तमाम अस्पतालों और मेडिकल कॉलेजों में, डॉक्टरों के क्लीनिकों में इसकी छाया दिखाई पड़ी, और शायद ही कभी इसके पहले सारा का सारा भारतीय चिकित्सा जगत इतना विचलित हुआ हो। ड्यूटी पर काम कर रही महिला डॉक्टर से बलात्कार और हत्या से सभी हिले हुए हैं। ऊपर से ऐसे विचलित देश में जनभावनाओं के खिलाफ जाकर जब किसी राज्य की मुख्यमंत्री खुद ही विरोध-प्रदर्शन में जुट जाती है, तो इस रेप-हत्या पर राजनीति कुछ अधिक गरमाना स्वाभाविक हो जाता है। हालत यह है कि ममता के गिने-चुने हमदर्द लोगों से परे हर कोई पश्चिम बंगाल सरकार के खिलाफ कड़े तेवर लिए खड़े हैं, और अब यह मामला महज बलात्कार-हत्या का नहीं रह गया है, बल्कि सीबीआई जांच में नशे के कारोबार, और मानव अंगों के धंधे जैसी कई और चीजें भी सामने आ रही हैं। अलग-अलग प्रदेशों में राजनीतिक दल इसे लेकर ममता सरकार पर हमले कर रहे हैं, और एकाएक ऐसा लगने लगा है कि मानो देश के किसी और राज्य में बलात्कार हो ही नहीं रहे हैं। 

हम आज की ही खबरों को देख रहे हैं, तो भाजपा शासन वाले उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में पंजाब की एक नाबालिग लडक़ी से उत्तराखंड सरकार की बस में गैंगरेप का मामला सामने आया है, और इस मामले में बस ड्राइवर सहित छह लोगों को गिरफ्तार किया गया है, दूसरी तरफ बलात्कार की शिकार इस नाबालिग लडक़ी की हालत, और उसकी मानसिक हालत दोनों खराब बताई जा रही है। देश में कोई भी प्रदेश हो, किसी भी पार्टी की सरकार हो, बलात्कार होते ही रहते हैं। अधिक बड़ा मुद्दा तब बनता है जब सत्तारूढ़ पार्टी के खिलाफ कोई दूसरी पार्टी बहुत अधिक सक्रिय रहती है, और सत्तारूढ़ नेता कोई बयान देने में लापरवाही बरतकर आग में घी झोंकते हैं। ममता बैनर्जी के राज में जुबानी घी के अलावा पुलिस की कमजोर पकड़, सार्वजनिक हिंसा से भी मामला इतना बिगड़ा है कि हाईकोर्ट को एक के बाद एक मामला सीबीआई को देना पड़ रहा है। दो दिन पहले ही हमारे अखबार के यू-ट्यूब चैनल, इंडिया-आजकल पर यही सवाल उठाया गया था कि क्या बंगाल पुलिस की जगह किसी केन्द्रीय फोर्स को काम दे देना चाहिए, और उसी शाम वहां के हाईकोर्ट ने ममता सरकार की कटु आलोचना करते हुए अस्पताल में हिंसक प्रदर्शन की जांच भी सीबीआई को दे दी। 

अब हम बलात्कारों पर होने वाली राजनीति को कुछ देर के लिए अलग रखें, और देश की लड़कियों और महिलाओं के हित की बात करें, तो यह बात साफ है कि देश में हजारों बलात्कार ऐसे हो रहे हैं जिनमें मुजरिमों के पिछले जुर्म पर पुलिस ने कोई गंभीर कार्रवाई नहीं की, और उनका हौसला बढ़ा हुआ रहा। लोगों को पुलिस के भ्रष्टाचार, अदालत की कमजोरी, इन बातों पर इतना अधिक भरोसा रहता है, बलात्कार की शिकार को डराने-धमकाने की उनकी इतनी ताकत रहती है कि बलात्कार करते हुए उनके दिमाग में पल भर को भी बरसों की कैद नहीं आती है। अगर लोगों को पुलिस की ईमानदार, कड़ी, और तत्काल कार्रवाई का खतरा दिखे, अदालतों में तेजी से ईमानदार फैसला दिखे, तो बलात्कार तो दूर उनके बदन में उत्तेजना भी नहीं आ पाएगी। कानून व्यवस्था पर बहुत कमजोर अमल सेक्स-मुजरिमों को हौसला देता है, और इसी के चलते बहुत से बलात्कार होते हैं। अगर कोई यह सोचे कि पुलिस और अदालत के ऐसे ही ढीले-ढाले रवैये के चलते सेक्स-अपराध घट जाएंगे, तो उन्हें हकीकत का कोई अंदाज नहीं है। फिर जहां तक संसद और विधानसभाओं पर काबिज सरकारों और सत्तारूढ़ पार्टियों का सवाल है, वे कानून को और कड़ा करने, बलात्कार पर मौत की सजा जोडऩे जैसे दिखावे करके जनता की वाहवाही पाने की कोशिश करती हैं। लेकिन जब सिर्फ कानून कड़ा होते चलता है, और उस पर अमल ढीली होती चलती है, तो फिर जनता को लुभाने के लिए लिए गए ऐसे फैसलों का कोई असर नहीं होता। कुछ किस्म के बलात्कार पर मौत की सजा के प्रावधान से एक ही चीज होती है कि बलात्कार की शिकार को मार डालने के मामले बढ़ते चलते हैं। जब बलात्कार पर भी फांसी है, और बलात्कार-हत्या पर भी फांसी है, तो फिर सुबूत और गवाह छोड़े ही क्यों जाएं? 

अभी देश भर में ममता विरोधी ताकतें आसमान को सिर पर उठाकर चल रही थीं, और उत्तराखंड का यह सामूहिक बलात्कार सामने आ गया, और बिहार के मुजफ्फरपुर जिले में इसी बीच 14 बरस की दलित लडक़ी को सामूहिक बलात्कार के बाद मार डाला गया। हम बलात्कार को किसी पार्टी से जोडक़र तब तक नहीं चलते जब तक बलात्कारी सत्तारूढ़ पार्टी के न हों, या सत्तारूढ़ पार्टी बलात्कारियों को बचाने में न लग जाए। बिहार के इस मामले में तो इस लडक़ी की लाश मिलने के पांच दिन बाद भी पुलिस उन लोगों पर हाथ भी नहीं धर पाई है जिनके नाम लेकर इस मृत लडक़ी के परिवार वालों ने आरोप लगाया है। मुख्य आरोपी और उसके पांच साथियों में से पुलिस किसी को नहीं पकड़ पाई है। दलित परिवार का कहना है कि संजय राय नाम का एक आदमी अपने साथियों के साथ बलपूर्वक उनके घर में घुसा, और उनकी नाबालिग लडक़ी को बलपूर्वक अपने हवाले करने पर अड़ गया। दलित परिवार का कहना है कि इस इलाके में यादवों का दबदबा है, और लंबे समय से उन्हें मिल रही धमकियों पर भी वे कुछ नहीं कर सके, और न ही पंचायत ने उनकी शिकायत पर कुछ किया। 

बंगाल में ममता बैनर्जी एक संवेदनाशून्य मुख्यमंत्री बन चुकी हैं, और उन्हें बलात्कार की हर घटना में राजनीतिक साजिश दिखने लगती है। उनकी पुलिस परले दर्जे की नालायक हो चुकी है। और हाईकोर्ट ने यह ठीक ही किया जो कि बलात्कार और उसके बाद के प्रदर्शन मामलों को जांच के लिए सीबीआई को दे दिया। लेकिन उसी राजनीतिक दल को बंगाल के बलात्कार को राजनीतिक मुद्दा बनाने का हक है, जिनके अपने राज में कहीं बलात्कार नहीं हो रहे हों। कल छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर की पुलिस लाईन में एक किसी संस्था ने राखी का कार्यक्रम रखा था, और उसमें कोलकाता की मृतक मेडिकल छात्रा को श्रद्धांजलि देते हुए वर्दी में खड़े तमाम पुलिसवालों की तस्वीर आज छपी है। बंगाल के बलात्कार पर छत्तीसगढ़ पुलिस की सामूहिक श्रद्धांजलि यह सोचने पर मजबूर करती है कि भाजपा के राज वाले उत्तराखंड और बिहार के सामूहिक बलात्कारों को इस श्रद्धांजलि में क्यों शामिल नहीं किया गया, और क्या छत्तीसगढ़ में हर महीने होने वाले कई बलात्कारों को भी यहां की पुलिस इसी तरह श्रद्धांजलि देगी? या यह खास महत्व का दर्जा सिर्फ ममता-राज के लिए आरक्षित रखा गया है? 

(क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)

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