संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : सडक़ों से जानवर हटाने हाईकोर्ट जुटा लाठी लेकर, सरकार जिम्मा पूरा करे...
24-Sep-2024 2:44 PM
‘छत्तीसगढ़’ का  संपादकीय :  सडक़ों से जानवर हटाने  हाईकोर्ट जुटा लाठी लेकर,  सरकार जिम्मा पूरा करे...

कल एक बार फिर छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट राज्य सरकार और नेशनल हाईवे अथॉरिटी पर खफा हुआ है क्योंकि राजमार्गों से जानवरों को हटाने में ये पूरी तरह नाकामयाब रहे हैं। एक जनहित याचिका पर सडक़ों पर जानवरों की वजह से होने वाले हादसों का मामला उठाया गया था, और मुख्य न्यायाधीश वाली एक दो जजों की बेंच इसकी सुनवाई कर रही है। वह साल भर से सरकार को बोलते आ रही है कि सडक़ों से जानवरों को हटाया जाए, और उनके मालिक उन्हें इस तरह सडक़ों पर छोड़ देते हैं, इसके लिए उन पर जुर्माना लगाया जाए। ऐसे जानवर न सिर्फ राष्ट्रीय और प्रादेशिक राजमार्गों पर डेरा डाले रहते हैं, बल्कि वे शहरों के भीतर की सडक़ों पर भी ट्रैफिक रोकते हुए पड़े या खड़े रहते हैं। इसके अलावा शहर की कॉलोनियों में भी लोगों से कुछ खाना मिलने की उम्मीद में गायों और सांडों का डेरा लगे ही रहता है। इस बीच कल सुबह ही बिलासपुर-कोरबा के बीच एक तेज रफ्तार मालवाहक की चपेट में 20 से अधिक जानवर आ गए, जिनमें 18 की मौके पर ही मौत हो गई। इसके ड्राइवर को गिरफ्तार किया गया है। जिस गौवंश को लेकर जनता तुरंत उत्तेजित हो जाती है, वह पूरे प्रदेश में सडक़ों पर डेरा डाले हुए है, लेकिन उसका कोई इंतजाम हो नहीं पा रहा है।

छत्तीसगढ़ के साथ एक दिक्कत यह है कि पिछले पूरे पांच बरस कांग्रेस की भूपेश बघेल सरकार गौशाला, गौठान, गौवंश, गोबर, गोमूत्र जैसे कई नारे लगाती रही, हजारों करोड़ रूपए सालाना इन पर खर्च भी किया गया, लेकिन जो असली जमीनी दिक्कत थी, वह ज्यों की त्यों बनी रही। न सडक़ों से जानवर हटे, और न ही किसानों के खेतों में अवारा जानवरों का फसलों का हमला ही थमा। अभी हालत यह है कि कुछ जगहों पर किसान अवारा मवेशियों के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं कि वे फसल बर्बाद कर रहे हैं। जशपुर में सैकड़ों किसानों ने सडक़ जाम कर दी कि अवारा मवेशी उनकी साल भर की फसल को खा जा रहे हैं, और अगर यही सिलसिला चलते रहा तो किसानों के भूखे मरने की नौबत आ जाएगी। ऐसी नौबत उत्तरप्रदेश में भी हर जगह देखने मिल रही है जहां पर गौवंश को कसाईघर नहीं जाने दिया जाता, और उनकी आबादी बढ़ती जा रही है। लेकिन खेतों को बचाने के लिए जानवरों को कसाईघर भेजना जरूरी नहीं है, उनके लिए अलग से बाड़े बनाकर उन्हें वहां रखना एक समाधान हो सकता है, लेकिन न पिछली सरकार के कार्यकाल में यह हुआ, और न ही अभी होते दिख रहा है। 

गाय को मां मानना बड़ी अच्छी बात है, लेकिन यह मां मोटेतौर पर घूरों पर गंदगी खाकर जिंदा है, और उसके पेट से 25-50 किलो पॉलीथीन सर्जरी में निकलता है। सरकारी अनुदान से चलने वाली गौशालाओं का भ्रष्टाचार इतना भयानक है कि भाजपा की रमन सिंह सरकार के वक्त ऐसी अनुदान प्राप्त गौशालाओं में दर्जनों गायों के भूख से मरने के मामले सामने आए थे। लोगों की सामान्य जानकारी भी यही है कि गौशाला चलाने के नाम पर ऐसी संस्थाओं के पदाधिकारी पैसों की अफरा-तफरी करके खुद तो हट्टे-कट्टे सांड सरीखे हो जाते हैं, और गाएं भूख से मरती रहती हैं। इसलिए सरकार गौशाला या गाय के लिए शरणस्थली तो बना सकती है, उसे चलाने का मतलब अंधाधुंध भ्रष्टाचार होगा। आज जब इंसानी मरीजों वाले सरकारी अस्पतालों में मनमाना भ्रष्टाचार चलता है, तो बेजुबान जानवरों के हिस्से की घास खाकर इंसान ही मोटे होते रहेंगे। लेकिन भ्रष्टाचार की वजह से किसी समाधान या इलाज पर काम न करने का मतलब तो देश-प्रदेश को बंद करना हो जाएगा क्योंकि यहां तो हर मामले में, हर काम में भ्रष्टाचार रहता ही है। इसलिए इस चर्चा से परे राज्य सरकार, पंचायत और म्युनिसिपल को जानवरों को रखने के बाड़े बनाने पड़ेंगे, ताकि सडक़ों से जानवर हटें। 

आज जब सडक़ पर किसी जानवर को किसी गाड़ी से चोट लग जाने पर उस गाड़ी के मालक-चालक के खिलाफ जुर्म दर्ज होता है, तो उससे एक बुनियादी सवाल यह भी खड़ा होता है कि सडक़ पर किसका हक है, वह किस इस्तेमाल के लिए बनी है? सडक़ पर गाडिय़ों के सामने जानवरों के आने पर या तो उन जानवरों के मालिकों के खिलाफ जुर्म दर्ज होना चाहिए, या फिर सडक़ के रख-रखाव के जिम्मेदार विभाग या पंचायत-म्युनिसिपल पर कार्रवाई होनी चाहिए। छत्तीसगढ़ में किसी गाड़ी से किसी जानवर को बिना लापरवाही के भी ठोकर लग जाए तो पशुओं पर अत्याचार का मामला दर्ज होता है, और कई मामलों में मौके पर ही गौभक्त होने का दावा करने वाले लोग सडक़ पर इंसाफ कर देते हैं। यह नौबत कानून की बुनियादी समझ के खिलाफ है। सडक़ों पर चलने के लिए लोग टैक्स देते हैं, और इसके बाद सडक़ों को ठीक रखने, वहां से जानवरों की बाधा हटाने का जिम्मा सरकार का होता है। लेकिन सरकार अपना नियमित कामकाज नहीं करती है, जिम्मेदारी नहीं निभाती है, तब जाकर अदालत को दखल देनी पड़ती है। 

छत्तीसगढ़ में बरसों के बाद यह गणेशोत्सव ऐसा निकला है जिसमें लाउडस्पीकरों का हमला कम हुआ है। हाईकोर्ट लगातार लाठी लेकर बैठा था, और अपने आदेशों पर अमल करवाने के लिए बार-बार चेतावनी जारी कर रहा था। जब अफसरों को अदालत की अवमानना में जेल जाने का खतरा नजर आया, तब जाकर लाउडस्पीकरों की गुंडागर्दी पर काबू किया गया। लेकिन सवाल यह है कि कानून पर अमल की अपनी बुनियादी जिम्मेदारी को सरकार कब तक अनदेखा करती रहेगी, और कब तक हाईकोर्ट उन्हीं मुद्दों को लेकर लगातार सरकार के पीछे पड़े रहेगा? राज्य सरकार और स्थानीय संस्थाओं को अपना जिम्मा पूरा करना चाहिए, सडक़ों पर जानवरों की मौजूदगी से बहुत से इंसानों की मौत भी होती है जिसके लिए इन सडक़ों के रख-रखाव के जिम्मेदार विभाग ही मुजरिम हैं। सरकार को अदालती कटघरे में एक ही मामले पर बार-बार इस तरह खड़े होने से बचना चाहिए। यह नौबत बड़ी शर्मिंदगी की है, और जानवरों के जिन मालिकों को अपनी कानूनी जिम्मेदारी का अहसास नहीं है, उनकी गिरफ्तारी भी शुरू होनी चाहिए क्योंकि वे जनसुरक्षा के लिए एक बड़ा खतरा खड़ा करते हैं। अब चूंकि जानवरों का कसाईघर जाना बंद कर दिया गया है, इसलिए सरकार को ही इस बढ़ती हुई आबादी का इंतजाम करना होगा।

(क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)

अन्य पोस्ट

chhattisgarh news

cg news

english newspaper in raipur

hindi newspaper in raipur
hindi news