संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : जुलूसों के बीच हड़बड़ी में ममता का नया रेप-कानून
04-Sep-2024 4:43 PM
‘छत्तीसगढ़’ का  संपादकीय : जुलूसों के बीच हड़बड़ी में ममता का नया रेप-कानून

एक-एक करके कई राज्यों के बाद अब बलात्कार की खबरों से घिरे हुए पश्चिम बंगाल ने भी बलात्कारियों को फांसी देने का अपना विधेयक पास कर दिया है। चूंकि यह मामला देश में बहुत अधिक संवेदनशील हो चुका है, बंगाल विधानसभा में सरकार के सख्त खिलाफ रहने वाली भाजपा ने भी इसका पूरा साथ दिया है। अभी विधानसभा से पारित यह विधेयक राज्यपाल और राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद कानून में बदल पाएगा। हर नया कानून पिछले कानूनों से, हर प्रदेश का कानून दूसरे प्रदेश के कानूनों से अधिक कड़ा बनाया जाता है ताकि सत्तारूढ़ पार्टी यह दावा कर सके कि उसने कुछ नया और अनोखा किया है। राज्यों में कई जगह बलात्कार के कुछ किस्म के मामलों पर फांसी की सजा इसलिए भी जोड़ी गई है कि जनता के बीच से यह मांग बड़े जोरों पर उठती है, और सत्तारूढ़ पार्टी हो, या विपक्ष, बलात्कार की अधिक चर्चित घटना के जवाब में यह उनका एक पसंदीदा शगल रहता है।

बंगाल का यह ‘अपराजिता महिला और बाल विधेयक’ ने पीडि़ता की मौत या उसके कोमा में चले जाने पर बलात्कारी को मौत की सजा, और दूसरे गुनहगारों को बिना पैरोल उम्रकैद सुनाता है, लेकिन इससे और अधिक बड़ी बात यह है कि इसमें जांच और सुनवाई के अधिकतम दिनों की सीमा तय कर दी गई है। पुलिस को 21 दिनों में जांच पूरी करनी होगी, और अदालत को 36 दिनों में फैसला सुनाना होगा। बलात्कार में सहयोगी लोगों के लिए अलग-अलग किस्म की सजाओं में भी बढ़ोत्तरी की गई है। लेकिन हम फिलहाल जांच और सुनवाई के लिए तय किए गए अधिकतम दिनों पर बात करना चाहते हैं। चाहे इसके लिए बंगाल में फास्ट ट्रैक कोर्ट बनाए जाएं, इस रफ्तार से जांच और सुनवाई को तय करना जमीनी हकीकत को अनदेखा करना होगा। आज जांच करने वाली पुलिस का काम कई हिसाब से कमजोर रहता है। और उसमें अगर अब बंगाल में यह जोड़ दिया जा रहा है कि यह जांच तीन हफ्ते में पूरी करनी होगी तो यह जाहिर है कि पुलिस को यह काम हड़बड़ी में करना होगा, फोरेंसिक लैब या डीएनए जांच जैसे बहुत से मामले रहते हैं जो बहुत समय लेते हैं क्योंकि वहां अधिक काम करने, या काम अधिक रफ्तार से करने की क्षमता नहीं रहती। ऐसे में अगर पुलिस पर तीन हफ्ते का दबाव रहेगा, और अगर बलात्कारी की शिनाख्त आसान नहीं रहेगी, तो हो सकता है कि पुलिस किसी बेकसूर को पकडक़र बंद कर दे, या दुश्मनी के चलते लोग दूसरों को फंसवा दें। इसके बाद जिस रफ्तार से अदालती कार्रवाई की उम्मीद की गई है, उसमें शक इसलिए होता है कि आरोपियों के वकील कई तरह से तारीखें आगे बढ़वाते हैं, और अगर सुनवाई हड़बड़ी में हुई, तो ऊपर की अदालत से राहत पाने की आशंका बनी रहेगी। इसलिए हम जनता को खुश करने के लिए इतनी तंग समय सीमा बनाने के खिलाफ हैं। अभी तक हमें किसी राज्य का समय सीमा का ऐसा अनुभव याद भी नहीं पड़ रहा है। अदालतों को किसी को सजा सुनाते हुए संदेह से परे साबित हो जाना जरूरी रहता है, पता नहीं वह काम सीमित समय में कितने पुख्ता तरीके से हो पाएगा।

फिर हम इस बात को भी बोगस मानते हैं कि विचलित जनता को संतुष्ट करने के लिए किसी भी जुर्म पर सजा अधिक कर दी जानी चाहिए। एक-एक करके कई राज्यों ने ऐसा ही किया है, और अब तक कि सात से दस बरस तक की कैद भी कम नहीं थी, और उससे भी बलात्कारियों के हौसले तो पस्त नहीं ही हुए। समाज में जब तक लड़कियों के लिए सुरक्षित और सम्मानजनक माहौल नहीं रहेगा, तब तक कड़ी सजा से भी बलात्कारी नहीं डरेंगे। आज बहुत से बलात्कारी तो यही मानकर चलते हैं कि बदनामी के डर से लडक़ी या महिला के परिवार शांत रहेंगे, और वे बच निकलेंगे। सजा का पुख्ता खतरा अगर सिर पर मंडराते रहता, तो शायद लोगों की बलात्कार की हिम्मत कम पड़ती। इसलिए कानूनों पर कमजोर अमल, समाज में ताकतवर और सत्ता के पसंदीदा लोगों को गैरकानूनी हिफाजत मिलना अधिक बड़ी वजह है। कोई सरकार या राजनीतिक दल अपने से जुड़े हुए बलात्कारियों को बचाने के लिए जमीन-आसमान एक कर देते हैं। अभी केरल के मलयालम फिल्म उद्योग में सेक्स-शोषण की जो कहानियां सामने आ रही हैं, वे बताती हैं कि शोहरत भी अपने आपमें बददिमाग कर देने वाली एक ताकत होती है, और अमरीका  का भूतपूर्व राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप भी अपने चुनाव के दौरान यह कहते हुए कैमरे पर रिकॉर्ड हो गया था कि जो लोग कामयाब रहते हैं, वे किसी भी महिला को उसके गुप्तांगों से दबोच सकते हैं, अगर वे मशहूर आदमी हैं। उन्होंने कहा कि अगर आप स्टार हैं, तो महिलाएं आपको ऐसा करने देती हैं। हिन्दुस्तान के अलग-अलग फिल्मी शहरों में ऐसी चर्चा कई बार कई लोगों के खिलाफ उठती हैं।

बलात्कार से जुड़ा हुआ एक दूसरा बड़ा कानूनी पहलू नाबालिग-बलात्कारियों का है। कल ही छत्तीसगढ़ में 13 बरस की एक लडक़ी से गैंगरेप हुआ तो गिरफ्तार सात लोगों में से छह नाबालिग हैं। अब देश का आज का कानून नाबालिग बलात्कारियों को बलात्कारी मानने से पहले नाबालिग मानता है, और उनकी सुनवाई या सजा उसी हिसाब से होती है। जेल न जाकर वे सुधारगृह जाते हैं, और जल्द ही वहां से घर लौट आते हैं। हो सकता है कि यह संसद के कानून बनाने का मामला हो कि हत्या या बलात्कार जैसे मामलों में क्या नाबालिग मुजरिम को भी बालिग मान लिया जाए? इस सवाल को अभी बंगाल के इस ताजा विधेयक के साथ जोडक़र देखना ठीक नहीं है, लेकिन देश में न्यायपालिका में यह चर्चा तो चल ही रही है कि क्या 18 बरस की उम्र को रेप-मर्डर जैसे जुर्म में घटाया जाए?

जब सडक़ों पर जुलूस निकल रहे हों, और सरकारें डांवाडोल हो रही हों, तो इस किस्म के कानून हड़बड़ी में बनाए जाते हैं, लेकिन इनसे किसी की हिफाजत होती हो ऐसा लगता नहीं है, कानून कड़ा होने के बजाय नर्म कानून पर भी कड़ी अमल अधिक असरदार होती है। (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)

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