संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : कांग्रेस की नार्को टेस्ट की चुनौती एक साहसी कदम, इसे आगे बढ़ाया जाए...
25-Aug-2024 1:56 PM
‘छत्तीसगढ़’ का  संपादकीय : कांग्रेस की नार्को टेस्ट की चुनौती एक साहसी कदम, इसे आगे बढ़ाया जाए...

छत्तीसगढ़ के बलौदाबाजार में कुछ हफ्ते पहले सतनामी समाज के एक बड़े प्रदर्शन के बाद वहां कलेक्टर और एसपी के दफ्तर जला दिए गए थे जो कि हिन्दुस्तान के इतिहास में अपने किस्म का पहला ही मौका था। उस मामले में डेढ़-दो सौ लोगों की गिरफ्तारियां हुई हैं, लेकिन सबसे बड़े गिरफ्तारी कांग्रेस के विधायक देवेन्द्र यादव की है जो कि उस प्रदर्शन के मंच पर कुछ देर के लिए शामिल थे। उन पर राज्य की भाजपा सरकार की पुलिस ने यह आरोप लगाया है कि उन्होंने हिंसा भडक़ाई। इसे लेकर कांग्रेस ने पूरे प्रदेश में प्रदर्शन किया है, और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष, भूतपूर्व सांसद दीपक बैज ने सार्वजनिक रूप से कहा है कि इस मामले में कांग्रेस के तमाम नेताओं का नार्को टेस्ट करवा लिया जाए, पार्टी तैयार है, और इसके साथ-साथ प्रदेश के मुख्यमंत्री और गृहमंत्री का भी नार्को टेस्ट करवाया जाए। यह चुनौती आज उस वक्त आई है जब कोलकाता में चिकित्सा छात्रा की रेप-हत्या के मामले में सीबीआई ने सात लोगों का पॉलीग्राफ टेस्ट कराया है, जो कि झूठ पकडऩे के लिए किया जाता है। इसे बोलचाल की भाषा में लाईडिटेक्टर टेस्ट भी कहते हैं, जिसमें लोगों से सवाल करते हुए उनके दिल-दिमाग में होने वाले उतार-चढ़ाव को दर्ज किया जाता है, और उससे अंदाज लगाया जाता है कि वे सच बोल रहे हैं, या झूठ बोल रहे हैं।

हमारे नियमित पाठकों को याद होगा कि हमने अभी कुछ दिन पहले ही राजनीति, सार्वजनिक जीवन, और सरकारी कामकाज में एक-दूसरे पर लगने-लगाने वाली तोहमतों को लेकर यह सलाह दी थी कि जो लोग संवैधानिक पदों की शपथ लेकर जनता के बीच कोई ओहदे संभालते हैं, उन्हें काम संभालते हुए ही इस बात की सहमति दे देनी चाहिए कि अगर उन पर कोई तोहमत लगेगी, तो वे नार्को टेस्ट, या लाईडिटेक्टर टेस्ट पर सहमत रहेंगे। हमने कहा था कि जनता के पैसों पर बड़े ओहदे पाने वाले लोगों को जनता के प्रति इतनी जवाबदेही दिखानी चाहिए। अब जैसे छत्तीसगढ़ में ही दस बरस से अधिक हो गए, जब बस्तर की झीरम घाटी में एक बड़े नक्सल हमले में छत्तीसगढ़ कांग्रेस के बहुत से बड़े नेताओं को छांट-छांटकर नाम पूछकर गोली मारी गई थी, लेकिन कांग्रेस विधायक कवासी लखमा को नक्सलियों ने जाने दिया था। तब से लेकर अब तक यह विवाद चलते ही रहता है कि क्या कवासी लखमा नक्सलियों से मिले हुए थे? ये आरोप भी लगते रहते हैं कि क्या झीरम हमला कोई राजनीतिक साजिश थी जिसमें नक्सलियों को भाड़े के हत्यारों की तरह इस्तेमाल किया गया था? जब ऐसे मामले बयानबाजी की वजह से सुर्खियों में बने रहते हैं, तो फिर लोग केवल खबरें पढ़ते रह जाते हैं, उनके सामने सच नहीं आ पाता। अब जिस तरह अभी कोलकाता के मेडिकल कॉलेज अस्पताल में चिकित्सा छात्रा के रेप-हत्या मामले में पॉलीग्राफ जांच हो रही है, वैसी जांच हर राज्य में बहुत से मामलों में होना चाहिए जिससे तरह-तरह की तोहमतें खत्म हो सकेंगी।

हम छत्तीसगढ़ की ही बात करें, तो करीब छह बरस पहले जब विधानसभा के चुनावों की तैयारियां चल रही थीं, तब विपक्षी कांग्रेस ने कई अफसरों पर आरोप लगाने के पांच बरस पूरे कर लिए थे। फिर कांग्रेस की सरकार बनते ही उन अफसरों को बचाने, और उन्हें सत्ता का बाप बनाकर बिठाने के पांच बरस कांग्रेस ने पूरे किए। ऐसे कुछ अफसरों को कभी सबसे बड़ा बेईमान, और कभी सबसे काबिल शासक बना दिया गया, और अब वे एक बार फिर खलनायक की तरह कटघरे और जेल में हैं। दूसरी तरफ इनके ठीक खिलाफ के कुछ अफसर ऐसे भी हैं, जो कि पहले नायक थे, भूपेश सरकार के पांच बरस में खलनायक थे, और फिर नायक हो गए हैं। मतलब यह कि ऐसे अफसरों के खिलाफ अलग-अलग वक्त पर अलग-अलग तोहमतों में से कोई एक तो सही होगी, और कोई एक तो गलत होगी? इसलिए क्या ऐसे तमाम विवादास्पद लोगों का नार्को टेस्ट या पॉलीग्राफ टेस्ट नहीं होना चाहिए जिससे जनता के पैसों पर राज करने वाले इन लोगों की असलियत सामने आ सके? इनमें मंत्री भी हो सकते हैं, राज्यपाल या जज भी हो सकते हैं, अफसर तो हैं ही, और गंभीर आरोप लगाने वाले नेता भी हो सकते हैं। पिछले मुख्यमंत्री भूपेश बघेल लगातार यह कहते रहे कि झीरम घाटी के नक्सल हमले की साजिश के सुबूत उनकी जेब में हैं। अब प्रदेश के मुख्यमंत्री रहते हुए पांच बरस में भी अगर उन्होंने अपनी जेब में रखे सुबूतों का इस्तेमाल नहीं किया, तो यह बात तो संविधान की ली गई शपथ के खिलाफ रही कि इतनी बड़ी हत्यारी साजिश के सुबूत जेब में रखे वे संविधान की शपथ लेकर पांच साल सरकार चलाते रहे, लेकिन सुबूत उन्होंने न अपनी किसी एजेंसी में इस्तेमाल किए, न ही मामले की जांच कर रही एनआईए को दिए।

प्रदेश इस तरह के अनगिनत विवादों से घिरा हुआ है जो जनता की नजरों में कभी सुलझ ही नहीं पाए। अंतागढ़ में विधायक-उम्मीदवार खरीदी कांड से लेकर, प्रदेश के कई हत्याकांड, यहां का कोयला और शराब कांड, यहां का महादेव सट्टा कांड, इंदिरा प्रियदर्शिनी बैंक का घोटाला, और बहुत किस्म के राजनीतिक और आपराधिक जुर्म ऐसे हैं जो कि किसी किनारे पहुंच ही नहीं पाए। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष दीपक बैज ने यह बात कही तो है कि बलौदाबाजार हिंसा के संदर्भ में, उनकी यह चुनौती नैतिक रूप से तो हर आरोप पर लागू होनी चाहिए, और जग्गी हत्याकांड से लेकर नान घोटाले तक, और पिछले पांच बरस के अनगिनत घोटालों और जुर्मों तक छत्तीसगढ़ की अदालतों से सुप्रीम कोर्ट तक का अंतहीन समय बर्बाद हो रहा है, और केन्द्र और राज्य की जांच एजेंसियों पर भी जनता का पैसा जाया हो रहा है। इन सबसे बचने के लिए सार्वजनिक जीवन का तकाजा यह है कि दोनों पार्टियों के तमाम संबंधित नेताओं, और आरोपों से घिरे हुए तमाम अफसरों से कहा जाए कि वे नार्को टेस्ट, पॉलीग्राफी टेस्ट, वगैरह करवाने पर सहमति दें, ताकि जनता के बीच सच उजागर हो सके, और आरोपों का कीचड़ एक-दूसरे पर फेंकना बंद हो सके। दीपक बैज ने बहुत अच्छा प्रस्ताव रखा है, और उनकी पार्टी को इसमें पहल करना चाहिए। बलौदाबाजार की हिंसा तो एक मामला है, बहुत से दूसरे मामले अदालतों में अलग-अलग जगह तक पहुंचे हुए हैं, और दीपक बैज को अपनी पार्टी की पिछली सरकार के जिम्मेदार लोगों की भी सहमति जुटाकर सरकार और जांच एजेंसियां को देनी चाहिए, और फिर इसके साथ-साथ यह मांग भी रखनी चाहिए कि भाजपा के नेता, मंत्री, और संबंधित अफसर भी सच का सामना करने के लिए तैयार हों।

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