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रिश्वत की रिकॉर्डिंग
बीजापुर के आश्रम-छात्रावासों के अधीक्षकों से वसूली का मामला चर्चा में है। इसका एक आडियो भी फैला हुआ जिसमें मंडल संयोजक, अधीक्षकों से पैसे की डिमांड करते सुने जा सकते हैं।
पिछले दिनों इसी तरह के एक प्रकरण में कलेक्टर ने तीन सदस्यीय जांच समिति बनाई है। बताते हैं कि मंडल संयोजक ने छात्रावास अधीक्षकों से फोन पे पर रिश्वत लिए थे। अधीक्षकों ने सप्रमाण इसकी शिकायत कलेक्टर से की थी।
फोन-पे पर लेन देन की पड़ताल शुरू हुई, तो अधीक्षकों पर बयान बदलने के दबाव बना है। मंडल संयोजक, स्थानीय बड़े नेता के करीबी हैं। ऐसे में दबाव पडऩे पर एक-दो अधीक्षकों ने आपसी लेन देन का मामला बता दिया।
बावजूद रिश्वतखोरी के आरोप को खारिज आसान नहीं है। क्योंकि रिश्वतखोरी के आरोप एक-दो नहीं बल्कि 25 अधीक्षक और अन्य कर्मचारियों ने लगाए हैं। चपरासी तक से फ़ोन पे पर रिश्वत लिए गए हैं। बारी बारी से सबके बयान लिए जा रहे हैं लेकिन कार्रवाई अभी तक नहीं हुई है। अब आगे क्या होता है, यह तो आने वाले दिनों में पता चलेगा।
शिकायत ऐसी-ऐसी
कुशाभाऊ ठाकरे परिसर के सहयोग केंद्र में मंत्रियों की ड्यूटी लगाई गई है। सरकार के मंत्री अलग-अलग दिन कार्यकर्ताओं की समस्याएं सुन रहे हैं। हालांकि मंत्रियों तक समस्या पहुंचाने की प्रक्रिया आसान नहीं है। इसके लिए कार्यकर्ताओं को पहले रजिस्टे्रशन कराना होता है। कई बार आवेदन अनुपयुक्त पाए जाने पर लौटा भी दिए जाते हैं।
सहयोग केंद्र में ज्यादा आवेदन ट्रांसफर को लेकर मिल रहे हैं। जिस पर फिलहाल रोक लगी हुई है। इससे परे कुछ ऐसे भी आवेदन आ रहे हैं जिसे पढक़र पदाधिकारी भी असमंजस में पड़ जाते हैं। ऐसे ही एक दवा व्यापारी अपना आवेदन लेकर सहयोग केंद्र पहुंचे।
व्यापारी की शिकायत थी कि पहले रायपुर से बिलासपुर तक दवा ले जाने के एवज में पुलिस को दो जगह दो-दो सौ रुपए देने पड़ते थे। कुल मिलाकर 4 सौ रुपए में काम हो जाता था। अब 5-5 सौ रुपए देना पड़ रहा है। यानी 6 सौ रुपए अतिरिक्त देना पड़ रहा है।
व्यापारी का कहना था कि पुरानी व्यवस्था को रहने दिया जाए। मगर सहयोग केंद्र के पदाधिकारियों ने आवेदन पढक़र मंत्री तक पहुंचने से पहले ही व्यापारी को समझाकर लौटा दिया। कुछ इसी तरह की शिकायतें पदाधिकारियों के बीच चर्चा का विषय बना हुआ है।
ट्रांसफर, पोस्टिंग पर बवाल
ट्रांसफर और पोस्टिंग हरेक सरकार में बड़ा कारोबार रहा है। कांग्रेस सरकार के जाते-जाते स्कूल शिक्षा विभाग में बड़े पैमाने पर प्रमोशन हुआ, जब पोस्टिंग की बात आई तो लाखों रुपये में मनचाही जगह खरीद ली गई। उसी समय स्कूल शिक्षा मंत्री डॉ. प्रेमसाय टेकाम से इस्तीफा लिया गया। उसके बाद संयुक्त संचालक स्तर के 5 अधिकारी सस्पेंड किए गए। निचले स्तर पर भी कई बाबू नप गए। पर समय के साथ-साथ रास्ता निकल ही आता है। करीब साल भर पुराने इस मामले की जांच हो रही है। शिक्षकों से पूछा जा रहा है कि उन्होंने क्या रिश्वत दी? किसे दी और कितनी दी। जब लिखकर देने की बात आ रही है तो शिक्षक पीछे हट रहे हैं। समझदार लोग लिखा-पढ़ी करके घूस नहीं लेते। फिर कानून तो घूस देने वाले को भी अपराधी मानता है। कहां तो, इस मामले में कांग्रेस सरकार ने एफआईआर दर्ज कराने की बात कही थी, लेकिन अब जो स्थिति है- उन सारे अधिकारी बाबू के साफ बच निकलने की जमीन जांच के दौरान तैयार हो रही है। जांच पूरी होते ही पूरी संभावना है कि सब के सब बहाल हो जाएंगे और दाग धुल जाएंगे।
इधर ताजा मामला राजस्व विभाग में हुए बड़ी संख्या में तबादले का है। कनिष्ठ प्रशासनिक सेवा संघ के प्रदेश अध्यक्ष नीलमणि दुबे ने कैमरे के सामने कहा कि कोई क्राइटेरिया नहीं है। किसी को साल में चार-चार बार स्थानांतरित कर दिया गया तो कई एक ही जगह पर सालों से जमे है। उन्होंने सीधे मंत्री पर ही घूस लेने का आरोप लगा दिया। आरोप प्रदेश अध्यक्ष की ओर से लगाया गया था, हडक़ंप तो मचना ही था। मंत्री या सरकार की ओर से कोई सफाई नहीं आई, बल्कि दुबे के ही संगठन के पदाधिकारियों ने लेटर हेड पर उनके आरोपों का खंडन कर दिया है। मामला, तहसीलदार, नायब तहसीलदारों का है। मंत्री को नाराज करके वे कैसे चैन से रहेंगे?
98 लाख का बस स्टॉप
यह संरचना किसी मंदिर या गुरुद्वारे का भ्रम होता है। मगर यह है एक बस स्टाप। ऊपर तीन गुंबद हैं, जिनमें सोने की पॉलिश की गई है। फ्लोर और दीवार ग्रेनाइट की है। इस बस प्रतीक्षालय को बनाने में 98 लाख की लागत आई है। कर्नाटक की समृद्ध विरासत और संस्कृति को दर्शाने के लिए सुरेश कुमार नाम के व्यवसायी ने इसे तैयार किया। इसे डॉ. राजकुमार और दो अन्य प्रतिष्ठित सिने कलाकारों के नाम पर समर्पित किया गया है। बेंगलूरु जाने वालों के लिए यह भी एक दर्शनीय स्थल है। मगर सोशल मीडिया पेज पर एक हैंडल में लिखा गया है कि अफसोस इसकी भी आजकल दुर्दशा हो रही है। यहां मवेशी बैठे रहते हैं। ठेले खोमचे वालों ने कब्जा कर रखा है।
खिलाडिय़ों के खिलाड़ी
बीते 24 वर्षों में सरकारों के साथ अपनी निष्ठा बदलने वाले खिलाडिय़ों के खिलाड़ी इन दिनों बहुत परेशान हैं। पहली बार ऐसा हुआ है कि वे सरकारी पिच पर पैर नहीं जमा पा रहे और कॉक की तरह हवा में गुलाटियां मार रहे। दरअसल पिछली सरकार के दौरान पाला बदलकर भगवा दुपट्टे वालों को निपटाने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। वैसे उन्हें उम्मीद नहीं थी कि सरकार बदल जाएगी। और जब बदली तब से भगवा ब्रिगेड में शामिल होने हर जतन कर रहे। दलीय तौर पर विफलता देख वह फिर से संघ का रैकेट पकडक़र उतरने की तैयारी कर रहे थे। लेकिन वहां से भी खो कर दिए गए । एक पुराने ठाकुर साहब ने रिप्लेस कर दिया। और अब तो यह कहा जा रहा है कि खेलों के जरिए पुनर्वास असंभव है।