संपादकीय
हिन्दुस्तान में त्यौहारों पर जो अराजकता सामने आती है उसका एक नमूना कुछ दिन पहले भिलाई में देखने मिला जब एक गणेश पंडाल के अराजक लाउडस्पीकर का पुलिस तक जाकर विरोध करने के बाद भी जब उसका कोई असर नहीं हुआ तो दिल के मरीज बुजुर्ग ने खुदकुशी कर ली। वह ध्वनि प्रदूषण और कोलाहल से उपजी शायद पहली खुदकुशी थी। अब उसी भिलाई की खबर है कि वहां एक डीजे संचालक ने इन त्यौहारों में अधिक कमाई के लिए 25 लाख रूपए कर्ज लेकर नया म्युजिक सिस्टम खरीदा था, और हाईकोर्ट द्वारा लगाई गई रोक की वजह से डीजे का कारोबार ठप्प होने से उसने खुदकुशी कर ली है। अगर यह खबर सच है, तो यह एक ऐसे कारोबार की खुदकुशी बताती है जो कि गैरकानूनी पैमानों पर चल रहा था। संगीत बजाने पर तो कोई रोक नहीं है, लेकिन बड़ी-बड़ी गाडिय़ों में बड़े-बड़े स्पीकर लादकर, सैकड़ों रंग-बिरंगी दूर तक फेंकी जा रही रौशनी वाली लाईटों के साथ सडक़ों पर सबका जीना हराम करने वाले कारोबार पर तो दस बरस से अधिक से भी रोक चली आ रही है। सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट ने अनगिनत मामलों में ऐसे फैसले सुनाए हैं, और आदेश दिए हैं। छत्तीसगढ़ में हाईकोर्ट बरसों से लगातार सरकार को चेतावनी देते आ रहा है, और वह सरकार और जिले के अफसरों के खिलाफ जितनी कड़ी जुबान में बोलते आया है, उससे यह साफ था कि कानून क्या है। अब अगर किसी कारोबार ने यह मान लिया है कि बाकी तमाम लोगों का जीना हराम करके उसे अपनी कमाई करनी है, तो उसके लिए अदालत, सरकार, कानून, या चैन से जीने का हक रखने वाली जनता तो जवाबदेह है नहीं।
अब सवाल यह उठता है कि भिलाई में डीजे संचालक की यह कथित खुदकुशी अगर सचमुच ऐसे कारोबारी नुकसान की वजह से हुई है, तो इस नुकसान के लिए कौन जिम्मेदार है? जब यह बात साफ है कि कानून इसके खिलाफ है, जनता की मौत हो रही है, सभ्य समाज हिंसक होते चल रहा है, और निठल्लों की फौज सडक़ों पर नाचती है जिससे जनजीवन अस्त-व्यस्त होता है, लाखों लोगों का रोज का कामकाज प्रभावित होता है, और पुलिस एक निहायत ही गैरजरूरी दबाव में उलझ जाती है कि उसे अलग-अलग धर्मों के धर्मान्ध लोगों का विरोध झेलकर अदालत के आदेश पर अमल करना होता है, कानून का पालन करवाना होता है, या फिर मीडिया, सामाजिक कार्यकर्ता, और डॉक्टरों की आलोचना झेलनी पड़ती है। हमारा ख्याल है कि छत्तीसगढ़ सरकार को पिछले बरसों में हाईकोर्ट के दखल के बिना भी अपनी साधारण संवैधानिक जिम्मेदारी को पूरा करते हुए इस अराजकता को खत्म करना था। लेकिन न पिछली कांग्रेस सरकार ने यह किया, न ही मौजूदा भाजपा सरकार का ऐसा कोई इरादा दिखता है। हाईकोर्ट की रोजाना की दखल के बीच भी छत्तीसगढ़ में सिर्फ अफसरों के स्तर पर ऐसे गोलमोल आदेश जारी किए गए जिनका कोई मतलब नहीं था। ऐसे ढुलमुल रवैये का नतीजा यह हुआ कि नेताओं की शह पर गैरकानूनी शोरगुल करने वाले डीजे संचालकों के हौसले आसमान पर बने रहे, और हालत यह हो गई कि उन्होंने सोशल मीडिया पर कान खराब होने की चेतावनी देने वाले डॉक्टर को हिंसक धमकी देना शुरू कर दिया। यही अराजकता उनका हौसला इस गैरकानूनी धंधे में आगे पूंजीनिवेश तक ले गई, और कर्ज लेकर भी उन्होंने कानून तोडऩे वाला सामान खरीदना जारी रखा। अब इसके लिए अदालत या सरकार, या समाज के आम लोग तो जिम्मेदार हो नहीं सकते, अगर किसी को ऐसा खतरा उठाने का शौक है। कानून को तोडक़र किए जाने वाले कारोबार में किसी नुकसान की आशंका पर तो उस कारोबारी को ही सोचना पड़ता है। फिर यह कारोबार तो ऐसा है जो महज टैक्स चोरी का नहीं है, यह आम जनता की जिंदगी बर्बाद करने वाला कारोबार है, और इसमें घाटे को लेकर अगर किसी कारोबारी ने खुदकुशी की है तो वह बात तो तकलीफदेह है, लेकिन इस कारोबार के लोगों को आपस में ही यह सोचना होगा कि शोरगुल की गुंडागर्दी पर अब जब अदालत भारी पड़ रही है, और पिछले कुछ बरसों से लगातार पड़ रही है, तो इस धंधे से धीरे-धीरे हाथ समेट लेना बेहतर होता, न कि इसमें और पूंजीनिवेश करना।
सरकार और अदालत जिस बात को गैरकानूनी करार दे चुकी है, उसमें पैसा लगाना लोगों के अपने विवेक का मामला रहता है। आज अगर कोई खेती की जमीन खरीदकर उस पर गैरकानूनी प्लॉटिंग करके उस पर सडक़, नाली बनाकर, बिजली के खंभे तनवाकर प्लॉट बेच रहे हैं, तो प्रशासन उसे जब तहस-नहस करता है, तो वे अपनी पूंजीनिवेश का रोना नहीं रो सकते, यह काम शुरूआत से ही गैरकानूनी था। ऐसे बहुत से काम है। कहीं कोई बिजली चोरी करके उसे मुफ्त का सामान मानकर कारखाना चलाए, और उसे पकड़ लिए जाने पर खुदकुशी करे, तो इसे कोई जुर्म तो कहा नहीं जा सकता। बहुत से स्कूल-कॉलेज मान्यता मिलने के पहले दाखिला दे देते हैं, और बाद में मान्यता न मिलने पर बच्चों के भविष्य की दुहाई देते हैं।
लाउडस्पीकर का गैरकानूनी शोरगुल करने का कारोबार हो, या गैरकानूनी टैक्सी चलाने का, या अवैध प्लॉटिंग करने का, इन सब पर सरकार को समय रहते कार्रवाई करनी चाहिए, कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए, ताकि यह सिलसिला जड़ से ही मिटाया जा सके। जब अराजक धंधों का बड़ा सा पेड़ लहलहाने लगे, उसके बाद उसकी टहनियों को काटना भी भारी पड़ता है। लेकिन जब वह बीज से निकलकर जमीन फोड़ता ही है, तभी उसे निकालकर फेंकना आसान रहता है। सरकार को कानून तोडऩे वाले धंधों को बिना देर किए हुए खत्म करना चाहिए ताकि लोग उनमें अधिक पूंजीनिवेश का रोना न रोएं। डीजे संचालक की खुदकुशी तकलीफ की खबर है, लेकिन यह कानून तोडऩे की ताकत पर लोगों के भरोसे का नतीजा है कि यह धंधा अदालत को ठेंगा दिखाते हुए हमेशा ही जारी रहेगा। लोगों को यह समझना चाहिए कि गैरकानूनी काम किसी भी दिन बंद हो सकता है, और उसमें पैसा डालना, पैसे को अंधेरे गहरे कुएं में डालने सरीखा ही रहता है। (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)