विचार / लेख
मज़दूरों ने अपने गांव लौटकर अपनी आपबीती लोगों को सुनाई
- दिलीप कुमार शर्मा
24 साल के असम के राजीबुल हक़ नाराजगी और हताशा से सवाल पूछते हैं, क्या हम भारत के नागरिक नहीं हैं, हमारी हिफाजत कौन करेगा?
वो अपनी आपबीती बताते हैं, हम लोग रोज़ी रोटी के लिए काम करने ऊपरी असम गए थे। तीन साल से चराईदेव के धोलेबाग़ान में काम कर रहे थे। लेकिन उस रात मुंह पर कपड़ा बांधे 14-15 लोग वहां आ गए, उनके पास हथियार थे।
उन्होंने हमें बेरहमी से पीटना शुरू कर दिया। आखऱि हमारा कसूर क्या था? पीठ पर पाइप और डंडों से इतना मारा कि अब तक मैं ठीक से सो नहीं पा रहा हूं। क्या हम भारत के नागरिक नहीं हैं?
राजीबुल तीन साल से बतौर राजमिस्त्री असम सरकार की एक योजना के तहत चराईदेव में निर्माण हो रहे तीन मंज़िला कौशल विकास केंद्र में काम रहे थे।
चराईदेव असमिया बहुल ऊपरी असम का एक जिला है, जहां पिछले कुछ दिनों से असमिया जातीय संगठनों ने मियां मुसलमान यानी बंगाली मूल के मुसलमानों को इलाके़ से चले जाने की चेतावनी जारी कर रखी है।
राजीबुल और उनके साथ काम करने वाले आठ मज़दूर साथियों की शिकायत के बाद बारपेटा पुलिस ने निर्माण कार्य के ठेकेदार मयूर बोरगोहाईं के खिलाफ एक जीरो एफआईआर दर्ज कर ली है।
मयूर बोरगोहाईं शिवसागर जिले के बीजेपी अध्यक्ष हैं और 2021 में नाजिरा विधानसभा से चुनाव लड़ चुके हैं। बारपेटा सदर थाने के प्रभारी के.नाथ ने बीबीसी से कहा, हमने नौ मजदूरों की शिकायत के बाद एक जीरो एफआईआर दर्ज की है। सभी मजदूरों का मेडिकल चेकअप करवा लिया गया है और उनका बयान दर्ज किया गया है। हमने इस एफआईआर को चराईदेव जिले के मथुरापुर थाने में भेज दिया है।
मुख्यमंत्री के खिलाफ एफआईआर
इन सबके बीच कांग्रेस के नेतृत्व वाले 18 विपक्षी दलों के संयुक्त मंच ने प्रदेश के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा के खिलाफ भी एक एफआईआर दर्ज कराई है।
यह एफआईआर बुधवार (28 अगस्त) को गुवाहाटी के दिसपुर पुलिस स्टेशन में दर्ज कराई गई है जिसमें मुख्यमंत्री सरमा पर धर्म और जाति के आधार पर विभिन्न समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देने की कोशिश करने के आरोप लगाए गए हैं।
इसके साथ ही यूनाइटेड ऑपोज़िशन फोरम ने भारत के राष्ट्रपति को एक ज्ञापन भी भेजा है जिसमें मुख्यमंत्री सरमा को बर्खास्त करने की मांग की गई है।
विपक्षी दलों का आरोप है कि बीते कुछ दिनों से मुख्यमंत्री सरमा ने ख़ासकर मियां मुसलमानों को लेकर जिस तरह के बयान दिए हैं इसके परिणामस्वरूप राज्य में सांप्रदायिक माहौल पैदा हो गया है।
चराईदेव में मुस्लिम मजदूरों की पिटाई के मामले को भी इससे जोड़ कर देखा जा रहा है।
बीते शनिवार (24 अगस्त) की रात कऱीब साढ़े 10 बजे निर्माण स्थल पर हुए हमले के बारे में राजीबुल कहते हैं, हमने शिवसागर में मियां मुसलमानों के खिलाफ चेतावनी जारी करने की न्यूज देखी थी। इसलिए शनिवार को हम लोगों ने ठेकेदार मयूर बोरगोहाईं से बकाया पैसा मांगा था। उन्होंने पैसा देने की बात भी कही लेकिन रात को उन लोगों ने हमारी पिटाई कर दी।
हमारे ठेकेदार बीजेपी के नेता हैं और उन्होंने मियां लोगों को जो धमकी जारी की थी उसकी आड़ में हमें पिटवाया ताकि हम पैसा लिए बगैर डरकर वहां से भाग जाएं। राजीबुल ने बारपेटा लौटकर मयूर बोरगोंहाईं के ख़िलाफ़ जो एफआईआर दर्ज कराई है उसमें 15 लाख रुपए बक़ाया होने की बात भी कही गई है।
पिटाई वाली रात की घटना को याद करते हुए 18 साल के एक और मजदूर आहादुल खान कहते हैं, उस रात को मैं कभी नहीं भूल सकता। एक पल के लिए तो लगा कि अब हम जिंदा नहीं बचेंगे। वहां 15 लोग आए थे। दो लोगों के हाथों में पिस्तौल भी थी। कुछ लोग छुरा लिए हुए थे और कुछ लोगों के हाथ में फावड़े और डंडे थे। उन लोगों ने हमें कान पकड़ कर घुटने के बल बैठने के लिए कहा और डंडों से मारना शुरू कर दिया।
आहादुल ख़ान कहते हैं कि उनसे इलाका छोडक़र जाने के लिए कहा गया।
उन्होंने बताया, हम 15 मुस्लिम मजदूर थे। वो लोग हमें पीटे जा रहे थे और एक व्यक्ति पिटाई का वीडियो बना रहा था। वो जिस तरह के नारे लगाने के लिए कह रहे थे हम वैसा ही कर रहे थे। उन लोगों ने एक घंटे तक हमारी पिटाई करने के बाद हमें तुरंत इलाक़ा छोडक़र चले जाने को कहा। उन लोगों ने कहा आधे घंटे बाद हम फिर आएंगे। इस घटना को लेकर असम में बंगाली मूल के मुसलमान समुदाय में काफी नाराजगी है।
मजदूरों की पिटाई से नाराज बारपेटा जिले के मुस्लिम नेता अलामिन हक ने कहा, भारत का नागरिक होने के नाते हम कामकाज के लिए हर जगह आ-जा सकते हैं। सरकार से हमारा अनुरोध है कि जिसने भी निर्दोष मजदूरों पर हमला किया है उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई करें।
कैसे शुरू हुआ विवाद?
दरअसल 13 अगस्त को ऊपरी असम के शिवसागर शहर में एक नाबालिग असमिया लडक़ी पर कथित रूप से हमला करने की घटना सामने आई थी। इस हमले के अभियुक्तों की पहचान मारवाड़ी समुदाय के स्थानीय व्यापारियों के रूप में की गई थी।
पुलिस ने इस मामले में भारतीय न्याय संहिता और यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण अधिनियम के प्रावधानों के तहत दो लोगों को गिरफ्तार कर जेल भेजा था। लेकिन इससे नाराजगी कम नहीं हुई।
इस घटना ने शहर में गैऱ-असमिया निवासियों ख़ासकर गैऱ-असमिया व्यापारियों के खिलाफ जातीय संगठनों में आक्रोश की लहर पैदा कर दी।
मामला बढ़ा और एक स्थानीय लडक़ी पर इस तरह हमले को लेकर 30 असमिया राष्ट्रवादी संगठनों ने विरोध प्रदर्शन किया, जिसके परिणामस्वरूप गैऱ-असमिया लोगों के स्वामित्व वाली दुकानों और व्यवसायों को बंद कर दिया गया।
इस विरोध प्रदर्शन के बाद राज्य के कैबिनेट मंत्री रनोज पेगु और जिला प्रशासन के अधिकारियों और मीडिया की मौजूदगी में मारवाड़ी समुदाय के पुरुष और महिला प्रतिनिधियों ने प्रदर्शनकारी संगठनों के सामने घुटने टेककर सार्वजनिक तौर पर माफ़ी मांगी।
लेकिन राजस्थान मूल के लोगों के माफ़ी मांगने का वीडियो जैसे ही वायरल हुआ सोशल मीडिया पर लोगों ने सरकार से सवाल पूछना शुरू कर दिया।
कुछ लोगों ने सवाल खड़े किए कि देश में कानून व्यवस्था के होते हुए इस तरह किसी को घुटने पर बैठा कर मंत्री और प्रशासन की मौजूदगी में माफी मांगने के लिए कैसे मजबूर किया जा सकता है।
जिस वक्त राज्य सरकार को कटघरे में खड़ा करने का मामला तूल पकड़ रहा था, लगभग उसी वक्त नगांव जिले के धींग में एक नाबालिग असमिया लडक़ी के साथ कथित सामूहिक बलात्कार की घटना सामने आ गई।
22 अगस्त को इस घटना में जिन तीन युवकों पर आरोप लगे उनका नाता बंगाली मूल के मुसलमान समुदाय से है। इसके बाद इस घटना को लेकर मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने जो बयान दिया कुछ लोग उसे सांप्रदायिक बता रहे हैं।
इस कथित बलात्कार की घटना के बाद मुख्यमंत्री सरमा ने 23 अगस्त को सोशल मीडिया एक्स पर लिखा, जिन अपराधियों ने धींग की एक हिंदू नाबालिका के साथ जघन्य अपराध करने का साहस किया, उन्हें कानून छोड़ेगा नहीं। लोकसभा चुनाव के बाद एक विशेष समुदाय अत्यंत सक्रिय हो रहा है। हिंदुओं को भाषाओं के आधार पर बांटने की कोशिश से सभी को सतर्क रहना चाहिए।
इसके बाद जब यह मामला असम विधानसभा में उठा तो बीते मंगलवार को मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने सदन में कहा कि वह पक्ष लेंगे और मियां मुसलमानों को राज्य पर क़ब्जा नहीं करने देंगे।
हिमंत की नीति को लेकर असम विधानसभा में विपक्ष के नेता देवव्रत सैकिया कहते हैं, ऊपरी असम के जोरहाट लोकसभा सीट पर जब से गौरव गोगोई जीते हैं मुख्यमंत्री परेशान हैं क्योंकि उन्होंने गौरव गोगोई को सबसे ज़्यादा वोटों से हराने की चुनौती दी थी। लेकिन गौरव गोगोई एक लाख 44 हज़ार वोटों से जीत गए।
अब मुख्यमंत्री ऊपरी असम में वोटरों को खुश करने के लिए नए-नए हथकंडे अपना रहे हैं। हिंदी भाषी समुदाय के जिन लडक़ों ने गलत काम किया था, उनके खिलाफ पुलिस को समय पर कार्रवाई करनी चाहिए थी। जब मामला बहुत बढ़ गया तो सीएम ने अपने एक कैबिनेट मंत्री को भेजा जनकी मौजूदगी में हिंदी भाषी लोगों को घुटनों पर बैठाकर माफ़ी मंगवाई गई।
कांग्रेस नेता सैकिया कहते है, लेकिन हिंदी भाषी समुदाय के मुद्दे पर ज़रूर दिल्ली से सीएम को डांट पड़ी होगी, तो फिर उनका दिमाग घूम गया। क्योंकि समूचे देश में हिंदी भाषी लोग बीजेपी के वोटर हैं। जब यह तरीका भी काम नहीं आया तो उन्होंने धार्मिक आधार पर राजनीति का खेल खेलना शुरू कर दिया ताकि ऊपरी असम में कांग्रेस को बैकफुट पर ले जा सकें।
दरअसल निचले असम में बंगाली मूल के मुसलमानों की एक बड़ी आबादी बसी है जिनकी नागरिकता को लेकर असम में राजनीति होती रही है।
हालांकि अपने इन आक्रामक बयान के दो दिन बाद सीएम सरमा ने कहा कि भारत हम लोगों की जन्मभूमि है और हम इस देश में टैक्स देते हैं, इसलिए सभी नागरिक किसी भी जगह आ-जा सकते है।
विपक्षी दलों ने स्थानीय पुलिस से अनुरोध किया कि वह सीएम हिंमत बिस्वा सरमा और उनके सह-षडय़ंत्रकारियों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता 2023 की धारा 61, 196 और 35 (2) के तहत मामला दर्ज कर जांच शुरू करें। हालांकि पुलिस ने विपक्ष की इस एफआईआर के तहत अब तक कोई मामला दर्ज नहीं किया है।
दिसपुर पुलिस थाने के प्रभारी रूपम हजारिका ने बीबीसी से कहा, यूनाइटेड ओपोजशिन फोरम से हमें एक शिकायत मिली है, लेकिन अभी मामला रजिस्टर नहीं किया गया है। फिलहाल आरोपों की जांच की जा रही है।
नागरिकता के मुद्दे को सुलझाने में
केंद्र की सरकारें नाकाम रहीं
असम में लगभग तीन दशकों से पत्रकारिता कर रहे नव कुमार ठाकुरिया की मानें तो राज्य में बाहरी और स्थानीय लोगों के बीच टकराव और पूर्वी पाकिस्तान से आए लोगों के मुद्दे का समाधान किसी भी सरकार ने नहीं किया। लिहाजा अब यह टकराव ऊपरी सतह पर गया है।
वो कहते है, पूर्वी पाकिस्तान से जब 1971 में बांग्लादेश को अलग करने के लिए युद्ध हुआ तो भारत की सेना ने वो युद्ध जीतकर दिया। पाकिस्तानी सेना ने भारत की सेना के समक्ष समर्पण किया था न कि बांग्लादेश के मुक्ति योद्धाओं के सामने। उस दौरान हजारों बांग्लादेशी असम और पूर्वी भारत में घुस आए थे। उनका बोझ असम के लोगों पर पड़ा। उस समय की सरकार ने इस समस्या से निपटने के लिए कोई ठोस उपाय नहीं किए।
जब 1985 में असम समझौता हुआ तो उस पर न तो प्रधानमंत्री ने कोई हस्ताक्षर किए न ही असम के मुख्यमंत्री ने। वो समझौता मूल रूप से नौकरशाही के साथ हुआ था। असम समझौते को लेकर संसद में कभी कोई बहस नहीं हुई। लिहाजा यह समस्या आज तक असम के लोगों को चिंता में डाले हुए है। उसी को लेकर टकराव अब भी जारी है।
असम की मौजूदा राजनीति की बारीकियों को समझने वाले वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक बैकुंठ नाथ गोस्वामी की मानें तो धुबड़ी लोकसभा सीट से एआईयूडीएफ़ प्रमुख बदरुद्दीन अजमल की हार से बीजेपी का राजनीतिक गणित बदल गया है।
वो कहते हैं, अब तक अजमल की राजनीति से बीजेपी को ध्रुवीकरण का फायदा मिल रहा था लेकिन धुबड़ी सीट में 10 लाख से ज़्यादा वोटों से अजमल की हार से बीजेपी को बड़ा झटका लगा है क्योंकि निचले असम में अजमल का जो वोट बैंक था वो कांग्रेस की तरफ चला गया।
वहीं ऊपरी असम में गौरव गोगोई जीत गए। लिहाजा अब हिंदू वोटरों को एक साथ लाने के लिए बीजेपी ने इस तरह की भावनात्मक राजनीति शुरू कर दी है। धींग की घटना की आड़ में मुख्यमंत्री ने जो बयान दिया है वो इसी राजनीति का हिस्सा है।
बीजेपी का जवाब
लेकिन बीजेपी खुद पर लग रहे ध्रुवीकरण की कोशिशों के आरोपों से इनकार करती है।
असम प्रदेश बीजेपी के मीडिया पैनलिस्ट प्रमोद स्वामी का कहना है उनकी पार्टी के किसी भी नेता ने कोई सांप्रदायिक बयानबाजी नहीं की है।
वो कहते हैं, बीते कुछ दिनों से राज्य में बलात्कार की कुछ घटनाएं सामने आ रही थीं। खासकर धींग में नाबालिग लडक़ी के साथ जो घटना हुई और उसके बाद जो राज्य का एक माहौल था।। उससे लोगों में काफी गुस्सा है।
असम में अवैध घुसपैठ की समस्या काफी पुरानी है लिहाजा ऊपरी असम के कुछ संगठनों के विरोध के बाद तनाव पैदा हो गया। उसको देखते हुए मुख्यमंत्री ने बयान दिया कि अभी निचले असम के लोगों को ऊपरी असम नहीं जाना है क्योंकि कानून-व्यवस्था को बनाए रखना मुख्यमंत्री की जिम्मेदारी है।
उन्होंने सांप्रदायिक राजनीति के सवाल पर कहा कि बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए ने हाल के लोकसभा चुनाव में असम की 14 में से 11 लोकसभा सीटें जीती हैं।
उन्होंने कहा, ऊपरी असम में जोरहाट के अलावा भी कई सीटें बीजेपी ने जीती हैं, लिहाजा विपक्ष को अपना गणित सुधारने की ज़रूरत है। (bbc.com/hindi)