संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : कांग्रेस अब किस मुंह से बात करेगी नैतिकता की, बलात्कार-विरोध की?
19-Sep-2024 5:53 PM
‘छत्तीसगढ़’ का  संपादकीय : कांग्रेस अब किस मुंह से बात करेगी नैतिकता की, बलात्कार-विरोध की?

कांग्रेस के सबसे बड़े नेता, और लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी अभी अमरीका प्रवास पर भारत में सिक्खों की स्थिति पर एक झूठा बयान देकर अभी-अभी पूरी तरह से अवांछित विवाद खड़ा कर चुके हैं, लेकिन राजनीतिक दलों की बखेड़े में फंसने की हसरत खत्म होने का नाम नहीं लेती है। अभी कांग्रेस के एक फैसले ने देश के करीब सौ भूतपूर्व बड़े अफसरों को इस पार्टी के खिलाफ खड़ा कर दिया है। दिलचस्प बात यह है कि जम्मू के चुनावों में जहां भाजपा और कांग्रेस भी दो प्रमुख पार्टियां रहेंगी, वहां पर भाजपा के कटु आलोचक, और कांग्रेस के अधिकतर मुद्दों पर समर्थक रहे हुए हर्षमंदर भी कांग्रेस के खिलाफ हो गए हैं। हर्षमंदर एक भूतपूर्व आईएएस हैं जो गुजरात दंगों के पहले से भाजपा और मोदी के खिलाफ रहते आए हैं, लेकिन अभी जिन 96 अफसरों ने कांग्रेस अध्यक्ष को एक कड़ा विरोधपत्र भेजा है, उस पर हर्षमंदर के भी दस्तखत हैं।

यह विरोधपत्र जम्मू के बसोहली विधानसभा क्षेत्र से चौधरी लाल सिंह नाम के एक आदमी को कांग्रेस का उम्मीदवार बनाने के खिलाफ है। यह आदमी 2018 में भाजपा का मेम्बर था, और जब जम्मू के कठुआ में एक मंदिर में एक गरीब मुस्लिम खानाबदोश बच्ची से पुजारी की अगुवाई में आधा दर्जन से अधिक लोगों ने बलात्कार करके उसे मार डाला था, तो इन तमाम हिन्दू बलात्कारियों को बचाने के लिए जम्मू में तिरंगे और हिन्दू झंडों के साथ जो जुलूस निकलते थे, उनकी अगुवाई चौधरी लाल सिंह करता था। इन भूतपूर्व अफसरों ने कांग्रेस अध्यक्ष को लिखा है कि कठुआ का यह गैंगरेप भारत के ताजा इतिहास का सबसे भयानक नफरती-जुर्म था, और उसके मुजरिमों (बाद में सबको सजा हुई) को बचाने के लिए यही चौधरी लाल सिंह जुलूस निकालता था। उस वक्त भाजपा में रहा हुआ यह आदमी अब इस चुनाव में कांग्रेस का उम्मीदवार बन गया है। इस चिट्ठी में कांग्रेस अध्यक्ष को याद दिलाई गई है कि इस एक घटना ने जनचेतना को ऐसा झकझोरा था जैसा कि बहुत कम साम्प्रदायिक नफरती-जुर्म कर पाते हैं। आज जब देश भर में बलात्कार के जुर्म के खिलाफ जनता बुरी तरह विचलित है उस वक्त इस आदमी को अपना उम्मीदवार बनाकर कांग्रेस पार्टी अपनी वह नैतिक ताकत खो चुकी है जिसे कि वह नफरत और हिंसा के खिलाफ रखने का दावा करती है। इस चिट्ठी पर सौ के करीब आईएएस, आईएफएस, और अखिल भारतीय सेवाओं के भूतपूर्व अफसरों के नाम हैं। इस पर हर्षमंदर के अलावा नजीब जंग, जॉय ओम्मेन, जैसे नाम भी हैं जो कि अलग-अलग समय पर छत्तीसगढ़-एमपी में काम कर चुके हैं। इस पर भूतपूर्व आईएएस अरूणा रॉय, और एन.सी.सक्सेना का नाम भी दिखता है जो कि हर्षमंदर के साथ-साथ यूपीए सरकार के वक्त सोनिया गांधी की अगुवाई वाली एन.ए.सी. (राष्ट्रीय सलाहकार परिषद) के सदस्य थे।

कांग्रेस के लिए यह नौबत एकदम ही भयानक है। हमारा ख्याल है इसके बाद महिलाओं पर हिंसा, और साम्प्रदायिकता के मुद्दे पर बोलने का कांग्रेस का हक खत्म ही हो जाता है। इसके बाद कांग्रेस पार्टी किस मुंह से दूसरी पार्टियों के पसंदीदा बलात्कारियों की तरफ उंगली उठा सकेगी? एक बात तो यह भी समझ से परे है कि मुस्लिम खानाबदोश बच्ची के गैंगरेप के मुजरिमों को बचाने वाले को कांग्रेस में दाखिल कराना इस पार्टी की कौन सी मजबूरी थी? देश में यह लगातार तीन चुनाव हार ही चुकी है, जम्मू की एक विधानसभा सीट और हार जाने से इस पार्टी का भविष्य प्रभावित नहीं हो रहा था। न ही यह बलात्कार-समर्थक घोर साम्प्रदायिक-हिंसक नेता संसद में एक वोट से सरकार बचाने की हालत में था कि सरकार बचाने उसका साथ ले लिया जाता। यह तो कांग्रेस उम्मीदवार तय करने की बात थी, और पार्टी ने इस सीट पर अपने सारे स्वघोषित नीति-सिद्धांतों का पिंडदान कर दिया है। हमारा मानना है कि देश के रिटायर्ड अफसर इस पार्टी को इसकी नैतिकता याद दिला रहे हैं, और यह खुद उससे परे हो चुकी है। क्या कांग्रेस जैसी पुरानी पार्टी उम्मीदवार छांटते हुए उनके पुराने सार्वजनिक रिकॉर्ड भी नहीं देखती कि वे क्या-क्या करते आए हैं? क्या भाजपा से एक गंदगी कांग्रेस में लाते हुए भी इस पार्टी के भीतर किसी को गांधी-नेहरू की याद नहीं आई?

जम्मू के जानकार लोगों से बात करने पर यह भी पता लगता है कि कठुआ में बलात्कार की शिकार बच्ची की तरफ से अदालत में उसका केस लडऩे वाली एक हिन्दू महिला वकील, दीपिका को वकील तबके का बहिष्कार झेलना पड़ा था, धमकियां झेलनी पड़ी थीं, और इस मामले को सुप्रीम कोर्ट ने जम्मू की अदालत से हटाकर पंजाब के पठानकोट की अदालत में भेजा था क्योंकि भारी सामाजिक दबाव और तनाव के चलते जम्मू में इसकी निष्पक्ष सुनवाई मुमकिन नहीं थी। बाद में अदालत ने सात में से छह लोगों को कैद सुनाई थी, तीन को 25-25 बरस और तीन को 5-5 बरस। और एक नाबालिग को अलग से जुवेनाइल कोर्ट में सजा सुनाई गई। कांग्रेस का पाखंड यह है कि जिस दिन कठुआ में इन बलात्कारियों को बचाने के लिए इसी चौधरी लाल सिंह की अगुवाई में जुलूस निकला था, उसके अगले दिन दिल्ली में इस बच्ची के बलात्कार-कत्ल के खिलाफ कैंडल मार्च निकल था जिसमें राहुल और प्रियंका दोनों शामिल हुए थे। अब बलात्कारी-बचाओ जुलूस का नेता कांग्रेस का उम्मीदवार है। यह भी याद रखने की बात है कि जम्मू-कश्मीर की उस वक्त की गठबंधन सरकार में यही चौधरी लाल सिंह भाजपा की तरफ से मंत्री था, उसे और भाजपा के एक और मंत्री को बलात्कारी-बचाओ जुलूस की वजह से पार्टी ने मंत्री पद से हटाया था। अब भाजपा की उस गंदगी को कांग्रेस अपने सीने पर मैडल की तरह टांगकर नैतिकता की शोभायात्रा निकाल रही है। जम्मू के लोगों को अच्छी तरह याद है कि जब भारत जोड़ो यात्रा के तहत राहुल गांधी जम्मू में दाखिल हुए थे, तो इसी चौधरी लाल सिंह ने चारों तरफ बड़े-बड़े होर्डिंग सहित राहुल के स्वागत का इंतजाम किया था। यह एक अलग बात है कि राहुल के मंच पर इस आदमी को नहीं आने दिया गया था।

कांग्रेस की यह बड़ी दुखभरी कहानी है जो कि पार्टी के एक बहुत बुरे पतन का सुबूत है। इस आदमी की विधानसभा सीट बसोहली पर वोट 1 अक्टूबर को डलने हैं। नाम वापिसी की तारीख दो दिन पहले निकल चुकी है, और उसके बाद ही इन भूतपूर्व अफसरों ने निराश होकर कांग्रेस अध्यक्ष को चिट्ठी लिखी है। हम राहुल गांधी को बस इतना याद दिलाना चाहते हैं कि 1952 के आम चुनाव में जब नेहरू अपनी पार्टी का चुनाव प्रचार करने गए, और उन्हें चुनावी आमसभा के मंच पर ही पता लगा कि उनका उम्मीदवार एक बुरा इंसान है तो उन्होंने वोटरों से अपील की थी कि कांग्रेस उम्मीदवार को वोट न दें। राहुल गांधी में, और कांग्रेस पार्टी में अगर जरा भी नैतिकता बाकी है, तो उन्हें जम्मू जाकर इस सीट पर अपनी पार्टी के उम्मीदवार के खिलाफ प्रचार करना चाहिए। राहुल को अगर नेहरू की मिसाल से कोई सबक नहीं मिल सकता, तो वे राजनीतिक-नैतिकता में पूरी तरह निरक्षर रह जाएंगे।  

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