संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : देहसंबंध और शादी का अनिवार्य रिश्ता कितना जायज, कैद के लायक?
07-Sep-2024 4:59 PM
‘छत्तीसगढ़’ का  संपादकीय : देहसंबंध और शादी का अनिवार्य रिश्ता कितना जायज, कैद के लायक?

मध्यप्रदेश के उज्जैन से निकला हुआ एक वीडियो देश में सनसनी फैला रहा है। उज्जैन का खास धार्मिक महत्व है, वहां महाकाल विराजमान हैं। फिर एमपी के मौजूदा मुख्यमंत्री मोहन यादव उज्जैन के ही बाशिंदे हैं, और वहीं के विधायक भी हैं। ऐसे में उनके शहर के व्यस्त इलाके में चहल-पहल वाली सडक़ के किनारे एक नौजवान और महिला के बीच दिनदहाड़े सेक्स चलते रहा, और लोग वीडियो बनाते रहे। बाद में इन दोनों लोगों को पुलिस थाने ले गई तो पता लगा कि दोनों ने साथ में शराब पी थी, और फिर यह सेक्स हुआ। फिलहाल पुलिस ने बलात्कार का मुकदमा दर्ज करके इस नौजवान को अदालत के रास्ते जेल भेजा है, और वीडियो बनाकर फैलाने वालों की पहचान की जा रही है। इस महिला का एक जवान बेटा भी है, और उसका कहना है कि उसके साथ सेक्स करने वाले नौजवान ने उससे शादी का वायदा किया था, फिर दोनों ने शराब पी, और फिर आते-जाते लोगों के बीच सडक़ किनारे यह सेक्स हुआ जिसमें बलात्कार की धारा लगने से नौजवान जेल चले गया। दोनों पहले से परिचित भी हैं।

इस घटना के कई पहलू हो सकते हैं। लेकिन हम इसके एक छोटे हिस्से को लेकर आज यहां लिखना चाहते हैं कि जैसा कि इस महिला का कहना है इस नौजवान ने उससे शादी का वायदा किया, और फिर नशे में सेक्स किया। हम छत्तीसगढ़ जैसे छोटे राज्य में हर दिन एक से अधिक ऐसी खबरें देख रहे हैं जिनमें शादी का वायदा करके सेक्स करना, और फिर शादी न करने पर बलात्कार की तोहमत में जेल जाना हो रहा है। ऐसे कई मामलों में लड़कियां नाबालिग भी रहती हैं, और वादाखिलाफी करने वाले लोग बालिग रहते हैं। ऐसे मामलों में पॉक्सो कानून लागू होता है, जिसमें किसी वायदे का, या तोडऩे का कोई महत्व नहीं रहता है, और न ही लडक़ी की सहमति कोई मायने रखती है। लेकिन जहां पर दोनों ही बालिग रहते हैं, वहां पर एक सवाल यह खड़ा होता है कि क्या शादी का वायदा, जो कि दो पक्षों के बीच हो सकता है, किसी एक तरफ से तो नहीं हो सकता, सहमति के सेक्स-संबंध को बाद में बलात्कार भी साबित कर सकता है, क्या ऐसा होना चाहिए?

अभी देश की अदालतों में इसे लेकर कई तरह की बहस चल रही है। कुछ राज्यों में हाईकोर्ट ने इसे बलात्कार मानने से इंकार भी कर दिया है। हम भी पहले कई बार इस मुद्दे पर लिख चुके हैं कि दो बालिगों के बीच शादी का वायदा अगर सेक्स तक पहुंचता है, तो क्या उसे पूरी जिंदगी के लिए मजबूरी का एक रिश्ता मान लेना जायज होगा? वायदा तो हर सगाई के वक्त शादी का होता है, लेकिन बहुत सी सगाई टूट जाती हैं, और शादी नहीं हो पातीं। बहुत सी शादियां बाद में तलाक में बदल जाती हैं। ऐसे में किसे वायदा माना जाए, और वायदा पूरा न होने पर उसे सजा के लायक कैसे माना जाए? दो बालिगों के बीच होने वाले सेक्स-संबंध अगर सहमति से हैं, तो क्या बाद में इन दोनों में से किसी को भी अपना फैसला बदलने की आजादी नहीं रह जाती? क्या एक बार का वायदा जिंदगी भर के लिए, या शादी हो जाने तक के लिए एक बंधन रहना चाहिए? जिस समाज में, या जिन इंसानों के बीच शादी और बच्चे हो जाने के बाद भी कुछ स्थाई नहीं रहता है, उनके बीच देहसंबंधों के पहले के एक कथित जुबानी वायदे को कितना बंधनकारी मानना जायज होगा? ऐसी किसी भी शिकायत में अपने को बलात्कार की शिकार बताने वाली महिला का बयान ही उसके भूतपूर्व या मौजूदा साथी की गिरफ्तारी के लिए काफी होता है, और हर दिन ऐसी गिरफ्तारी हो रही हैं।

क्या बलात्कार की शिकायत पर अनिवार्य रूप से गिरफ्तारी, और जेल का मौजूदा सिलसिला लड़कियों और महिलाओं को लापरवाही की हद तक अतिआत्मविश्वासी बना रहा है कि वे किसी आदमी के कहे हुए, या न कहे हुए शब्दों को एक मजबूत वायदा मानकर अपने बदन को उसके हवाले कर दें? कानून तो अपनी जगह अपना काम कर देता है, लेकिन क्या इस पूरे सिलसिले को एक अधिक समझदारी के साथ शुरू में रोका नहीं जा सकता, ताकि बलात्कार की शिकायत लेकर उससे आहत लड़कियां या महिलाएं पुलिस तक जाने से बचें? जब रोज ऐसी कई खबरें आती हैं, तो किस तरह की सावधानी सामाजिक परेशानी, और अदालती चक्करों से बचा सकती है? बात महज कानूनी हक की नहीं है, कानूनी हक का दावा तो हर कोई कर सकते हैं, किसी पिता के गुजरने पर कल एक जगह उसकी लाश अंतिम संस्कार का इंतजार करती रही, और दो वारिस बेटों में संपत्ति के बंटवारे के लिए मारपीट चलती रही। संपत्ति का बंटवारा उनका हक है, लेकिन अगर पिता अपने जीते-जी वसीयत के कागज साफ-सुथरे बनाकर, कानूनी औपचारिकताएं पूरी करके छोड़ गया होता, तो ऐसा नहीं हुआ होता।

हम यह भी सोच रहे हैं कि क्या दो बालिगों के बीच देहसंबंधों के पहले ऐसी कुछ लिखा-पढ़ी हो जानी चाहिए कि वे आपसी सहमति से, और अपनी मर्जी से देहसंबंध बना रहे हैं, और यह बलात्कार या सेक्स-शोषण नहीं है? अब सवाल यह उठता है कि जब देश में एक तबका शादीशुदा जोड़ों के बीच भी असहमति के बाद हुए सेक्स को बलात्कार करार देने का कानूनी इंतजाम चाहता है, तो प्रेमसंबंधों में क्या हर बार के देहसंबंध के पहले अनुबंध को नया किया जाएगा? यह मामला उन दो बदनों को अटपटा लग सकता है जो किसी एक वक्त एक होने पर आमादा थे, और अब दोनों में असहमति हो गई है। लेकिन इसका इलाज क्या हो सकता है? आज जब देश के कम से कम एक राज्य में साथ रहने वाले गैरशादीशुदा जोड़ों के लिए लिव-इन-रिलेशनशिप का रजिस्ट्रेशन कराना जरूरी कर दिया गया है, तो क्या सहमति के देहसंबंधों का भी करार रजिस्टर हो सकता है? आखिर ऐसा हर विवाद पुलिस, अदालत, और जेल इन तीनों जगहों पर बोझ बनकर सरकार पर खर्च डालता है, उसके ढांचे और अमले का वक्त इस पर खर्च होता है।

हमारा ख्याल है कि बालिग होने वाले जोड़ों को दुनिया का इतना तजुर्बा रहता है कि वे समझ सकें कि हर वायदे पूरे नहीं होते हैं। और किसी जुबानी वायदे के आधार पर कोई लडक़ी अपना बदन किसी को दे दे, यह भी ठीक नहीं है। कानून में लडक़ी को यह विशेषाधिकार दिया है कि बलात्कार की उसकी शिकायत पर आमतौर पर शक नहीं किया जाएगा। लेकिन यह एक ऐसी खतरनाक नौबत भी है जिसमें किसी देहसंबंध में शामिल आदमी को पहली शिकायत पर ही बिना सुबूत गिरफ्तार किया जा सकता है। हम किसी लडक़ी की शिकायत पर शक किए बिना, सिर्फ यही सोच रहे हैं कि क्या ऐसे विवादों को खत्म करने का कोई जरिया हो सकता है? क्या देहसंबंध को देश का कोई जायज कानून अनिवार्य रूप से शादी में तब्दील करने का बोझ आदमी पर डाल सकता है? आज तो कानून कुछ ऐसा ही है, लेकिन यह भी समझने की जरूरत है कि क्या यह कानून तर्कसंगत और न्यायसंगत भी है?

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